प्रस्तावित निजीकरण के विरोध में सरकारी क्षेत्र के बैंककर्मी 15-16 मार्च को हड़ताल पर, 84 ट्रेड यूनियन ने दिया समर्थन

सरकारी क्षेत्र की दो बैंकों के प्रस्तावित निजीकरण के विरोध में देशभर के सरकारी क्षेत्र की बैंकों के कर्मचारी 15 और 16 मार्च को हड़ताल पर रहेंगे। बैंक कर्मचारी केंद्रीय बजट में विनिवेश की बात आने के बाद से लगातार विरोध जता रहे हैं।

Arvind ShuklaArvind Shukla   12 March 2021 1:35 PM GMT

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प्रस्तावित निजीकरण के विरोध में सरकारी क्षेत्र के बैंककर्मी 15-16 मार्च को हड़ताल पर, 84 ट्रेड यूनियन ने दिया समर्थनबैंकों के प्रस्तावित निजीकरण के विरोध में बैंक कर्मचारी पिछले कई दिनों से लगातार अपनी आवाज़ उठा रहे हैं। फोटो- साभार बैंक यूनियन

देश के 12 सरकारी बैंकों के लाखों कर्मचारी और अधिकारी दो बैंकों के प्रस्तावित निजीकरण के विरोध में 15 और 16 मार्च को देशव्यापी हड़ताल करेंगे। बैंक कर्मचारियों के शीर्ष संगठन यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस (UFBU) के आह्वान पर हो रही इस हड़ताल को देश की अन्य 84 कर्मचारी और मजदूर यूनियन ने अपना समर्थन दिया है।

केंद्रीय बजट भाषण में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने विनिवेश के जरिए पूंजी जुटाने की बात की थी, जिसके बाद से बैंक कर्मचारी लगातार विरोध जता रहे हैं। बैंक कर्मचारी इससे पहले भी 19 फरवरी, 2021 को एक दिन का विरोध प्रदर्शन भी कर चुके हैं। इंडियन बैंक ऑफिसर्स फेडरेशन (आईबीओएफ) ने जारी पोस्टर में कहा है, "सार्वजनिक क्षेत्र के 10 लाख बैंक कर्मचारी बैंकों के निजीकरण और रेट्रोग्रेड बैंकिंग रिफॉर्म (retrograde banking reforms) का विरोध करते हैं। यूएफबीयू (United Forum of Bank Unions) बैंकिंग सेक्टर की नौ बड़ी यूनियन का संगठन है। (बैंकों की हड़ताल और प्रस्तावित निजीकरण पर आधारित गांव कनेक्शन का शो गांव कैफे यहां देखें)

दो सरकारी क्षेत्र की बैंकों के प्रस्तावित निजीकरण के विरोध में 15-16 मार्च को हड़ताल जा रहे बैंक कर्मचारियों ने गिनाए निजीकरण से होने वाले नुकसान। फोटो साभार बैंक यूनियन

इंडियन बैंक ऑफिसर्स फेडरेशन और ऑल इंडिया इलाहाबाद बैंक ऑफिसर्स फेडरेशन (All India Allahabad Bank Officers Federation) के संयुक्त संयोजक संदीप अखौरी मुंबई से गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "बुनियादी तौर पर जो हमारी हड़ताल है वह प्रस्तावित निजीकरण के खिलाफ है। सरकार लाभ देने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों (PSB) और पीएसयू (सार्वजिनक उपक्रम) को बेचने में लगी है। इससे सिर्फ इनमें काम करने वाले लाखों कर्मचारियों का ही नहीं देश के आम लोगों का भी नुकसान होगा। सरकारी बैंकों में जो खाता न्यूनतम 1000 रुपए और जीरो बैलेंस पर चालू रहता है, निजी बैंक 5,000 रुपए का मिनिमम बैलेंस की शर्त लगाते हैं वर्ना चार्ज देना होगा।"'

बैंक कर्मचारियों की हड़ताल और प्रस्तावित निजीकरण पर आधारित गांव कनेक्शन का गांव कैफे यहां देखें

