किसान आंदोलन : खुले में शौच और नहाने में महिलाओं को हो रही मुश्किलें, फिर भी ये डटकर हजारों किसानों के लिए बना रहीं लंगर

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किसान आंदोलन : खुले में शौच और नहाने में महिलाओं को हो रही मुश्किलें, फिर भी ये डटकर हजारों किसानों के लिए बना रहीं लंगर

रिपोर्ट : शिवांगी सक्सेना और राहुल यादव, दिल्ली के सिंघु बार्डर से

दिल्ली में एक हफ्ते से चल रहे किसान आंदोलन में हजारों लोगों के लिए खाने पीने से लेकर शौच जाने और नहाने तक की मुश्किलें हैं। कड़ाके की सर्दी में सड़क पर रहना आसान नहीं है। इन मश्किलों से प्रदर्शनकारी जूझ रहे हैं लेकिन महिलाओं के लिए मुश्किलें ज्यादा हैं। उनके लिए शौच जाना, नहाना और कपड़े बदलना टेढ़ी खीर है, बावजूद इसके ये आंदोलन में डटी हुई हैं। ये जगह-जगह हजारों की संख्या में ठहरे किसानों के लिए लंगर बना रही हैं, अपनी जमीन बचाने के लिए सरकार से सवाल कर रही हैं।

किसान आंदोलन में शामिल जसवंत कौर (75 वर्ष) कहती हैं, "हमें खुले में शौच के लिए गाड़ी में बैठकर सुनसान जगह खोजना पड़ता है। हमारे आस-पास नहाने की कोई व्यवस्था नहीं है। हममे से कई लोगों ने एक हफ्ते से कपड़े ही नहीं बदले, बदलने की जगह ही नहीं है।"

किसान आंदोलन में शामिल जसवंत कौर कोई पहली महिला नहीं हैं जो इन मुश्किलों से जूझ रही हैं, इनकी तरह हजारों महिला किसान इन दिनों सड़कों पर इन समस्याओं से दो चार हो रही हैं। इनके साथ छोटे बच्चे-बच्चियां भी हैं ये उनकी भी देखरेख कर रहीं और आंदोलन कर रहे हजारों किसानों के लिए देर रात तक लंगर बनाने में जुटी रहती हैं। इनका कहना है कि ये दिल्ली से पंजाब तभी वापस जायेंगी जब तीन कृषि कानूनों को सरकार वापस ले लेगी। ये छह महीने तक का राशन इंतजाम करके लाईं हैं।

प्रदर्शन पर बैठी महिलाओं के लिए साफ़ टॉयलेट की सुवुधा नहीं है। वहीं कुछ महिलाओं ने जुगाड़ से नहाने और शौच जाने के तरीके निकाल लिए हैं। इन्होंने पंजाब से दिल्ली तक के सफर में पेट्रोल पम्प या स्थानीय लोगों के घरों में जाकर उनका टॉयलेट इस्तेमाल किया है।


प्रदर्शन में शामिल एक महिला ने बताया, "शौच के लिए पास में बने एक मॉल में चली जाती हूँ। वहां जाने से अभी कोई रोक नहीं रहा है। कुछ महिलाएं ट्रक में बैठकर दूर वीरान जगह तलाशती हैं जहाँ वो शौच कर सकें। इन्हे जहाँ जगह मिलती है, कोने में छिपकर शौच करती हैं।"

पंजाब और हरियाणा की इन महिलाओं को प्रोटेस्ट में मुश्किलें तो हैं पर इनके इरादे बुलंद हैं। ये वो महिला किसान हैं जिनका आंकड़ों और दस्तावेजों में कोई जिक्र भले ही न मिले पर ये सच कि ये पुरुषों की तुलना में ज्यादा घंटे खेतों में काम करती हैं। गूगल सर्च में जब आप किसान की तस्वीर सर्च करेंगे तो चेहरा भले ही पुरुष का आता हो पर इसे नकारा नहीं जा सकता कि जीडीपी और सकल घरेलू उत्पाद में इनका योगदान नहीं है।

