गाँवों तक इंटरनेट की पहुंच तो तेजी से बढ़ी, उतनी ही तेजी से बढ़ गए धोखा-धड़ी के मामले

इंटरनेट ने भारत के ग्रामीण इलाकों में गहरी पैठ बना ली है। देश में 64.6 करोड़ सक्रिय इंटरनेट यूजर्स हैं, जिनमें से 35.3 करोड़ यूजर्स गांवों से हैं। साइबर अपराधी तेजी से भोले-भाले लोगों के बैंक खातों को हैक कर रहे हैं और बड़ी रकम लूट रहे हैं। कानून और पुलिस मशीनरी की पकड़ से ये काफी दूर हैं। आप साइबर धोखाधड़ी से खुद को कैसे बचा सकते हैं! जानिए कुछ टिप्स-

Rahul JhaRahul Jha   29 Dec 2022 9:18 AM GMT

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गाँवों तक इंटरनेट की पहुंच तो तेजी से बढ़ी, उतनी ही तेजी से बढ़ गए धोखा-धड़ी के मामले

पटना (बिहार)। आईएएस अधिकारी आमिर सुभानी को जरा भी उम्मीद नहीं थी कि उनका बैंक खाता हैक हो जाएगा। दो महीने पहले 23 अक्टूबर को बिहार के मुख्य सचिव के मोबाइल पर एक मैसेज आया था- आपके खाते से 40 हजार रुपये का ट्रांजेक्शन हुआ है। सुभानी को अपने अकाउंट से रजिस्टर मोबाइल में कोई ओटीपी भी नहीं मिला था। सीधे एक मैसेज आया और पैसे निकाल गए।

दो दिन बाद एक मीडिया बयान में राज्य साइबर सेल ने पुष्टि की कि मुख्य सचिव का खाता एक भारतीय बहुराष्ट्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक में था। साइबर अपराधियों ने एक मशहूर ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म के जरिए दो बड़ी कंपनियों से ऑनलाइन खरीदारी की थी।

राज्य की राजधानी पटना के रवि कुमार को भी इस साल की शुरुआत में इसी तरह की धोखाधड़ी का सामना करना पड़ा था। उन्होंने याद करते हुए बताया, "इस साल फरवरी में मुझे अपने बैंक के क्रेडिट कार्ड डिवीजन से मेरे मोबाइल पर कॉल आया। मुझे बताया गया कि मैंने 3,000 रुपये के अपने प्रीमियम का भुगतान नहीं किया है। फिर मुझसे मेरा क्रेडिट कार्ड नंबर और ओटीपी मांगा गया।"

कुमार ने दावा किया कि उन्होंने ओटीपी साझा नहीं किया था। उसके बावजूद उनके खाते से 99 हजार रुपये की खरीदारी की गई थी। रवि कुमार ने गांव कनेक्शन को बताया, "मैं शिकायत लेकर बैंक पहुंचा तो मुझसे 15 दिनों में पैसा वापस आ जाने की बात कही गई। मुझे सिर्फ 33 हजार रुपये ही वापस मिल पाए थे।"

इंटरनेट ने भारत के भीतरी इलाकों में गहरी पैठ बना ली है। मौजूदा समय में देश में दो साल से लेकर बड़ी उम्र के 64.6 करोड़ सक्रिय इंटरनेट यूजर हैं। इनमें से 35.2 करोड़ यूजर्स गांवों से हैं। कुल मिलाकर देखें तो ग्रामीण भारत में शहरों की तुलना में 20 प्रतिशत ज्यादा इंटरनेट यूजर हैं। हाल ही में 'भारत 2.0 इंटरनेट स्टडी' नामक एक अध्ययन से ये आंकड़े सामने आए हैं। इन आंकड़ों को ऑडियंस मेजरमेंट, डेटा और एनालिटिक्स में वैश्विक नेता नीलसन ने जारी किया था।