निजीकरण से आम लोगों को नुकसान- पेंशन से लेकर गैस की सब्सिडी तक सरकारी बैंकों से जाती है- बैंक कर्मी

निजीकरण से आम लोगों के नुकसान की बात करते हुए संदीप कहते हैं, "बैंकों का सरकारीकरण ही इसलिए किया गया था कि सभी तक आसानी से सुविधाएं पहुंचे। अभी आप देखिए देश में करीब 42 करोड़ जनधन खाते हैं जिसमें से सिर्फ 1.5 करोड़ खाते ही निजी बैंकों में हैं। पेंशन, गैस सब्सिडी से लेकर आम लोगों के हित के ज्यादातर काम सरकारी बैंकों के जरिए ही होते हैं।"

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में बैंक ऑफ इंडिया के कर्मचारी प्रस्तावित निजीकरण का विरोध करते हुए। फोटो साभार बैंक यूनियन

उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में एक राष्ट्रीय बैंक में शाखा प्रबंधक ने नाम ना छापने की शर्त पर गांव कनेक्शन को बताया, "हमारी ब्रांच में 50 हजार से ज्यादा खाते हैं। लेकिन पिछले दिनों में कई लोग बढ़े चार्जेज के चलते चालू खाता बंद करवाकर गए। जब सरकारी बैंकों का यह हाल है, तो प्राइवेट में क्या होगा। आम आदमी की पेंशन आती है 500 रुपए, जनधन जीरो बैलेंस पर काम करता है प्राइवेट बैंक ऐसे काम क्यों करेगा, जिससे उसे लाभ न हो। वे आप से चार्ज लेंगे और ब्रांच में एसी लगवाएंगे लेकिन गांव का आदमी बैंक में घुस नहीं पाएगा। इसलिए सरकार की इन नीतियों का विरोध जरूरी हो जाता है।"

पिछले साल हुए बैंकों के विलय के बाद देश में मौजूदा वक्त में 12 राष्ट्रीयकृत बैंक हैं जिसमें बैंक ऑफ बड़ौदा, बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, केनरा बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, पंजाब एंड सिंध बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, यूको बैंक और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया है। बैंक कर्मचारियों के मुताबिक सरकार इन्हीं में से दो बैंकों का निजीकरण करना चाहती है।

प्रस्तावित निजीकरण के विरोध में बैंकों की हड़ताल 15-16 मार्च को है लेकिन अब बैंकों में काम 17 मार्च से ही शुरू हो पाएगा। 13 मार्च को दूसरे शनिवार की छुट्टी है और 14 को रविवार है। इन चार दिनों में दो दिन एटीएम से भी पैसे का लेनदेन नहीं हो पायेगा।

देहरादून में प्रदर्शन करते बैंक कर्मचारी। फोटो साभार बैंक यूनियन

पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले में एक सरकारी बैंक में असिस्टेंट मैनेजर विजया शर्मा फोन पर गांव कनेक्शन को बताती हैं, "देखिए 13-14 को एटीएम और डिजिटल चैनल के जरिए पैसे का लेनदेन होता रहेगा। लेकिन अगले दिन बैंकिंग सेवाएं बंद रहेंगी। इन दो दिनों में भले ही ग्राहकों को थोड़ी असुविधा हो लेकिन ये लड़ाई उनके लिए भी है।"

हड़ताल के दौरान एटीएम सेवाओं को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में गांव कनेक्शन के शो में शामिल ऑल इंडिया रीजनल रूरल बैंक ऑफिसर्स फेडरेशन के सचिव भोलेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि एटीएम तब तक काम करेंगे जब तक उनमें पैसा होगा, बैंक की तरफ से उनमें सोमवार को पैसा नहीं डाला जाएगा।

