जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण प्रदूषण और जैव विविधता संरक्षण पर पहला राष्ट्रीय सम्मेलन

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जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण प्रदूषण और जैव विविधता संरक्षण पर पहला राष्ट्रीय सम्मेलनजलवायु परिवर्तन, पर्यावरण प्रदूषण और जैव विविधता संरक्षण पर पहला राष्ट्रीय सम्मेलन

जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण प्रदूषण और जैव विविधता संरक्षण पर पहले राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन आज सीएसआईआर-एनबीआरआई लखनऊ में हुआ। इस दो दिवसीय सम्मेलन का आयोजन स्वच्छ एवं हरित पर्यावरण समिति (सीजीईएस) और सीएसआईआर-एनबीआरआई द्वारा किया जा रहा है।

सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य जलवायु परिवर्तन की बढ़ती समस्या, जैव विविधता संरक्षण और पर्यावरण प्रदूषण और पौधों के जीवन पर इसके प्रभाव को उजागर करना है, जो इस ग्रह पर सभी जीवित रूप को बनाए रखता है। देश के 22 विभिन्न राज्यों से आये प्रख्यात वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और नीति निर्माताओं सहित लगभग 150 प्रतिनिधि इस राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग ले रहे हैं, जिसका उद्घाटन डॉ. रुपक डे, प्रमुख वन संरक्षक, उत्तर प्रदेश द्वारा किया गया।

डॉ. रूपक डे ने अपने संबोधन में संतोष व्यक्त किया कि पहले से किए गए प्रयासों के चलते उत्तर प्रदेश में हरियाली का विस्तार लगभग एक प्रतिशत बढ़ा है। उन्होंने बताया कि आने वाले मानसून में उत्तर प्रदेश के करीब 22 जिलों में गंगा नदी के किनारे के बड़े वृक्षारोपण करने की योजना है। उन्होंने इस प्रयास में सभी लोगों के सहयोग की मांग की। उन्होंने मानव-निर्मित और पर्यावरणीय परिवर्तनों के कारण तेंदुए, बाघ, घड़ियाल, डॉल्फ़िन, जंगली कुत्तों के साथ कई अन्य जंगली जानवरों की घटती हुयी आबादी के प्रति अपनी चिंता व्यक्त की।

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देश के प्रख्यात कार्डियोलॉजिस्ट पद्मश्री डॉ. मंसूर हसन ने पर्यावरण और स्वास्थ्य के विषय पर एक मुख्या व्याख्यान दिया। डॉ हसन ने कहा कि पर्यावरण और लोगों की जीवन शैली में बदलाव से मधुमेह, पोषण संबंधी कमी और हृदय रोगों इत्यादी में वृद्धि हुई है जो कि चिंता का विषय है। डॉ. हसन ने इस बात पर बल दिया कि मनुष्य के अर्थपूर्ण अस्तित्व के लिए बिना किसी देरी के सार्थक उपायों की तत्काल आवश्यकता है।

इस मौके पर सीएसआईआर-आईआईटीआर और सीडीआरआई के निदेशक, प्रो. आलोक धवन ने भी सभा को संबोधित किया। अपने संबोधन में उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण औषधीय पौधों के सार तत्वों में कमी एवं में फसलों की उत्पादकता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। उन्होंने आगे कहा कि जलवायु परिवर्तन पुष्पीय विन्यास को भी प्रभावित करता है। गिलहरी और तितली जो अक्सर 10-20 साल पहले प्रचुर मात्रा में दिखते थे, अब जलवायु परिवर्तन के कारण लुप्तप्राय से हो गए हैं।

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सीएसआईआर-एनबीआरआई के निदेशक प्रो. एसके बारिक ने प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुए कहा कि विश्व बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए तेजी से विकास कर रहा है, दूसरी ओर जलवायु परिवर्तन के कारण प्रकृति में असंतुलन पैदा हो गया है। इस असंतुलन के कारण जैव विविधता को बहुत नुकसान पहुंच रहा है। उन्होंने आगे कहा के जैव विविधता के सरंक्षण के लिए हमें समन्वित रूप से मिल कर प्रयास करने होगे।

सीजीईएस के अध्यक्ष सुमेर अग्रवाल ने समिति की विभिन्न गतिविधियों के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि समिति पर्यावरण सरंक्षण के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए संकंल्पित है। महासचिव, सीजीईएस, डॉ. एससी शर्मा ने बताया कि यह सम्मेलन स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण, प्रदूषण, जैव-संकेतक और जैव-निगरानी, जैव विविधता के संरक्षण, पर्यावरण पारिस्थितिकी, पर्यावरणीय कानून, पर्यावरण पर्यटन, आपदा प्रबंधन, वनस्पति उद्यानों की भूमिका, शहरी प्रदूषण, ऊर्ध्वाधर उद्यानिकी, वानिकी, जलवायु परिवर्तन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से संबंधित विभिन्न महत्वपूर्ण मुद्दों, आदि पर चर्चा करेगा।

डॉ शर्मा ने बताया कि सम्मेलन के दो दिनों के दौरान, 10 प्रमुख व्याख्यान, 50 मौखिक और 80 पोस्टर प्रस्तुतियों को विभिन्न विषयगत क्षेत्रों के तहत आयोजित किया जाएगा।

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