किसान आंदोलन: शंभु बॉर्डर से सिंघु बॉर्डर तक किसानों के साथ गांव कनेक्शन के 90 घंटे

हजारों हजार किसानों ने दिल्ली में डेरा डाल दिया है। वैसे तो आंदोलन 26 से 28 नवंबर तक ही चलना था लेकिन भारी तनाव के बीच किसान अभी भी आंदोलनरत हैं। आगे की रणनीतियों पर किसानों संगठनों के बीच विचार-विमर्श चल रहा है। इन तीन दिनों में अभी तक क्या-क्या हुआ? 25 नवंबर से ही किसानों के साथ चल रहे गांव कनेक्शन के अरविंद शुक्ला और दया सागर ने बतौर पत्रकार जो देखा, सुना, महसूस किया, उसे आप भी पढ़िये।

Arvind ShuklaArvind Shukla   28 Nov 2020 1:45 PM GMT

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अरविंद शुक्ला/दया सागर

शंभु बॉर्डर/ सिंघु बॉर्डर। "धरती का सीना चीर कर जब इंकलाब उठता है, इतिहास बदल जाता है जब पंजाब उठता है"। शंभु बॉर्डर पर पिछले दो महीने से चल रहे धरना प्रदर्शन वाली जगह पर लगे एक बैनर में यह लिखा था। शंभू मोर्चा के इस बैनर में भगत सिंह, बाबा साहेब अंबेडकर और शहीद ऊधम सिंह की समेत कई दिग्गजों की फोटो लगी थी।

26 नवंबर की रात के करीब 4 बज रहे थे हरियाणा और पंजाब को जोड़ने वाले शंभु बॉर्डर गांव कनेक्शन की टीम जब पहुंची तो सन्नाटा पसरा हुआ था। नेशनल हाइवे 64 पर पुल पार करते ही कई तंबू और शामियाने लगे थे। किसानों की कई ट्रैक्टर ट्रालियां खड़ी थीं। शंभु बॉर्डर पर 23 सितंबर से धरना प्रदर्शन चल रहा था। इसी का नाम शंभु मोर्चा रख दिया गया। किसान आंदोलन का सबसे ज्यादा जोर पंजाब और पंजाब से सटे उत्तरी हरियाणा में दिखा है। गांव कनेक्शन की टीम 25 नवंबर को लखनऊ से चलकर पश्चिमी यूपी के शामली होते हुए पंजाब पहुंची थी, उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन का कहीं भी जोर नजर नहीं आया था लेकिन हरियाणा के करनाल में 25 तारीख से ही लंबा जाम लगा था, जिसके चलते गांव कनेक्शन टीम ने हरियाणा के ग्रामीण रास्तों को अपनाया था।

शंभू मोर्चे पर शामियाने में कुछ लोग सो रहे थे कुछ। किसान आंदोलन और कृषि कानूनों को लेकर चर्चा कर रहे थे। यहीं पर गांव कनेक्शन की मुलाकात राम सिंह से हुई। 40 किल्ले जोत के मालिक राम सिंह ने आंदोलन क्यों? के जवाब में कहा- लानी थी स्वामीनाथन की रिपोर्ट आप ले आए तीन बिल, कैसे स्वीकार करें। ये कानून हमारी मंडियों को खत्म करने की साजिश है, बिहार में मंडी कानून खत्म होने के बाद जो हुआ, वह हम पंजाब में नहीं होने देंगे।"

लेकिन पीएम मोदी समेत पूरी सरकार कह रही कि न मंडी खत्म होगी न एमएसपी फिर, आंदोलन क्यों? इस सवाल के जवाब में राम सिंह कहते हैं, आगे अंधेरा हो और आपसे कहा जाए जाये कि कोई खतरा नहीं है तो आप जाएंगे? ये कानून किसानों के जीवन में अंधेरा लाने वाले हैं।"

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बातचीत के सिलसिले के बीच कई किसान रजाइयों से झांककर कृषि कानूनों को काला कानून बता रहे थे। कानून तो पूरे देश के लिए है, फिर सबसे ज्यादा विरोध पंजाब में ही क्यों?

ओपन मार्केट (एक देश एक बाजा), कांट्रैक्ट फॉर्मिग और आवश्यक वस्तु अधिनियम अध्यादेश आने के बाद जैसे जैसे विरोध के सुर उठे, देश के कई हिस्सों में लगातार ये सवाल उठे कि विरोध पंजाब और हरियाणा में ही क्यों?

