यूपी पंचायत चुनाव के दौरान कोविड-19 संक्रमण से जान गंवाने वाले शिक्षकों के परिजनों की कौन सुनेगा?

पंचायत चुनाव के दौरान ड्यूटी पर तैनात सरकारी स्कूल के जिन शिक्षकों की मौत हुई है, उनके परिजनों का भविष्य अंधकार में है। कई ऐसे परिवार हैं जिन्हें कर्ज चुकाना है, फीस जमा करनी है और परिवार के बुजुर्ग सदस्यों के स्वास्थ्य संबंधी खर्च भी उठाने हैं।

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बीते दो माह में उत्तरप्रदेश में पंचायत चुनाव के दौरान ड्यूटी पर तैनात सरकारी स्कूल के जिन शिक्षकों की मौत हुई है, उनके घरों में सन्नाटा पसरा हुआ है और उनके परिजन अब भी सदमे में हैं। परिजनों का कहना है कि महामारी की दूसरी लहर के बावजूद उत्तरप्रदेश सरकार ने शिक्षकों को चुनावी ड्यूटी पर लगा दिया, जिसकी वजह से उनके प्रियजनों की मौत हुई है।

संध्या राठौर ने अपने पति रामकरण राठौर से आखिरी बार 29 अप्रैल यानी पंचायत चुनाव के चौथे चरण के दिन बात की थी। शाहजहांपुर की रहने वाली संध्या ने गांव कनेक्शन को बताया, "मेरे पति शाहजहांपुर के सिंधौली ब्लॉक के रेहरिया गांव के समग्र विद्यालय में पढ़ाते थे। वह 28 अप्रैल को पच्चीस किलोमीटर दूर फील नगर में चुनावी ड्यूटी के लिए घर से निकले थे।"

उनके मुताबिक 60 वर्षीय रामकरण ने दिन भर की मेहनत के बाद मतपेटी जमा की और वहीं गिर पड़े। अगली सुबह, 30 अप्रैल को जब संध्या ने अपने पति के नंबर पर फोन किया, तो किसी और ने उठाया और कहा कि उनके पति बीमार हैं।

संध्या ने आगे कहा, "जब मैं वहां पहुंची तो मुझे बताया गया कि मेरे पति मतदान केंद्र के फर्श पर बेहोश पड़े हुए थे और उनके मुंह से झाग निकल रहा था।" उन्हें शाहजहांपुर के एक अस्पताल ले जाया गया, लेकिन 10 मई को रामकरण की मृत्यु हो गई।

उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव 2021, 15 अप्रैल से 29 अप्रैल के बीच चार चरणों में आयोजित किए गए थे। इसके परिणाम 2 मई को घोषित किए गए। कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर चरम पर थी, लेकिन उसी दौरान चुनाव प्रचार, मतदान और मतगणना हो रहे थे। इस मामले पर राज्य सरकार, इलाहाबाद हाई कोर्ट और राज्य चुनाव आयोग के बीच आरोप-प्रत्योरोप का दौर शुरू हो गया है।


इस बीच, एक राज्य-स्तरीय शिक्षक संघ ने कम से कम 1,621 सरकारी स्कूल शिक्षकों की सूची जारी की है, संघ का दावा है कि इनकी मौत पंचायत चुनावों में ड्यूटी के बाद कोविड-19 की वजह से हुई है। इधर, राज्य सरकार ने संघ के इन आरोपों का खंडन किया है। गांव कनेक्शन संघ के दावों की पुष्टि नहीं करता है।

राज्य सरकार के बेसिक शिक्षा विभाग ने मीडिया को दिए अपने बयान में स्पष्ट कहा है कि पंचायत चुनाव के दौरान केवल तीन शिक्षकों की मौत हुई है। सरकार के इस रुख से संघ के उन सदस्यों में भारी नाराज़गी है, जो मृत शिक्षकों के परिजनों की सहायता के लिए संसाधन जुटा रहे हैं।

प्रशिक्षण से लौटते ही पड़ गए बीमार

शाहजहांपुर जिले के कटिया कम्मू निवासी सुबुही रऊफ खुद शिक्षक हैं। उनके 44 वर्षीय पति सलीम अहमद कटिया कम्मू स्कूल, भावल खेड़ा में प्रिंसिपल थे। सुबुही ने गांव कनेक्शन को बताया, "13 अप्रैल को मेरे पति चुनावी ड्यूटी से संबंधित प्रशिक्षण सत्र में गए थे। उन्हें पहले चरण के मतदान के लिए 15 अप्रैल को रिपोर्ट करना था।"

सुबुही रऊफ ने आगे बताया कि उनके पति जब लौटे तो वे बीमार हो गए, उन्हें बुखार था और सांस लेने में तकलीफ होने लगी। वे होम आइसोलेशन में थे और उन्होंने आखिरकार 2 मई को दम तोड़ दिया।

सलीम अहमद शाहजहांपुर के कटिया कम्मू प्राथमिक विद्यालय में प्रिंसिपल थे, 2 मई को उनकी मौत हो गई।

