यूपी से बिहार वापस जा रहे ईंट भट्ठा मजदूरों ने कहा - 'अपने जिले में ही काम मिल जाता तो हम यहां क्यों आते'

नौ महीने तक ईंट-भट्ठे पर काम के बाद मजदूर वापस बिहार जिले के लिए निकाल गए हैं, उन्हें अब ये भी उम्मीद नहीं है कि बारिश के बाद फिर से काम मिलेगा या नहीं ?

Ajay MishraAjay Mishra   18 Jun 2020 6:48 AM GMT

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कन्नौज (उत्तर प्रदेश)। "परिवार में कोई कमाने वाला नहीं है, इसलिए पेट के खातिर यहां चले आए। पेट जहां ले जाएगा, वहां जाना पड़ेगा। सात लड़कियां हैं, लड़का एक भी नहीं है। पेंशन और अन्य योजनाओं का लाभ भी नहीं मिला। लॉकडाउन में कोई पूछने तक नहीं आया। खेती होती तो बिहार से इतनी दूर यूपी के कन्नौज में क्यों आते, " यह कहते हुए भट्टा मजदूर गायत्री देवी के सामने आगे के दो वक्त की रोटी की चिंता दिखने लगी। इसको लेकर अन्य मजदूर भी परेशान हो गए।

दरअसल, करीब नौ महीने बाद अपने घर को लौट रहे ईंट भट्टा मजदूरों का जीवन किसी दर्द से कम नहीं है। उनका कहना है कि अगर बिहार में उनको लगातार काम मिले तो यहां क्यों आएं। तीन महीने बरसात में घर रहेंगे, उसके बाद फिर से कहीं कमाने निकलेंगे। जिले भर के 31 ईंट भट्टों से 3221 श्रमिक यूपी के कन्नौज से बिहार के गया के लिए रवाना हुए।

कारुन बताते हैं, "इतनी दूर से कमाने के लिए आए थे। चौमास (बारिश) का समय शुरू हो गया है, इसलिए सभी लोग वापस घर जा रहे हैं। टिकट के रुपए मालिक ने दिए हैं। अभी तो घर जा रहे हैं, आगे आएंगे कि नहीं यह पता नहीं। साथ में उनके 80 लोग ट्रेन से जा रहे हैं। गया में रुपए नहीं मिलता है, इसलिए यहां आना पड़ता है।"


गया निवासी मजदूर राजकुमार कहते हैं कि वह गया जिले को जा रहे हैं। यहां ईंट पाथने के लिए आए थे। अब कमा-खाकर वापस जा रहे हैं। मालिक की ओर से मजदूरी मिल गई है। परिवार में तीन लोग हैं, सभी लोग ट्रेन से जा रहे हैं। अब घर जा रहे हैं तो अच्छा लग रहा है। यहां कोई दिक्कत नहीं हुई, सब ठीक रहा है।

रेलवे स्टेशन कन्नौज के बाहर टेंट में कई लोगों के साथ बैठीं सुम्मा देवी ने बताया कि हम लोग ईंटा पाथने आए थे। अब गया जिला जा रहे हैं। कमाने-खाने के लिए चले आए थे। नौ महीने के लिए यहां आए थे। हिसाब हो गया है, काम करने पर मालिक रुपया देता है।

सुभाषिया देवी ने बताया कि ट्रेन से घर जा रही हूं। गरीब हैं कमाने-खाने के लिए इधर चले आए। आमदनी है नहीं बिहार में। यहां साथ में 15 लोग हैं। हिसाब नहीं हुआ है। वापस जाकर जैसे भी खर्च चलेगा, वैसे चलेगा। बारिश में ईंट पथाई नहीं होती है। वहां धान लगाएंगे व मजदूरी करेंगे। भोला ने बताया कि बिहार में कामधंधा नहीं मिलता है। कमाएंगे नहीं तो खाने को नहीं मिलेगा। गरीब आदमी हैं तो दोबारा भी आना पड़ेगा। बैठे-बैठे खाने को तो मिलता नहीं। खेतीबाड़ी है नहीं, बाल बच्चे भी पालने हैं। हम लोग तो ईंट-भट्टे पर थे तो सरकारी योजना का लाभ कहां से मिलेगा।