गांव कनेक्शन के सवाल के जवाब में स्थानीय पत्रकार और किसान आंदोलन में पिछले 2 महीने से शामिल हरिंदर सिंह कहते हैं, "पंजाब में विरोध इसीलिए ज्यादा है क्योंकि हम जागती कौम हैं। हमारे घर खेती से चलते हैं। हम पंजाबियों ने मुगलों से लेकर अंग्रेंजों तक के कानूनों से विरोध किया है। जो गलत है हम उसका विरोध करते हैं।"

कई किसान कृषि कानूनों की खामियां गिनाते हैं। पंजाब के साथ उपेक्षा किए जाने का आरोप लगाते हैं। इस बात में पंजाब से हरियाणा को पानी देने, रेल सेवा बंद, नशे के कारोबार से लेकर 84 दंगों तक की बातें होती हैं।

अगले दिन 26 नवंबर को सुबह के 7 बजे तक शंभू बॉर्डर पर सन्नाटा था। इसी बीच हरियाणा पुलिस की तरफ से पहले पंजाब से आने वाले रास्ते (हाइवे का एक हिस्सा) को सीमेंट के बैरीकेड्स को जंजीरों से बांध कर बंद किया जाता है फिर दूसरे वाले हिस्से को। यानी आवाजाही रोक दी जाती है। इस बीच पंजाब की तरफ से आने वालीं ट्रैक्टर ट्रालियों, ट्रकों की लंबी लाइन लग जाती है।

हरियाणा की साइड में भारी पुलिस के सात अर्धसैनिक बलों की भी तैनाती रहती है, लेकिन सुबह 9.30 बजे के बाद यहां हजारों की संख्या में किसानों के पहुंचने पर ये बैरीकेड्स तोड़ दिए जाते हैं। सीमेंट के बैरिकेड्स किसान ट्रैक्टर के सहारे इधर-उधर कर देते हैं तो लोहे की रेलिंग को नदी में फेक देते हैं। किसानों का हुजूम आगे बढ़ जाता है।

पटियाला-अंबाला हाइवे पर दिल्ली की तरफ जाने वाले रास्ते पर दूर-दूर तक सिर्फ किसानों की ट्रालियां ही नजर आती हैं। इनमें हजारों वे ट्रालियां थीं जो पाकिस्तान से सटे सीमावर्ती जिलों के हजारों किसान सवार थे, ये 200 से 300 किलोमीटर का सफर करके पटियाला तक पहुंचे थे, और आगे का सफर इऩका जारी थी।

किसानों का जत्थे दिल्ली की तरफ बढ़ रहे थे लेकिन गांव कनेक्शन की टीम पंजाब के अंदर जा रही थी, क्योंकि शंभू बॉर्डर के अलावा 8 से ज्यादा दूसरे नाके और हैं जो पंजाब और हरियाणा जोड़ते हैं। गांव कनेक्शन की टीम को पंजाब में संगरूर और हरियाणा के जींद जिले को जोड़ने वाले खनौरी बॉर्डर तक जाना था, जहां सुनने में आया था कि 5,000 से ज्यादा ट्रैक्टर-ट्रालियों में सवार किसान दिल्ली में घुसने को तैयार हैं। इनमें काफी संख्या में महिलाएं भी थीं, हरियाणा पुलिस ने यहां पर बॉर्डर पर बोल्डर रखकर कई ट्रक मिट्टी डालकर रास्ता रोक दिया था।

आगे बढ़ते हुए फतेहगढ साहिब में राजपुर के आगे गांव कनेक्शन की मुलाकात गुरुदासपुर के रमिंदर सिंह से हुई, वो जम्हूरी किसान सभा से भी जुड़े हुए हैं। गांव कनेक्शन ने उनसे पूछा कि तीनों कृषि कानूनों में ऐसा क्या है कि उन्हें रबी जैसे किसानी के अहम सीजन में खेत छोड़कर दिल्ली जाना पड़ रहा है?

