ग्राउंड रिपोर्ट: वो कर्ज़ से बहुत परेशान थे, फांसी लगा ली... 35 साल के एक किसान की आत्महत्या

Arvind ShuklaArvind Shukla   28 Nov 2019 6:31 AM GMT

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अरविंद शुक्ला/दिवेंद्र सिंह

नांदेड़ (मराठवाड़ा)। पैतीस साल के गजानन शिंदे का शव 9 नवंबर को अपने खेत के उसी पेड़ पर लटका पाया गया, जिसके नीचे धूप में कभी वो बैठकर सुस्ताया करते थे। अपने पीछे वो 29 साल की पत्नी, 60 साल की बुजुर्ग मां, 10 साल का एक बेटा और 7 साल की एक बेटी छोड़ गए हैं, जिनके पास रहने के लिए टीन का छोटा सा टूटा-फूटा घर और 2 लाख से ज्यादा बैंक और साहूकारों का कर्ज़ है।

"बारिश से सोयाबीन की पूरी फसल बर्बाद हो गई थी, इस बार तो दो-दो बार सोयाबीन की पेरनी (बुवाई) की थी, बहुत खर्च हुआ था, वो पहले ही कर्ज़ (2 लाख से ज्यादा का बैंक और साहूकार) से परेशान थे, रोज कहते थे, कहां से चुकाएंगे, घर कैसे चलेगा? परसों खेत पर गए तो वापस ही नहीं आए।" मराठवाड़ा के नांदेड़ जिले के खंभेगांव की देवन गजानन शिंदे, मराठी मिली हिंदी में पति के आत्महत्या की वजह बताने की कोशिश करती हैं।

अपने तीन एकड़ खेत में सोयाबीन की फसल बोई थी, लेकिन सितंबर-अक्टूबर की अतिवृष्टि से उनकी पूरी फसल बर्बाद हो गई। महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में मानसून और पोस्ट मानसून बारिश से सोयाबीन के साथ ही ज्वार, बाजरा, कपास, उड़द जैसी फसलों में 70-85 फीसदी तक नुकसान हुआ है। सरकार ने प्राथमिक आंकड़ों में 60-65 फीसदी का अनुमान जताया था।

मृतक गजानन शिंदे अपने पीछे 60 साल की माँ, 29 साल की पत्नी, 10 साल का एक बेटा और 7 साल की एक बेटी छोड़ गए हैं।

भाई की आत्महत्या की ख़बर सुनकर गांव आए संतोष बसंत राव शिंदे (38 वर्ष) कहते हैं, "दो साल पहले 60 हजार रुपए देना बैंक से लिए थे, जो माफ नहीं हुए। बैंक ने बाद में पैसे नहीं दिए तो उसने इधर-उधर (साहूकार) से 3 से 5 टका (फीसदी) ब्याज पर करीब लाख रुपए उठाया। फसल हो नहीं रही थी तो कर्ज़ा बहुत बढ़ गया था।"

अपनी बात जारी रखते हुए वो आगे कहते हैं, "हमारे यहां का शेतकरी (किसान) बहुत संकट में है। पिछले तीन वर्षों 2016,17,18 में बारिश नहीं हुई तो खेत में कुछ नहीं हुआ। इस साल बुवाई के दौरान बारिश नहीं हुई फिर हुई तो इतनी ज्यादा की किसान बर्बाद हो गए, उसके (गजानन) जैसे बहुत से किसान इधर रोज मरने को सोचते हैं।" संतोष राव कुछ समय से खेती छोड़कर मुंबई में रहकर मजदूरी करता है।

सितंबर-अक्टूबर की भारी बारिश के महाराष्ट्र के कई जिलों से किसानों की आत्महत्या की ख़बरें आई हैं। अकेले नांदेड़ में ही नवंबर के शुरूआती 10 दिनों में 9 किसानों ने आत्महत्या की है। नांदेड़ कलेक्ट्रेट में किसानों की आत्महत्या से संबंधित आंकड़े रखने वाले वरिष्ठ लिपिक (सीनियर क्लर्क) विजय चोथवे ने गांव कनेक्शन को फोन पर बताया कि 10 नवंबर तक 9 केस (आत्महत्या), अक्टूबर में 7 केस और सितंबर में किसानों की आत्महत्या के 9 मामले सामने आए हैं।"