रऊफ ज़ोर देकर कहती हैं, "आधिकारिक आंकड़े चाहे जो भी हों, पर मेरे पति प्रशिक्षण सत्र के दौरान ही संक्रमित हुए हैं।" अहमद अपने पीछे दो बच्चे छोड़ गए हैं, जिनमें 16 साल का एक बेटा और 13 साल की एक बेटी शामिल हैं। रऊफ को अब अकेले ही अपने बच्चों का पालन-पोषण करना है।

इसी तरह, आशाराम पाल का मामला भी चौंकाने वाला था। वे शाहजहांपुर जिले के जैतीपुर के प्राथमिक विद्यालय बखरपुर में शिक्षक हैं। आशाराम भी 29 अप्रैल को निगोही में अपनी चुनावी ड्यूटी से पहले, 11 अप्रैल को शाहजहांपुर कस्बे में एक प्रशिक्षण कार्यशाला में शामिल हुए थे।

आशाराम के भाई ओम पाल ने गांव कनेक्शन को बताया, "प्रशिक्षण कार्यशाला से लौटने के लगभग तुरंत बाद आशाराम को बुखार हो गया, लेकिन उन्होंने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया।" उन्होंने आगे कहा, "हालांकि, उन्होंने (आशाराम ने) 26 अप्रैल को एक अन्य प्रशिक्षण सत्र में भाग लिया, जिसके बाद उनकी हालत काफी बिगड़ गई।"

ओम पाल ने बताया कि आशाराम को बरेली के गंगाशील अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी कोविड रिपोर्ट पॉजिटिव आई। इसके बाद 37 साल के आशाराम संभल नहीं पाए और 2 मई को उनकी मौत हो गई। ओम पाल ने कहा कि उनके परिवार में उनकी पत्नी, एक 15 वर्षीय बेटा, एक पांच साल की बेटी और बूढ़े माता-पिता हैं, वे सभी उन पर निर्भर थे।

'न्याय का उपहास'

आशीष कुमार शुक्ला, जिन्होंने अपनी पत्नी को खो दिया, ने गाँव कनेक्शन से कहा, "यह बहुत बुरा है, इसे बिल्कुल भी स्वीकार नहीं किया जा सकता।" उन्होंने कहा कि यह शर्मनाक है कि यूपी सरकार अब भी यह कह रही है कि राज्य में चुनावी ड्यूटी के दौरान केवल तीन शिक्षकों की मौत हुई है।

आशीष की पत्नी सुनीता शुक्ला तीन महीने की गर्भवती थी। उन्हें घर में आराम करने की जरूरत थी, लेकिन इसके बावजूद चुनाव में उनकी ड्यूटी लगा दी गई।

मृतका सुनीता शुक्ला का परिवार।

बाराबंकी के पारा खंडोली के एक उच्च माध्यमिक विद्यालय में सहायक शिक्षिका सुनीता 25 अप्रैल को अपना नाम चुनावी ड्यूटी की सूची से हटवाने के लिए बांकोटा गई थीं। वापस लौटते ही वह बीमार पड़ गई।

शुक्ला ने रुंधे गले से कहा, "मैं उसे लखनऊ ले गया, जहां कई अस्पतालों ने उसे भर्ती लेने से मना कर दिया। एक डॉक्टर ने हमें ऐसे अस्पताल में जाने की सलाह दी, जहां वेंटिलेटर उपलब्ध हो।

लेकिन, रास्ते में सुनीता और साथ ही उसके अजन्मे बच्चे की मौत हो गई। शुक्ला कहते हैं, "वह ठीक थी। चूंकि स्कूल बंद थे, इसलिए वह घर पर थी और सुरक्षित थी। अगर पंचायत चुनाव नहीं होते तो सुनीता हमारे बीच होती, और आप यहां हमारा इंटरव्यू नहीं कर रहे होते।" सुनीता अपने पीछे नौ साल का एक बेटा छोड़ गई है।

अपने पति और बेटे के साथ सुनीता शुक्ला।

दरअसल, इतने सारे शिक्षकों और कर्मचारियों को चुनावी ड्यूटी पर लगाए जाने के तुरंत बाद अपनी जान गंवानी पड़ी, इसे नजरअंदाज करना मुश्किल है।

सीमा वर्मा रोते हुए कहती हैं, "मैं चाहती हूं कि सरकार मेरे बच्चों की आंखों में देखकर उन्हें बताए कि पंचायत चुनाव के दौरान कोविड संक्रमित होने से केवल तीन शिक्षकों की मौत हुई है।"

सीमा के पति जयंत वर्मा सीतापुर के महोली प्रखंड के बछवाल गांव के जूनियर हाई स्कूल में प्रशिक्षक थे। 38 वर्षीय जयंत अपने परिवार में अकेले कमाने वाले थे। उनकी मौत 28 अप्रैल को उस समय हो गई, जब वह रेउसा प्रखंड के एक मतदान केंद्र में चुनाव ड्यूटी के लिए जा रहे थे। वह अपने पीछे पत्नी, दो बेटियां जो कि 10 और आठ साल की हैं, और पांच साल का बेटा छोड़ गए हैं। सीमा कहती हैं, "मेरे पति के चले जाने से, मेरी दुनिया बिखर गई है।"

