शांति बहाली के लिए पांच राज्यों के 180 आदिवासी जगदलपुर की पैदल यात्रा पर

यात्री अपना एक बहुत लंबा सफर तय करने के बाद जगदलपुर के काफी करीब पहुंच चुकी है। यह यात्रा काफी जोर-शोर से चल रही है और यात्रियों को गांव वालों का काफी प्यार और साथ मिल रहा है।

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शांति बहाली के लिए पांच राज्यों के 180 आदिवासी जगदलपुर की पैदल यात्रा पर

कांकेर (छतीसगढ़)। मध्य भारत में पिछले कुछ सालों से हिंसा का दौर चल रहा है जिसके चलते एक शांति पदयात्रा का आयोजन किया गया है। कई दशकों से चली आ रही इस हिंसा में कई आदिवासियों और सिक्योरिटी फोर्सेज ने अपनी जान गवाई है।

इस बात को ध्यान में रखते हुए और पक्षों से शांति की अपील करते हुए 180 आदिवासी और अन्य लोग आंध्रप्रदेश के चट्टी गाँव से निकल कर बस्तर के जगदालपुर तक पैदल एक यात्रा में निकले हैं। यह यात्रा महात्मा गांधी की 150वीं जन्म शताब्दी के शुरुआत के अवसर पर शुरू हुई है और 12 तरीख को करीब 284 किमी. चलने के बाद खत्म होगी।

यात्री अपना एक बहुत लंबा सफर तय करने के बाद जगदलपुर के काफी करीब पहुंच चुकी है। यह यात्रा काफी जोर-शोर से चल रही है और यात्रियों को गांव वालों का काफी प्यार और साथ मिल रहा है।

लेकिन इसकी शुरुआत में कुछ दिक्कतें आई। यात्रा शुरू होने वाले दिन भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी ने एक प्रेस नोट जारी किया, जिसमें उन्होंने गांव वालों को यात्रा का बहिष्कार करने को कहा था। यात्रा के ऑर्गेनाइजर्स ने एक मीटिंग बुलाई और काफी सोच विचार करने के बाद यह निर्णय लिया यात्रा की शुरुआत की जाएगी और हर दिन सिचुएशन को ध्यान में रखकर ही आगे बढ़ाया जाएगा। शुरुआत ले दो-तीन दिनों में यात्रियों से मिलने जुलने से गाँव काफी हिचकिचा रहे थे। वो खुल कर यात्रियों से कुछ पूछ रहे थे न ही आगे आके यात्रा में जुड़ रहे थे।

तिलक और फूलों से शांति पद यात्रा का स्वागत करते ग्रामीण

लेकिन जैसे-जैसे यात्री आगे बढ़ते गांव वाले उनका इंतजार करते हुए उनका स्वागत करते और उनकी तरफ से मदद करते गये। यात्रा में पांच राज्यों से यात्री आए हैं शांति के पैगाम लेकर। यात्री आंध्र, तेलांगना, महाराष्ट्र, एमपी और छत्तीसगढ़ से हैं और यह सब यात्री गांव के लोगों की खातिरदारी को देखकर बहुत खुश हुए।

यात्रा जब कुकानार गांव पहुंची तो स्थानीय बालक आश्रम में रुकी। स्कूल के स्टाफ ने सारे 150 यात्रियों को खाना बना कर दिया। उसी आश्रम के बगल में एक छोटी सी दुकान थी। दुकान के मालिक हरकिशन सिंह चौहान ने यात्रियों से एक पैसा भी नहीं लिया। वह लगातार यात्रा के बारे में अखबार में पढ़ रहे थे और उन्हें सोच के रखा था जब भी यात्रा से गांव से गुजरेगी वह पैसे नहीं लेंगे। "अगर लोग हमारे लिए इतना चल रहे हैं और शांति की अपील कर रहे हैं तो मेरी तरफ से इतना तो कर ही सकता हूं। लोगों ने करीब 1500 का सामान ख़रीदा पर मैंने किसी को से कोई पैसे नहीं लिए।"

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हरिकिशन की दुकान, जिन्होंने यात्रियों से एक भी पैसे नहीं लिए