इसके जवाब में वे कहते हैं, "पूरे देश में सरकार 23 फसलों पर एमएसपी देती है लेकिन खरीद सिर्फ गेहूं धान की ही होती है। एमएसपी पर खरीदी पंजाब और हरियाणा सबसे ज्यादा होती है क्योंकि यहां की मंडियां मजबूत हैं। हम लोगों ने इस बार धान 1,868 रुपए में बेचा है लेकिन बिहार और यूपी में 1000-900 रुपए कुंतल धान बिका है, बिहार के लोग हमारे यहां धान बेचने आते हैं। हम नहीं चाहते की ये व्यवस्था खत्म हो।"

पंजाब के सैकड़ों लोगों से बात करने पर किसानों को सबसे बड़ा डर कॉरपोरेट और बड़े कंपनियों से नजर आया। कालानौर के किसान रनजीत सिंह करते हैं, "प्राइवेट कंपनियां आएंगी तो किसान उनके सामने टिक नहीं पाएगा। जमींदार की जमीन पर देर-सवेर उनका कब्जा हो ही जाएगा। देश में सब कुछ तो प्राइवेट हाथों में जा रहा है।"

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दिल्ली की तरफ बढ़ते किसानों को जैसे-जैसे पता चल रहा था कि बॉर्डर सील है और हरियाणा पुलिस उन्हें रोकने के लिए पानी की बौछार और आंसू गैस के गोले छोड़ रही है उनका गुस्सा बढ़ता जा रहा था।

डेरा बाबा नानक के कालानौर के किसान हैप्पी सिंह कहते हैं, "मोदी जी देश के प्रधानमंत्री हैं, हम देश के किसान हैं। हम उनसे बात करने आए हैं, क्या हमें बात करने का अधिकार नहीं है? हम खाली हाथ हैं, तो हमसे डर किस बात का।"

वे आगे कहते हैं, मोदी जी कहते हैं, हम खेती के नए कानून से बिचौलियों को खत्म कर रहे हैं लेकिन बिचौलिया तो कोई है ही नहीं। आढ़ती तो हमारे बैंक हैं। हमें बेटी की शादी करनी हो या बच्चे की बढ़ाई की फीस देनी हो, रात में कोई मेडिकल इमरजेंसी हो तो आढ़ती रात के दो बजे भी पैसे देते हैं। वो हमारे बीच के हैं। अगर हमारे किसी भाई चाचा के पास माया है (पैसा है) और वो दूसरे लोगों की वक्त जरूरत मदद करता है तो बुराई क्या है?

किसान आंदोलन के साथ चल रहे परगट सिंह कहते हैं कि मैं किसान भी हूं और आढ़ती भी हूं। आप ये बताइए कि 6 जून को कृषि अध्यादेश आने से पहले क्या भारत में बड़ी कंपनियों को कारोबार करने की इजाजत नहीं थी? फिर कानून लाने की क्या जरूरत थी। पंजाब में रोडवेज को प्राइवेट हाथों में दिया गया उसका हाल देखिए, अस्पतालों का हाल देखिये।

वहीं पर ट्रैक्टर टालियों से आ रहे किसानों को बिस्किट और चाय पिला रहे गुरुनाम सिंह बरनाला कहते हैं, "मोदी जी ने कृषि कानूनों लाकर पंजाब के सोए किसानों को जगा दिया है।"

दिल्ली की तरफ बढ़ती ट्रैक्टर-ट्रालियों में राशन, डीजल, जनरेटन सेट, सूखी लकड़ियां और रहने का सामान था। किसान न सिर्फ कह रहे थे कि वो कई महीनों का इंतजाम करके चलते चले हैं बल्कि उनके सामान भी गवाही भी दे रहा था।

फतेहगढ़ साहिब, पटियाला से होते हुए गांव कनेक्शन की टीम संगुरुर और हरियाणा के जींद जिले के खनौरी बॉर्डर की तरफ चली। यहां कई जगह टोल नाकों पर किसानों का कब्जा नजर आया। टोल सभी के लिए यहां एक अक्टूबर से ही फ्री हैं। संगरुर, मानसा और पटियाला के किसानों के भारी जत्थे हरियाणा में जींद जिले के खनौरी बॉर्डर की तरफ बढ़े जा रहे थे। पंजाब के इस हिस्से में आंदोलन का मोर्चा भारतीय किसान यूनियन (उगरहा) ने संभाल रहा था। इन जत्थों में किसानों के साथ उनके परिवार भी थे। ट्रैक्टर ट्रालियों पर 8 साल के बच्चे से लेकर 80 साल तक के बुजुर्ग भी थे।

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खनौरी से करीब 25 किलोमीटर पहले गांव कनेक्शन की टीम की मुलाकात सुरजीत कौर (70 वर्ष) से हुई। इस उम्र में दिल्ली कूच प्रदर्शन में शामिल होने की नौबत क्यों आईं, इस सवाल के जवाब में 2 एकड़ जमीन की मालिक बुजुर्ग सुरजीत कौर कहती हैं, "हम महिलाएं 2 महीने से सड़क पर हैं, क्योंकि ये काला कानून (समझौता खेती वाला) हमारी जमीन पर कब्जा करने की साजिश है। हम जमींदार हैं, हमें खेती ही करनी है, हमें मुनाफे वाले कानून नहीं चाहिए।"

