जानिए कौन हैं ये हुनरमंद, जिनके हाथों में बोल उठती है लाल मिट्टी

एक जनपद एक उत्पाद योजना में यूपी सरकार ने शामिल किया टेराकोटा हस्तशिल्प, टेराकोटा पर डाक विभाग ने जारी किया है डाक टिकट

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   20 May 2019 12:12 PM GMT

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गोरखपुर। लाल मिट्टी को आग में पकाकर उससे बनने वाली मूर्तियां और सजावटी सामान बनाने की कला टेराकोटा भारत के कई हिस्सों में जानी मानी हस्तकलाओं में से एक है। चार दशक पहले उत्तर प्रदेश के गोरखपुर ज़िले में कुम्हारों ने टेराकोटा के बर्तन व सजावटी सामान बनाना शुरू किया। आज इस कला ने यहां के स्थानीय कुम्हारों को एक नया रोजगार दिया है।

गोरखपुर शहर से करीब 15 किलोमीटर दूर औरंगाबाद गाँव टेराकोटा के लिए भारत के साथ-साथ विदेशों में भी जाना जाता है। इस गाँव के करीब एक दर्जन कुम्हारों को टेराकोटा हस्तशिल्प कला के लिए राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है।

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औरंगाबाद के रहने वाले लक्ष्मी प्रजापति (55वर्ष) ने बताया, " साल 1966 में पं. जवाहरलाल नेहरु ने कहीं पर टेराकोटा की मूर्तियां देखीं। उन्होंने इसे बनाने वाले कलाकार से मिलने की इच्छा जताई। उस जमाने में गाँव तक आने का साधन टांगा था। पं. नेहरु तांगे से गाँव तक पहुंचे। यहां वे हमारे बाबा सुखराज से मिले और उनके द्वारा बनाई गरी मूर्तियों की प्रसंशा की। उन्होंने सुखराज से दिल्ली आने की बात कही। कुछ समय बाद सुखराज पत्नी के साथ दिल्ली पहुंच गए। यहां उन्होंने एक बड़ा से हाथी बनाया, जो पंडित नेहरु को बहुत पंसद आया। उसी कलाकृति के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।"

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टेराकोटा देश के हर राज्यों में है, लेकिन गोरखपुर के टेराकोटा की अपनी एक अलग पहचान है। गोरखपुर में बनने वाले टेराकोटा में किसी मशीन का प्रयोग नहीं होता है। हाथ से ही इसे विभिन्न आकार दिया जाता है। इसे पकाने में आज भी सिर्फ गोबर के कंडे का प्रयोग किया जाता है। आग में पकने के बाद मूर्ति का सूर्ख लाल रंग देखते ही बनता है। मूर्ती बनाने के लिए एक विशेष प्रकार की मिटटी का प्रयोग किया जाता है जो पास के तालाब से निकाली जाती है। इस मिटटी की विशेषता है कि यह चिटकती नहीं है।

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