ललितपुर: कर्ज और प्राकृतिक आपदा का कहर इन किसानों की मौत का कारण बन गया

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार देश में रोज 28 किसान और खेतिहर मजदूर आत्महत्या कर रहे हैं, जबकि 89 दिहाड़ी मजदूर जान देने को मजबूर हैं। ये सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है, पिछले कुछ दिनों में बुंदेलखंड में कई किसानों की जान चली गई।

Arvind Singh ParmarArvind Singh Parmar   10 Sep 2020 6:44 AM GMT

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ललितपुर: कर्ज और प्राकृतिक आपदा का कहर इन किसानों की मौत का कारण बन गया

ललितपुर (बुंदेलखंड)। अभी एनसीआरबी (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो) रिपोर्ट को आए कुछ ही दिन ही हुए हैं, जिसके अनुसार साल 2019 में 10,281 किसानों ने आत्महत्या की थी, रिपोर्ट आने के कुछ दिन बाद ही बुंदेलखंड में पिछले एक हफ्ते में कई किसानों ने अपनी जान दे दी।

पैंसठ साल के किसान टुंडे प्रजापति अपने खेत पर बने जिस कुएं के पानी से फसल की सिंचाई करते थे, अपनी प्यास बुझाया करते थे, कर्ज की वजह से उसी कुएं में कूदकर अपनी जान दे दी।

टुंडे प्रजापति ललितपुर जिले के जाखलौन गाँव के रहने वाले थे, इनके परिवार में चार लड़के, बहू और उनके बच्चों सहित बीस लोगों का संयुक्त परिवार है, परिवार का मुखिया होने के नाते परिवार चलाने की सारी जिम्मेदारी टुन्डे प्रजापति की थी।

कुछ वर्षों से आलम यहीं हैं मौसम के उतार चढ़ाव से फसलें बर्बाद हो रही हैं, किसान कई वर्षों से खामियाजा भुगतते आ रहे हैं। टुन्डे प्रजापति 18 एकड़ बड़ी जोत के किसान थे, सेंट्रल बैंक ऑफ इण्डिया जाखलौन से केसीसी पर 2.71 लाख का ऋण ले रखा था। दो साल से लगातार फसल धोखा दे रही थी, पूरे परिवार का खर्च और ऊपर से इस कर्ज को चुकाने की चिंता टुंडे प्रजापति को खाये जा रही थी।


इस बार टुंडे ने 18 एकड़ में खरीफ की उड़द की बुवाई की थी, उन्हें आशा थी कि पिछले साल की तरह फसल नष्ट नहीं होगी, लेकिन बीज, कीटनाशक आदि में तमाम खर्च करने के बाद उड़द फसल के हालात पिछले साल की तरह ही थे। फसल धोखा दे रही थी। टुन्डे प्रजापति के सबसे छोटे लड़के सुखसिंह प्रजापति (30 वर्ष) कहते हैं, "दो तीन दिन से लगातार पिता जी खेत पर जा रहे थे रोज घर पर लौटकर एक ही बात किया करते थे, तीन साल से फसल धोखा दे रही है और कर्ज बढ़ रहा है, इस बार भी उड़द बर्बाद हो गई। अब कर्जा कहां से चुकाएंगे। 20 लोगों का परिवार कैसे चलेगा अब अगली फसल को कर्ज कौन देगा। पिता जी को चिंता थी, वहीं खेत पर बने कुएं में गिर कर अपनी जान दे दी। अगर फसल खराब नहीं होती तो हमारे पिता नहीं मरते।