अंधकारमय हो गया भविष्य

परिजनों को दुख तो है लेकिन वे चिंतित भी हैं। कई मामलों में, मरने वाले लोग परिवार के एकमात्र कमाने वाले सदस्य थे। उनके चले जाने से उनका भविष्य भयावह रूप से अंधकारमय नजर आ रहा है। कई ऐसा परिवार है जिन्हें कर्ज चुकाना है, फीस जमा करनी है और परिवार के बुजुर्ग सदस्यों के स्वास्थ्य का खर्च भी उठाना है।

शैलेंद्र मिश्रा ने गांव कनेक्शन को बताया, "जब से मेरे भाई की मृत्यु हुई है, घर में चीजें इतनी खराब हैं कि कई बार मेरे दिमाग में बुरे ख़याल आने लगते हैं।"

शैलेंद्र के बड़े भाई अरुणोदय प्रकाश मिश्रा 28 अप्रैल को चुनाव ड्यूटी के लिए शाहजहांपुर की तिलहर तहसील के मोहल्ला कायस्थान में घर से निकले थे। अगले दिन, ओखली के एक स्कूल में ड्यूटी के दौरान उन्होंने सांस फूलने की शिकायत की। इसके बाद उन्हें ड्यूटी से हटा दिया गया। शैलेंद्र कहते हैं कि अस्पतालों में उन्हें भर्ती लेने से मना कर दिया गया और 30 अप्रैल को उनकी मृत्यु हो गई।

कुछ दिन बाद 11 मई को जलालपुर में पढ़ाने वाले 47 वर्षीय प्रमोद कुमार पांडेय की शाहजहांपुर जिला अस्पताल में मौत हो गई। उनके बहनोई श्याम कुमार मिश्रा, ने गांव कनेक्शन को बताया, "वे 2 मई को तिलहर तहसील के निगोही में चुनाव ड्यूटी के लिए गए थे। वह एक मतगणना पर्यवेक्षक थे।"

श्याम ने बताया, "प्रमोद की तबीयत बिगड़ने के तुरंत बाद 6 मई को उन्हें शाहजहांपुर के जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां 11 मई को उन्होंने अंतिम सांस ली। प्रमोद अपने पीछे तीन बच्चे छोड़ गए हैं।

आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी

राज्य स्तरीय शिक्षक संघ राज्य में 1,621 शिक्षकों की मौत के लिए केवल पंचायत चुनाव को जिम्मेदार ठहरा रहा है।

राज्य के प्राथमिक शिक्षक संघ के महासचिव संजय सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया, "चुनाव ड्यूटी के लिए प्रशिक्षण सत्र 12 अप्रैल के आसपास शुरू हुआ था, और जब तक मतगणना और परिणाम घोषित किए गए, तब तक मौतों का सिलसिला शुरू हो गया था।"

संघ का दावा है कि उसने सभी मौतों को दर्ज किया है। उनका यह भी आरोप है कि प्रशिक्षण के बाद बीमार पड़ने के बावजूद कई शिक्षकों को ड्यूटी पर रखा गया था।

पंचायत चुनाव के दौरान कोविड-19 से संक्रमण के बाद अपनी जान गंवाने वाले कुछ शिक्षकों की तस्वीर।

संपर्क करने पर शाहजहांपुर के कार्यवाहक मुख्य विकास अधिकारी धर्मेंद्र सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया कि शोक संतप्त परिवारों की भावनाओं को जानबूझकर ठेस पहुंचाने या किसी को नुकसान की कामना करने का कोई सवाल ही नहीं उठता।

धर्मेंद्र सिंह ने आगे कहा, "जिला प्रशासन जनता की मदद के लिए हमेशा उपलब्ध है। चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन किया गया है। कोई भी उन आदेशों की अवहेलना नहीं करना चाहता।"

20 मई को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक उच्च स्तरीय समीक्षा बैठक की अध्यक्षता की थी और कहा था, "वर्तमान में, चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों में कोविड-19 महामारी के मौजूदा परिदृश्य में इसके दुष्प्रभावों को ध्यान में रखते हुए संशोधन करने की आवश्यकता है।"

प्रस्तावित संशोधनों में प्रभावी पुनर्वास (रोजगार के अवसरों सहित) और एक निश्चित समय सीमा के भीतर मृतक (कोविड-19 रोगी) के परिवार के सदस्यों को पर्याप्त मुआवजा प्रदान किया जाना शामिल है।

इस बीच, शोकग्रस्त परिजनों के घरों में सन्नाटा पसरा हुआ है और वे डरे हुए हैं। निराश परिजनों के मन में सरकार के रवैये को लेकर बेहद नाराज़गी है।

यह खबर लखनऊ से मोहम्मद आरिफ, शाहजहांपुर से रामजी मिश्रा और सीतापुर से मोहित शुक्ला के इनपुट के साथ पंकजा श्रीनिवासन ने लिखी और एडिट की है।

खबर को अंग्रेजी में यहां पढ़ सकते हैं।

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