"गाँव में अस्पताल खोल सकूं इसलिए बना डॉक्टर"

किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के 15वें दीक्षांत समारोह में गोल्ड मेडलिस्ट छात्रों ने अपने संघर्ष के दिनों को किया याद

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   26 Oct 2019 7:10 AM GMT

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गाँव में अस्पताल खोल सकूं इसलिए बना डॉक्टर

लखनऊ। " मेरे पड़ोसी मेरी मम्मी से कहते थे, बिटिया को स्कूल भेजने की जगह घर का काम करना सिखाओ, लड़कियों को घर का काम करना शोभा देता है न की पढ़ाई करना। लेकिन मेरी मम्मी उनकी बातों की परवाह किए बगैर मुझे हमेशा पढ़ने के लिए प्रेरित करती रहीं, गांव की होते हुए भी किसी तरह की बंदिशें नहीं थीं मेरे लिए, उसी का नतीजा है कि आज मैं गोल्ड मेडल हासिल कर पाई हूं।"

ये कहना है किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के पीडियाट्रिक डेंटल सर्जरी विभाग की छात्रा डॉक्टर अंजली यादव का। डॉक्टर अंजली को एमडीएस (मास्टर ऑफ डेंटल सर्जरी) में सबसे अधिक अंक लाने पर केजीएमयू के 15वें दीक्षांत समारोह में गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया। अंजली जैसे कई होनहार छात्र जो ग्रामीण परिवेश हैं, उन्होंने विपरीत हालातों का सामना करके अपने-अपने विभाग में सर्वोच्च स्थान हासिल किया।

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अपने विभागाध्यक्ष डॉक्टर राकेश कुमार चक के साथ गोल्ड मेडलिस्ट डॉक्टर अंजली।

अंजली उत्तर प्रदेश के जनपद रायबरेली के डलमऊ की रहने वाली हैं। अंजली ने गाँव कनेक्शन को बताया, " मेरी मम्मी भी डॉक्टर बनना चाहती थीं, लेकिन कुछ कारणों से वह बन नहीं पाईं। उन्हें इस बात का आज तक मलाल था। मेरी मम्मी चाहती थीं कि मैं उनके सपनों को पूरा करूं इसलिए उन्होंने मुझे पढ़ने के लिए हमेशा प्रेरित किया। मेरा पढ़ना मेरे घर के अगल-बगल के लोगों और रिश्तेदारों अच्छा नहीं लगता था। वे हमेशा मम्मी से कहते रहते कि बिटिया को स्कूल मत भेजो, घर के काम-काज सिखाओ। लेकिन उनकी बातों को नजरअंदाज करके मम्मी मुझे हमेशा पढ़ने के लिए प्रेरित करती रहीं। घर पर हमेशा से पढ़ाई का माहौल रहा है।"

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डॉक्टरी की पढ़ाई के अनुभव को साझा करते हुए अंजली ने बताया, "मैं हमेशा से टॉपर रही हूं। 12वीं पास करने के बाद मेडिकल की तैयारी के लिए मैं लखनऊ आ गई। लेकिन यहां सब कुछ इतना आसान नहीं था। ग्रामीण परिवेश से सीधे निकलकर शहर में आ गई थी। डलमऊ और लखनऊ में जमीन आसमान का अंतर था। लेकिन मैं बिना घबराए मेडिकल की तैयारी करती रही। दो साल की मेहनत के बाद मेरा सलेक्शन बीडीएस के लिए हो गया। मुझे केजीएमयू में एडमिशन मिल गया। बीडीएस में भी मैं अपने बैच की टॉपर थी। तीन साल में मुझे कुल 16 मेडल मिले थे। अब एमडीएस में भी टॉपर रही।"


न्यूरो एमसीएच में गोल्ड मेडल पाने वाले डॉक्टर विकास जानू ने अपने गांव की स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर बहुत नाराज थे इसी कारण उन्होंने डॉक्टर बनने की ठानी। वे गांव कनेक्शन से कहते हैं, " बचपन में जब गाँव में कोई बीमार पड़ता था तो इलाज के लिए काफी दूर ले जाना पड़ता था, क्योंकि गाँव के आस-पास कोई अस्पताल नहीं था। ये बात मुझे हमेशा परेशान करती थी। "

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"प्राथमिक शिक्षा मेरी गाँव से ही पूरी हुई। 12वीं में आने के बाद मेरे एक अध्यापक ने मुझे डॉक्टर बनने के लिए प्रेरित किया। उसी दिन मैंने ढान लिया था कि मुझे डॉक्टर बनना है। 12वीं की पढ़ाई के बाद मैं डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए एआईपीएमटी (ऑल इंडिया प्री मेडिकल टेस्ट) की प्रवेश परीक्षा में शामिल हुआ। मुझे सूरत के सरकारी मेडिकल कॉलेज में एडमिशन मिला। मैंने वहां से एमबीबीएस और एमएम किया। उसके बाद एमसीएच के लिए मेरा सलेक्शन केजीएमयू में हो गया।" डॉक्टर विकास आगे बताते हैं।

उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल के हाथों सम्मानित होते डाॅक्टर विकास जानू।

डॉ. विकास ने गाँव में बिताए अपने वक्त के बारे में बताते हैं, "मेरे पिता जी एक किसान हैं और मां घर का काम देखती हैं। बचपन में पिता जी के साथ खेतों में काम भी किया है। घर की स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि मैं किसी प्राइवेट कॉलेज से मेडिकल की पढ़ाई कर सकूं। इसलिए मैंने खूब मेहनत से पढ़ाई कि जिससे मुझे सरकारी कॉलेज मिल सके। मेरा मानना है गाँव में प्रतिभाओं की कमी नहीं है बस उन्हें एक मंच की जरूरत होती है। गाँव में ज्यादातर बच्चों को यह नहीं पता होता है कि वे आगे चलकर क्या करेंगे। ऐसे में कई बार वे गलत रास्ते पर चले जाते हैं। मेरी ख्वाहिश है कि कुछ साल बाद अपने गाँव में एक अस्पताल खोलूं, जिससे हम लोगों ने जिन परेशानियों का सामना किया है वे हमारी आने वाली पीढ़ी को देखना पड़े। "

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