इन मजदूरों की कौन सुनेगा

तिर्वा-कन्नौज मार्ग पर पाल चौराहा के निकट सपना ईंट भट्टा पर काम करने वाले बकाल बताते हैं कि गरीब हैं, परिवार के साथ इकट्ठा निकलते हैं। नौ महीने घर से बाहर रहते हैं। तीन महीने घर पर रहते हैं, पढ़ाई नहीं हो पाती है। अगली बार की कोई गारंटी नहीं इसी जिले में आएंगे या अन्य में कोई गारंटी नहीं है। ठेकेदार पर है। ईंट एक हजार पर 500 रुपए मिलता है। गया में मजदूरी कम है। 200 से 250 रुपए मिलता है। ईंट का उधर, ज्यादा है लेकिन काम कम मिलता खाली बैठे रहते हैं, इसलिए लगातार काम करने की वजह से आ जाते हैं। कपिलदेव ने बताया कि यूपी के कन्नौज में मजदूरी करते हैं। कामधंधा नहीं मिलता है तो बाहर आना पड़ता है। 10 दिन काम मिलता तो 20 दिन बैठकर कैसे खा सकते हैं। कई गांव के लोग हैं। बच्चों को लेकर बाहर निकल आते हैं। कमाएंगे तो खाएंगे।


पहले दिन 3221 भट्टा मजदूर रवाना, 11 हजार है संख्या

जनपद के ईंट भट्टों पर काम करने वाले मजदूरों की घर वापस होने लगी है। करीब 11 हजार श्रमिकों को बिहार भेजा जाएगा। पहले दिन पहली ट्रेन से 17 भट्टों के 1621 और दूसरी ट्रेन से 16 भट्टों के 1600 श्रमिक अपने प्रदेश को रवाना हुए।

सोमवार को सुबह से ही ईंट भट्टा संचालकों ने मजदूरों को बस, ट्रैक्टर-ट्राली व ट्रक से रेलवे स्टेशन तक भिजवाया। बताया गया कि पहली ट्रेन से जाने वाले मजदूरों को स्टेशन पर ही सीधे बुलाया गया। दूसरी ट्रेन से जाने वाले श्रमिकों को कृषि नवीन मंडी समिति लाया गया, ताकि भीड़ की वजह से आपाधापी न मचे। श्रमिक अपना बोरिया-बिस्तर बांधकर स्टेशन परिसर पर लगे पंडाल में बैठे।

करीब दो बजे से टिकट खिड़की पर उनकी स्वास्थ्यकर्मियों व डॉक्टरों की ओर से थर्मल स्क्रीनिंग हुई। उसके निकट ही राजस्व कर्मियों ने बिना रुपए लेकर टिकट बांटा। करीब एक घंटे बाद स्टेशन पर कासगंज से ट्रेन पहुंची। धीरे-धीरे श्रमिक, बच्चे व महिलाएं आदि उसमें बैठे।


12.80 लाख में बुक हुईं दो श्रमिक स्पेशल ट्रेन

ईंट भट्टा मजदूर अपने घर को बिहार के लिए रवाना हो गए। उसके लिए जिला प्रशासन ने ट्रेनों की बुकिंग की है। टिकट श्रमिकों को फ्री में बांटा गया, जिसका किराया भट्टा संचालक ने जमा किया था। करीब 12.80 लाख रुपए रेलवे विभाग को यात्री किराया के रूप में जमा किया गया है।

डीएम राकेश मिश्र ने बताया कि जिले के ईंट भट्टों पर काम करने वाले ज्यादातर श्रमिक बिहार के हैं। सीजन खत्म हो रहा है तो सोमवार को दो ट्रेन से मजदूर गया भेजे गए हैं। पहली गाड़ी से 1621 और दूसरी ट्रेन से 1600 यात्री गए हैं। किराया रेलवे को जमा हो गया है। इसका किराया भट्टा मालिक ने दिया है। मजदूरों को टिकट फ्री में दिया गया है। खाने-पीने के पैकेट भी बांटे गए हैं। सोमवार को पहली ट्रेन चार बजे तो दूसरी रात आठ बजे रवाना हुई। 15 जून को एक ट्रेन गया जिले को तो दूसरी नवादा जाएगी। 16 को भी गाड़ियां जाएंगी। उन्होंने बताया कि छह से साढे़ लाख में एक ट्रेन बुक हुई है। 405 रुपए के हिसाब से प्रति टिकट का नवादा के लिए जमा हुआ है। पांच साल से छोटे बच्चों का कोई टिकट नहीं है। गया के लिए 390 रुपए भट्टा मालिक ने मजदूरों के लिए जमा किए हैं।

     

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