आम की गौरजीत, लंगड़ा और चौसा किस्मों को जीआई टैग दिलाने का प्रयास

मलिहाबाद, माल व काकोरी के दशहरी के अलावा देश की आम की दूसरी नौ किस्मों को जीआई रजिस्ट्रेशन मिला है। किसानों को आम का अच्छा दाम दिलाने के लिए भविष्य में यह रजिस्ट्रेशन सहायक होगा।

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आम की गौरजीत, लंगड़ा और चौसा किस्मों को जीआई टैग दिलाने का प्रयास

डॉ. शैलेंद्र राजन

लखनऊ। मलिहाबादी दशहरी के जीआई रजिस्ट्रेशन के बाद केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, मंडी परिषद के सहयोग से आम गौरजीत, बनारसी लंगड़ा और चौसा जैसी किस्मों को भी मान्यता दिलाने का प्रयास कर रहा। उत्तर प्रदेश के इन आमों का कोई मुकाबला नहीं लेकिन जीआई रजिस्ट्रेशन के बाद देश और विदेश में इनका अच्छा मार्केट बनाने के लिए और आसानी होगी।

किसानों को आम का अच्छा दाम दिलाने के लिए भविष्य में यह रजिस्ट्रेशन सहायक होगा। विशेष भौगोलिक पहचान मिलने से इन आमों के उत्पादकों को अच्छी कीमत मिलना संभव है और अन्य क्षेत्रों के उत्पादकों द्वारा नाम का अनिधिकृत उपयोग कर अपने फलों कसे दूसरे नामों से मार्केटिंग करने पर रोक लग सकेगी हैं।

कई भारतीय आमों को मिला जी आई रजिस्ट्रेशन

मलिहाबाद, माल और काकोरी के दशहरी के अतिरिक्त 9 आम की प्रजातियां को जीआई रजिस्ट्रेशन प्राप्त है। रत्नागिरी का अल्फांसो, गिर (गुजरात) केसर, मराठवाड़ा का केसर, आंध्र प्रदेश का बंगनापल्ली, भागलपुर का जरदालु, कर्नाटक के शिमोगा का अप्पीमिडी, मालदा (बंगाल) का हिमसागर, लक्ष्मण भोग और फजली यह गौरव प्राप्त कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश के आमों की विविधता, गुणवत्ता एवं उत्पादन को देखते हुए केवल दशहरी को रजिस्ट्रेशन प्राप्त होना पर्याप्त नहीं है। पश्चिम बंगाल की आम की 3 किस्मों को रजिस्ट्रेशन प्राप्त हो चुका है।


स्थान के नाम का दुरुपयोग

कई बार जी आई रजिस्ट्रेशन प्राप्त आमों को बेचने के लिए विक्रेता धांधली करने से नहीं चूकते हैं और मुनाफा मूल क्षेत्रों के उत्पादक को नहीं मिल पाता है। भले ही अल्फांसो आम कर्नाटक या तमिलनाडु का हो उसे व्यापरियों द्वारा रत्नागिरी अल्फांसो का नाम दे देना आसान है। कर्नाटक के अल्फांसो विक्रेता, रत्नागिरी अल्फांसो के नाम का फायदा उठा लेते हैं। मलीहाबादी दशहरी के नाम से हरियाणा, हिमाचल, मध्य प्रदेश और कई अन्य प्रदेशों की दशहरी भी बेची जाती है। आवश्यकता है कि जीआई द्वारा नाम के दुरुपयोग को रोका जाए और आवश्यक प्रमाणीकरण के आधार पर ही जीआई उपयोग करने की अनुमति दी जाए।

क्या होता है भौगोलिक संकेतक (जीआई)

भौगोलिक संकेतक (जीआई) का इस्तेमाल ऐसे उत्पादों के लिये किया जाता है, जिनका एक विशिष्ट मूल स्थान होता है। इन उत्पादों की विशिष्ट विशेषता और प्रतिष्ठा एक क्षेत्र विशेष से उत्पादित होने के कारण होती है। यह संकेतक उत्पाद की गुणवत्ता और उत्पादन के मूल स्थान का आश्वासन देता है। 'जियोग्राफ़िकल इंडिकेशंस टैग' या भौगोलिक संकेतक का मतलब ये है कि कोई भी व्यक्ति, संस्था या सरकार अधिकृत उपयोगकर्ता के अलावा इस उत्पाद के मशहूर नाम का इस्तेमाल नहीं कर सकती। भारत में, भौगोलिक संकेतकक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 सितंबर 2003 से प्रभावी हुआ। अधिनियम में जीआई को "भौगोलिक संकेतक" के रूप में परिभाषित किया गया है| अब तक 370 वस्तुओं को 'भौगोलिक' (जीआई) प्रॉडक्ट के रूप में 'कृषि', 'हस्तशिल्प', 'निर्मित', 'खाद्य सामग्री' और 'प्राकृतिक वस्तुओं' के तहत पंजीकृत किया गया है।

