न्‍यूनतम आमदनी तो दूर की बात, लोगों तक सही से पेंशन नहीं पहुंचा पा रही सरकारें

हालिया कुछ समाज कल्‍याण की योजनाओं के क्रियान्वयन को देखें तो न्‍यूनतम आमदनी की बात बेमानी नजर आती है।

Ranvijay SinghRanvijay Singh   27 March 2019 5:26 AM GMT

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न्‍यूनतम आमदनी तो दूर की बात, लोगों तक सही से पेंशन नहीं पहुंचा पा रही सरकारें

लखनऊ। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक पार्ट‍ियां जनता से तमाम वायदे कर रही हैं। इसी कड़ी में कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि अगर चुनाव बाद कांग्रेस की सरकार बनती है तो वो गरीबों के लिए न्‍यूनतम आमदनी (Guaranteed Minimum Income) की योजना लाएंगे। राहुल के इस ऐलान से पहले ऐसी चर्चाएं थीं कि बीजेपी इस प्‍लान पर काम कर रही है। हालांकि, हालिया कुछ समाज कल्‍याण की योजनाओं के क्रियान्वयन को देखें तो न्‍यूनतम आमदनी की बात बेमानी नजर आती है।

राजस्‍थान के राजसमंद जिले के देवगढ़ ब्‍लॉक के करीब 600 लोगों को पिछले चार महीने से समाज कल्‍याण से जुड़ी पेंशन नहीं मिल रही है। मजदूर किसान शक्‍ति संगठन (MKSS) से जुड़े विनीत बताते हैं, इस बात की जानकारी हमें पहले से थी कि देवगढ़ ब्‍लॉक में कई लोगों को पेंशन नहीं मिल रही है। इसके बाद हमारी टीम बघाना पंचायत के मोटा गुड़ा गांव गई। वहां नरेगा साइट पर कुछ गांव वाले मिले जिन्‍होंने बताया कि पिछले 4 महीने से उन्‍हें पेशन नहीं मिली है। इन सभी को डाक द्वारा पेंशन भेजी जाती थी। इस संबंध में एक लिखित शिकायत 24 जनवरी को डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर को की गई।''

पेंशन न मिलने को लेकर मजदूर किसान शक्‍ति संगठन द्वारा की गई शिकायत।

राजस्‍थान का देवगढ़ वही बलॉक है जहां 27 सितंबर 2018 को चुन्‍नी बाई नाम की एक बुजुर्ग महिला की भूख से मौत हो गयी थी। TOI की रिपोर्ट के मुताबिक, चुन्‍नी बाई ने पांच दिन से खाना नहीं खाया था। वो और उनके पति दोनों बुजुर्ग थे, जिनको न तो राशन मिल रहा था न ही पेंशन की सुविधा। विनीत इस घटना को याद करते हुए बताते हैं, ''चुन्‍नी बाई की स्‍थ‍िति यह थी कि वो चल फिर नहीं सकती थीं। हाथ मुड़े हुए थे। इस हाल में भी उनको वृद्धा पेंशन के लिए बैंक जाना होता था। उनको बैंक तक ले जाने के लिए गाड़ी करनी होती थी। ऐसे में पेंशन को पाने के लिए काफी खर्चा करना पड़ता था।''

जब चुन्‍नी बाई को पेंशन मिल रही थी उस वक्‍त राजस्‍थान में 75 साल तक के बुजुर्गों को 500 रुपए पेंशन मिलती थी। वहीं, 75 साल से ऊपर के बुजुर्गों को 750 रुपए पेंशन दी जाती थी। राज्‍य में नई सरकार बनने के बाद इसमें 250 रुपए और जोड़ दिए गए। जिसकी वजह से 75 साल तक के बुजुर्गों को 750 रुपए और 75 साल से ऊपर के बुजुर्गों को 1 हजार रुपए पेंशन के रूप में दिया जा रहा है।

विनीत बताते हैं ''चुन्‍नी बाई की परेशानी को देखते हुए हमने पेंशन को डाक द्वारा भेजने की अपील भी की थी, लेकिन जब तक यह व्‍यवस्‍था लागू होती तब तक चुन्‍नी बाई की मौत हो गई।'' TOI की ही दूसरी रिपोर्ट बताती है कि, राजसमंद जिला प्रशासन ने चुन्‍नी बाई की मौत के 4 दिन बाद आठ महीने की पेंशन उनके घर भेजी थी। हालांकि, जब पेंशन पहुंची तो उसे लेने के लिए चुन्‍नी बाई इस दुनिया में नहीं थी, जिस वजह से यह पैसा लौटा दिया गया।

