जहां गोमती का हुआ जन्‍म, वहीं मारने की हुई शुरुआत

उत्‍तर प्रदेश के आठ जिलों से होकर बहने वाली गोमती का अस्‍तित्‍व संकट में क्‍यों है, इसे जानने के लिए गांव कनेक्‍शन की टीम ने नदी के उद्गम स्‍थल (माधव टांडा, पीलीभीत) से लेकर लखनऊ तक करीब 425 किमी की बाइक यात्रा की। यात्रा के दौरान उन तमाम मुद्दों को जानने की कोशिश की गई जिनकी अनदेखी से गोमती अंतिम सांसे गिन रही है।

Ranvijay SinghRanvijay Singh   22 May 2019 11:49 AM GMT

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जहां गोमती का हुआ जन्‍म, वहीं मारने की हुई शुरुआत

रणविजय सिंह/दया सागर

पीलीभीत। ''इस नदी को हमने बहते देखा है, लेकिन अब तो नाला बन गई है। पहले बहुत चौड़ी हुआ करती थी, लेकिन धीमे-धीमे कब गायब हो गई पता ही न चला।'' पीलीभीत के पुरनपुर तहसील के हमरिया पट्टी निवासी कीरथ सिंह (65 साल) यह बात गोमती नदी को लेकर कहते हैं।

कीरथ सिंह अपनी स्‍मृतियों में नदी को बहते हुए देखने की बात कहते हैं। हालांकि वो यह साफ नहीं बता पाते कि गोमती नदी कब से कब तक 'गायब' होती गई। गायब शब्‍द का इस्‍तेमाल इसलिए किया गया है कि गोमती नदी का उद्गम पीलीभीत के माधवटांडा में स्‍थ‍ित गोमत ताल से होता है और यह शाहजहांपुर, सीतापुर, लखनऊ होते हुए जौनपुर में गंगा नदी में जाकर मिल जाती है। लेकिन करीब 900 किमी की इस नदी के जन्‍म स्‍थान (पीलीभीत) में ही इस नदी को खोजना मुश्‍किल हो गया है। इसके पीछे कई कारण हैं, जिसकी वजह से यह नदी अपने जन्‍म स्‍थान पर ही मृतप्राय: हो गई है।

गोमत ताल के बाद से गोमती नदी आगे पूरी तरह से सूखी नजर आती है।

लोक भारती के राष्‍ट्रीय संगठन मंत्री बृजेंद्र सिंह गोमती नदी की दुर्दशा पर कहते हैं, ''गोमती नदी जिस जगह से निकली है, वहीं उसे मारने का काम शुरू हो गया। गोमत ताल को तीन भागों में बांटा गया है। प्राचीन समय में गोमत ताल पर एक ओर से दूसरी तरफ जाने के लिए सड़क का निर्माण किया गया। इसके लिए ताल को पाट दिया गया और पानी के बहाव के लिए बीच में बोल्‍डर डाल दिए गए। अब सोचिए कि किसी भी नदी पर अगर पुल बनता है तो पीलर लगाए जाते हैं, ताकि नदी के बहाव पर असर न हो, लेकिन गोमती के साथ ऐसा नहीं हुआ। उसके ताल को ही पाटने का काम किया गया। अब ऐसे में जिस नदी के जन्‍म स्‍थान पर ही उसके साथ ऐसा होगा वहां नदी कैसे जीवित रह सकती है।''

गांव कनेक्‍शन की टीम भी जब गोमत ताल पर पहुंची तो ऐसा ही नजारा देखने को मिला। ताल को तीन भागों में बांटा गया था और एक ताल से दूसरे ताल में पानी के बहाव के लिए तीन से चार बोल्‍डर लगाए गए थे। हालांकि स्‍थानीय लोगों का कहना है कि इससे ताल के बहाव पर ज्‍यादा असर नहीं पड़ता, बरसात में सड़क के ऊपर से भी पानी बह जाया करता है।

