"गैंगरेप की घटना के बाद लोग मेरे ही साथ अछूतों सा व्यवहार करते हैं..."

ये आपबीती उस गैंगरेप पीड़िता के पूरे परिवार की है जिनके साथ इस घटना के बाद से समाज ने, अपनों ने सौतेला व्यवहार किया है। रेप और गैंगरेप जैसी घटनाओं के बाद पीड़िता सहित एक परिवार किन मुश्किलों में जीता है ये खबर उनकी पीड़ा बयान कर रही है।

Neetu SinghNeetu Singh   6 Dec 2019 8:11 AM GMT

रसूलाबाद (कानपुर देहात)। साल की आख़िरी रात को याद करते हुए आज भी किरन (बदला हुआ नाम) का परिवार सिहर उठता है। उस रात के भले ही चार साल गुजर गये हों पर इस परिवार की मुश्किलें अभी भी खत्म नहीं हुई हैं।

"उसके साथ जो घटना घटी उसको तो हम फिर से नहीं बताना चाहते। बस इतना समझ लो उसके आंख, मुंह, जांघों में बुरी तरह खरोचें थीं, खून बंद होने का नाम नहीं ले रहा था। ऑपरेशन के बाद खून निकलना बंद हुआ। कई दिनों तक तो उसे होश ही नहीं आया, वो जिंदा बच गयी यही भगवान का शुक्र है। अभी भी उसके प्राइवेट पार्ट पूरी तरह से ठीक नहीं हुए हैं, जिसकी दवा चल रही है।" पन्द्रह वर्षीय किरन की मां घर के आंगन में खम्भे की ओट में सर टिकाये बैठीं ये बताते हुए खुद को बेबस महसूस कर रहीं थीं।

"समाज के लोगों ने इस घटना के बाद हमारे साथ अछूतों की तरह व्यवहार किया है। महिलाएं हमें और हमारी बिटिया को देखकर घूँघट कर लेती थीं, बिटिया ने तो बाहर निकलना ही बंद कर दिया, हम लोग भी अपना दरवाजा छोड़ कहीं नहीं उठते-बैठते। अभी भी आये दिन आरोपियों के परिवार वाले शराब पीकर गाली-गलौज करते रहते हैं, मारने की धमकी भी देते हैं," किरन की मां आगे बताती हैं।

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घर के आंगन में खड़ी पीड़िता की मां की तकलीफें अभी भी कम नहीं हुई हैं

ये उस बेटी की मां की तकलीफ है जिनकी बच्ची का लगभग 11 साल की उम्र में सामूहिक दुष्कर्म हुआ और उसे मरणासन्न स्थिति में छोड़कर आरोपी फरार हो गये थे। जिस वजह से आज वो नाबालिग शारीरिक और मानसिक रूप से अस्वस्थ है। पिता की चार साल की भागदौड़ के बाद दोनों आरोपियों को अक्टूबर 2019 में 20-20 साल की सजा तो हो गयी है, लेकिन इस परिवार की सामाजिक मुश्किलें अभी भी खत्म नहीं हुई हैं।

कानपुर देहात जिले के रसूलाबाद ब्लॉक के एक गाँव में रहने वाली किरन 31 दिसम्बर-2015 को अपनी बड़ी बहन और भाई के साथ गांव के पास में हो रही रामलीला को देखने गई थी। किरन करीब साढ़े ग्यारह बजे पेशाब के लिए पास में उठकर अंधेरी जगह में चली गयी, जहां उसे आरोपी दूर खींच ले गये।

किरन (15 वर्ष) के घर में जब भी कोई आता है तो वो खुद को बहुत असहज पाती है। घर के आंगन में बर्तन धुल रही किरन के चेहरे पर छाई उदासी और खामोशी इस बात की गवाही दे रही थी कि वो उस घटना से आज भी कितना आहत है।

बतौर रिपोर्टर मैं भी उससे इस सन्दर्भ में कोई सवाल नहीं करना चाहती थी बस मैंने इतना ही उसे बताया कि दोषियों को 20-20 साल की सजा हो चुकी है इस पर बिना वो मेरी तरफ देखे बोली, "इससे हम लोग खुश नहीं हैं। अभी भी आये दिन आरोपियों के घरवाले शराब पीकर लड़ाई करने हमारे दरवाजे चले आते हैं। डर की वजह से भाई को घर से दूर रखा गया है। मेरा मन तो स्कूल जाने का बहुत करता है लेकिन मन में डर है कि अगर किसी ने कुछ कह दिया तो बुरा लगेगा।"

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ये है वो पीड़िता जो आज चाहकर भी स्कूल नहीं जा पा रही है

