ग्राउंड रिपोर्ट: चंबल नदी की उफनाती लहरें हर साल लील जाती हैं किसानों की हजारों हेक्टेयर तैयार फसल

चंबल नदी की बाढ़ हर साल किसानों की हजारों हेक्टेयर खरीफ की फसल बहा ले जाती है। चंबल से सटे सैकड़ों गाँव के हजारों किसान चंबल की इन उफनाती लहरों से बेहाल रहते हैं। पढ़िए चंबल नदी से आख़िर क्यों दुखी हैं किसान?

Neetu SinghNeetu Singh   24 Aug 2020 3:15 AM GMT

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किसान जयवीर ने अपनी पत्नी के गहने गिरवी रखकर 30 बीघा बाजरा की फसल बोई थी, लेकिन पिछले साल खरीफ के सीजन में आयी बाढ़ से इनकी पूरी फसल नष्ट हो गयी। ये न तो अपनी पत्नी के गहने उठा सके और न ही ब्याज के पैसे चुका पाए।

जयवीर आगरा जिला मुख्यालय से लगभग 80 किलोमीटर दूर बाह ब्लॉक के सिमराई गाँव के रहने वाले हैं। चंबल नदी से सटे सिमराई गाँव में पिछले साल आयी भीषण बाढ़ से यहाँ के किसानों की 700 बीघा बाजरा की कटने लायक फसल पूरी बह गयी थी। केवल बाह तहसील में हर साल जो हल्की-फुल्की बाढ़ आती है उसमें दो से ढाई हजार बीघा फसल बर्बाद हो जाती है।

नीम के पेड़ के नीचे चबूतरे पर बैठे जयवीर सिंह (55 वर्ष) बाढ़ की पीड़ा को बताते हैं, "बाजरा की फसल खेत से बस कटने वाली थी, तबतक चंबल नदी में बाढ़ आ गयी। हमारी तो परसी थाली (तैयार फसल) छीन ली।"

"सोच रहे थे फसल कटेगी तो गिरवी रखे गहने उठा लेंगे, लेकिन अब क्या करें जब पूरी फसल ही चंबल बहा ले गयी? इधर कोरोना आ गया, अब तो इस साल उठा ही नहीं पाएंगे," यह बताते हुए जयवीर के चेहरे पर पत्नी के गिरवी रखे गहनों की चिंता साफ़ झलक रही थी।

चंबल नदी में वर्ष 1996 में और 2019 में आयी भीषण बाढ़ से यहाँ के किसानों में तबाही मचा दी थी। इन दो वर्षो की बाढ़ से किसानो की लाखों हेक्टेयर फसल बर्बाद हुई थी जबकि चंबल नदी में हर साल हल्की-फुल्की बाढ़ तो आती ही है जिससे हजारों हेक्टेयर फसल का नुकसान होता है।

वो चंबल नदी जिसमें बाढ़ आने से किसानों की हजारों हेक्टेयर खेती पानी में बह जाती है.

क्या सरकार की तरफ से आपको इसका कोई मुआवजा मिला? इस पर जयवीर बोले, "नहीं, हमारे गाँव के किसी किसान को कोई मुआवजा नहीं मिला। चंबल नदी में जब-जब बाढ़ आती है ऐसे ही हमारी आँखों के सामने तैयार फसल बह जाती है, मन मारकर हम लोग बैठ जाते। किसके पास जाएं कोई अधिकारी सुनने वाला नहीं?"