आत्महत्या करने वाले 'व्यक्ति' के परिवारों को सरकारी मदद (एक लाख रुपए) मिलेगी या नहीं ये इस बात पर निर्भर करेगा कि तहसीलदार, तालुके का कृषि अधिकारी और पुलिस जांच अधिकारी क्या रिपोर्ट देते हैं। अगर आत्महत्या का कारण कर्ज़ और खेती होगा तो ही लाभ मिलता है।

भारत में सबसे ज्यादा किसान आत्महत्याएं महाराष्ट्र में होती हैं। तीन साल के इंतजार के बाद सरकार ने 2016 के किसानों की मौत के आंकड़े जारी किए। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की 2016 की 'एक्सिडेंटल डेथ एंड सुसाइड'की रिपोर्ट के अनुसार 2016 में 11,379 किसानों ने आत्महत्या farmer suiciding in india statistics की है। साल 2016 में महाराष्ट्र में सर्वाधिक 3,661 किसानों ने आत्महत्या की। इससे पहले 2014 में यहां 4,004 और 2015 में 4,291 किसानों ने आत्महत्या की थी।

मुंबई के सामाजिक कार्यकर्ता शकील अहमद को 2019 में आरटीआई के जरिए मिली जानकारी के मुताबिक महाराष्ट्र में साल 2015 से 2018 के बीच 12021 किसानों ने आत्महत्या की। ये आंकड़े खुद महाराष्ट्र सरकार ने कुछ समय पहले दिए थे। जिसके मुताबिक औसतन 8 किसान रोज प्रदेश में जान दे रहे हैं। हालांकि एनसीआरबी की रिपोर्ट की मानें तो महाराष्ट्र में किसान आत्महत्या के मामले पिछले कुछ वर्षों की अपेक्षा कम हुए हैं।

लेकिन आंकड़ों की कमी पर स्थानीय किसान, सामाजिक कार्यकर्ता और इससे जुड़े लोग अलग कहानी बताते हैं। कुछ दिनों पहले गांव कनेक्शन से बातचीत में शकील अहमद ने बताया, "महाराष्ट्र में सरकार ने आत्महत्या के मामलों में कुछ नियम बदले हैं। जिससे काफी किसान इस दायरे में आते ही नहीं है। सरकार ने अपना ये फैसला सिर्फ एक लाख रुपए बचाने के लिए किया है। जो बहुत चिंताजनक है।"

महाराष्ट्र में किसान की आत्महत्या के बाद एक लाख रुपए सरकार देती है, जिसमें से 30 हजार नकद और 70 हजार का मासिक आमदनी योजना के तहत जमा करा दिए जाते हैं। बच्चे छोटे होने पर कई बार ये पैसे उनके 18 वर्ष होने पर भी मिलते हैं। आमतौर पर महाराष्ट्र में उन किसानों को ही किसान आत्महत्या के तौर पर गिना जाता है, जिन पर कर्ज़ होता है लेकिन किसान की आत्महत्या के बाद भी ये कर्ज़माफी नहीं होती है।

नांदेड़ कलेक्ट्रेट के अधिकारी विजय चोथवे कहते हैं, "अगर ज्वाइंट रिपोर्ट में आत्महत्या की वजह कषि होती है और जिला बैठक में संतुति होती है तो 1 लाख रुपए दिए जाएंगे। किसानों की कर्ज़माफी की कोई योजना नहीं है। अगर उस किसान पर कर्ज़ हुआ और वो कर्ज़माफी योजना (शिवाजी महाराज शेतकारी सन्मान योजना) में फिट हुआ तो कर्ज़ा माफ होगा वर्ना परिवार को चुकाना होता है।"

गजानन पर बाकी कर्ज़ के बारे में सोचकर उनकी पत्नी देवन को आगे की राह दिखाई नहीं पड़ रही। अपनी 7 साल की बेटी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहती हैं, " इतना कर्जा है, इनको (बच्चों) लेकर कहां जाएंगे, कहां से कर्ज़ चुकाएंगे? कहां से इनकी फीस देंगे, मजदूरी करके क्या हो पाएगा?"

