बिहार: मछलियों का दाना बनाने में हो रहा लीची की गुठलियों का इस्तेमाल, 25% तक कम हो जाएगी फीड की लागत

बिहार में लीची का सबसे अधिक उत्पादन होता है, डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय विश्वविद्यालय पूसा, बिहार के वैज्ञानिक लीची की गुठलियों का इस्तेमाल मछली का दाना बनाने में कर रहे हैं।
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मछली पालन एक बढ़िया व्यवसाय है, लेकिन इसमें किसान की काफी लागत मछलियों के दाने में ही चली जाती है, लेकिन वैज्ञानिकों ने लीची की गुठलियों से मछली दाना बनाना शुरू किया है, जो दूसरे फीड से काफी कम लागत में तैयार हो जाता है।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय विश्वविद्यालय पूसा, समस्तीपुर, बिहार के मुजफ्फरपुर के ढोली स्थित मात्स्यिकी महाविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इसे तैयार किया है। बिहार के मुजफ्फरपुर लीची के लिए मशहूर है और देश की सबसे ज्यादा लीची का उत्पादन भी यही होता है।

मात्स्यिकी महाविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शिवेंद्र कुमार पिछले दो साल से मछली दाने के विकल्प के तलाश में लगे हुए थे। डॉ. शिवेंद्र कुमार लीची की गुठलियों के इस्तेमाल से मछलियों का फीड बनाने की प्रकिया के बारे में बताते हैं, “लीची की खेती के साथ ही बिहार मछली पालन के लिए जाना जाता है, हम शुरू से ऐसा विकल्प तलाश रहे थे, जिससे फीड बनाने की लागत में कमी आ जाए। क्योंकि लीची हमारे यहां की मुख्य फसल है और हमारी कोशिश थी कि कैसे उसके वेस्ट का इस्तेमाल करें, क्योंकि लीची में वेस्ट उसकी गुठलियां ही होती हैं।”

देश में लगभग 83 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में लीची की खेती होती है। फोटो: गाँव कनेक्शन 

वो आगे कहते हैं, “विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. आरसी श्रीवास्तव की प्रेरणा से यह हो पाया है। हमने सोचा कि क्यों न लीची की गुठलियों का इस्तेमाल फीड बनाने में किया जाए, साथ ही पिछले चार-पांच सालों में बिहार के लीची उत्पादक जिलों में लीची जूस बनाने की बहुत सारी प्रोसेसिंग यूनिट्स लग गईं हैं, जहां पर लीची से जूस निकालने के बाद बहुत सारा वेस्ट मटेरियल निकलता है, तब कुलपति ने हमसे कहा कि कैसे हम लीची के वेस्ट मटेरियल का इस्तेमाल कर सकते हैं।”

भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान के अनुसार, इस समय पूरे देश में लगभग 83 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में लीची की खेती होती है। विश्व में चीन के बाद सबसे अधिक लीची का उत्पादन भारत में ही होता है। इसमें बिहार में 33-35 हज़ार हेक्टेयर में लीची के बाग हैं। भारत में पैदा होने वाली लीची का 40 फीसदी उत्पादन बिहार में ही होता है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे प्रदेशों में भी लीची की खेती होती है। अकेले मुजफ्फरपुर में 11 हजार हेक्टेयर में लीची के बाग हैं।

फीड बनाने की प्रक्रिया के बारे में डॉ शिवेंद्र कहते हैं, “दो साल पहले हमने इसकी शुरूआत की थी, मछली की दाने में लीची की गुठली के साथ ही गेहूं, मक्का, सोयाबीन, सरसों की खली और धान की भूसी का इस्तेमाल होता है। इसमें 10% लीची की गुठली और बाकी 80 फीसदी बाकी बचे दाने वगैरह डाले जाते हैं। हमने कॉलेज के तालाब में मछलियों को यही दाना दिया और जिनका अच्छा रिजल्ट भी मिला है।”

मछली पालन में जितना जरूरी मछलियों की बढ़िया प्रजातियों का चयन होता है, उतना ही जरूरी मछलियों के दाने का भी इस्तेमाल होता है।

डॉ शिवेंद्र के अनुसार, परीक्षण के बाद पाया है कि मछलियों के दाना बनाते समय 10% लीची सीड मिला सकते हैं, यानि की एक किलो फीड में 100 ग्राम लीची सीड मिला सकते हैं, लेकिन हमें लीची के जूस निकालने के बाद बचे वेस्ट को मिलाना है तो उसे 20% तक मिला सकते हैं।

आंध्र प्रदेश, गुजरात, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे प्रदेशों में मीठे जल की मछलियों का पालन होता है, अगर आने वाले समय इन प्रदेशों में लीची की गुठलियों का इस्तेमाल होता है तो किसानों की लागत में भारी कमी आ सकती है। 

मछली की दाने में लीची की गुठली के साथ ही गेहूं, मक्का, सोयाबीन, सरसों की खली और धान की भूसी का इस्तेमाल होता है। 

इससे मछलियों के फीड बनाने में हमारा 20 से 25% तक लागत कम हो रही है। विश्वविद्यालय ने बिहार के कई मछली पालकों को भी लीची की गुठलियों बना फीड दिया है। डॉ. शिवेंद्र कहते हैं, “कॉलेज के तालाब में तो अच्छा रिजल्ट आया है, अब हमने किसानों को भी ये फीड दिया है, क्योंकि एक साल में इसका बढ़िया रिजल्ट आएगा, इसलिए एक साल बाद किसानों से बात करेंगे कि उनका कैसा अनुभव रहा।”

भारत, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है और एक्वाकल्चर उत्पादन के साथ ही अंतर्देशीय मत्स्य पालन में भी दूसरे स्थान पर है। साल 2018-19 के दौरान देश का मछली उत्पादन 137 लाख टन था, जिसमें अंतर्देशीय क्षेत्र का योगदान 95 लाख टन और समुद्री क्षेत्र का योगदान 41 लाख टन का था। वर्ष 2017-18 के दौरान, भारत ने 13.7 लाख टन मछली का का निर्यात किया, जिसकी कीमत 45 हज़ार करोड़ रुपए से अधिक थी।

मछली पालन में उनका दाना सबसे जरूरी होता है, जितना अच्छा दाना देंगे उतनी अच्छी पैदावार होगा। किसान अच्छी प्रजातियां की मछलियां तो पाल लेते हैं, लेकिन कई बार उनके आहार पर ध्यान नहीं देते हैं, जिससे नुकसान भी उठाना पड़ जाता है। इसलिए जितनी जरूरी मछलियों की बढ़िया प्रजातियों का चयन होता है, उतना ही जरूरी मछलियों के दाने का भी इस्तेमाल होता है।

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