अब तक उसके बर्तन धुल चुके थे वो चारपाई पर बैठ कर पीड़िता कहने लगी, "अगर उन्हें (आरोपियों को) फांसी नहीं हो सकती तो कम से कम इतना तो हो जाए कि वो कभी बाहर न निकलें। पापा चिंता की वजह से बीमार रहने लगे हैं पैसे भी बहुत खर्च कर दिए हैं, अब दिन में एक बार ही खाना खाते हैं। इस घटना के बाद से आसपास के लोग हम सबके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते हैं, ये सब मेरी वजह से परेशान हैं मुझे अच्छा नहीं लगता।" इतना बताते-बताते उसका गला भर आया। वो चुपचाप उठकर सामने कमरे में चली गयी।

सब शांत थे पूरे घर में खामोशी थी। ऐसे माहौल में मुझमें किसी और से बात करने की हिम्मत नहीं हो रही थी। ये खामोशी उस घर की तकलीफ बयान करने के लिए काफी थी।

इस खामोशी को तोड़ते हुए किरन की बड़ी बहन खुद को इस घटना के लिए कोसते हुए कहती है, "ऐसी घटना कभी हमारे आसपास नहीं हुई थी तभी हम सब भी रामलीला देखने चले गये। जब इसे पेशाब लगी तो इसने हमें बताया नहीं, हमने भी ध्यान नहीं दिया क्योंकि उस समय सब लोग आरती करने के लिए खड़े थे, जब ये बहुत देर तक वापस नहीं आयी तब खोजना शुरू किया। पता नहीं उन लोगों को क्या दुश्मनी थी जो इतनी बुरी तरह से बदला लिया।"

वो अपनी छोटी बहन की तकलीफ बताते हुए खुद को हताश महसूस कर रही थी, "जबसे ये घटना हुई है तबसे वो न तो किसी से बोलती है न ही शादी फंक्शन में कहीं जाती। पढ़ाई घर में रहकर ही करती है कोचिंग पढ़ने के लिए भी बाहर नहीं जाती। बाहर किस-किसको मना करें कि कोई भी उससे उस दिन के बारे में बात न करे।"

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समाज के तानों की वजह से पीड़िता घर से बाहर नहीं निकल पाती.

पीड़ित परिवार आरोपियों को मिली सजा से खुश नहीं है, रोज धमकियां मिलती हैं, पीड़िता का मानसिक संतुलन ठीक नहीं है, बाल यौन शोषण के मामलों में मिलने वाली मुआवजा राशि जैसे कई सवालों को जबाब जानने के लिए जब लखनऊ की वकील रेनू मिश्रा से बात की तो उन्होंने कहा, "एक चीज ये समझना हर किसी के लिए बेहद जरूरी है कि किसी भी केस में अगर आरोपी दोषी है तो उसे सजा मिलना बहुत जरूरी है, कितनी मिले ये उतना जरूरी नहीं है। इस केस में जो सजा मिली है वो पर्याप्त है पर अगर पीड़ित पक्ष इस सजा को बढ़वाना चाहता है तो हाईकोर्ट में अपील कर सकता है।"

वकील रेनू मिश्रा आगे कहती हैं, "अगर पीड़िता का मानसिक संतुलन ठीक नहीं है तो उनका परिवार जांच अधिकारी को एक प्रार्थना पत्र दे कि उन्हें मदद चाहिए। जांच अधिकारी जिला चिकित्सा अधिकारी को एक पत्र लिखेगा जिससे पीड़िता को मदद मिल जायेगी। चाइल्ड सेक्सुअल अब्यूज (बाल यौन शोषण) मामलों में 7 लाख रुपए की मुआवजा राशि मिलना चाहिए, अगर इतनी राशि नहीं मिली है तो जिला प्रोबेशन अधिकारी से जानकारी लें। दूसरा अगर पीड़ित परिवार को धमिकयां मिल रही हैं तो थाने में इसकी एफआईआर दर्ज कराएं।"

रेनू मिश्रा एक गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर एडवोकेसी एंड लीगल इनीशिएटिव्स (आली) की संरक्षक हैं। ये संस्था महिलाओं को नि:शुल्क कानूनी सलाह देती है।


किरन की मां के पास बताने के लिए बहुत कुछ था क्योंकि इस परिवार की मुश्किलें और तकलीफें अब तक किसी ने सुनी नहीं थीं। वो कहती हैं, "इस घटना के 15 दिन बाद मेरे भाई की मौत हो गयी थी पड़ोसी तक मिलने नहीं आये थे, इससे बुरा और क्या हो सकता है हमारे साथ। घर में तीन बच्चे पढ़ने वाले हैं खुशहाली से जिंदगी कट रही थी इस घटना के बाद से सब कुछ अस्त-व्यस्त हो गया है। जितनी जमा पूंजी थी वो केस लड़ने में और बेटी की इलाज में खत्म कर दी। ये ऐसा घाव है चाहे सब कुछ बर्बाद हो जाये पर घाव भर नहीं सकता।" उन्होंने आगे कहा, "कब कोर्ट की तारीख पड़ेगी, अगर कोई वकील इसकी सूचना देता है तो वो कम से कम 200 रुपए लेता है। हम लोगों ने हिम्मत नहीं हारी अगर उनकी धमकियों से डर जाते तो कुछ नहीं कर पाते।"