गजानन का परिवार गांव के नुक्कड़ पर खेत के एक कोने में बने जिस 33 गुणा 33 वर्ग फीट वाले घर घर (टीन वाले) में रहता है वो उन्होंने कुछ साल पहले 20 हजार रुपए में खरीदा था। अब तक छत नहीं पड़ पाई है। गांव के अंदर जो मकान था वो इससे भी काफी छोटा था, जिसमें संयुक्त परिवार रहता था। खेती में लगातार घाटे और बंटवारे के चलते गजानन के भाई और दूसरे लोगों की तरह इस गांव के सैकड़ों लोग इधर-उधर चले गए हैं।

इसी टीन के टूटे-फूटे घर में गजानन का परिवार रहता है, जिसकी दीवार और छत सब कुछ टीन से बना हुआ है।

देवन की बेटी को ठीक से नहीं पता घर में क्या हुआ है, गम में शामिल होने के लिए रिश्तेदारों के साथ आए बच्चों के साथ वो कुछ-कुछ देर में खेलने लगती है। एक बच्ची को लेकर वो अपने टीन के कमरे में रखा कुछ दिखाने (शायद कोई खिलौना) ले जाना चाहती है, तभी पीछे से एक महिला आवाज देती है,

"ऐ मुलगी तिकड़े नको जाऊस, तिकड़े ओला अहे, सगल भिजला आहे" जिसका हिंदी में मतलब था कि ऐ लड़की उधर न जाओ, कमरे में सब भीगा हुआ है।

उनकी बेटी तो कमरे में नहीं गई लेकिन मैंने ( गांव कनेक्शन रिपोर्टर) ने कमरे में जाकर देखा तो पहले सूखा और फिर भारी बारिश के निशान कमरे में चारों तरफ बिखरे पड़े थे। टीन के छोटे से पड़े एक बेड़ रजाई-गद्दे, बक्शा और काफी सामान रखा, था कई बिस्तर उस दिन तक नम थे, भारी और लगातार बारिश के चलते घर में हर तरफ पानी आया था, और कपड़े गीले और भीगते गए शायद उन्हें सुखाने का समय नहीं मिला था, भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक अक्टूबर महीने में ही नांदेड़ में औसत से 171 मिलीमीटर ज्यादा बारिश हुई थी।

अब न खेत में फसल है और न पति का साथ, आगे का गुजारा कैसे होगा? न चाहते हुए ये सवाल पूछा तो देवन शिंदे भरे गले के चलते कुछ बोल नहीं पाई। देवन के बगल में बैठी उनकी सास सुभद्रा वसंत राव शिंदे (60 वर्ष) कहती हैं, तीन साल पहले इसके पिता नहीं रहे, तब ये (गजानन) ही खेत संभाल रहा था, लेकिन उधर 2-3 साल कुछ होता नहीं, हम लोग अब मजदूरी करेंगे लेकिन वो भी इधर आसानी से मिलती नहीं।"

बुजुर्ग सुभ्रदा की चिंता वाजिब थी, ग्रामीणों के मुताबिक पिछले कई वर्षों से महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत काम न के बराबर हो रहा है। और जब किसानों के खेत में काम नहीं तो मजदूरी कहां से मिले? महाराष्ट्र में खेतिहर और दूसरे विकास कार्य करने वाले ग्रामीण मजदूरों को 200 रुपए मिलते हैं लेकिन महिलाओं (जिन्हें वो बाई बोलते हैं) को औसतन लगभग आधे 100 से 125 रुपए ही मिलते हैं।


एनसीआरबी 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र में भी किसानों की आत्महत्या में कमी (करीब 20 फीसदी) आई है लेकिन मजदूरों की मौत का आंकड़ा बढ़ गया है। कृषि मजदूरों की आत्महत्या के मामलों में 10 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। रिपोर्ट से इतर मजदूरों पर आए संकट को समझने के लिए इस गांव की बहू और गजानन की रिश्ते की भाभी रोशना शिंदे की बातों को समझना होगा।