खनौरी बॉर्डर पर गांव कनेक्शऩ टीम को करीब 2 किलोमीटर पहले ही अपनी गाड़ी छोडनी पड़ी। सड़क के दोनों और सिर्फ किसानों की भीड़ और ट्रैक्ट्रर ट्रालियों की कतारें थी। यहां मौजूद पंजाब पुलिस के सिपाही ने कहा, कल 5000 ट्राली आ चुकी होंगी, अभी आ ही रही हैं।

खनौरी बॉर्डर पर हरियाणा पुलिस ने सीमेंट के बड़े बड़े बोल्डर डालकर कई ट्रक मिट्टी डाल दी थी। ताकि किसान पार न कर पाएं। किसान संगठनों के दूसरे कई गुट भी यहीं पहुंचे थे जिनमें बैरीकेड्टस तोड़कर दिल्ली कूच करने को लेकर मतभेद भी नजर आए।

किसानों के एक गुट ने ट्रैक्टरों से मिट्टी हटाकर बोल्डर हटाने शुरू कर दिए थे लेकिन कई टन वजनी बोल्डर हटाए नहीं जा रहे थे। शाम को 7 बजे यहां किसान संगठनों के बीच हंगामा हो गया। कई बार मारपीट की नौबत आई लेकिन बुजुर्ग किसानों ने मोर्चे को संभालकर शांत कराया। हरियाणा जाने के लिए यहां से जींद, कैथल, नारनौर होकर जाना पड़ता लेकिन सभी रास्तों पर जाम और बॉर्डर सील थे।

रात में किसी तरह स्थानीय किसानों की मदद से गांव कनेक्शन की टीम खेतों के बीच से पंगडंडियों के बीच होते हुए करनाल पहुंची, जहां शाम को ही को किसानों को रोकने के लिए बल प्रयोग किया गया था, जोरदार हंगामा हुआ था, लेकिन किसानों के जत्थे सब बाधाओं को धता बताकर पानीपत पहुंच चुके थे। यहां पुलिस ने किसानों को रोकने के लिए टोल प्लाजा के आगे हाईवे को खोद डाला था। (किसान संगठऩ इसे हरियाणा पुलिस की नक्सली हरकत बता रहे थे)

किसानों के हुजूम खुद से इन गड्ढों को पाटकर रातों-रात सोनीपत पहुंचे जहां राजीव गांधी एजुकेशन कैंपस के बाहर निर्माणाधीन ओवरब्रिज पर पुलिस और सुरक्षाबलों ने पुल निर्माण में लगने वाले कई टन वजनी सीमेंट के बोल्डर रखे थे। लेकिन सुबह करीब सवा सात बजे किसानों ने इसके एक हिस्से को तोड़ दिया। पुलिस ने किसानों पर पानी की बौछार की लेकिन किसान रुके नहीं।

यहां मिले किसान कई किसानों ने कहा कि हम सोनीपत तक 8 से 9 बैरीकेड्स तोड़कर आए हैं। पुलिस ने कई जगह पानी की बौछार की है। पूरे हाइवे पर कई जगह गड्ढे खोदे, कहीं मिट्टी डाली। हमारे ट्रक चालक भाइयों क चाबियां छीनकर उन्हें सड़कों पर लगा दिया, लेकिन हम लोग आगे सब तोड़कर यहां तक पहुंचे हैं। हमारी गाड़ियों के शीशे भी तोड़े गए हैं।

सोनीपत से आगे किसानों का हुजूम उनकी मंजिल दिल्ली की तरफ बढ़ चला था। सिंघु बॉर्डर उनकी मंजिल थी। दिल्ली पानीपत हाइवे पर वाहनों की लंबी लाइऩ लग गई थी।

रिपोर्टिंग के बाद किसानों के साथ टेंट में रुके गांव कनेक्शन के मल्टीमीडिया जर्नलिस्ट दया सागर।

किसान तो निकल गए थे लेकिन पुलिस ने बाकी लोगों को जाने के लिए हाइवे जगह-जगह से रोक दिया था। गांव कनेक्शन की टीम बल्लभगढ़ में गांवों की सड़कों से होते हुए नरेला के रास्ते दोपहऱ करीब 12 बजे सिंघू बॉर्डर पहुंची। जैसा की पहले से तय ही यहां दिल्ली पुलिस ने जबरदस्त नाकेबाजी की थी। हरियाणा की तरफ किसान थे दिल्ली की तरफ पुलिस और अर्द्धसैनिक बल थे।

