खतना : धर्म की आड़ में बच्चियों की सेहत से खिलवाड़

Astha SinghAstha Singh   22 Nov 2017 7:08 PM GMT

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खतना : धर्म की आड़ में बच्चियों की सेहत से खिलवाड़प्रतीकात्मक तस्वीर 

लखनऊ। धर्म की आड़ में बोहरा मुस्लिम समुदाय की महिलाओं की सेहत से खिलवाड़ के खिलाफ अब आवाज उठने लगी है। बोहरा समुदाय की महिलाओं ने सुन्नत के खिलाफ एक कैंपेन शुरू किया है, और केन्द्र सरकार से इस पर रोक लगाने की मांग भी की है।

खतना (सुन्नत) से महिलाओं और बच्चियों को गंभीर समस्याओं और पीड़ा से जूझना पड़ता है, इसे अंग्रेजी में फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन (एफजीएम) कहा जाता है। भारत में इसके लिए कोई कानून न होने से इस पर रोक नहीं लग पा रही है।

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क्या है मामला

इस मामले ने तब तूल पकड़ा जब एक दाऊदी बोहरा समुदाय की महिला ने प्रधानमंत्री के नाम खुला खत लिख कर इसे रोकने की गुहार की।

क्या कहती हैं महिला डॉक्टर

इस बारे में मुंबई में रहने वाली एक मुस्लिम महिला डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर फोन पर बताया, "हमारे पास सात साल की बच्चियों को उनकी माँ खुद लेकर आती हैं। मुझे बच्चियों को बोलना पड़ता है कि बस एक छोटा सा चीरा लगेगा, थोड़ी देर दर्द करेगा और फिर सब सही हो जाएगा। खतने की वजह से महिलाओं को यूरिन इन्फेक्शन और मासिक धर्म में ज्यादा दर्द होने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।"

बच्चियों को बड़े होने तक इसका पता नहीं चल पाता

इसके बारे में बच्चियों को बताया नहीं जाता है, इसका मकसद होता है कि इन बच्चियों की आगे चलकर यौन इच्छा को दबाना।

संयुक्त राष्ट्र ने 6 फरवरी को महिलाओं के खतना या सुन्नत के खिलाफ जीरो टॉलरेंस का अंतरराष्ट्रीय दिवस घोषित किया है। इस साल का थीम ‘साल 2030 तक एफजीएम के उन्मूलन के जरिए नए वैश्विक लक्ष्यों को पाना’ रखा गया है।

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आंकड़े क्या कहते हैं

दुनियाभर में हर साल करीब 20 करोड़ बच्चियों या लड़कियों का सुन्नत होता है। इनमें से आधे से ज्यादा सिर्फ तीन देशों में हैं, मिस्र, इथियोपिया और इंडोनेशिया।

यह उत्पीड़न का एक तरीका है, और इसे रुकना ही चाहिए

मुस्लिम महिलाओं के हक की लड़ाई लड़ने वाली ‘ऑल इंडिया मुस्लिम महिला ला बोर्ड की अध्यक्ष’ शाइस्ता अम्बर बताती हैं, "महिलाओं की सुन्नत करना परंपराओं की आड़ में धर्म से खिलवाड़ करने जैसा है। अल्लाह ने हलाला और सुन्नत जैसी कुरीतियों को बुराई माना था। पर समाज ऐसे अमानवीय कृत्यों को बंद नहीं कर पा रहा है। यह मानव अधिकारों के खिलाफ है और इस पर अंकुश लगना बेहद जरूरी है।यह उत्पीड़न का एक तरीका है, और इसे रुकना ही चाहिए।”

प्रतीकात्मक तस्वीर

क्या होते हैं नुकसान

डॉक्टर ने बताया, "इस प्रक्रिया में जननांग के एक हिस्से को रेजर ब्लेड से काट दिया जाता है। या कुछ जगहों पर जननांग की अंदरूनी त्वचा को भी आंशिक रूप से हटा दिया जाता है, ताकि बड़े होकर इन लड़कियों की सेक्स के प्रति इच्छा दब जाए।"

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भारत में खतना के कानून

बता दें कि भारत में एंटी एफजीएम कानून नहीं है, ऐसे में कई देशों के विपरीत यह प्रथा प्रचलित है। अब यह पत्र आग्रह करता है कि सरकार, राज्य सरकारों को कम से कम एडवाइजरी जारी करे। साथ ही बोहरा समाज के लिए मौजूदा आईपीसी और पीओसीएसओ प्रावधानों के अंतर्गत एफजीएम को एक अपराध घोषित किया जाए।

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