आईएएस अधिकारी आमिर सुभानी

मई 2022 में जारी किए गए इस अध्ययन की रिपोर्ट से पता चला है कि पिछले दो सालों में महिला यूजर्स की संख्या में 61 प्रतिशत की दर से बढ़ी है, जबकि पुरुष यूजर्स की संख्या में 24 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। ग्रामीण क्षेत्रों में हर तीन में से एक महिला इंटरनेट यूजर सक्रिय रूप से इंटरनेट का इस्तेमाल कर रही है।

ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट की बढ़ती पैठ के चलते देश में इंटरनेट यूजर्स की संख्या 2025 तक 90 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है।

जैसे-जैसे इंटरनेट की पहुंच गांवों में तेजी से बढ़ी है, वैसे ही उतनी ही तेजी से धोखा-धड़ी के मामले भी बढ़े हैं। साइबर अपराधी अमीर, जानी-मानी शख्सियत और आम नागरिक के बीच कोई भेद नहीं कर रहे हैं।

भारत सरकार के राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल के अनुसार, साइबर अपराध को "कोई भी गैरकानूनी काम, जहां एक कंप्यूटर या संचार उपकरण या कंप्यूटर नेटवर्क का इस्तेमाल अपराध करने या अपराध करने की सुविधा के लिए किया जाता है" के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इसमें डेबिट/क्रेडिट कार्ड फ्रॉड, फिशिंग, चाइल्ड पोर्नोग्राफी, साइबर बुलिंग, साइबर स्टाकिंग, सिम स्वैप स्कैम, डेटा ब्रीच आदि शामिल हैं।

बैंक खातों में हैकिंग, ऑनलाइन फाइनेंशियल धोखाधड़ी, नकली सोशल मीडिया पोस्ट बनाना, लोगों की तस्वीरों और पहचान के साथ छेड़-छाड़ कर उन्हें ब्लैकमेल करना- देश में ऐसी घटनाएं भयावह रूप से बढ़ी हैं।

नॉर्टन लाइफ़लॉक की '2021 नॉर्टन साइबर सेफ्टी इनसाइट्स रिपोर्ट' के मुताबिक, पिछले 12 महीनों में 2।7 करोड़ से ज्यादा भारतीयों ने ऑनलाइन धोखा-धड़ी का सामना किया है और 52 फीसदी भारतीय वयस्कों ने माना कि उन्हें नहीं पता कि साइबर क्राइम से खुद को कैसे बचाया जाए।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की 2022 में जारी 'क्राइम इन इंडिया 2021' शीर्षक वाली रिपोर्ट ने भारत में साइबर अपराध बढ़ने की तरफ इशारा किया है। 2020 में देश में हर दिन 136 साइबर अपराध के मामले दर्ज किए गए। पिछले साल, 2021 में भारत में साइबर अपराधों की कुल 52,974 घटनाएं हुईं। यह पिछले साल (2020 ) से छह प्रतिशत ज्यादा थीं।

राज्यों के चार्ट में तेलंगाना सबसे ऊपर है। कुल (रिपोर्ट किए गए) साइबर अपराधों के 19 फीसदी मामले इसी राज्य से हैं। इसके बाद उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और असम (मानचित्र देखें) का नंबर आता है।


हैदराबाद के सहायक पुलिस आयुक्त (साइबर अपराध) केवीएम प्रसाद ने एक साक्षात्कार में कहा था कि तेलंगाना में रिपोर्ट किए गए अधिकांश साइबर अपराध पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों से थे।

इस साल फरवरी में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा में साइबर अपराधों की जिले की सबसे बड़ी कार्रवाई में कथित तौर पर 31 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। उनमें से ग्यारह महिलाएं थीं।

बिहार का नवादा जिला साइबर क्राइम से जुड़े मामलों को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहता है। समाचार रिपोर्टों के मुताबिक, इस साल 15 फरवरी को पुलिस ने एक ही बार में 33 संदिग्ध साइबर अपराधियों को पकड़ा था। यह घटना थालपोस गांव की है, जिसे बिहार का जामताड़ा कहा जाने लगा है। झारखंड में जामताड़ा को भारत की फिशिंग राजधानी के रूप में जाना जाता है।