बृजेंद्र सिंह गोमती की दुर्दशा के लिए भूजल के गिरते स्‍तर की ओर भी इशारा करते हैं। उनके मुताबिक, ''भूजल का अनियंत्र‍ित दोहन भी पीलीभीत में गोमती के खत्‍म होने की एक वजह है। क्‍योंकि गोमती नदी भूजल पर आधारित नदी है, ऐसे में जमीन के पानी का स्‍तर कम होने से नदी का पानी भी सूख गया।'' लोक भारती संस्‍थान पर्यावरण और विशेषकर गोमती नदी को फिर से जीवित करने को लेकर कार्य करती है।

'गोमती गुरुद्वारा' के पास मौजूद गोमती नदी। यहां नदी नाले की तरह दिखती है, जिसके दोनों तरफ किसानों ने कब्‍जा कर रखा है।

गोमती नदी की फिलहाल की स्‍थिति पर बात करें तो गांव कनेक्‍शन की टीम जब गोमत ताल पहुंची तो नदी ताल के आगे कहीं बह नहीं रही थी। वो वहीं तक सिमित थी। आगे कुछ नहर की तरह खोदाई की गई थी, लेकिन पानी उसमें नहीं था। ऐसे में गोमत ताल से ही नदी की धारा टूट जाती है। इसके आगे यह नदी करीब 10 किमी बाद पुरनपुर तहसील में स्‍थित गोमती गुरुद्वारा के पास दिखाई देती है, जहां भी यह नाले की तरह ही नजर आती है।

गोमती गुरुद्वारा के पास के गांव पंचखेड़ा के रहने वाले किसान मंजीत सिंह (45 साल) भी गोमती को लेकर अपने बचपन की याद साझा करते हुए कहते हैं, ''जब मैं छोटा था तो नदी को देखा था। वहां हम खेलने जाते और नदी के किनारे बालू में गड्ढा करके पानी निकाल देते। लेकिन समय के साथ नदी सिकुड़ती गई और आज स्‍थिति यह है कि नदी की जमीन पर अवैध कब्‍जा है। वहां किसान अपनी फसल उगा रहा है और नदी के लिए जगह ही नहीं बची है।''

मंजीत सिंह भी गोमती नदी की इस स्‍थिति के लिए बृजेंद्र सिंह से ही मिलती जुलती बात कहते हैं। मंजीत कहते हैं, ''नदी के लिए सबसे ज्‍यादा नुकसान भूजल का बिना सोचे समझे दोहन करने से हुआ है।'' वो इसके पीछे साठा धान को भी एक वजह बताते हैं। मंजीत कहते हैं, ''पीलीभीत क्षेत्र में साठा धान खूब लगाया जा रहा है। मार्च से लेकर मई तक लगने वाली इस फसल में पानी अन्‍य धान के मुकाबले 10 गुना ज्‍यादा लगता है। ऐसे में क्षेत्र में पानी का स्‍तर दिन पर दिन गिरता जा रहा है। गोमती नदी भी गोमत ताल में मौजूद पांच स्रोत से बनती है। जब भूजल का स्‍तर कम होगा तो स्रोत बंद हो जाएंगे और ऐसा हो भी रहा है।'' साठा धान एक ऐसी फसल है जो 60 से 90 दिन के बीच में तैयार हो जाती है। धान की इस फसल को किसान इसलिए लगाते हैं ताकि कम समय में ज्‍यादा मुनाफा कमा सकें, हालांकि इस फसल में धान की दूसरी किस्‍म के मुकाबले पानी बहुत अध‍िक लगता है।

