ग्राउंड रिपोर्ट: खोरी गांव के 10 हज़ार परिवारों के बेघर होने की कहानी

अरावली की पहाड़ियों में बसे खोरी गांव में करीब 10 हजार परिवारों के करीब 50 हजार लोग रहते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने गांव को वन विभाग की जमीन को अवैध कब्जा मानते हुए 'अतिक्रमण' हटाने का निर्देश दिया है। अपने जीवन की पूरी कमाई लगाकर घर-जमीने खरीदने वाले बेघर हो रहे हैं।
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खोरी गांव (फरीदाबाद, हरियाणा)। रीमा देवी को एक महीने पहले बच्चा हुआ है। वो उसे गोद में लिए दरवाज़े पर बैठी पंखा झल रही हैं। दिन धीरे-धीरे चढ़ रहा है। कॉलोनी के दूसरे लोग नीम के एक पेड़ के नीचे इकट्ठा होने लगे हैं। शाम तक यहीं रहेंगे क्योंकि घर तपने लगा है। घर के नाम पर 3 दीवारों पर रखी टीन है। ये घर शहर के किसी 2 बीएचके फ्लैट के एक कमरे से भी छोटा है। जिसे खरीदने खोरी गांव की रीमा देवी ने अपनी ज़िंदगी की सारी कमाई लगा दी लेकिन अब ये घर भी टूटने वाले हैं।

7 जून 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने फरीदाबाद म्युनिसिपल कॉरपोरेशन को आरावली पहाड़ी क्षेत्र में हुए अवैध निर्माण को हटाने का निर्देश दिया। इसके लिए 6 हफ्ते की समय सीमा तय की गई है। इस फैसले के बाद दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर बसे खोरी गांव के तकरीबन 10 हज़ार से ज़्यादा परिवारों पर बेघर होने का संकट गहरा गया है। वन क़ानून के मुताबिक वन क्षेत्र में किसी भी तरह के निर्माण की इजाज़त नहीं है। लेकिन बीते 25-30 साल से खोरी गांव में लगातार लोग घर बना रहे थे।

खोरी गांव के सुरेंद्र कुमार कहते हैं, “पहले इस जगह पर हम बसे, हमारे बच्चे हुए, उन बच्चों की शादियां तक हो गईं। इतना समय बीत जाने के बाद हमें हटाया जा रहा है। अगर यहां बसना अवैध है तो सरकार पहले ही यहां बसने पर रोक लगा देती जब 100-200 परिवार ही बसे थे। न इतने लोग बसते और न ही यह समस्या पैदा होती।”

अरावली की पहाड़ियों में बसा खोरी गांव, जहां करीब 10 हजार परिवार रहते हैं। फोटो- रोहित उपाध्याय

दरअसल पहले इस इलाके की अरावली पहाड़ियों में खनन होता था। खदानों में काम करने के लिए हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और बिहार के अलग-अलग इलाकों से मज़दूर आए और उन्होंने ही इस गांव को बसाया। बाद में बाकी लोग भी इस इलाके में आकर बसने लगे। कोर्ट के आदेश के बाद साल 2009 में खनन तो इस इलाके में बंद हो गया लेकिन लोग यहीं रह गए।

फरीदाबाद म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ने अवैध निर्माणों पर कार्रवाई शुरू की तो मामला कोर्ट पहुंचा। साल 2010 में खोरी गांव वेलफेयर एसोसिएशन ने पंजाब और हरियाणा कोर्ट में अवैध मकानों को न तोड़े जाने की याचिका दायर की। साल 2012 में इस संबंध में एक और याचिका दायर कर पुनर्वास की मांग रखी गई। 2016 में हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को निर्देश दिया कि सरकार खोरी गांव के लोगों के पुनर्वास के बारे में फैसला करे। हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण पुनर्वास नीति ने साल 2003 को कट ऑफ साल माना, जिसका मतलब हुआ कि साल 2003 से पहले जो लोग इस इलाके में बसे थे उन्हें आवास का अधिकार मिलेगा।

हालांकि 2017 में फरीदाबाद म्युनिसिपल कॉरपोरेशन, हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। फरीदाबाद म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ने खोरी गांव में निर्माण को अवैध बताया। सुप्रीम कोर्ट ने 19 फरवरी 2020 को इस मामले पर फैसला सुनाया और अरावली वन क्षेत्र में हुए सभी अवैध निर्माण को हटाने का आदेश दे दिया। इसके बाद पिछले साल सितम्बर में लगभग 1700 घर ढहा दिए गए। घरों को न तोड़े जाने को लेकर दायर की गई जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है।

