अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष : नौ मिनट में 3000 मीटर की रफ़्तार से दौड़ती है यह उड़नपरी

Devanshu Mani TiwariDevanshu Mani Tiwari   8 March 2018 12:44 PM GMT

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अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष : नौ मिनट में 3000 मीटर की रफ़्तार से दौड़ती है यह उड़नपरीवर्ष 2010 में एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक विजेता : सुधा सिंह (एथलेटिक्स)

उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव से निकलकर एशियन गेम्स और फिर ओलिंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली एथलीट सुधा सिंह आज देश की जानी मानी एथलेटिक्स खिलाड़ी बन गई हैं।

देश-विदेश में उत्तरप्रदेश का गौरव बढ़ा चुकी रायबरेली की एथलेटिक्स खिलाड़ी सुधा सिंह ने बहुत कम समय में कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मान हासिल किए हैं। एक वक्त था, जब गाँव में अपने घर से भी सुधा ज़्यादा बाहर नहीं निकलती थी और आज अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत का नाम रोशन कर रही हैं। रायबरेली ज़िले से 114 किमी. पूर्व दिशा में भीमी गाँव में एक मध्यम वर्ग के परिवार की सुधा आज भारतीय एथलेटिक्स की जानी मानी खिलाड़ी बन गई हैं। वो चाहे एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक जीतना हो या फिर शिकागो में नेशनल एथलेटिक चैंपियनशिप में अपना दबदबा कायम करना हो, गाँव की यह बेटी हमेशा से ही आगे रही है।

भीमी गाँव की रहने वाली हैं सुधा सिंह।

सुधा को एशियन गेम्स में पदक मिलने के बाद रियो ओलंपिक में खेलने का भी मौका मिला, लेकिन वहां जाकर उन्हें स्वाइन फ्लू हो गया, इस कारण उन्हें भारत वापस लौटना पड़ा। सुधा की इस उपलब्धि से उनके परिवार बहुत खुश है। सुधा के भाई प्रवेश नारायण सिंह ने उनकी इस मुकाम तक पहुंचने में बहुत मदद की। बचपन से ही खेल की शौकीन रही सुधा ने अपनी शिक्षा रायबरेली जिले के दयानंद गर्ल्स इंटर कॉलेज से पूरी की। एथलेटिक्स के क्षेत्र में सुधा की शुरुआत साल 2003 में लखनऊ के स्पोर्ट्स कॉलेज से हुई।

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स्टेपल चेज़ (एक प्रकार की दौड़) की खिलाड़ी रही सुधा ने अपनी कामयाबी के बीच किसी को भी आने नहीं दिया। यही वजह है की 14 वर्ष में ही उन्हें अपना पहला पदक मिल गया। सुधा के पिता हरिनारायण सिंह रायबरेली की आईटीआई फैक्ट्री में क्लर्क हैं। इतने कम समय में सुधा को इतना मान सम्मान मिलने से हरिनारायण बहुत खुश हैं।

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सुधा की सफलता अब स्थानीय लड़कियों की उम्मीद बन रही हैं। सुधा के बारे में उनके भाई प्रवेश नारायण बताते हैं कि सुधा यहां की लड़कियों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं। वो जब भी घर आती हैं, उनसे मिलने वालों की लाइन लगी ही रहती हैं। सुधा की देखा-देखी अब यहां की लड़कियों ने भी सुबह सुबह दौड़ना शुरू कर दिया है। सुधा चाहतीं हैं की वो वापस आकर यहां की लड़कियों के लिए एक छोटी सी ट्रेनिंग एकेडमी भी खोलें।

भारतीय ऐथलीट सुधा सिंह ।

देश-विदेश में जीतीं कई प्रतियोगिताएं


वर्ष 2003 -- शिकागों में जूनियर नेशनल एथलेटिक्स चैंपियनशिप में कांस्य पदक।

वर्ष 2004 -- कल्लम मे जूनियर नेशनल एथलेटिक्स चैंपियनशिप में रजत पदक।

वर्ष 2005 -- चीन में जूनियर एशियन क्रॉस कंट्री प्रतियोगिता में चयन।

वर्ष 2007-- नेशनल गेम्स में पहला स्थान ।

वर्ष 2008 -- सिनियर ओपन नेशनल में पहला स्थान।

वर्ष 2009 -- एशियन ट्रैक एंड फील्ड में दूसरा स्थान।

वर्ष 2010 -- एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक।

वर्ष 2014 -- एशियन गेम्स में कांस्य पदक।

वर्ष 2015 -- रियो ओलंपिक में चयन।

वर्ष 2016 -- आईएएएफ (आईएएएफ) डायमंड लीग मीट में नेशनल रिकॉर्ड (9:25:55) को तोड़ते हुए इतिहास रचा ।

   

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