हरियाणा: किसानों का हिसार आंदोलन में जीत का दावा, राकेश टिकैत बोले- वापस होंगे किसानों पर दर्ज मुकदमें

हिसार में 16 मई को विरोध प्रदर्शन के दौरान किसानों पर दर्ज हुए मुकदमें वापस होंगे। 24 मई को किसानों के साथ बैठक के बाद इस संबंध में फैसला लिए जाने की खबर है। वहीं किसानों ने अब 26 मई के काला दिवस की तैयारी तेज कर दी है।
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हरियाणा में 16 मई को किसानों के प्रदर्शन और हंगामे के दौरान किसानों पर दर्ज मुकदमें वापस होंगे। हिसार में किसानों और सरकार के बीच 24 मई को हुई वार्ता में इस संबंध में फैसला लिए जाने की खबर है। बैठक के बाद किसान नेता राकेश टिकैत ने ट्वीट किया कि “किसानों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि किसानों को कोई डरा, डिगा वा थका नहीं सकता है। किसानों पर हिसार आंदोलन में दर्ज फर्जी मुकदमे वापस होंगे।” हालांकि इस संबंध में हरियाणा सरकार की तरफ कोई अधिकृत बयान नहीं आया है।

किसानों पर दर्ज मुकदमों को वापस लेने को लेकर किसानों ने हिसार में सोमवार को जोरदार प्रदर्शन किया। 24 मई को किसानों के प्रदर्शन के दौरान एक किसान की मौत हो गई। किसान नेताओं के बीच हुई वार्ता के बाद सरकार ने मृतक किसान के परिवार से एक व्यक्ति को नौकरी देने का वादा किया है। एक किसान नेता ने गांव कनेक्शन को बताया कि बैठक में मौजूद डीएम और पुलिस अधिकारियों ने कहा है एक महीनें में किसानों पर दर्ज मुकदमें वापस लिए जाएंगे।

हिसार में क्या हुआ था..

इसी महीने की 16 तारीख को हिसार में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को कोविड अस्पताल का उद्धाटन करने पहुंचे थे। इस दौरान किसानों ने जोरदार प्रदर्शन किया था। जिसके बाद पुलिस-किसानों के बीच झड़प हुई थी। पुलिस ने लाठीचार्ज, रबर की गोलियां और आंसू गैस छोडी थी, जिसमें दर्जनों किसान घायल हो गए थे।, जिनमें की महिलाएं भी थी। किसानों के साथ झड़प में 20 से ज्यादा पुलिसकर्मी भी घायल हुए थे। जिसके बाद पुलिस ने इस मामले में 350 किसानों पर आईपीसी की अलग-अलग धाराओं में मुदकमा दर्द किया था। संयुक्त किसान मोर्चा इन किसानों पर दर्ज मुकदमों को वापस लेने की मांग कर रहा था।

24 मई को राकेश टिकैत भी हिसार पहुंचे थे।

किसान आंदोलन के 6 महीने: आंदोलनकारी किसान मनाएंगे काला दिवस, भारतीय किसान संघ शामिल नहीं

तीन कृषि कानूनों के खिलाफ जारी कई राज्यों के किसानों के आंदोलन के 6 माह और नरेंद्र मोदी सरकार के 7 साल पूरे होने पर आँदोलनकारी किसान 26 मई काला दिवस मनाएंगे। संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि देशभर में किसान काले झंडे लगाएंगे और किसान विरोधी सरकार का पुतला जलाएंगे। हालांकि भारतीय किसान संघ ने कहा है कि वो ‘काला दिवस’ का समर्थन नहीं करता है।

तीन कृषि कानूनों की वापस लेने की मांग को लेकर 26 नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि किसान आंदोलन के 6 महीने और किसान विरोधी नरेंद्र मोदी सरकार के निरंकुश कुशासन के 7 साल पूरे होने पर 26 मई 2021 को पूरे देश में काला दिवस मनाया जाएगा।

किसान स्वराज के संयोजक और संयुक्त किसान मोर्चा के कोर सदस्य योगेंद्र यादव ने अपने बयान में कहा कि 26 मई के दिन चार-चार संयोग जुड़ रहे हैं। संयुक्त किसान मोर्चा को दिल्ली में आए 6 महीने पूरे हो रहे हैं। सेंट्रल ट्रेड यूनियन ने लेबर कोड के खिलाफ जो संघर्ष शुरु किया, उसके भी छह महीने पूरे हो रहे हैं। नरेंद्र मोदी की जो किसान विरोधी सरकार है उसके 7 साल पूरे हो रहे हैं। और यही वो दिन है बुद्ध पूर्णिमा का जब हम भगवान बुध के जन्म, निर्वाण और परिनिर्वाण को याद करते हैं।”

योगेंद्र यादव ने आगे कहा कि इस अवसर पर संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री को एक चिट्टी लिखी है, किसानों के साथ दोबारा संवाद को शुरु करना आप की जिम्मेदारी है। और अगर 26 मई तक ऐसा नहीं होगा तो किसान आंदोलन अपने संघर्ष के चरण की घोषणा करेगा।”

भारतीय किसान संघ ने 26 मई के कार्यक्रम का ही विरोध किया है। भारतीय किसान संघ कमहामंत्री बद्रीनारायण चौधरी ने जारी बयान में कहा कि “दिल्ली की सीमा पर आंदोलनरत किसान नेताओं द्वारा 26 मई 2021 को लोकतंत्र का काला दिवस घोषित किया गया है, इसका भारतीय किसान संघ विरोध करता है। गत 26 जनवरी जैसा भय, आतंक एवं डर पैदा करने की योजना दिखाई दे रही है। 26 मई का दिन चुनने के पीछे कारण कुछ भी रहा हो परन्तु देश के किसान इस बात से आक्रोश में है कि किसान के नाम को बदनाम करने का अधिकार इन स्वयंभू, तथाकथित किसान नेताओं को किसने दिया है।”

बद्रीनारायण चौधरी बयान में आगे कहा कि भारतीय किसान संघ केन्द्र सरकार का भी आहवान करता है कि केवल आंदोलनकारियों के अलावा भी देशभर में किसानों के मध्य आंदोलनात्मक एवं रचनात्मक कार्य करने वाले अन्यान्य किसान संगठन और भी हैं, उनकी केन्द्र द्वारा अनदेखी कब तक की जायेगी, उनको बुलाकर आम किसान की चाहत एवं उससे जुड़ी कठिनाईयों पर क्यों नही वार्ता की जाती?”

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