अक्टूबर में एक बार फिर नवादा में 11 संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया। उनमें से पांच नई दिल्ली के थे और छह चकवई पंचायत के गोसपुर गांव के रहने वाले थे। गिरफ्तारियों का नेतृत्व करने वाले पकड़ीबरावां थाना, नवादा के इंस्पेक्टर आशीष कुमार मिश्रा ने गांव कनेक्शन को बताया, " इन लोगों को साइबर अपराधों के लिए पहले भी गिरफ्तार किया जा चुका हैं।"

इंस्पेक्टर ने कहा, "उनके पास 22 लाख रुपये से अधिक नकद, 13 महंगे मोबाइल फोन, एक लैपटॉप, तीन बैंक पासबुक, एक चेक बुक, एक एटीएम कार्ड, एक सिम कार्ड और साइबर अपराधों से संबंधित कुछ लिखित मामले थे।" साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि आरोपी अभी भी जेल में हैं।

इंस्पेक्टर ने कहा, "हर महीने दूसरे राज्यों से पुलिस यहां टेलीफोन नंबरों के साथ आती है, जिन्हें बिहार तक ट्रैक किया जाता है। इन नंबरों को कहीं ओर साइबर धोखाधड़ी करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा होता है।"

युवाओं को झांसा

मई 2022 में, हिमाचल प्रदेश के बरोटीवाला से पुलिस अधिकारियों की एक टीम ने बिहार के बेतिया जिले में 12 लाख रुपये के साइबर गबन के साइबर अपराधियों को पकड़ने के लिए 1,300 किलोमीटर की दूरी तय की थी।

बेतिया के रहने वाले अभिषेक गुप्ता ने गांव कनेक्शन को बताया, "संदिग्ध शाहिद और सैफ अली को गिरफ्तार करने के लिए जब बेतिया और हिमाचल प्रदेश की पुलिस इलाके में पहुंची तो खूब हंगामा हुआ और उन पर पथराव भी किया गया।" लेकिन पुलिस पीछे नहीं हटी। उसने उन अपराधियों को पकड़ने में कामयाबी हासिल की जो पैसे की उगाही से जुड़े लॉटरी घोटाले को चला रहे थे।

गुप्ता ने कहा कि पुलिस जांच के दौरान यह बात सामने आई कि गांव के कई युवा उनके गिरोह का हिस्सा थे।

छापेमारी में गिरफ्तार किए गए लोगों में से एक संतोष कुमार है जो जमुई जिले के अकौनी गांव का रहने वाला है।


संतोष की मां नीलम सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया, "उसकी पढ़ाई में दिलचस्पी नहीं थी। इसलिए हमने उसे काम पर भेज दिया, लेकिन वह एक साल के भीतर लौट आया।" वह आगे दुखी मन से कहती हैं, "उसके भाई ने कुछ साल पहले उसे एक टचस्क्रीन मोबाइल खरीद कर दिया था। अगर हमें पता होता कि वह इसे इस तरह के गलत काम के लिए इस्तेमाल करेगा, तो हम उसे कभी नहीं देते।"

गिरफ्तार किए गए कुछ लोगों के परिवारों को अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है कि उनके बच्चे इस तरह की ऑनलाइन धोखाधड़ी में लिप्त हैं। नालंदा जिले के कटारडीह गांव के अवधेश पटेल ने अपने बेटे संजय को दोषी मानने से इनकार कर दिया। पिता ने कहा, "मेरा पूरा परिवार चूड़ियां बनाने में लगा हुआ है। संजय हमारा सबसे बड़ा लड़का है और पुलिस उसे झूठे मामले में फंसा रही है। उसने अपनी जीवन सुधारने के लिए ईमानदारी के साथ कड़ी मेहनत की है। चाहो तो गांव में किसी से भी पूछ लो।"

पटना में साइबर सेल से जुड़े एक पुलिस अधिकारी के अनुसार, लोगों में जागरूकता फैलाना इस तरह के क्राइम को रोकने का सबसे अच्छा तरीका है। "अपराधी अपराध करने के अपने तरीकों को बदलते रहते हैं। नई तकनीक के साथ-साथ युवा पीढ़ी अपराध करने के नए-नए तरीके अपनाती है।