टुन्डे प्रजापति की आशा थी कि इस बार नहीं तो अगली साल कर्ज चुक ही जायेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। फसल तीन साल से धोखा देती रही। ऐसे में फायदा कैसे होगा। हर साल हुए नुकसान की चिंता और बढ़ते कर्ज का जिक्र करते हुए टुन्डे प्रजापति की बेटी सूरज देवी (32 वर्ष) कहती हैं, "तीन साल से फसल नहीं हुई, पिछले साल की तरह इस बार उड़द खराब हो गई। कर्ज को लेकर पिता जी को मानसिक टेंशन थी, वो कहते थे कि कर्ज कैसे चुकेगा या फिर जमीन बेचनी पड़ेगी लेकिन हम अपने बच्चों की आजीविका कैसे बेच दें। कर्जा तो तीन लाख का हैं, पिता जी ने खाना खाना छोड़ दिया था, बहुत रोते थे। उसी चिंता में कुएं में कूद कर अपनी जान दे दी।"

टुंडे की मौत के तीन पहले ही जखलौन गाँव के किसान हरदयाल उर्फ मलिंदर कुशवाहा की भी सदमें से मौत हो गई थी।

तीन एकड़ जमीन के किसान हरदयाल कुशवाहा उर्फ मलिन्दर छोटी जोत के किसान हुआ करते थे, बुंदेलखंड में मौसम परिवर्तन की मार और प्राकृतिक आपदाओं के कहर से हरदयाल कुशवाहा की तरह सैकड़ों किसान कर्ज के दलदल में फंसने के बाद नहीं उभर पाते फिर किसान या तो जमीन बेचते हैं या फिर मौत को गले लगाते हैं। यही हाल हरदयाल का भी हुआ।

हरदयाल कुशवाहा ललितपुर जिले के जाखलौन गाँव के रहने वाले थे, अपने पीछे दो बेटे भगत कुशवाहा (14 वर्ष) प्रिंस (8 वर्ष) और पत्नि गनेशी को छोड़ गए। मलिन्दर ने जिस कर्ज को चुकाने के लिए दो साल पहले डेढ़ एकड़ जमीन बेचकर सारा कर्जा अदा किया था। शेष बची डेढ़ एकड़ जमीन पर खेती की इन दो सालों में लगातार मौसम की मार से फसलें तबाह हुई, जिसकी मार ने फिर हरदयाल कुशवाहा को कर्ज लेने को मजबूर होना पड़ा। इस बार डेढ़ एकड़ की बर्बाद उड़द की फसल देखकर सदमें में थे उन्हे चिंता थी कि कर्ज कैसे चुकाएंगे, दो दिन पहले उड़द काटने की कहकर खेत पर गये बर्बाद फसल का सदमा सहन नहीं कर पाये और खेत पर ही उनकी मौत हो गई।


पूरी घटना से हरदयाल कुशवाहा के छोटे भाई मोहन लाल काफी दुःखी हैं, वो कहते हैं, "खेत पर सुबह उड़द काटने का कहकर निकल गये थे, जब दोपहर का खाना लेकर खेत पर पहुंचकर देखा तो बेहोशी की हालात में बड़े भैया पड़े थे, वो खत्म (मर) चुके थे।"

हरदयाल कुशवाहा के पास तीन एकड़ जमीन होने की बात करते हुए मोहन कुशवाहा (34 वर्ष) कहते हैं, "कर्ज ज्यादा था उसे चुकाने के लिए दो साल पहले डेढ़ एकड़ जमीन बेची थी, अब शेष डेढ़ एकड़ ही जमीन थी। इन दो सालों में पैदावार बिल्कुल नहीं हुई, जितना कर्जा पहले था उसी के करीब फिर कर्जा हो गया। भैया कहते थे अब कर्जा चुकाएंगे तो बच्चों को कुछ नहीं बचेगा, उड़द की खराब फसल देखकर वो घबरा गये और खत्म (मर) गए। मेरे पास वो जब बैठते थे कहते थे कि ये कर्जा कैसे चुकेगा।"