एक कृषि अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "कृषि विभाग की तरफ से उन्ही किसानों को मुआवजा मिलता है जिनका फसल बीमा योजना होता है। बाढ़ में बर्बाद फसल का मुआवजा आपदा राहत प्रबंधन की तरफ से मिलता है वो भी न के बराबर। जो मिलता भी है उसको मिलने में भी कई साल लग जाते हैं। किसान का नुकसान होता है एक लाख रूपये का तो मिलता है एक हजार।"

सिमराई चंबल से सटा कोई पहला गाँव नहीं है जहाँ के किसानों की 700 बीघा फसल बर्बाद हुई हो बल्कि इससे सटे यूपी, एमपी और राजस्थान के सैकड़ों गांवों की हजारों हेक्टेयर फसल चंबल नदी की उफनाती लहरें बहा ले जाती हैं। यहाँ के हजारों किसान चंबल की बाढ़ से बेहाल रहते हैं। इन किसानों का आरोप है मुआवजा उन्ही किसानों को मिल पाता है जिस क्षेत्र के राजनेता किसानों पर ध्यान देते हैं जबकि ज्यादातर किसानों को इस मुआवजे के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है।

इस साल चंबल नदी के ये किसान दोहरी मार झेल रहे हैं, एक तो पिछली साल आयी भीषण बाढ़ में इनकी फसल नष्ट हो गयी दूसरा कोरोनाकाल, जिसमें शहर कमाने गये लोग गाँव वापस आ गये। एक तरफ कर्ज लेकर खरीफ की फसल उगाने वाले किसान कर्ज में डूबे हैं वहीं दूसरी तरफ इनके सामने रोजमर्रा के खर्चे कैसे चलें इसका संकट है।

इस समय मध्य प्रदेश और राजस्थान की सीमा रेखा के बीच बहने वाली चंबल नदी और पार्वती नदी उफान पर है। एमपी के कई हिस्सों में बीते दिनों भारी बारिश से पार्वती नदी का जलस्तर तेजी से बढ़ता जा रहा है। यही वजह है कि बाढ़ का पानी पुल से 10 फीट ऊपर बह रहा है, श्योपुर-कोटा हाइवे मार्ग बाधित हो गया है। यदि अभी पानी का प्रवाह और बढ़ता है तो यहाँ के लोगो की मुश्किले और बढ़ जाएंगी।

जिस चंबल-बीहड़ की चर्चा सिनेमाई ग्लैमर से लेकर पूरे देश में होती है, वही चंबल नदी यहाँ के किसानों के लिए नासूर बनी हुई है। ये क्षेत्र कभी सूखा से जूझता तो कभी बाढ़ से। इस क्षेत्र में पानी की भारी किल्लत है जिस वजह से ज्यादातर किसान केवल खरीफ की फसल ही कर पाते हैं। इस फसल का भी अनाज घर में आ पाएगा या नहीं, यह कह पाना इन किसानों के लिए मुश्किल है। क्योंकि यही वो समय होता है जब चंबल नदी में बाढ़ आती है और देखते ही देखते किसानों की हजारों हेक्टेयर जमीन बह जाती है।

चंबल नदी में बाढ़ आने से पहले क्या आपको सरकार की तरफ से कोई अधिकारी इसकी सूचना देते हैं? इस पर जयवीर बोले, "आजतक तो कभी किसी ने ऐसी कोई खबर नहीं दी। हम लोग अपने आप ही बारिश से अंदाजा लगा लेते हैं कि बाढ़ कबतक आयेगी। पूरी बरसात हम लोग यही दुआ करते हैं कि ज्यादा पानी न बरसे, क्योंकि जब पानी कम बरसता है तब बाढ़ आने की संभावना बहुत कम रहती है और हमारी फसल बच जाती है।"

एक कृषि अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं, "कई बार अचानक से पानी छोड़ दिया जाता है, हमें मौका ही नहीं मिलता कि हम किसानों को बता सकें। बाढ़ तो हर साल आती है, किसानों की हजारों हेक्टेयर फसल भी बर्बाद होती है। यहाँ के किसानों का घाटा बहुत है पर मजबूरी है उनकी तभी खेती में हर बार रिस्क लेते हैं।"

कोरोनाकाल में चंबल नदी से सटे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान के लोगों की मुश्किलें समझने के लिए गाँव कनेक्शन की टीम कोरोना फुटप्रिंट सीरीज के तहत चंबल गयी थी। रिपोर्टिंग के दौरान यहाँ के लोगों ने बीहड़ के उजड़ते गाँव, पलायन, बेरोजगारी, बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं, चंबल नदी का दर्द, प्रवासी मजदूरों की पीड़ा और बीहड़ में सरकार की अनदेखी से जुड़ी तमाम समस्याएं बताई थीं। इस सीरीज में चंबल नदी के किनारे खेती करने वाले किसान महत्वपूर्ण थे।

चंबल नदी के किनारे तैयार फसल कभी भी बाढ़ में बह सकती है.