खोरी गांव के ज्यादातर लोगों के पास वोटर कार्ड, आधार हैं। इस गांव का ज्यादातर हिस्सा हरियाणा में आता है और कुछ दिल्ली में। फोटो- रोहित उपाध्याय

घर के नाम पर यहां ज़्यादातर 8 बाई 9 फीट के कमरे दिखते हैं। सड़क के नाम पर ऊबड़-खाबड़ और घुमावदार रास्ते हैं। कहीं-कहीं बिजली के खंभे भी लगे हैं। हालांकि गांव का जो इलाका दिल्ली में आता है वहां सड़कों और नाली की व्यवस्था ठीक दिखती है। मगर जो इलाका हरियाणा की तरफ है वहां कोई सरकारी सुविधा नहीं है।

खोरी गांव के लोगों का आरोप भूमाफिया और स्थानीय अधिकारियों ने मिलकर बेची जमीन

गांव वाले आरोप लगाते हैं कि भू-माफियाओं ने वन विभाग और पुलिस प्रशासन के साथ मिलकर यहां लोगों को बसाया है। वन विभाग की जो ज़मीन बेची नहीं जा सकती है उसको फ़र्ज़ी तरीके से बेचा और लोगों को बसाया।

मूल रूप से बिहार के रहने वाले 48 साल के गणेश झा अपना परिवार पहचान पत्र दिखाते हुए कहते हैं, “मैंने डेढ़ लाख रुपये दिए थे इस ज़मीन के लिए और साढ़े 6 लाख रुपये लगा दिए मकान बनवाने में। पूरी ज़िंदगी की कमाई इस घर को बनाने में लगा दी मगर अब न घर के रहे न घाट के। जबसे सुना है कि मेरा घर टूट जाएगा तबसे सिर्फ रोना आता है।” बिहार में इनका कुछ नहीं है।

सितंबर 2020 में करीब 1700 घरों को ढहा दिया गया था, बाकी पर अब कार्रवाई होनी है। फोटो- रोहित उपाध्याय

अलग-अलग कॉलोनियों में बंटा है गांव

इस गांव में घूमने पर मालूम चलता है कि गांव अलग-अलग कॉलोनियों में बंटा हुआ है। लोगों के बाकायदा आधार कार्ड और राशन कार्ड भी खोरी गांव के पते पर बनाए गए हैं। यही नहीं इस गांव में एक सरकारी प्राइमरी स्कूल भी है जो 1996 से चला आ रहा है। इस स्कूल में 84 बच्चों का नामांकन हुआ है, जिनमें से ज़्यादातर बच्चे खोरी गांव के ही हैं।

गांव की बंगाली कॉलोनी में रहने वाले हदीश अंसारी के मुताबिक वे दो बार वोट भी दे चुके हैं। नेताओं पर नाराज़गी जताते हुए हदीश कहते हैं, “ये नेता आते हमें प्रधानमंत्री आवास का सपना दिखाकर हमसे वोट लेते गए मगर अब तो जो था वो भी टूटने वाला है। कोई सुनने वाला नहीं है।”

एक अनुमान के मुताबिक खोरी गांव की आबादी 50 हज़ार के आसपास है। यहां रहने वाले ज़्यादातर लोग मज़दूरी करके अपना घर चलाते हैं। पिछले डेढ़ साल से चल रहे लॉकडाउन का असर यहां के लोगों पर बुरी तरह पड़ा है। बंगाली कॉलोनी के ही शाहजहां ग़ुस्से में बिफर पड़ते हैं। “घर में खाने को नहीं है, छोटे-छोटे बच्चे हैं उनके स्कूल की टीसी (ट्रांसफर सर्टिफिकेट) तक लाने के पैसे नहीं हैं मेरे पास। सरकार कब घर तोड़ दे कुछ पता नहीं इसलिए सामान बाहर रखा है, मौसम भी बरसात का है। समझ नहीं आता कि क्या करूंगा, कहां जाऊंगा।”

खोरी गांव का एक घर, ज्यादातर लोगों के पास इसी कमरे जितनी जमीन है। फोटो- रोहित उपाध्याय