मंजीत सिंह

मंजीत सिंह ने साठा धान पर रोक लगाने के लिए स्‍थानीय अध‍िकारियों से लेकर एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्र‍िब्‍युनल) तक को पत्र लिखा, लेकिन उनकी शिकायत पर कोई खास असर नहीं हुआ। मंजीत कहते हैं, ''पीलीभीत में भूजल दोहन की जो स्‍थ‍िति है अगर ऐसी ही बनी रही तो यहां भी बुंदेलखंड से हालात हो जाएंगे।'' पीलीभीत में भूजल का स्‍तर काफी अच्‍छा है। लोगों के मुताबिक उन्‍हें 30 फीट पर अच्‍छा पानी मिल जाता है। यही कारण है कि यहां पंपसेट लगाकर भारी मात्रा में साठा धान भी उगाया जाता है। और यही वजह थी कि इस क्षेत्र में ताल और जल स्रोत बहुतायत में मौजूद थे, जोकि समय के साथ सूखते चले गए।

पंचखेड़ा के ही रहने वाले पुष्‍पजीत सिंह बताते हैं, ''पहले बोरिंग, तालाब और कुओं को रीफिल किया जाता था, लेकिन अब उल्‍टा हो गया है कि लोग पानी निकाल रहे हैं। जिले के सिंचाई विभाग की रिपोर्ट है कि हर साल डेढ़ मीटर जल स्‍तर नीचे जा रहा है। ऐसे में जब गोमती नदी पूरी तरह से ग्राउंड वॉटर पर निर्भर करती है तो उसपर असर तो होगा ही। यही कारण है कि नदी सूखती चली गई और उसके किनारों पर कब्‍जा होता चला गया। आज स्‍थित‍ि है कि नदी पर लोग फसल लगाए हुए हैं।''


गोमती की इस स्‍थिति के लिए बहुत हद तक प्रशासनिक उदासीनता भी एक वजह रही है। समाजसेवी अमिताभ अग्‍निहोत्री जो कि गोमती को लेकर काफी लंबे वक्‍त से काम करते आए हैं, वो बताते हैं, पहले की सरकारें वक्‍त रहते यह तय ही नहीं कर पाईं कि गोमती के लिए कुछ करना है। ऐसे में गोमती का हाल बद से बदतर होता गया। राज्‍य की मौजूदा सरकार में गोमती को चिन्‍ह‍ित करने का काम हुआ और गोमत ताल के आस-पास सुंदरीकरण और ताल में पानी के लिए शारदा नहर से एक कैनाल ताल तक लाया गया है। हालांकि यह शुरुआती प्रयास है, अभी नदी को जीवित करने में बहुत काम बाकी है।''

अमिताभ अग्‍निहोत्री कहते हैं, ''अखिलेश मिश्र जब पीलीभीत के डीएम थे तो उन्‍होंने गोमती के लिए युद्ध स्‍तर पर काम किया। उन्‍होंने गोमती को जन अभ‍ियान के तौर पर लागू किया, जिसकी देन है कि अभी बहुत से क्षेत्रों में गोमती के लिए किसानों ने स्‍वत: जमीनें छोड़ दीं। अप्रैल 2018 में नदी के लिए जमीन खाली कराने के लिए अभ‍ियान चला था, उसका लोगों ने भी खूब समर्थन किया था। अगर जन भागीदारी रही तो नदी को फिर से जीवित किया जा सकता है।''

(यह स्‍टोरी गांव कनेक्‍शन की सीरिज 'एक थी गोमती' के तहत की गई है। गोमती नदी को लेकर हमारी टीम ने एक पूरी सीरिज प्‍लान की थी। इसके तहत हमने गोमती नदी के उद्गम स्‍थल (पीलीभीत की ग्राम पंचायत माधवटांडा) से लेकर लखनऊ तक नदी को बाइक से ट्रैक किया। चार दिन में गोमती को ट्रैक करते हुए गांव कनेक्‍शन की टीम ने पीलीभीत, शाहजहांपुर, लखीमपुर खीरी, सीतापुर और लखनऊ में करीब 425 किमी बाइक से यात्रा की। इस बाइक यात्रा में हमने नदी के जीवन को जानने, उसकी हाल की स्‍थ‍िति देखने के साथ ही इसके आस पास बसने वाले लोगों से समझा कि गोमती नदी उनके लिए क्‍या मायने रखती है। gaonconnection.com पर आप इस सीरिज की खबरें पढ़ सकते हैं।)


  

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