बैंकों की हड़ताल भले ही 15-16 मार्च को हो लेकिन लाखों कर्मचारी बजट के बाद प्रस्तावित निजीकरण के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। विजया कहती हैं, "हम लोग बैच पहनकर बैंक में काम कर रहे हैं। कई बार यूनियन की मीटिंग हो चुकी है और क्षेत्रीय दफ्तरों के बाहर प्रदर्शन हो चुके हैं। बहुत सारे ग्राहक कहते हैं कि निजीकरण हो जाए तो अच्छा है लेकिन तो हम लोगों ने पिछले दिनों में लोगों को जागरूक इसके इसके नुकसान भी गिनाए हैं।'

बैंक कर्मचारियों के विरोध का असर उन राज्यों में ज्यादा है जहां कर्मचारी यूनियन ज्यादा सक्रिय हैं लेकिन यूपी समेत राज्यों में विरोध के स्वर उतने नहीं हैं।

मध्य प्रदेश ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स महासंघ के राज्य सचिव मदन जैन गांव कनेक्शन को बताते हैं, "इस सरकार में धरना देना भी कठिन हो गया है। हम लोग 15-16 मार्च को बड़ा प्रोग्राम करना चाहते हैं लेकिन कोरोना-19 के चलते अनुमति नहीं मिल पा रही है। अब क्या करेंगे जैसे पहले 19 फरवरी को हेडक्वार्टर पर विरोध किया था अब बैंकों के बाहर करेंगे, हड़ताल का असर क्या होगा ये हमें नहीं पता लेकिन जो गलत है उसका विरोध तो करना ही होगा।"


बैंकों और सरकारी क्षेत्र की कंपनियों के निजीकरण का मुद्दा बजट सत्र के दूसरे चरण में संसद में उठ चुका है। केरल में कोट्टायम सीट से केरल कांग्रेस (एम) के सांसद थोमस चाजिकाडन ने सरकार से पूछा था कि "क्या सरकार सरकारी क्षेत्र के किसी बैंक के निजीकरण का करने के प्रस्ताव पर विचार कर रही है?"

जिसका वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने लिखित में जवाब दिया, "वित्त मंत्री ने 2021-22 में केंद्रीय बजट संबंधी भाषण में वित्तीय वर्ष 2021-22 में सरकारी क्षेत्र के 2 बैंकों का निजीकरण करने और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (पीएसई) के कार्यनीतिक विनिवेश करने की नीति अनुमोदित करने की मंशा जाहिर की थी।" हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि विनिवेश की यह कार्ययोजना कैसे काम करेगी, इसके लिए सरकार ने जो तंत्र बनाया है, उसके आप अभी ऐसा कोई प्रस्ताव लंबित नहीं है।

अपने बयान में उन्होंने कहा, "'आत्मनिर्भर भारत' के नई पीएसई नीति के अनुसार बैंकिंग, बीमा एवं वित्तीय सेवा क्षेत्र के संबंध में किसी भी बदलाव की सिफारिश नीति आयोग द्वारा की जाएगी, जबकि इन सिफारिशों पर विचार सरकार द्वारा किया जाएगा। केंद्रीय पीएसई सरकार के नियंत्रण के अधीन रखा जाना है या फिर उसका निजीकरण करना है या फिर उसे किसी दूसरे पीएसई में अनुषंगी बनाना या विलय करना है, इस संबंध में विचार करने के लिए एक वैकल्पिक तंत्र का निर्माण होता है, जिसे सरकार ही अनुमोदित करती है। वर्तमान में वैकल्पिक तंत्र के विचाराधीन कोई प्रस्ताव नहीं है।"

लोकसभा में 8 मार्च को वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर द्वारा विनिवेश के मुद्दे पर दिया गया जवाब। फोटो साभार लोकसभा वेबसाइट

हालांकि कई बैंक कर्मचारियों के मुताबिक सरकार के लिए निजीकरण की राह इतनी आसान भी नहीं है। संदीप अखौरी कहते हैं कि बैंकों के निजीकरण के लिए सरकार को बैंकिंग एक्ट और कंपनी लॉ में बदलाव करने होंगे। मुझे लगता है कि पांच राज्यों में चुनाव के चलते संसद इस सत्र में शायद शायद ऐसा कोई कदम न उठाए लेकिन सरकार की मंशा जाहिर हो चुकी है।"

   

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