29 सितंबर को दिल्‍ली के संसद मार्ग पर 'पेंशन परिषद' के बैनर तले होने वाले प्रदर्शन में शामिल एक बुजुर्ग महिला। फोटो- पेंशन परिषद

पेंशन न मिलने या किसी कारण से पात्र होते हुए भी अपात्र हो जाने की कई कहानियां पूरे देश भर में हैं। पिछले साल 29 सितंबर को दिल्‍ली के संसद मार्ग पर 'पेंशन परिषद' के बैनर तले होने वाले प्रदर्शन में देश के विभिन्न राज्यों से लोग इकट्ठा हुए थे। इनकी शिकायत थी कि पात्र होते हुए भी उन्हें पेंशन नहीं मिलती है। साथ ही पेंशन पाने के लिए उन्‍हें कई स्‍तर पर घूस भी देनी पड़ती है।

पेंशन परिषद से जुड़ी नैनसी पाठक पेंशन से जुड़ी दिक्‍कतों को बताते हुए कहती हैं, ''केंद्र सरकार सिर्फ 200 रुपये की पेंशन देती है। मतलब हर दिन का करीब सात रुपए। अब आप सोचिए कि आज के वक्‍त में इससे किसका गुजारा हो सकता है। अब राज्‍यों की ओर से भी दिया जाता है, लेकिन अगर देखें तो वो भी बहुत कम है। जैसे उत्‍तर प्रदेश में राज्‍य की ओर से वृद्धा पेंशन 200 रुपए दी जाती है, इस तरह ये 400 रुपए हो गया। बिहार में भी उत्‍तर प्रदेश के लगभग ही है। लेकिन हमारा कहना है कि अगर केंद्र सरकार पेंशन की राशि बढ़ाए तब जाकर राज्‍य भी बढ़ाएंगे।'' पेंशन परिषद एक गैर-सरकारी संगठन है जो सोशल पेंशन के लिए काम करता है।

नैनसी कहती हैं, ''सबसे पहले पेंशन को लेकर कानून बनाना चाहिए। साथ ही पेंशन की राशि बढ़ानी चाहिए। 2007 में जब पेंशन को 95 रुपए से 200 रुपए किया गया तो उस वक्‍त कहा गया था क‍ि इसे महंगाई से जोड़ा जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। अब 200 रुपए की वैल्‍यू जो 2007 में थी अब उसकी उतनी वैल्‍यू नहीं है। सरकार को यह समझना होगा। पेंशन को महंगाई से जोड़ा जाए या फिर न्‍यूनतम मजदूरी का आधा दिया जाए।''

''सरकारी कर्मचारियों को अपने आखि‍री वेतन का आधा हिस्सा पेंशन के रूप में म‍िलता है। बिहार में मनरेगा की न्‍यूनतम मजदूरी 170 रुपए है। इस तरह अगर पेंशन को न्‍यूनतम मजदूरी से जोड़ा जाए तो 85 रुपए प्रतिदिन के हिसाब पेंशन मिलनी चाहिए।'' - नैनसी कहती हैं

नैनसी बताती हैं, ''सरकारी योजनाओं का लाभ सभी नागरिकों को म‍िलना चाहिए। लेकिन यह योजनाएं गरीबी रेखा से नीचे वालों को दी जाती हैं। इसकी वजह से बहुत से जरूरतमंद लोगों तक योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच पाता। सरकार को गरीबी रेखा से ऊपर (एपीएल) और गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) के भेद को खत्‍म करना चाहिए।''

बहुत से मामलों में ऐसा भी देखने को मिलता है कि गरीबी रेखा का प्रमाणपत्र लेने के लिए लोगों को घूस भी खिलाना पड़ता है। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले की रहने वाली करजू (35 साल) को 750 रुपए व‍िधवा पेंशन मिलती है। करजू कहती हैं, ''पेंशन शुरू कराने में उन्‍हें खासी दिक्‍कतों का सामना करना पड़ा। इसमें करीब 1 साल का वक्‍त और उतनी ही मेहनत लगी। हां, जिनके अच्‍छे ताल्‍लुकात होते हैं, उनकी जल्‍दी पेंशन बन जाती है।'' करजू की पेंशन बीच में रूक भी गई थी, ज‍िसके लिए भी उन्‍हें भाग दौड़ करनी पड़ी तब जाकर पेंशन फिर बहाल हुई।

