फोरेंसिक लैब की हिदायत को पुलिस कर रही नजरअंदाज, नहीं सुलझ पाते मामले
Abhishek Pandey 19 Sep 2017 6:18 PM GMT
लखनऊ। अापराधिक घटना होने पर पुलिस का पहला कार्य सबूत और नमूनों को एकत्र करना होता है। जिससे अपराधी तक जल्द पहुंचा जा सके, लेकिन यूपी पुलिस फोरेंसिक लैब द्वारा ट्रेनिंग दिए जाने के बावजूद भी इन नियमों को दरकिनार कर अपनी विवेचना करती है। पुलिस की इस लापरवाही के चलते किसी भी हाईप्रोफाइल केस के खुलासे में पुलिस को अनेकों दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
यूपी फोरेंसिक लैब को आपराधिक घटना के बाद मौके से एकत्र किए जाने वाले नमूनों व जांच में कमी के कारण खुलासे में परेशानी आती है। इस तरह की छोटी कमियों में सुधार के लिए फोरेंसिक कार्यशाला का आयोजन किया जाता है। कार्यशाला में लखनऊ स्थित विधि विज्ञान प्रयोगशाला के एक्सपर्ट पुलिसकर्मियों को फोरेंसिक जांच के गुर सिखाते हैं।
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फोरेंसिक लैब में वैज्ञानिक डॉक्टर विकास चंद्रा बताते हैं कि किसी भी विवेचना में साक्ष्य की गुणवत्ता बढ़ाने पर जोर दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा “पुलिसकर्मियों को घटना के बाद घटना स्थल पर किस तरह से साक्ष्य एकत्र किए जाएं व नमूने लिए जाएं के पूरा ज्ञान दिया जाता है। साथ ही महिला संबंधी अपराध के दौरान एकत्र किए जाने वाले नमूनों पर गंभीरता से ध्यान देने के लिए अक्सर कहा जाता है।” फोरेंसिक लैब की कार्यशाला में जिला अस्पताल के डॉक्टरों को पोस्टमार्टम के समय कुछ विषयों पर बरती जाने वाली सावधानी और कुछ बिंदुओं पर जांच के बारे में भी बताया जाता है। जब भी कोई वारदात होती है, तो उसके सभी पहलुओ की जाँच करने में सबसे ज़्यादा मददगार होती है फोरेंसिक रिपोर्ट।
उधर एडीजी टेक्निकल आशुतोष पाण्डेय ने इस मुद्दे पर कहा कि यूपी पुलिस को वक्त-वक्त पर जांच के नमूनों को ठीक ढ़ग से संरक्षित करने के लिए ट्रेनिंग के साथ-साथ कई गाइड लाइन जारी किया जाता है। अगर किसी भी थाने से नमूनों को फोरेंसिक लैब जांच के लिए भेजने में लापरवाही बरती जाती है तो उस जिले के उच्चाधिकारी से जवाब तलब किया जाता है।
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फोरेंसिक जाँच के फायदे
किसी भी संदिग्ध मौत या सनसनीखेज हत्या में पोस्टमॉर्टम होने के बाद भी कुछ नमूने सुरक्षित रखे जाते हैं। जैसे विसरा संभाल कर रखा जाता है और उसका विश्लेषण अलग से होता है, क्योंकि फोरेंसिक लैब शरीर के हर जरूरी अंग की जांच कर मौत की असल वजह जानने का प्रयास करती है। अगर फोरेंसिक जांच के फायदे की बात करें तो किसी भी वारदात के अनुसार ही कार्रवाई होती है। जैसे ज़हर दिए जाने की वारदात हुई है तो इसमें सामान रखने के कंटेनर्स को भी लिया जाता है। पीड़ित से गैस्ट्रिक लावास नाम का एक नमूना लिया जाता है और इन सभी का रासायनिक विश्लेषण कर मौत की गुत्थी सुलझाने का प्रयास किया जाता है। फोरेंसिक लैब में शरीर के हर अंग की जांच करने के लिए विशेषज्ञ डॉक्टर हैं, जो विश्लेषण कर जांच को आखिरी मुकाम तक पहुंचाने का कार्य करते हैं।
दो से तीन दिन लगता है जांच में समय
एक नमूने की जाँच के लिए फ़ॉरेंसिक लैब को दो से तीन दिन का समय लग सकता है। हालांकि कोई समय की इसमें सीमा नहीं है, बावजूद इसके डॉक्टर जल्द से जल्द सही रिपोर्ट देने का प्रयास करते हैं। साथ ही पूरे मामले की जांच किस तेज़ी से होगी यह इसी बात पर निर्भर करता है कि अपराध किस स्तर का है। लेकिन एक नमूने की जांच के लिए दो से तीन दिन लगते ही हैं।
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इन मामलों में फोरेंसिक लैब की रही अहम भूमिका
- मोहनलालगंज के बलसिंहखेड़ा में युवती की हत्या का मामला
- बदायूं में दो बहनों को पेड़ से लटक कर मौत का मामला
- नोयडा का आरूषी हत्याकांड
- आईएएस अनुराग तिवारी की संदिग्ध मौत का मामला
- कवियित्री मधुमिता हत्याकांड का
- सुनंदा पुष्कर की होटल में संदिग्ध मौत का मामला
- पत्रकार जागेंद्र की मिट्टी का तेल छिड़क कर मौत का मामला
यूपी में है महज चार फोरेंसिक लैब (एफएसएल)
- लखनऊ विधि विज्ञान प्रयोगशाला
- आगरा विधि विज्ञान प्रयोगशाला
- वाराणसी विधि विज्ञान प्रयोगशाला
- मुरादाबाद विधि विज्ञान प्रयोगशाला
देश में कितने सेंट्रल फोरेंसिक लैब हैं (सीएफएसएल)
- हैदराबाद सेंट्रल फोरेंसिक साइंस लैब
- कोलकाता सेंट्रल फोरेंसिक साइंस लैब
- चंडीगढ़ सेंट्रल फोरेंसिक साइंस लैब
- नई दिल्ली सेंट्रल फोरेंसिक साइंस लैब
- गुवाहटी सेंट्रल फोरेंसिक साइंस लैब
- भोपाल सेंट्रल फोरेंसिक साइंस लैब
- पुणे सेंट्रल फोरेंसिक साइंस लैब
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थानों पर नहीं है विसरा किट
कई बार पोस्टमार्टम के बाद मौत का कारण स्पष्ट नहीं हो पाता है। इसके चलते विसरा सुरक्षित रखा जाता है। विसरा को जांच के लिए पुलिस अधिकारियों के निर्देश पर फोरेंसिक लैब भेजा जाता है। इसके बाद मौत के कारणों से पर्दा अधिकांश मामलों में उठ जाता है, लेकिन कुछ समय से पुलिस विसरा लेने को संजीदा नहीं दिखी है। इसकी गवाही थानों के मसलखाने में नदारद विसरा किट कर रही है। अक्सर फोरेंसिक लैब थानों को आदेश जारी करता है कि, किसी भी संदिग्ध मौत के मामले में विसरा सुरक्षित कर एक प्रयोगशाला द्धारा जारी किट में ही भेजनी होती है।
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