मध्यप्रदेश के मुरैना जिले के जौरा गाँव के रहने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता सतीश मिश्रा (52 वर्ष) बताते हैं, "उपजाऊं और रिहायशी जमीन के रकबे लगातार रेतीले पठारों और पहाड़ी टीलों में तब्दील हो रहे हैं। यहाँ के स्थानीय लोगों को मजबूरन पलायन करना पड़ रहा है। चंबल नदी की छोटी-छोटी बहनें क्वारी, सिंध, आसन और पार्वती इन सबमें जब कटाव होता है तो इसके तेज बहाव में रेतीले जमीनें पूरी की पूरी बह जाती हैं।"

"ये बाढ़ हर साल 200-250 हजार हेक्टेयर जमीन को प्राभावित करती है। इससे ग्रामीणों के रोजगार पर सीधे असर पड़ता है। ये तबतक चलता रहेगा जबतक सरकार की तरफ से इसके रुकाव के लिए अहम कदम नहीं उठाये जायेंगे। सराकर कोई एक ऐसी रणनीति तैयार करे इससे चंबल की बाढ़ से हजारो हेक्टेयर फसल बर्बाद न हों और यहाँ के गाँव बेचिराग गाँव न बनें," सतीश मिश्रा ने बाढ़ की भयावता बताई।

श्योपुर, मुरैना, इटावा, धौलपुर और दतिया जैसे तमाम जिले के हजारों किसान प्रभावित होते हैं। पर सरकार की अनदेखी की वजह से इन किसानों की मुश्किलें साल दर साल बढ़ती जा रही हैं। इन बाढ़ प्रभावित गाँव में पलायन और बेरोजगारी हर घर की समस्या है।

बाजरा के उत्पादन में भारत दुनिया का अग्रणी देश माना जाता है। देश में लगभग 85 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बाजरे की खेती होती है, जिसमें से 87 प्रतिशत क्षेत्र राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा राज्यों का है।

राजस्थान के धौलपुर जिला के लुहारी गाँव के रहने वाले भारतीय किसान संघ के मंत्री भरत सिंह लोधा (57 वर्ष) बताते हैं, "चंबल नदी के किनारे खेती करने का मतलब है जिस दिन किसान ने खेत में बीज डाल दिए, उस दिन से उसे खेत में ही सोना पड़ता है। यहाँ की खेती करना बाकी जगहों की अपेक्षा ज्यादा कठिन है। उसमें भी अगर बाढ़ आ जाए तो किसानों की पूरी फसल बर्बाद हो जाती है।"

धौलपुर के सरमथुरा सहायक कृषि अधिकारी पिंटू लाल मीणा गाँव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "जैसे ही हमें बाढ़ आने की सूचना मिलती है, हम तुरंत बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में अलर्ट जारी कर देते हैं। लोगों को सुरक्षित जगह पहुंचा दिया जाता है। हम किसानों के लिए एक एडवाइजरी भी जारी करते हैं कि जो जमीन बाढ़ के क्षेत्र में आती है उसमें कोई भी फसल न बोएं उसे खाली रखें।

बाढ़ में जो फसल बर्बाद होती है क्या उसका मुआवजा किसानों को मिलता है? इस पर पिंटू लाल मीणा कहते हैं, "जिन किसानों का प्रधानमन्त्री फसल बीमा योजना में पंजीयन होता है उन किसानों को मुआवजा का लाभ मिलता है। जो किसान पंजीकरण नहीं करा पाते हैं उन्हें आपदा राहत प्रबन्धन द्वारा राशि दी जाती है।"


   

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