पुलिस अधिकारी ने बताया, "वे फर्जी वेबसाइट बनाना, फर्जी आईडी बनाना, बैंक खातों को हैक करना जानते हैं। मास्टरमाइंड इन युवाओं को गलत काम करने के लिए नियुक्त करते हैं और उन्हें कमीशन देते हैं।

राज्य की राजधानी पटना में 28 करोड़ रुपये की लागत से अत्याधुनिक साइबर फोरेंसिक लैब/प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किया गया है। और हर जिले में साइबर सेल की इकाइयां हैं। गृह विभाग के अनुसार प्रत्येक जिले में साइबर अपराधों पर नकेल कसने के लिए एक अलग विंग होगी, जिसके प्रभारी पुलिस उपाधीक्षक होंगे।

बढ़ते साइबर क्राइम से निपटने में कानून और पुलिस नाकाम

भारत में साइबर अपराध सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (आईटी अधिनियम) और भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत आते हैं। IT अधिनियम, 2000, 17 अक्टूबर, 2000 को लागू हुआ था। यह साइबर अपराध और इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स से संबंधित है। आईटी अधिनियम को बाद में वर्ष 2008 में संशोधित किया गया था।

अधिनियम साइबर अपराधों और दंड को परिभाषित करता है। इस आईटी अधिनियम के तहत भारतीय दंड संहिता, 1860, भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम में संशोधन भी किए गए थे। इस अधिनियम का उद्देश्य ई-गवर्नेंस, ई-बैंकिंग और ई-कॉमर्स लेनदेन की सुरक्षा करना है।

पटना हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले अधिवक्ता कुणाल कश्यप ने गांव कनेक्शन को बताया कि राज्य पुलिस में साइबर सेल की कमी और कम सुविधाओं वाले साइबर सेल बढ़ते साइबर अपराधों का एक बड़ा कारण है।

कश्यप ने कहा, "हाई प्रोफाइल मामले या ठगे गए लोग जिनके पास अधिकारियों तक पहुंच है, बस वही मामले सामने आ पाते हैं। बिहार में आम लोगों को अपने मामले दर्ज करने में बहुत मुश्किल होती है, न्याय मिलना तो दूर की बात है।"

उन्होंने बताया,"ये अपराध मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं: सबसे आम डिजिटल चोरी है और इसमें क्रेडिट कार्ड नंबर और बैंक खाता संख्या जैसे गोपनीय डेटा की चोरी शामिल है। दूसरा तरीका कंप्यूटर वायरस द्वारा लक्षित यूजर्स के सिस्टम को हैक करना है। तीसरा सोशल मीडिया के जरिए कस्टमर अश्लील सामग्री के लालच में अपने वित्तीय विवरण साझा करते हैं।

वकील के अनुसार, बैंकों को अनुचित तरीकों से हुए लेनदेन की राशि चुकानी पड़ती है। लेकिन ऐसे मामले में अदालत में यह साबित करना पड़ता है कि ठगे गए व्यक्ति की कोई गलती नहीं है।

उन्होंने कहा, "ज्यादातर मामलों में यह देखा जाता है कि ग्राहक अनजाने में वन टाइम पासवर्ड या अन्य व्यक्तिगत जानकारी साझा कर देते हैं। ऐसे में वकीलों के लिए उनके मामले को अंजाम तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है।"

साइबर सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर अधिकारियों को प्रशिक्षित करने के लिए बिहार पुलिस की तरफ से नियमित रूप से आमंत्रित किए जाने वाले साइबर विशेषज्ञ दीपक कुमार ने गांव कनेक्शन को बताया कि पुलिस प्रशासन ऐसे अपराधों से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं है।

कुमार ने कहा, "एक तरफ सरकार डिजिटलीकरण के पीछे भाग रही है लेकिन कानून प्रवर्तन साइबर अपराधियों को पकड़ने की स्थिति में नहीं है। अधिकांश नागरिक अपने फोन पर व्यक्तिगत बैंकिंग जानकारी रखते हैं और अधिकांश साइबर अपराधों में वित्तीय धोखाधड़ी शामिल होती है।"