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वहीं, किरन के पिता जिन्होंने इस केस में अपनी बेटी को न्याय दिलाने के लिए दिन रात एक कर दिया, वो भारी मन से बोलते हैं, "गलती मेरी ही है अगर रामलीला देखने न जाने देते तो ऐसा कुछ होता ही नहीं। लगातार खबरें मिलती हैं गोली से उड़ा देंगे, इस केस के आलावा अब तक हम 50 एप्लीकेशन थाने में दे आये हैं। अपने इकलौते बेटे को सुरक्षा की वजह से रिश्तेदारी में रखना पड़ रहा है। बहुत मजबूरी में फंसे हैं समाज में मुंह उठाकर इज्जत से बात नहीं कर पाते।"

उन्होंने आगे कहा, "लगभग 20 तारीखें करने के बाद हमें पता चला कि हमे हस्ताक्षर करना चाहिए जिसके बिना तारीख मानी नहीं जाती। घर से लगभग 60-65 किलोमीटर दूर मुख्यालय पर अनगिनत बार बिटिया और अपनी पत्नी को लेकर गये। जब भी जाते डर लगा रहता है कहीं मार न दिए जाएं। अभी भी अगर घर से किसी काम के लिए कोई बाहर निकलता है तो चिंता बनी रहती जब तक वो वापस न आ जाए।"

इस तरह के गम्भीर मामलों में राज्य स्तर पर रानी लक्ष्मीबाई महिला एवं बाल सम्मान कोष के माध्यम से पीड़िताओं के पुनर्वास के लिए मुआवजा राशि दी जाती है। पीड़िताओं को 3 लाख से 10 लाख रुपए तक की आर्थिक सहायता मिलती है।

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खेलने-कूदने की उम्र में घर में कैद हुआ इस बेटी का बचपन

किरन के पिता ने ऐसी अनगिनत मुश्किलें बताई जिसका उन्हें इस केस के दौरान सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा, "हम कभी नहीं चाहते थे बेकसूरों को सजा मिले, क्योंकि रात के अँधेरे में हमारी बिटिया किसी को पहचान नहीं पाई थी वो तो पुलिस जांच में ये दोनों आरोपी निकले जिन्हें सजा मिली। अगर आजीवन सजा मिलती तो हमें दिल से तसल्ली होती क्योंकि जब 20 साल बाद वो बाहर निकलेंगे तबतक मेरे बेटा बड़ा हो जाएगा उसके लिए मुश्किलें पैदा हो जायेंगी।"

पीड़िता के पिता आगे कहते हैं, "इस घटना के बाद से बच्चों की पढ़ाई बाधित हुई। अब बड़ी बिटिया की शादी में मुश्किलें आयेंगी। छोटी बच्ची का मानसिक संतुलन ठीक नहीं। बेटे की हमेशा चिंता रहती, हम दोनों भी बीमार रहते। रिश्तेदारों से पड़ोसियों से रिश्ते खत्म हो गये। दो तीन लाख रुपए की जो जमा पूंजी थी वो भी खत्म हो गयी। इतना सबकुछ गंवाने के बाद खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं।"

किरन को अबतक मुआवजे की राशि तीन लाख रुपए मिली है जबकि इस केस में सात लाख रुपए मिलनी चाहिए। पीड़िता को मिलने वाली राशि की प्रक्रिया क्या है जब इस सन्दर्भ में कानपुर देहात के पिछड़ा वर्ग कल्याण अधिकारी गिरिजा शंकर सरोज बताते हैं, "हर जिले में पुलिस अधीक्षक की तरफ से जिले में एक नोडल अधिकारी नामित किया जाता है, जो इस मामले की पूरी डिटेल को अपलोड करते हैं। इसके बाद पोर्टल पर हमारे पास आता है इसकी जांच करने के बाद जिलाधिकारी की अध्यक्षता में एक बैठक होती है तब पैसा पीड़िता के खाते में जाता है।"

इस सीरीज का भाग 1,2, 3 यहां पढ़ें--

भाग-1 कैसी है उस बच्ची की जिंदगी जो 12 साल की उम्र में रेप के बाद मां बनी थी?

भाग-2 रेप के बाद घर पहुंची नाबालिग के लिए भाई ने कहा- इसे मार डालो, मां ने नहीं की हफ्तों बात

भाग-3 बलात्कार के बाद सीरीज पार्ट-3 'बिटिया जब घटना को याद करती है तो रोने लगती है'

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