उसी शाम जब यात्रा रोकल गांव पहुंची और एक लड़कों के स्कूल में रुकने की व्यवस्था हुई थी तब लड़कों के स्कूल में रुकने की व्यस्था हुई थी। 10 से 13 साल के लड़कों ने दो कमरे खाली कर दिए ताकि महिलाएं रात को बिस्तर पर सो सकें। "जब हमें बताया गया कि आप लोग इतनी दूर से चलकर आए हैं तो हमने सोचा हमें एक दिन एडजस्ट कर लेना चाहिए।" 13 साल के उमेश गुंजन ने बताया। सातवें दिन जब यात्रा झीरम घाटी पहुंची तब एक बहुत ही अनोखी बात हुई। रास्ते के एक मोड़ पर कुछ गांव वाले फूल पानी और तिलक लेकर खड़े थे। सब ने यात्रियों का जोर-शोर से स्वागत किया। अहम बात यह है कि झीरम घाटी में नक्सलियों का काफी वर्चस्व है साल 2013 का में नक्सलियों ने साहा से लौट रहे 25 से अधिक कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ताओं को मार दिया था।

रोकेल गाँव में एक स्कूल में खाना बनाकर बच्चों ने परोसा

वहीं थोड़ा और आगे जाकर कुछ और गांव वाले चाय और बिस्कुट लेकर खड़े थे। उस दिन यात्री सबसे लंबा चले थे। एक दिन में 23 किलोमीटर। पहली बार वह ऊपर की तरफ जा रहे थे। ऐसे में इन छोटी-छोटी बातों ने यात्रियों का दिल जीत लिया।

"शांति कौन नहीं चाहता? अगर 200 लोग अपना सब काम छोड़ कर इतना चल रहे हैं वह भी लोग अलग-अलग राज्यों से आए हैं तो हम इतना तो कर ही सकते हैं। लक्ष्मण सिंह ने चाय बांटते हुए कहा।

यात्रा में कुछ लोगों ने नंगे पांव चलने का फैसला लिया। लेकिन बेहद गर्मी और लगातार चलने की वजह से जब उनके पैरों में छाले पड़े तो लोगों ने उन्हें सॉक्स ला कर दिया और जिन के जूते टूट गए थे तब लोगों ने उन्हे जूते ला कर दी और गाड़ी में लिफ्ट ऑफर की।

नवें दिन जब यात्रा जगदलपुर से बस 10 किलोमीटर की दूरी थी लोग चल रहे थे तब एक मोटरसाइकिल पर सवार युवक ने सब को रोककर अमरूद दिए। "मैं यहां से गुजर रहा था अमरूद लेकर कहीं ले जाने के लिए मैंने आप सब को देखा तो मैंने सोचा यह यहां ज्यादा काम आएंगे।" इन्होंने अपना नाम बताने से इनकार किया क्योंकि यह एक सरकारी कर्मचारी हैं और क्योंकि राज्य में चुनाव की वजह से मॉडल कोड आफ कंडक्ट लागू है।

यात्रा के छठे दिन यात्री एक ऐसे स्टेज पर चल रहे थे जहां दूर-दूर तक कोई गांव नहीं था। ऐसे में रास्तों पर लगे सीआरपीएफ के जवानों ने यात्रियों को ठंडा पानी दिया सभी जवानों का यह मानना था कि शांति बहुत जरूरी है और उन्होंने यात्रियों का थैंक्यू बोला जवानों का यह मानना था कि शांति बहुत जरूरी है। यात्री जिन भी गांव में गए वहां पर सरपंच शाम को हाल-चाल पूछने जरूर आते थे। "इतनी लंबी यात्रा ऑर्गेनाइज करना आसान नहीं है। लेकिन जब लोग सामने से आकर हेल्प करते हैं और इतने सारे लोगों को खाना बनाते हैं तो काफी मुश्किलें हल हो जाते हैं।" मोहन यादव जो यात्रा के ऑर्गेनाइजर्स में से एक है उन्होंने बताया। यात्रा 12 तारीख को जगदलपुर पहुंचेगी जहां बस्तर डायलॉग एक के नाम से एक डिस्कशन आयोजित किया गया है जिसमें शांति प्रक्रिया को जारी रखने की बात की जाएगी।

झीरम घाटी में चाय सर्व करते ग्रामीण

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