उन्होंने आगे कहा, "ऐसी कई कंपनियां हैं जो संदिग्ध पाई जाती हैं लेकिन उनके सर्वर भारत में स्थित नहीं हैं। सरकार को ऐसी कंपनियों के खिलाफ भी कानून लाना चाहिए।"

साइबर विशेषज्ञ ने कहा, "साइबर अपराधों के बारे में शिकायतें पुलिस स्टेशनों पर भी दर्ज की जाती हैं और कई बार पुलिस अधिकारियों को ऐसे अपराधों के बारे में कोई जानकारी नहीं होती है। जिन मामलों में पीड़ितों को लुभाने के लिए पोर्नोग्राफी का इस्तेमाल किया जाता है, वे मामले तो रजिस्टर भी नहीं होते हैं।"

बिहार सरकार के वित्त विभाग के सोशल मीडिया एक्जीक्यूटिव, पटना के गौरव झा ने बताया कि साइबर अपराधियों से कैसे बचा जा सकता हैः-

• साइबर और वित्तीय धोखाधड़ी के बारे में जागरूक रहें।

• साइबर अपराधी आपके हर कदम पर नजर रख रहे हैं। आपको मिलने वाले एसएमएस, आपके द्वारा एटीएम से निकाले गए पैसे और बैंक में आपके लेनदेन पर उनकी नजर बनी रहती है।

• अपराधियों के पास विशेष सॉफ्टवेयर होता है जो आपकी चेकबुक का क्लोन बना सकता है और उनका दुरुपयोग कर सकता है।

• वे झूठी वेबसाइटें बनाते हैं और वहां फीस के बदले में भोले-भाले लोगों को सरकारी नौकरियों का वादा करते हैं।

• फेसबुक और व्हाट्सएप के जरिए रोजगार और सेक्सुअल फेवर का वादा करना फंसाने के सामान्य तरीके हैं।

• साइबर अपराधी अक्सर महिला आईडेंटिटी रखते हैं और व्हाट्सएप के जरिए फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजते हैं। उसके बाद वीडियो कॉल की ओर अपने कदम बढ़ाते हैं, जो ब्लैकमेल और जबरन वसूली का एक साधन बन जाता है।

क्या करें और क्या न करें

• अपना ओटीपी कभी साझा न करें। याद रखें कि आपको जो ओटीपी मिलता है, वह आपकी पासबुक, ई-वॉलेट, मोबाइल वॉलेट और आपके सोशल मीडिया अकाउंट की चाबी होती है।

• एटीएम से पैसे निकालते समय हमेशा सतर्क रहें और जहां आप कार्ड डाल रहे हैं उसकी भी अच्छे से जांच कर लें।

• अपना एटीएम पिन नंबर हमेशा तीन महीने में एक बार बदलें।

• इसके साथ ही अपने सोशल मीडिया अकाउंट और अपने क्रेडिट कार्ड के पासवर्ड भी बदलते रहें।

• अपने मेल या मोबाइल पर आने वाले अज्ञात लिंक पर कभी क्लिक न करें।

• अगर बैंक का डेबिट/क्रेडिट कार्ड आपके पास पहुंच गया है, लेकिन उसके कवर के साथ छेड़छाड़ की गई है या वह टूटा हुआ है, तो उसे कूरियर/डाक वाले से स्वीकार न करें।

• कभी भी अपना पासवर्ड, ग्राहक आईडी, डेबिट कार्ड नंबर, पिन, सीवीवी2 या जन्मतिथि किसी भी मेल पर न बताएं। भले ही अनुरोध भारतीय रिजर्व बैंक, आयकर विभाग या वीजा या मास्टर कार्ड से जुड़ी किसी कंपनी से मेल के रूप में आया हो।

साइबर धोखाधड़ी की स्थिति में पीड़ित को तुरंत साइबर पोर्टल https://cybercrime.gov.in/ पर शिकायत दर्ज करानी चाहिए।

साथ ही पीड़ित हेल्पलाइन नंबर 1930 पर फोन कर वहां भी अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है।

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