हाथियों और मनुष्य के टकराव को रोक रही हैं मधुमक्खियां, कर्नाटक में री-हैब प्रोजेक्ट की शुरुआत, ऐसे हो रहा किसानों को फायदा
इंसानों और हाथियों के टकराव के कारण भारत में हर साल लगभग 500 लोगों की मौत होती है और लगभग 100 हाथी भी हर साल मारे जाते हैं। खाने की तलाश में जंगलों के बाहर आने वाले हाथियों और ग्रामीणों के बीच टकराव को रोकने के लिए छोटी सी मधुमक्खियां मददगार साबित हो रही हैं। कर्नाटक में पिछले 10 वर्षों से बी-फेसिंग (मधुमक्खियों की बाड़) पर काम हो रहा था, अब सरकार ने भी एक पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत की है...
Arvind Shukla 17 March 2021 11:29 AM GMT

कर्नाटक से लेकर छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल तक हर साल हाथी किसानों की हजारों हेक्टेयर फसल और कई बार मानव बस्तियों को नुकसान पहुंचाते हैं। मानव और हाथियों के इस संघर्ष में हर साल 500 लोगों की जान जाती है तो हर साल करीब 100 हाथियों की भी मौत होती है। इस टकराव को रोकने और किसानों की फसल बचाने में हाथियों से हजारों गुना छोटी मधुमक्खियां मददगार साबित हो रही हैं।
हाथियों के हमलों से फसलों को बचाने और मानव-हाथी संघर्ष को रोकने के लिए किसानों को मधुमक्खी पालन सिखाया जा रहा है। किसान मधुमक्खियों के बक्सों को हाथियों के आने के रास्ते में लगा देते हैं। मधुमक्खियों के हमलों से डरकर हाथी वापस लौट जाते हैं। इस प्रोजेक्ट से न सिर्फ फसल बचती है, किसान को शहद और वैक्स (मोम) से अतिरिक्त कमाई होती है बल्कि हाथियों को भी नुकसान नहीं पहुंचता है।
कर्नाटक के कोडागु जिले में नागरहोल नेशनल पार्क और टाइगर रिजर्व के बाहरी इलाकों में केंद्रीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय के अधीन खादी और ग्रामोद्योग आयोग ने री-हैब (RE-HAB) प्रोजेक्ट की शुरुआत की है। प्रोजेक्ट री-हैब (मधुमक्खियों के माध्यम से हाथी-मानव हमलों को कम करने की परियोजना) का उद्देश्य शहद वाली मधुमक्खियों का उपयोग करके मानव बस्तियों में हाथियों के हमलों को विफल करना है और इस प्रकार से मनुष्य व हाथी दोनों के जीवन की हानि को कम से कम करना है। प्रोजेक्ट री-हैब केवीआईसी के राष्ट्रीय शहद मिशन के तहत एक उप-मिशन है। री-हैब (Reducing Elephant Human Attack by using Bees) परियोजना की कुल लागत 15 लाख रुपए है।
कर्नाटक के चेलूर गांव पास खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग ने री-हैब पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत की है। फोटो- PIB
कर्नाटक के चेलूर गांव के पास 15 मार्च को 4 जगहों पर इस पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत करते हुए खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) के अध्यक्ष विनय कुमार सक्सेना ने कहा, "यह वैज्ञानिक रूप से भी माना गया है कि हाथी, मधुमक्खियों से घबराते हैं और वे मधुमक्खियों से डरते भी हैं। हाथियों को डर रहता है कि, मधुमक्खी के झुंड, सूंड और आंखों के उनके संवेदनशील अंदरुनी हिस्से को काट सकते हैं। मधुमक्खियों का सामूहिक झुंड हाथियों को परेशान करता है और यह उन्हें वापस चले जाने के लिए मजबूर करता है। हाथी, जो सबसे बुद्धिमान जानवर होते हैं और लंबे समय तक अपनी याददाश्त में इन बातों को बनाए रखते हैं, वे सभी उन जगहों पर लौटने से बचते हैं जहां उन्होंने मधुमक्खियों का सामना किया होता है।"
केवीआईसी ने चेलूर गांव के आसपास हाथियों के आने में सभी 4 रास्तों में हर जगह पर मधुमक्खियों के 15-20 बॉक्स लगा दिए हैं। बक्सों को एक तार से जोड़ा गया है कि जब हाथी वहां से गुजरें तो उनके झटके से मधुमक्खियां सक्रिय हो जाएं और झुंड को आगे बढ़ने से रोक दें। हाथियों पर मधुमक्खियों के प्रभाव और इन क्षेत्रों में उनके व्यवहार को रिकॉर्ड करने के लिए रणनीतिक बिंदुओं पर किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए नाइट विजन कैमरे लगाए गए हैं।
Tiny Honey Bees to overcome mammoth Human-Elephant conflicts in India with KVIC's unique Project RE-HAB.This aims at checking human & elephants' fatalities without causing any harm to animals.Launched pilot at 4 points in Karnataka's Kodagu dist today@PMOIndia @UNEP @Oneindia pic.twitter.com/GYx7LFcmdX
— Chairman KVIC (@ChairmanKvic) March 15, 2021
केंद्रीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय के बयान के मुताबिक कर्नाटक में प्रयोग से पहले केवीआईसी की एक इकाई केंद्रीय मधुमक्खी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान पुणे, ने हाथियों के हमलों को कम करने के लिए महाराष्ट्र में "मधुमक्खी-बाड़" बनाने के क्षेत्रीय परीक्षण किए थे। केवीआईसी ने परियोजना के प्रभाव मूल्यांकन के लिए कृषि और बागवानी विज्ञान विश्वविद्यालय, पोन्नमपेट के कॉलेज ऑफ फॉरेस्ट्री की सहायता ली है।
संबंधित खबर- 'अगर वो हाथी बेजुबान न होता तो ज़रूर पूछता... फैसला कौन करेगा?'
