आज ही के दिन शुरू हुआ था देश का पहला आम चुनाव, क्यों ज़रूरत पड़ी थी चुनाव चिन्ह की

Anusha MishraAnusha Mishra   25 Oct 2017 3:24 PM GMT

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आज ही के दिन शुरू हुआ था देश का पहला आम चुनाव, क्यों ज़रूरत पड़ी थी चुनाव चिन्ह कीपहले आम चुनाव में लाइन में खड़े मतदाता

लखनऊ। 25 अक्टूबर 1951 वह दिन था जब भारत में पहले आम चुनाव की शुरुआत हुई थी। 15 अगस्त 1947 को हमारा देश आज़ाद हुआ और इसके साथ ही शुरू हो गई भारत को एक लोकतांत्रिक देश बनाने की कवायद। 200 सालों तक अंग्रेज़ों की गुलामी झेलने के बाद भारत की जनता तैयार थी अपना प्रतिनिधि अपने आप चुनने के लिए। ये वो आम चुनाव था जिस पर पूरी दुनिया की नज़र थी। एक दबे कुचले शोषित देश से एक खुदमुख्तार लोकतांत्रिक देश बनने की कहानी पूरी दुनिया देख रही थी।

25 अक्टूबर को देश में लोकसभा की 489 और राज्य विधानसभा की 3283 सीटों पर मतदान हुआ। उस समय भारत में 17 करोड़ 32 लाख 12 हज़ार 343 मतदाता थे, जिनमें से 10 करोड़ 59 लाख मतदाताओं ने इसे लोकतांत्रिक देश बनाने का गौरव दिया और भारत को दुनिया के तमाम देशों को भारत के इस बदवाल का साक्षी बनाया।

25 अक्टूबर 1951 को शुरू हुई आम चुनाव की ये प्रक्रिया 10 फरवरी 1952 तक चली और 10 फरवरी 1952 को भारत के पहले आम चुनाव का परिणाम घोषित हुआ। लोकसभा की 489 सीटों में से 364 सीटों पर (कुल वोटों के 45 प्रतिशत के साथ) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने जीत हासिल की और जवाहर लाल नेहरू को स्वतंत्र भारत का पहला प्रधानमंत्री चुना गया।

शुरुआत में भारत में सिर्फ एक ही पार्टी थी कांग्रेस लेकिन चुनाव से पहले जवाहर लाल नेहरू के दो साथियों ने अपनी अलग पार्टी बना ली और चुनाव में कांग्रेस के सामने मैदान में उतरे। जहां श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अक्टूबर 1951 में जनसंघ नामक पार्टी की स्थापना की वहीं दलितों के नेता बीआर अंबेडकर ने शिड्यूल कास्ट फेडरेशन नामक पार्टी बनाई, बाद में जिसका नाम बदलकर रिपब्लिकन पार्टी कर दिया गया। इसके अलावा आचार्य कृपलानी के नेतृत्व में किसान मज़दूर प्रजा परिषद, राम मनोहर लोहिया के नेतृत्व में सोशलिस्ट पार्टी जैसे कुछ और दल भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को हराने के लिए मैदान में आए।

चुनाव आयोग का गठन

भारत में चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग का गठन करना ज़रूरी थी। इसके लिए जवाहरलाल नेहरू के सुझाव पर आईसीएस अफ़सर व गणितज्ञ सुकुमार सेन को पहला मुख्य चुनाव आयुक्त किया गया।

पहले चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन

क्यों लाए गए चुनाव चिन्ह

इंडिया आफ्टर गांधी नामक किताब में रामचंद्र गुहा ने लिखा है कि पहले आम चुनाव में देश भर में 22,400 पोलिंग बूथ बनाये गए। उस समय वोट करने वालो में लगभग 85 प्रतिशत लोग निरक्षर थे और वो पार्टी के उम्मीदवारों के नाम पढ़ नहीं पाते थे, इसके लिए चुनाव आयुक्त सुकुमार ने चुनाव चिन्ह दिए जाने का सुझाव रखा। लोगों को समझाया गया कि किस प्रत्याशी का क्या चुनाव चिन्ह है, और हर पोलिंग बूध पर हर पार्टी के चुनाव चिन्ह वाला बैलेट बॉक्स भी रखा गया।

अपने पसंदीदा चुनाव चिन्ह वाले वैलेट बॉक्स को ढूंढता मतदाता

28 लाख महिलाओं को मतदाता सूची से हटा दिया गया

इसके अलावा पहले चुनाव में एक और समस्या आई और वह थी महिलाओं का नाम न होना। ये वो समय था जब देश में महिलाओं का नाम ही नहीं रखा जाता था। शादी से पहले उन्हें किसी की बिटिया के नाम से बुलाया जाता था, शादी के बाद किसी की बहू के नाम से और फिर किसी की मां के नाम से। ऐसे में यह समस्या आई कि बिना नाम के कैसे उन्हें मतदाता बनाया जाए। इसके लिए सुकुमार ने लगभग 28 लाख महिलाओं का नाम मतदाता सूची से हटा दिया और यह आदेश दिया कि अगले लोकसभा चुनाव तक यह समस्या हल कर ली जाए।

और हार गए थे अंबेडकर

दलित नेता बीआर अंबेडकर ने बॉम्बे (उत्तरी मध्य) में आरक्षित सीट से अपनी पार्टी शिड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन से चुनाव लड़ा। उनके सामने उन्हीं के सहयोगी रहे कांग्रेस के कैंडिडेट नारायण सदोबा कजरोलकर थे, जिन्हें 1,38,137 वोट मिले जबकि बी आर अंबेडकर को 1,23,576 वोट मिले। यानि अंबेडकर को नारायण सदोबा ने हरा दिया था। इसके बाद आंबेडकर ने राज्य सभा सदस्य के रूप में संसद में प्रवेश किया। यही नहीं उत्तर प्रदेश की फैज़ाबाद सीट से किसान मज़दूर प्रजा परिषद के कैंडिडेट आचार्य कृपलानी को भी हार का सामना करना पड़ा लेकिन उनकी पत्नी सुचेता कृपलानी ने कांग्रेस कैंडिडेट मनमोहिनी सहगल को दिल्ली सीट से हरा दिया।

सरकार का निर्माण

पहली लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में गणेश वासुदेव मावलंकर को चुना गया। उनके नाम अभी तक लोकसभा की सबसे ज़्यादा बैठकों में (677 बैठक, 3748 घंटे) हिस्सा लेने का रिकॉर्ड है। 17 अप्रैल 1952 को पहली लोकसभा का कार्यकाल शुरू हुआ था और 4 अप्रैल 1957 तक ये कार्यकाल चला।

            

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