अपने बगल में फटी पुरानी साड़ी पहन कर बैठी एक बुजुर्ग महिला को दिखाते हुए रोशना कहती हैं, ये गंगाबाई (तुलसी राम) हैं, हमारा परिवार मुंबई में रहता है, खेती इनको बंटाई दी, पैसे भी दिए, लेकिन पिछले कई वर्षों से कुछ हो नहीं रहा। हमें मुंबई में रहकर टेंशन होती है, ये लोग यहां कैसे जिएंगे, ये (गंगाबाई का परिवार) फोन कर पैसे मांगता है, लेकिन हम कहां तक दें, हमारा भी परिवार चलाना मुश्किल है।"

गंगाबाई को हिंदी नहीं आती, वो मराठी में बताती है, जिसे मैं अपने सहयोगी के माध्यम से समझता हूं, दूसरों के खेत में खेती और मजूरी करती हैं, अब खेत में कुछ नहीं तो आगे मजदूरी और जो मिलेगा वो करेंगी।

इसी गांव के दूसरे किसान केशव नागराव हिला (58 वर्ष) जो दुख जताने गजानन के घर आए थे, कहते हैं, सोयाबीन और कपास हमारे इलाके की प्रमुख फसलें हैं। लेकिन इस बार बुवाई के वक्त (जून-जुलाई) में पहले बारिश नहीं हुई, पहले से सूखे का सामना कर रहे किसानों ने थोड़ी कम-कम सोयाबीन बोई। लेकिन जुलाई में बारिश हुई तो दूसरे किसानों की तरह गजानन को भी दोबारा पेरनी (बुवाई) करनी पड़ी। फसल अच्छी भी थी लेकिन सितंबर के बाद एक महीना लगातार दीवारी तक बारिश हुई, जिससे सब बर्बाद हो गया।

महाराष्ट्र में पिछले महीने बारिश से अभी तक पानी भरा हुआ है

केशव एक एकड़ सोयाबीन में लागत और मुनाफे का गणित भी बताते हैं। एक एकड़ सोयाबीन का बैग (20 किलो) 2000-2200 का मिलता है। एक एकड़ में दो बैग लगते हैं। ऊपर से 1400 की डीएपी और औषधि (कीटनाशक) महंगी हो गई, फौव्वारा आदि लगाकर 20 हजार तक खर्च आता है और सब ठीक रहे तो 35000 से 40000 रुपए मिलते हैं। खर्च निकालकर 20 हजार तक बच जाते हैं लेकिन इस बार जमा भी डूब गई।"

महाराष्ट्र में भारी बारिश से नुकसान के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने तत्काल पंचनामे करवाकर किसानों को पूरी मदद का भरोसा दिया था, उन्होंने केंद्र से भी मदद मांगी थी। लेकिन हजारों गांवों में अब तक पंचनामे भी नहीं हुए हैं।

गजानन की पत्नी देवन कहती हैं, बैंक का कर्ज़माफ नहीं हुआ तो बैंक ने फिर आगे पैसा नहीं दिया तो वो साहूकार से लेकर आते थे, वो भी मांगते थे। इसलिए वो बहुत टेंशन में आ रहते थे। दोनों बच्चों की फीस 15 हजार रुपए साल की है, जो कुछ किलोमीटर दूर लोहा तालुका में पढ़ने जाते हैं क्योंकि गांव में कोई स्कूल नहीं है।"

देवन गनानद शिंदे अपनी दो साल पुरानी एक तस्वीर मोबाइल पर दिखाते हुए कहती हैं, "वो बहुत खुशमिजाज आदमी थे, बच्चों को, हमको सबको बहुत प्यार करते थे, हम दोनों मेहनत करते थे ताकि बच्चों को अच्छे से (अंग्रेजी भी) पढ़वा सकें। लेकिन अब पता नहीं क्या होगा.. "आगे क्या होगा ये बात परिवार का हर व्यक्ति कई कई बार बोलता है।

पांचवीं में पढ़ने वाले श्रेयस बाद उन पहले कुछ लोगों में शामिल था, जिन्होंने गजानन का फंदे से लटका हुआ देखा था। अपने वीगो लगे हाथ से बेटे श्रेयस का चेहरा पोछते हुए देवन कहती हैं, "उस दिन सबके के साथ ये भी अपने पापा को खोजना गया था… जोर-जोर से बुला रहा था, पापा आ जाओ पापा आ जाओ" पापा कहा गए पूछने पर श्रेयस बस इनता बोलता है.. पापा भगवान के पास चले गए..।

      

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