री-हैब प्रोजेक्ट के साथ जारी रिपोर्ट में सरकार ने बताया कि मानव-हाथी संघर्ष में 2015 से लेकर 2020 तक लगभग 2500 लोग मारे गए हैं तो करीब 500 हाथियों की भी जान गई है। फोटो- अरेंजमेंट
भारत में हाथी के हमलों के कारण हर साल लगभग 500 लोग मारे जाते हैं। सरकारी रिपोर्ट्स के मुताबिक ये हमले देश में चीता-तेंदुओं आदि के हमलों से होने वाली मौतों से लगभग 10 गुना ज्यादा हैं। 2015 से 2020 तक, हाथियों के हमलों में लगभग 2500 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। इसमें से अकेले कर्नाटक में लगभग 170 मानवीय मौतें हुई हैं। इसके विपरीत, इस संख्या का लगभग पांचवां हिस्सा, यानी पिछले 5 वर्षों में मनुष्यों द्वारा प्रतिशोध में लगभग 500 हाथियों की भी मौत हो चुकी है।
गैर सरकारी स्तर पर पिछले 10 वर्ष से चल रहा था काम
मानव-हाथी संघर्ष सिर्फ भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में हैं। वाइल्ड लाइफ रिसर्च एंड कंजर्वेशन सोसायटी (WRCS) मधुमक्खियों और दूसरे सरल परंपरागत तरीकों से हाथियों से निपटने का काम 2010 से कर्नाटक के काली टाइगर रिजर्व इलाके में काम कर रही है।
डब्ल्यूआरसीएस की कार्यकारी निदेशक (शोध) डॉ. प्राची मेहता गांव कनेक्शन को फोन पर बताती हैं, "मधुमक्खियों के जरिए हाथियों को रोकने का तरीका बेहद सुलभ और सस्ता है। इसमें किसी को नुकसान नहीं पहुंचता है। सबसे पहले ये प्रयोग अफ्रीका में वैज्ञानिक डॉ. लूसी किंग ने किया था। 2009 में चीन में एक एलीफैंट कॉन्फ्रैंस में मेरी उनसे मुलाकात हुई तो उन्होंने भारत में इसे शुरु करने की सलाह दी। साल 2010 से हम कर्नाटक में इसे कर रहे हैं। हमने देखा कि मधुमक्खियों की आवाज सुनकर हाथी अपना सिर घुमाने लगते हैं और 3-4 मिनट में वो खेत छोड़कर चले जाते थे।"
कर्नाटक के कावालागी गांव में फसल बचाने के लिए वाइल्ड लाइफ रिसर्च एंड कंजर्वेशन की तरफ से लगाए गए मधुमक्खी के बक्से। फोटो साभार- WLCS
वाइल्ड लाइफ रिसर्च एंड कंजर्वेशन सोसायटी स्थानीय किसानों को मधुमक्खियों के साथ ही चिली स्मोक (मिर्च और तंबाकू के धुएं) समेत कई अन्य सुलभ उपायों से हाथियों को दूर करना सिखा रही है।
डॉ. प्राची मेहता प्रयोग के बारे में आगे बताती हैं, "शुरु में हमने हाथियों के रास्तों में स्पीकर लगाकर मधुमक्खियों की आवाज़ करते थे। लेकिन हाथी बहुत समझदार पशु है वो समझ गए है कि सिर्फ आवाज है कोई पीछे नहीं है। हाथियों की याददाश्त भी बहुत अच्छी होती है। फिर हमने खेतों के किनारों पर मधुमक्खियों की बाड़ लागनी शुरु की। जिसके बहुत अच्छे नतीजे मिले हैं। काफी लोग हमारे यहां सीखने आते हैं।
डॉ. प्राची के मुताबिक उनका संगठन काली टाइगर रिजर्व (अंशी डण्डेली टाइगर रिज़र्व) इलाके के 17 गांवों के 500 किसानों के साथ स्वतंत्र रुप से काम कर रहा है। उन्हें हम प्रशिक्षित करते हैं कि हाथियों से अपनी फसल कैसे बचाएं।
