रक्तरंजित : परिवार अक्सर खुद ही दबाते हैं बलात्कार के मामले

Diti BajpaiDiti Bajpai   26 Jun 2018 6:17 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
रक्तरंजित : परिवार अक्सर खुद ही दबाते हैं बलात्कार के मामलेफोटो - अभिषेक वर्मा।

नाबालिगों से यौन शोषण के मामले अचानक सुर्ख़ियों में हैं. लेकिन किसी भ्रम में मत रहिएगा। खेतों में, स्कूल के रास्ते में, शौच के लिए जाते वक़्त बलात्कार ग्रामीण महिलाओं की रोज़मर्रा की सच्चाई है और ऐसे मामले बहुत तेज़ी से बढ़ रहे हैं, जो सुर्खियाँ और हैशटैग नहीं बन सके, ऐसे मामलों पर ध्यान लाने के लिए गाँव कनेक्शन शुरू कर रहा है एक विशेष सीरीज.. हमें ऐसे मामलों के बारे में बताइये, हम पीड़िताओं को न्याय दिलाने का भरसक प्रयास करेंगे।

सीरीज का पहला भाग यहां पढ़िए- जब तक आप ये खबर पढ़ कर खत्म करेंगे, भारत में एक और बच्ची का बलात्कार हो चुका होगा

लोक लाज की चिंता, थाना-कोर्ट-कचहरी करने में हिचक, लड़की की शादी न हो पाने का अंदेशा, और शक्तिशाली बलात्कारियों का डर इन सभी कारणों की वजह से भारत में नाबालिग लड़कियों के विरुद्ध बढ़ते बलात्कार के मामलों में अक्सर परिवार ही मामलों को दबा देते हैं।

"ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं हिंसा का शिकार होती हैं लेकिन वो अपने साथ हुए अपराध को बदनामी के डर से या फिर उनको लगता होता है कि न्याय नहीं मिलेगा इसलिए थाने तक जाते ही नहीं है," गुवाहाटी उच्च न्यायालय में वकील जे पी चौहान ने गाँव कनेक्शन को फ़ोन के माध्यम से बताया। "कुछ मामलों में पीड़िता के परिवार वाले ही केस को वापस ले लेते है। क्योंकि जब तक उनको न्याय मिलता है तब उनके बेटी की उम्र शादी लायक हो जाती है," उन्होंने कहा।

लखनऊ से सटे बाराबंकी जिले के लोहियापुर गाँव की चौदह वर्षीय उमा (नाम बदला गया है) अपनी खेलने-कूदने की उम्र में एक बच्चे को जन्म दे चुकी है। उसका बलात्कार उसी के गाँव के एक युवक ने किया। गाँव वालों द्वारा लगातार किये गए अपमान के कारण उसे अपने परिवार के साथ गाँव छोड़ना पड़ा।

निर्भया कांड के बाद समाज में भी काफी बदलाव देखें गए। अगर किसी महिला के साथ घटना होती है तो चाहे वो सोशल मीडिया हो, चाहे सड़क पर उतर के धरना करना हो, नागरिकों की आवाजें बुलंद हुई हैं।
सुनीता मेनन, निदेशक, ब्रेकथ्रू संस्था

"जब उसने पहली बार मेरे साथ रेप किया तो उसने कहा कि अगर किसी को बोला तो जान से मार देंगे। मेरे साथ वो रेप करता रहा मैंने डर से किसी को नहीं बोला," उमा ने कहा।

पांच महीने के बच्चे को कंधे से लगाए निशा बताती हैं, "जब मेरे पेट में दर्द हुआ तब अम्मा डॉक्टर के पास ले गई पता चला मैं गर्भ से हूं। उस दिन बहुत मारा गया, दो दिन भूखा रखा गया। तब मैंने पूरी बात अपनी अम्मा को बताई।"

यह मामला कोर्ट में अभी भी चल रहा है, लेकिन अभियुक्त ने अपने आप को नाबालिग बता कर ज़मानत ले ली. उमा के वकील के अनुसार यह एक फर्जी कागज़ के आधार पर हुआ।

नाबालिगों के खिलाफ यौन शोषण के मामलों के लिए अब एक नया और कड़ा कानून बन गया है। पॉक्सो (प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012) यानी लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012. यह कानून बच्चों को यौन उत्पीड़न व पोर्नोग्राफी जैसे गंभीर अपराधों से सुरक्षा प्रदान करता है। अगर किसी पर पॉक्सो एक्ट लगता है तो तुरंत गिरफ्तारी होती है। इस एक्ट के तहत आरोपी को जमानत भी नहीं मिलती है।

महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ होने वाली हिंसा और भेदभाव को खत्म करने के लिए पिछले कई वर्षों से चार राज्यों में ब्रेकथ्रू संस्था काम कर रही है।

दिल्ली में स्थित इस संस्था की निदेशक सुनीता मेनन बताती हैं, "निर्भया कांड के बाद बलात्कार और महिलाओं के यौन उत्पीड़न से जुड़े कानूनों जहां सख्त किया गया। वहीं इस केस के बाद समाज में भी काफी बदलाव देखें गए। अगर किसी महिला के साथ घटना होती है तो चाहे वो सोशल मीडिया हो, चाहे सड़क पर उतर के धरना करना हो, नागरिकों की आवाजें बुलंद हुई हैं।"

उन्होंने कहा कि जो महिलाएं इस तरह की हिंसा का शिकार होती हैं वो पहले रिपोर्ट दर्ज कराने में संकोच महसूस करती थी, लेकिन अब इसमें बदलाव आ रहा है।

"महिलाओं के साथ घटनाएं पहले भी होती थी और आज भी हो रही है। लेकिन अब ऐसा महौल है कि लोग चाहते है कि "अब हिंसा नहीं"।" सुनीता मेनन ने कहा, "इसलिए मामले दर्ज हो रहे है। ऐसी घटनाओं को लोग कलंक मानते है लेकिन अब लोगों का रिस्पांस ज्यादा है।"

लेकिन यह जागरूकता शहरों में ज्यादा देखी गयी है। ग्रामीण महिलाओं के लिए अब भी यौन शोषण के मामलों में न्याय पाना एक लम्बी और तकलीफदेह प्रक्रिया है।

उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाली संस्था महिला समाख्या की जिला अध्यक्ष नीबू कली बताती हैं, "हम लोग बहुत प्रयास करते हैं कि लड़की को न्याय मिले पर ऐसे मामलों में हम लोग भी हार जाते है। अगर थाने में जाते भी तो कोई नहीं बोलता और लड़की पर घर वालों का इतना दवाब रहता है कि वो तो सामने ही नहीं आती है।"

ये भी पढ़ें- 'बलात्कार के बाद होने वाली मेडिकल जांच ने भी मुझे शर्मशार किया'

उत्तर प्रदेश और झारखण्ड में महिलाओं को क़ानूनी अधिकार दिलाने वाली संस्था आली ऐसी महिलाओं के साथ वर्षों से काम कर रही हैं। संस्था की झारखण्ड संयोजिका रेशमा सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया, "महिलाओं और बच्चों के विरूद्ध यौन अपराध बढ़ रहे हैं, लोगों में न्याय पाने की इच्छा भी बढ़ी है, लेकिन न्याय के लिए लंबे समय तक इंतजार के कारण पीड़ित परिवार अक्सर पीछे हट जाता है।"

रेशमा झारखंड राज्य में पिछले 17 वर्षों से महिला तस्करी और पीड़ित महिलाओं को कानूनी मदद दिला रही है। उन्होंने बताया, "पिछले चार-पांच वर्षों से रांची के आस-पास के कई गाँवों में एक चीज देखी गई हैं कि गाँव के प्रधान ने पैरवी की है कि केस वापस किया जाए क्योंकि वो अपने गाँव को निर्मल गाँव बनाना चाहते है ताकि उन्हें अवार्ड मिल सके। तो ऐसे में कई बलात्कार के केस दब जाते है।"

अधिकांश मामलों में पीड़िता का दूसरा बलात्कार -- उसका सामाजिक बहिष्कार और अपमान -- उसके पड़ोसियों, रिश्तेदारों और गाँव वालों द्वारा ही होता है।

"अभी भी कई ऐसे गाँव है जहां महिला पीड़िता के परिवारों के साथ गाँव वाले ज़्यादती करते है।" रेशमा ने कहा, "एक गाँव था जहां एक बच्ची के साथ एक घटना हुई। उसके बाद उस परिवार को गाँवों वालों ने अलग कर दिया। यहां तक कि गाँव के हैंडपंप से पानी भी नहीं ले सकते थे तब हम लोगों गाँव में बैठक की और उस परिवार को गाँव पानी दिलवाया। ऐसे में लोगों की सोच में बदलाव होना बहुत जरूरी है।"

ये भी पढ़ें- 'मैंने 60 बार सुनाई अपने रेप की दास्तां'

   

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.