जेंडर सेंसटिव जर्नलिज्म के लिए गांव कनेक्शन की पत्रकार नीतू सिंह को मिला रीफ्रेम मीडिया अवार्ड

नीतू सिंह के अलावा फ्रीलांस पत्रकार असगर खान और रितिका को भी यह पुरस्कार मिला।

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जेंडर सेंसटिव जर्नलिज्म के लिए गांव कनेक्शन की पत्रकार नीतू सिंह को मिला रीफ्रेम मीडिया अवार्डगांव कनेक्शन की पत्रकार नीतू सिंह को मीडिया रिफ्रेम अवार्ड

रांची (झारखंड)। जेंडर सेंसटिव जर्नलिज्म पर बिहार और झारखंड के तीन पत्रकारों को रिफ्रेम मीडिया अवार्ड 2019 से सम्मानित किया गया। इन पत्रकारों में गांव कनेक्शन की सीनियर रिपोर्टर नीतू सिंह भी शामिल हैं। उन्हें 'गांव तक नहीं पहुंची सरकार की नजर तो महिलाओं ने खुद बना ली सड़क' रिपोर्ट के लिए सम्मानित किया गया। नीतू सिंह के अलावा फ्रीलांस पत्रकार असगर खान और रितिका को भी यह पुरस्कार मिला। असगर खान को रिपोर्ट 'बाल विवाह के रोकधाम' और रितिका को उनकी खबर 'हत्या और ऑनर किलिंग की उल्झी गुत्थी' पर ग्राउंड रिपोर्ट के लिए यह अवार्ड मिला

गांव कनेक्शन की पत्रकार नीतू सिंह पिछले एक साल से झारखंड में रहकर सुदूर और दुर्गम क्षेत्रों में जाकर रिपोर्टिंग कर रहीं हैं। ये खबर उन्होंने लातेहार जिले के हेसलबार गांव की सखी मंडल से जुड़ी आदिवासी महिलाओं की ग्राउंड स्टोरी की थी जिसमें महिलाओं ने खुद मिलकर 2 किलोमीटर सड़क और बोरी बांध पुल बनाया था। इससे वर्षों से खाली पड़े खेतों में इकट्ठे पानी से सिंचाई का मार्ग सुलभ हुआ। तीनों विजेताओं को सर्टिफिकेट और तीस हजार की धनराशि ब्रेकथ्रू की मीडिया हेड प्रियंका खेर ने दी।


पढ़ें यह ग्राउंड रिपोर्ट- गांव तक नहीं पहुंची सरकार की नजर तो महिलाओं ने खुद बना ली सड़क और बोरी बांध

ब्रेक थ्रू द्वारा आयोजित इस रिफ्रेम मीडिया अवार्ड समारोह से पहले बाल विवाह के मुद्दे पर एक चर्चा की गई, जिसमें स्वयंसेवी संस्थाओं के लोग, पत्रकार, फ़िल्मकार, गीतकार और सरकारी अधिकारी शामिल हुए। इस चर्चा में सीएमएस के डॉयरेक्टर रघु ने बताया, "झारखण्ड के हमने तीन जिले के 42 ब्लॉक में बाल विवाह को लेकर गोष्ठियां,ट्रेनिंग, कम्युनिटी मोबलाइजेशन, नुक्कड़ नाटक के जरिए काम करना शुरू किया था। अगर हम आंकड़ों की बात करें तो वर्ष 2006-12 के बीच 16.9 उम्र में शादियां हुईं वहीं 2013-19 के बीच 18.74 उम्र में शादियां हुई। ये बदलाव की शुरुआत है उम्मीद है आने वाले दिनों में इसके बेहतर रिजल्ट होंगे।"


एनआरएमसी के वाइस प्रेसीडेंट शैलेस नागर ने बताया कि दुनिया की एक तिहाई बाल बधुएं दक्षिण की हैं। जिनमें सबसे ज्यादा मामले बाग्लादेश और उसके बाद भारत और नेपाल जैसे देश में देखे जाते हैं। प्रेक्सिस के निदेशक अंनिदो बनर्जी ने कहा कि झारखंड में 10 में 4 लड़कियों की शादी कम उम्र में हो जाती है। इस पैनल का संचालन ब्रेकथ्रू की निदेशक, रिसर्च डा. लीना सुशांत ने किया।

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में बाल विवाह रोकने के लिए मीडिया और पापुलर कल्चर की क्या भूमिका हो सकती है इस विषय पर भी चर्चा हुई। वरिष्ठ पत्रकार,जेंडर स्पेस्लिस्ट नासिरूद्दीन ने कहा, "समाज में लड़कियों को लेकर जो सोच बनी होती है वही मीडिया के न्यूज रूम में दिखाई देती है। लड़कियों को भी ज्यादातर वही बीट दे दी जाती है जिससे उनका घरों में सरोकार होता है इसमें मीडिया संस्थानों को सुधार करने की आवश्यकता है।" लोकगायिका चन्दन तिवारी ने कई गीतों की पंक्तियाँ सुनाते हुए कहा, "भोजपुरी में स्त्री के मन की बात होनी चाहिए तन की नहीं। हमारी भोजपुरी वैसी नहीं है जैसी परोसी जाती है। आने वाले समय में मैं अपने गीतों में बाल विवाह के गीतों की संख्या और बढ़ाऊंगी।"