आंदोलन के दूसरे दिन 27 नवंबर को सिंघु बॉर्डर दोपहर पौने दो बजे करीब जंग का मैदान बन गया। दोपहर करीब पौने दो बजे किसानों द्वारा बैरिकेडिंग तोड़ने के बाद हंगामा शुरू हो गया, जो आंसू गैस के गोले, लाठीचार्ज और पानी की बौछार के बाद शांत हुआ। किसानों ने पुलिसकर्मियों के रोके जाने के बावजूद दोपहर करीब 1:50 बजे किसानों ने सुरक्षा व्यवस्था में सबसे आगे लगे बैरिकेड्स को तोड़ दिया।

इसी बीच हरियाणा बॉर्डर साइड में ट्रैक्टर-ट्रालियों पर सवार हजारों किसान भी पैदल उतर का दिल्ली में घुसने की कोशिश करने लगे। करीब पांच मिनट में ही पुलिस का पहला सुरक्षा घेरा टूट गया था, जिसके बाद हालात को काबू करने के पुलिस ने सबसे पहले आंसू गैस के गोले छोड़े। दिल्ली पुलिस ने लोहे की बैरिकेडिंग के पीछे, सीमेंट के डिवाइडर भी रखे थे, जिसके पीछे मिट्टी से भरी डंपर खड़े थे।

हालात तनावपूर्ण होते जा रहे थे। किसान डंपर स्टार्ट कर उससे बैरिकेडिंग हटाने लगा, जिसकी चपेट में आने से दिल्ली पुलिस का एक सिपाही भी घायल हो गया। डंपर से बने रास्ते के बीच सैकड़ों किसान दिल्ली पुलिस और सुरक्षाकर्मियों का घेरा तोड़ने लगे। हालात बेकाबू होते देख पुलिस ने एक के बाद एक कई राउंड आंसू गैस के गोले छोड़े और लाठीचार्ज किया। वहीं सड़क की दूसरी साइड से वाटर कैनन का इस्तेमाल किया गया।

आंसू गैस की चपेट में किसानों के साथ कई पुलिसकर्मी और मीडियाकर्मी भी आए और अचानक से भगदड़ मच गई। ये हंगामा करीब 30 से 35 मिनट चला। कुछ देर शान्ति के बाद किसानों ने फिर नारेबाजी शुरू की। तब तक संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े किसान नेता योगेंद्र यादव, अखिल भारतीय किसान समन्वय संघर्ष समिति के संयोजक सरदार वीएम सिंह, हरियाणा के किसान नेता गुरूनाम सिंह चढ़ूनी समेत कई नेता मौके पर पहुंचे और बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ।

मौके पर मौजूद पुलिस अधिकारियों ने किसानों को बताया कि उन्हें दिल्ली में प्रवेश की अनुमति मिल गई है, लेकिन दिल्ली पुलिस ने सिर्फ किसानों को जाने की अनुमति दी थी। उनके वाहनों को नहीं। मगर किसानों का एक धड़ा बुराड़ी के संत निरंकारी मैदान में जाने को राजी नहीं हुआ और संधू बॉर्डर पर ही डेरा डाल दिया। हरियाणा और पंजाब दोनों ही राज्यों के कई किसानों के अनुसार, वह दिल्ली जाम करने यहां आएं और चारों तरफ से दिल्ली को जाम करके ही रहेंगे।

तमाम रुकावटों के बावजूद किसानों के जत्थे दिल्ली की पहुंच चुके थे। आंदोलन के तीसरे दिन 28 नवंबर को कुछ किसान बुराड़ी स्थित निरंकारी मैदान पहुंचे लेकिन बड़ी संख्या में किसान अभी भी सिंघु बॉर्डर पर डटे हुए थे, इन किसानों ने दिल्ली बॉर्डर को ही निर्णायक जंग का मैदान बना लिया है। सरकार ने वार्ता के बुराडी मैदान आने की शर्त रखी लेकिन किसानों ने उसे खुली जेल बताते हुए जाने से इनकार कर दिया। किसानों का कहना है वो छह महीने का राशन लेकर आए हैं, जरुरत पड़ी तो पिंड (गांवों) से और आ जाएगा लेकिन वो बिना अपनी मांगे मनवाए वापस नहीं जाएंगे।



   

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