बागवानों के लिए भी फायदेमंद

आमतौर पर सर्टिफिकेशन के बाद किसानों को मार्केटिंग के दौरान प्रतिस्पर्धा से कम जूझना पड़ेगा। बाज़ार मे यह प्रमाणित करना कि यह जी आई सर्टिफाइड प्रोडक्ट है काफी है। जीआई को एक तरह से क्वालिटी का मानक भी माना जा सकता है। भारतवर्ष में जी आई प्रोडक्ट के लिए अभी भी जागरूकता अभियान की आवश्यकता है, जिससे किसानों को लाभ मिल सके। जीआई टैग वाले फलों को ई-मार्केटिंग में वरीयता प्राप्त हो सकती है। एफपीओ एवं प्रोड्यूसर्स ऑर्गेनाइजेशंस बनाने और उन्हें सफलता दिलाने के लिए यह आधार बन सकता है।


व्यापारियों में गुणवत्ता के लिए प्रमाणिकता

जीआई प्रमाणित क्षेत्रों से उत्पादित आम के फलों का व्यापार करने में व्यापारियों को भी सहायता मिल सकती है। इसका सीधा असर किसानों को मिलने वाले मूल्य पर पड़ेगा। प्रमाणीकरण के आधार पर वे आम को प्रीमियम दाम पर बेच सकेंगे और विदेशों में भी अपनी साख बनाने के लिए उन्हें कम प्रयास करने की आवश्यकता पड़ेगी।

निर्यात में होगा सहायक

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जीआई का विनियमन विश्व व्यापार संगठन के बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं पर समझौते के तहत किया जाता है। विदेशों में जी आई टैग का विशेष महत्व है। खरीदार इस प्रकार के उत्पादों को खरीदने में संकोच नहीं करते हैं क्योंकि जी आई रजिस्ट्रेशन एक अंतराष्ट्रीय मानक के आधार पर ही मिलता है। आमतौर पर रजिस्ट्रेशन प्राप्त करने के लिए कई मापदंडों पर खरा उतरने की आवश्यकता होती है। विदेशी आयातकों द्वारा ट्रेसेबिलिटी के ऊपर विशेष महत्व दिया जाता है। जीआई प्रमाणीकरण इस दिशा में निर्यातकों के लिए सहायक होता है। जीआई टैग वाले उत्पादों को गुणवत्ता के लिए आश्वस्त कर पाना आसान होता है।

उत्पादक क्षेत्र के लिए लाभप्रद

जीआई के लिए चयनित भौगोलिक क्षेत्र के लगभग सभी आम उत्पादकों को लाभ हो सकता है। जलवायु और विशेष भौगोलिक कारणों से अच्छे क्वालिटी का आम उत्पादन करने में सरलता रहती है। दूसरे प्रदेशों में पैदा की जा रही दशहरी का मुकाबला मलिहाबाद की दशहरी से बिल्कुल भी नहीं किया जा सकता। क्योंकि दशहरी के जीआई प्रमाणित क्षेत्र में फलों का आकार, वजन, मिठास और रंग सबसे उत्तम होता है। यही कारण है कि देश विदेश के विभिन्न बाजारों में विक्रेता खरीदारों को मलीहाबादी दशहरी के नाम से लुभाने का प्रयत्न करते हैं।

लंगड़ा, चौसा एवं रतौल के लिए जीआई टैग, उत्तर प्रदेश के इन विशेष आमों का देश विदेश में अच्छा बाज़ार बनाने में सहायक होगा। बदलते परिवेश के साथ ग्राहकों को अच्छे क्वालिटी के आम की सप्लाई हेतु आश्वस्त करने के लिए एक विशेष भूमिका भी निभाएगा। जीआई टैग वाले विशिष्ट आम की पहचान किसानों को भी अच्छा मूल्य दिलाने में योगदान देगी।

(डॉ शैलेंद्र राजन, केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, रहमानखेड़ा, लखनऊ के निदेशक हैं)

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