प्रतिज्ञा, बालिका वधु जैसे सीरियलों और गुरटगूं सहित कई फिल्मों, विज्ञापनों में काम कर चुकी अभिनेत्री, लेखिका अस्मिता शर्मा ने फिल्म इंडस्ट्री में होने वाले भेदभाव का जिक्र करते हुए कहा, "पुरुष एक्टर को महिला ऐक्ट्रेस के मुकाबले लगभग तीन गुना ज्यादा पैसा मिलता है और विज्ञापनों में महिलाओं को वस्तु की तरह परोसा जाता है। लेकिन अगर कंटेंट की बात करें तो आज के दर्शक ज्यादातर समझदार है इसलिए बड़ी-बड़ी फिल्में फ्लॉप हो रही हैं ये इस बात का सुबूत है।"

वहीं सीनियर जर्नलिस्ट और सांस्कृतिकर्मी निराला बिदेशिया ने लोकगीतों का जिक्र करते हुए कहा, " आज भी हमारे लोकगीतों में भेदभाव है और मीडिया की भी अपनी बाध्यताएं हैं। हाल के दिनों में मीडिया सम्पादकों की भूमिका कमजोर हुई है क्योंकि बड़े फैसले लेने की जिम्मेदारी मैनजरों की है।" पिछले पांच वर्षों से मीडिया में काम कर रही बीबीसी की पत्रकार सिंधुवासिनी ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा, "संपादकों को यह समझना चाहिए कि जेंडर और महिला मुद्दे 'सॉफ्ट' बीट का हिस्सा नही हैं। ये मुद्दे भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितनी राजनीति और अन्य बीट्स।" इस पैनल का संचालन ब्रेकथ्रू के सीनियर मैनेजर- मीडिया एडवोकेसी विनीत त्रिपाठी ने किया।


कार्यक्रम के आख़िरी पैनलिस्ट में बाल विवाह जैसे मुद्दों पर आगे की कार्ययोजनाओं पर चर्चा हुई। जिसमें आई.ए.एस. मनीष रंजन ने कहा, "देश में आज भी 1.5 मिलियन लड़कियों की शादी कम उम्र में कर दी जाती है। वहीं 9 ऐसे देश हैं जहां अगर किसी बच्ची का रेप होता और अगर रेपिस्ट से उसकी शादी करा दी जाती है तो उसका गुनाह माफ़ कर दिया जाता है।" बाल विवाह जैसे मुद्दों पर सभी को मिल कर प्रभावी रूप से काम करने की जरूरत है।" वहीं यूनीसेफ के चाइल्ड प्रोटेक्शन विशेषज्ञ प्रीति श्रीवास्तव ने कहा कि झारखंड पहला राज्य है जिसने बाल विवाह के मुद्दे पर पांच वर्षीय योजना बनाई जिसके लिए बजट भी निर्धारित किया गया है।

क्रिया संस्था से आई मयुरी ने कहा कि बाल विवाह जैसे मुद्दों को आम लोगों तक पहुंचाने के लिए खेल भी एक बेहतर माध्यम हो सकता है और विवाह की उम्र से परे शादी के निर्धारण को च्वाइस का मुद्दा बताया। वहीं गया से आए अधई पंचायत के सरपंच राजू ने कहा कि इस तरह की पहल हर स्तर पर करने की जरूरत है। आंगनवाड़ी वर्कर सुमित्रा ने कहा कि सरकारी योजनाओं का लाभ तो होता है लेकिन इसे नीचे तक प्रभावी रूप से पहुंचाने की जरूरत है। इस पैनल का संचालन ब्रेकथ्रू की प्रोग्राम डायरेक्टर नयना ने किया।

इस अवसर पर काफी संख्या में स्वंयसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि, स्टूडेंट, समुदाय के प्रतिनिधि और मीडियाकर्मी शामिल हुए। कार्यक्रम का संचालन अनिका ने किया और धन्यवाद आलोक भारती ने ज्ञापित किया।


ब्रेकथ्रू एक मानवाधिकार संस्था है जो महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ होने वाली हिंसा और भेदभाव को समाप्त करने के लिए काम करती है।कला, मीडिया, लोकप्रिय संस्कृति और सामुदायिक भागेदारी से हम लोगों को एक ऐसी दुनिया बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, जिसमें हर कोई सम्मान, समानता और न्याय के साथ रह सके। हम मल्टीमीडिया अभियानों के माध्यम से मानवाधिकार से जुडें मुद्दों को मुख्य धारा में ला रहे हैं। इसे देश भर के समुदाय और व्यक्तियों के लिए प्रासंगिक बना रहे हैं। इसके साथ ही हम युवाओं,सरकारी अधिकारियों और सामुदायिक समूहों को प्रशिक्षण भी देते हैं, जिससे एक नई ब्रेकथ्रू जेनरेशन सामने आए जो अपने आस-पास की दुनिया में बदलाव ला सके।


   

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