पहले इस क्षेत्र के किसानों मजदूरों के पास रोजगार था जाखलौन और धौर्रा क्षेत्र में करीब 60 से 70 पत्थर की खदानों पर पत्थर काटने और निकालने के काम में मजदूरी मिलती रहती थी। हजारों की संख्या में लोग काम करते थे। अब कुछ वर्षों से ये बंद पड़ी हैं, किसानी प्राकृतिक आपदाओं के साये में होती हैं मोहन लाल कुशवाहा कहते हैं, "अब जो हैं सो किसानी है, किसानी में लगातार नुकसान होता है। इस बार उड़द कमजोर दिखी पौधों में फलिया नहीं थी वो उड़द को देखकर घबड़ाकर खत्म (मर) गए।"


मोहन लाल अपने बड़े भाई हरदयाल कुशवाहा के खेत के उड़द दिखाते हुऐ कहते हैं, "देखो, यहीं उड़द हैं उड़द के पौधों में ना दाना हैं ना फलिया हैं, इसी फसल को देखकर परेशान थे चिंता थी कि कर्ज कैसे चुकेगा। नुकसान को देखकर सदमा आ गया और इसी खेत पर वो मर गए।"

किसान हरदयाल के पड़ोसी होने के नाते बाला प्रसाद का उठना बैठना था, पहले का कर्ज जमीन बेचकर चुकाया अब इन दो सालों में रिश्तेदारों और आपसी वालों से करीब डेढ लाख का कर्जा फिर ले लिया। बच्चों की पढ़ाई लिखाई घर का खर्च और खेती में नुकसान। कर्ज बढ़ने की वजह रही। बाला प्रसाद (35 वर्ष) कहते हैं, "पिछले साल की तरह इस बार भी उड़द बर्बाद हो गई जिसे देखकर मलिंदर मानसिक रूप से काफी परेशान थे, सुबह वो अपने खेत पर आये फसल देखी सदमें के चलते वो चक्कर खाकर गिरने से उनकी मृत्यु हो गई।"

सुखाड़, अतिवृष्टि, बेवक्त बारिश और प्राकृतिक आपदाओं के कहर से विगत वर्ष 2019 में रोजाना 28 किसानों (खेत मालिक और कृषि मजदूर) और 89 दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की है। सरकारी संस्थान राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की सालाना रिपोर्ट में ये आंकड़े निकल कर सामने आये हैं। वर्ष 2019 में 10281 किसानों और खेतिहर मजदूरों ने जान दी है। जबकि 32,559 दिहाड़ी मजूदरों ने इस अवधि में आत्महत्या की है। साल 2019 में कुल 139,123 लोगों ने पूरे देश में जान दी।

बुंदेलखंड का किसान दिनों दिन कर्ज के दलदल में फसता चला जाता हैं कर्ज से उभरने के लिए या तो वो जमीन बेचता हैं या फिर आत्महत्या करता हैं। मलिंदर कुशवाहा के पड़ोसी बाला प्रसाद कर्ज में फंसने की वजह बताते हैं, "किसान बैंक से कर्ज लेकर खेती में लगाता है, जैसे ही फसल पककर तैयार होती है, आपदा की वजह से या तो फसल खराब हो जाती हैं या पैदावार नहीं होती। ऐसे में किसान बैंक का कर्ज चुकाए तो कैसे? अब खेती करने के लिए साहूकार या आपसी वालों से द्वारा कर्ज लेना पड़ता है। अगर फिर फसल ने धोखा दे दिया तो दो जगह से कर्जदार हो जाएगी। फिर तीसरे जगह से कर्ज लेगा एक कर्ज चुकाने के लिए किसान कर्ज के दलदल में फंसता चला जाता है। बुंदेलखंड का किसान कुछ वर्षो से आत्महत्याएं कर रहे हैं। मानसिक रूप से तनाव में आकर किसानों की मृत्यु हो रही हैं।

आत्महत्या की वजह एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 में जिन 139,123 लोगों ने जान दी है, उसकी सबसे बड़ी वजह पारिवारिक परेशानियां रहीं, जिसके चलते 32.4 फीसदी लोगों ने मौत का रास्ता चुना जबकि 17.1 फीसदी ने बीमारियों के चलते जान दी।

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