हरियाणा से आयीं निर्मल (32 वर्ष) अपने चौदह वर्षीय बेटे को घर छोड़कर आयी हैं, निर्मल कहती हैं, "अगर हमने आज आवाज़ नहीं उठाई तो हमारी पीढ़ियों को मुसीबतों में गुज़रना पड़ेगा। तब स्थिति और भयानक हो जाएगी। सरकार हक़ नहीं देती, उनसे छीनना पड़ता है।"

सड़कों पर उतरकर ये महिला किसान अपने हक की लड़ाई लड़ रही हैं, सरकार से सवाल कर रही हैं। पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर इस बड़े प्रोटेस्ट का हिस्सा हैं। ये सिर्फ भीड़ में शामिल नहीं हैं, इन्हें अच्छे से पता है कि 500-1000 किलोमीटर चलकर ये दिल्ली तक क्यों आयी हैं?

एक देश एक बाजार, समझौता खेती और आवश्यक वस्तु अधिनियम के रुप में तीन नए कृषि कानूनों को सरकार कृषि सुधार के रुप में बड़ा कदम बता रही है लेकिन पंजाब के किसान इससे अपनी मंडियों, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी और भंडारण की खुली छूट को अपने लिए घातक मान रहे हैं। इसी के चलते पंजाब में 23 सितंबर से ही विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला जारी है। जब पंजाब से इनकी आवाज़ दिल्ली तक नहीं गूंजी तो इन्होंने 26 नवंबर को कृषि कानूनों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई के लिए दिल्ली कूच कर दिया था।

अमरजीत कौर पंजाब के संगरूर से चलकर दिल्ली पहुंची हैं। इनका कहना है, "सरकार से अपना हक़ लिए बिना मैं अपनी जगह से नहीं हिलूंगी। ठण्ड और कोरोना का डर मुझे बिलकुल नहीं है। हम अगले छः महीने का राशन और कम्बल लेकर साथ आये हैं। हम सब मिलकर सबके लिए लंगर बनाते हैं।"

ये झंडे लेकर सड़कों पर भी चल रही हैं और भूख लगने पर रोटियां भी बना रही हैं।

भारतीय किसान यूनियन ( उघरहान ) के प्रधान जोगिंदर सिंह ने कहा, "इस पूरे आंदोलन में 40,000 से अधिक महिलाएं महीनों से लगी हुई हैं। ये महिलाएं प्रदर्शनकारी किसानों के लिए खाना भी बनाती हैं और सरकार के खिलाफ अपनी नाराज़गी भी जाहिर कर रही हैं।"

पंजाब के मानसा जिले से आई जसमीत कौर कहती हैं, "महिलाएं बारी-बारी से दिल्ली पहुंच रही हैं। जो अभी आंदोलन में हैं वो कुछ दिनों बाद वापस गाँव चली जायेंगी, जो गाँव में हैं वो दिल्ली आ जाएंगी। आंदोलन में पुरुषों की संख्या इसलिए ज्यादा है क्योंकि महिलाएं अभी घर और खेत संभाल रही हैं।"

जब गाँव कनेक्शन के सामुदायिक पत्रकार ने प्रोटेस्ट में शामिल जसमीत सिंह से पूछा कि अभी टॉयलेट के लिए आप लोगों को बहुत दिक्कत हो रही है, कैसे मैनेज कर रही हैं? जसमीत हसंते हुए कहती हैं," हम जट्ट हैं और जट्ट जुगाड़ी होते हैं, हम तो रास्ते में जुगाड़ करते-करते दिल्ली पहुंच गये। पंजाब से जब चले थे तब रास्ते में पड़ने वाले पेट्रोल पंप, स्थानीय लोगों के घरों में जाकर उनका टॉयलेट इस्तेमाल किया। कहीं किसी ने मना नहीं किया, सब मदद कर रहे हैं।"


     

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