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इलाके में बिजली और पानी की सप्लाई रोक दी गई है, जिसकी वजह से गांव वाले बहुत परेशान हैं। पीने के लिए पानी के टैंकर मंगवाने पड़ रहे हैं और बाकी के कामों के लिए पास के तालाब से गंदा पानी इस्तेमाल में लाने को गांव वाले मजबूर हैं। बिजली न होने की वजह से जो बच्चे ऑनलाइन क्लास कर रहे थे उनकी पढ़ाई रुक गई है।

19 साल की ख़ुश्बू कुमारी दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक कर रही हैं वो कहती हैं, “जब से सु्प्रीम कोर्ट का आदेश आया है मेरी पढ़ाई रुक गई है। सामान सारा घर के बाहर पड़ा है जिसकी वजह से पढ़ाई पर फोकस नहीं हो पा रहा है। और बिजली नहीं है तो फोन भी चार्ज नहीं हो पा रहा।”

गांव के लोगों की नाराज़गी इस बात से भी है कि उसी इलाके में बनी होटल और बहुमंज़िला इमारतें नहीं तोड़ी जा रही हैं। जिस पर म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन की दलील है कि वो इमारतें और होटल परमिट लेकर बनाई गई हैं।

फरीदाबाद म्युनिसिपल कॉरपोरेशन की कमिश्नर गरिमा मित्तल कहती है, “खोरी गांव पर आए सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने के लिए वे प्रतिबद्ध हैं।”

यह पूछे जाने पर कि क्या फरीदाबाद के अरावली वन क्षेत्र में आने वाले फार्म हाउसेज पर भी कोई कार्रवाई होगी तो उन्होंने कहा, “जितने भी अवैध निर्माण हुए हैं सभी पर कर्रवाई की जाएगी।”

खोरी गांव में 10 हज़ार के आसपास घर बन गए हैं जब ये घर बन रहे थे तो क्या फरीदाबाद म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ने इन्हें रोकने की कोशिश की थी। इस सवाल पर कमिश्नर गरिमा मित्तल ने फोन काट दिया।

हदीश अंसारी का आधार कार्ड। उनकी तरह तमाम लोगों के पास आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र हैं। 

हरियाणा सरकार ने कहा- सिर्फ उन्हें बसाएंगे जो हरियाणा के निवासी है

खोरी गांव के लोगों के मन में अपने भविष्य को लेकर अनिश्चित्ता है। हरियाणा सरकार का कहना है कि वो केवल उन्हीं लोगों को बसाएगी जो हरियाणा से हैं।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद खोरी गांव के ही गणेशीलाल ने नाम के बुजुर्ग ने 15 जून को आत्महत्या कर ली थी। वहीं अपना घर गिराए जाने को लेकर परेशान एक महिला ने 18 जून को आत्महत्या की कोशिश की है। गांव में चारों तरफ विरानी और अजीब सी खामोशी है।

एडवोकेट कोलिन गोंजाल्विस ने एक जनहित याचिका दायर कर कट-ऑफ तिथि को 2003 से बढ़ाकर 2015 करने के का अनुरोध किया है जिस पर 27 जुलाई को सुनवाई होगी।

खोरी के ग्रामीणों ने बुलाई महापंचायत, लाठीचार्ज और पथराव

खोरी गांव में घरों को गिराए जाने का मामला गर्माता जा रहा है। आज यहां ग्रामीणों ने महापंचायत बुलाई। लेकिन पुलिस ने पंचायत नहीं होने दी। हंगामा बढ़ने पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया तो ग्रामीणों ने पथराव किया। जिसमें दोनों पक्षों के कई लोग घायल हुए हैं। महापंचायत में मुख्य वक्ता के तौर पर हरियाणा के किसान नेता और भारतीय किसान यूनियन चढूनी के अध्यक्ष गुरुनाम सिंह चढ़ूनी को बुलाया गया था।

महापंचायत नहीं होने के बाद चढ़ूनी खोरी गांव तक जाना चाहते थे लेकिन पुलिस ने उन्हें रोक दिया। जिसके बाद वो पुराने खोरी गांव में गेट पर बुधवार को धरने पर बैठ गए।

चढ़ूनी ने ट्वीटर पर लिखा कि हमारे यहां पहुंचने से पहले पुलिस ने मजदूरों पर लाठीचार्ज और पथराव किया। गांव का बहुत बुरा हाल है। सरकार ने इनका पानी-बिजली काट रखा है। हमारी मांग है कि तुरंत बिजली-पानी बहाल किया जाए और जो आग रिरफ्तार किए लोग हैं उन्हें छोड़ा जाए साथ ही इस मामले में हरियाणा सरकार एक कमेटी बनाए।

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