WRCS ने हाथी से फसल बचाने की लागत को बेहद कम करने के लिए अपने प्रोजेक्ट में लकड़ी के बक्सों की जगह पुराने पेड़ों का भी इस्तेमाल किया है। फोटो साभार- WRCS
मधुमक्खियों से हाथियों को भगाने का प्रयोग सबसे पहले अफ्रीका में हुआ था
"अफ्रीका में जो तरीका डॉ. लूसी किंग अपना रही थीं, वह बहुत खर्चीला था क्योंकि वो हर जगह पर लकड़ी के बक्से बना रही थीं। लेकिन हम लोगों के जंगल में गिरे पेड़ों का इस्तेमाल किया है। उन्हें लाकर खेतों के किनारे पर रखा और वहीं पर प्राकृतिक रुप से मधुमक्खियों को बसने दिया। इसका खर्च बेहद कम है। आप समझिए कि जंगल विभाग प्रभावित गांवों को 30-40 हजार रुपए देता है और उसी में गांव के सभी प्रभावित किसानों का काम चल जाता है।"
भारत में पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, असम, झारखंड, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में हाथी-मानव संघर्ष, बस्तियों में घुसने और फसलों के नुकसान की खबरें आती रहती हैं। भारत में हाथियों की गणना हर पांच साल में होती है। साल 2017 में हुए गणना के मुताबिक भारत में हाथियों की अनुमानित संख्या 29,964 है।
संबंधित खबर- 'उस हाथी के धैर्य ने मेरी बंद आंखें हमेशा के लिए खोल दीं'
उत्पादन बढ़ाने में फायदेमंद
वाइल्ड लाइफ रिसर्च एंड कंजर्वेशन सोसायटी के काली टाइगर रिजर्व पार्क इलाके में फील्ड ऑफिसर (क्षेत्र अधिकारी) रवि एल्लापुर गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "मधुमक्खियों की कॉलोनी (बक्शे) की बाड़ बनाने के कई फायदे हुए हैं। पहला तो मानव-हाथी संघर्ष कम हुए दूसरा किसानों को शहद और मोम के रुप में अतिरिक्त कमाई होने लगी है। सिर्फ इतना ही नहीं मधुमक्कियों के खेतों के आसपास होने से पॉलिनेशन (परागण) अच्छा होता है। अगर किसी किसान के किसी खेत (एक हेक्टेयर) में पहले 10 क्विंटल (एक टन) अनाज पैदा होता था, वो दो क्विंटल तक बढ़ जाता है। दुनिया में मधुमक्खियो की कम होती संख्या के नजरिये से भी ये बहुत जरुरी है।"
बीफेंसिंग (bee-hive fences) के दूसरे फायदे के बारे में पूछने पर रवि एल्लापुर उदाहरण देते हैं, "यहां मंचीकरे रेंज में ही एक किसान हैं यलप्पा नायक उन्होंने मधुमक्कियों के 20 बॉक्स लगाए हैं, उन्हें औसतन साल में 30 किलो शहद मिल जाता और 5 किलो तक वैक्स (मोम) मिल जाता है। उनका शहद 300 रुपए किलो बिकता है। ऐसे ही दूसरे किसान जितने बक्शे लगाते हैं उनके अनुसार फायदा होता है।'
रवि एल्लापुर बीफेंसिंग लगाने के बाद आए बदलाव के बारे में बातते हैं, " यहीं पर एलापुर डिवीजन में मंचीकरे फॉरेस्ट रेंज इलाके में हम लोगों ने 2015 से काम शुरु किया। पहले हाथियों का झुंड एक फसल सीजन में 5-6 बार आ जाता था, 2016 में हाथी आए और फसलों को नुकसान भी हुआ, लेकिन उसके बाद फसलों का नुकसान नहीं हुआ। हाथी आए लेकिन बीफेसिंग और दूसरे उपायों के चलते लौट गए।"
दुर्गा: मरने के कगार पर थी, अब दुधवा की सबसे दुलारी और शरारती हाथी है
More Stories