करजू की तरह ही उत्‍तर प्रदेश के सीतापुर जिले के पिसाहवां ब्‍लॉक के अलीपुर गांव की रहने वाली रामश्री को भी विधवा पेंशन के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी थी। संगतिन किसान मजदूर संगठन से जुड़ी ऋचा सिंह बताती हैं, ''अगस्‍त 2018 में रामश्री का मामला हमारे संज्ञान में आया था। रामश्री को जिंदा रहते हुए मृतक बता दिया था। इस वजह से उसकी पेंशन रूक गई। इसकी वजह से वो काफी परेशान थी। हालांकि उसकी पेंशन फिर से बहाल करा दी गई, लेकिन उसका बहाल करने के दौरान काफी परेशानी से गुजरना पड़ा।''

करजू और रामश्री की तरह ही कई ऐसी विधवाएं हैं जिनको पेंशन पाने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्‍कर लगाने पड़ते हैं। मजदूर किसान शक्‍ति संगठन (MKSS) से जुड़े विनीत बताते हैं, ''राजस्‍थान में कई ऐसी महिलाएं हैं जो विधवा हैं लेकिन उन्‍हें विधवा पेंशन की जगह वृद्धा पेंशन मिलती है। इस वजह से उनका नुकसान भी हो रहा है। क्‍योंकि सरकार ने 2017 में ही विधवा पेंशन की राश‍ि को बढ़ाया था। लेकिन जिन महिलाओं की उम्र ज्‍यादा है वो अब सरकारी दफ्तारों के चक्‍कर नहीं लगा सकतीं, ऐसे में जो म‍िल रहा है उसी से काम चला रही हैं।''

(स्रोत: पेंशन परिषद)

पेंशन परिषद के आंकड़ों के मुताबिक भारत पेंशन पर नेपाल और श्रीलंका जैसे देशों से भी कम खर्च कर रहा है। भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का सिर्फ़ 0.83 फीसदी हिस्सा पेंशन पर खर्च कर रहा है। वहीं, नॉर्वे अपनी जीडीपी का लगभग पांच फीसदी हिस्सा पेंशन के मद में खर्च करता है।

वहीं 2011 के सेंसस के मुताबिक, भारत में करीब 10 करोड़ बुजुर्ग हैं इनमें से सिर्फ तीन करोड़ के आस पास बुजुर्गों को सोशल पेंशन का लाभी मिल पा रहा है। नैनसी पाठक कहती हैं, ''2050 तक भारत में बुजुर्गों की संख्‍या सबसे ज्‍यादा होगी, क्‍योंकि आज जिनते लोग जवान हैं उस वक्‍त उतनी ही बुजुर्ग लोग होंगे। सरकार को इस ओर ध्‍यान देने की जरूरत है। क्‍योंकि आज कदम नहीं उठाया तो कल परेशानी और बढ़ जाएगी।''



(स्रोत: पेंशन परिषद)

अब आप समझ सकते हैं कि समाज कल्‍याण से जुड़ी योजनाओं के क्रियान्वयन में ही तमाम खामियां हैं तो ऐसे में न्‍यूनतम आमदनी (Guaranteed Minimum Income) की बात जमीन पर कितनी असरदार होगी। हालांकि, इसका जिक्र आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 में भी किया गया था। उसके बाद से ही इसकी चर्चा जोरो पर है। राहुल के ऐलान के बाद कांग्रेस नेता और पूर्व विदेश मंत्री पी. चिदंबरम ने भी इस योजना को लेकर ट्वीट किया था। उनके ट्वीट को देखें तो समझ आता है कि 'यूनिवर्सल बेसिक इनकम' के तौर पर इसकी चर्चा 2 साल पहले से हो रही थी।

पी. चिदंबरम ने ट्वीट किया कि, "पिछले दो वर्षों में यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) के सिद्धांत पर बड़े पैमाने पर चर्चा की गई है। अब समय आ गया है कि हमारे हालात और हमारी जरूरतों के मुताबिक़ इस सिद्धांत को अपनाया जाए और इसे गरीबों के लिए लागू किया जाए। हम कांग्रेस घोषणापत्र में अपनी योजना बताएंगे।''

प्रोफेसर जयती घोष

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के सेंटर फॉर इकोनॉमिक स्टडीज एंड प्लानिंग में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर जयती घोष कहती हैं, ''अगर ये लोग सीरियस हैं तो सबसे पहले पेंशन को सुचारू रूप से लागू करें। 60 साल से ऊपर के सभी बुजुर्गों को पेंशन दी जाए। मुझे लगता है पेंशन, सभी नौजवानों को रोजगार गारंटी और यूनिवर्सल बेसिक सर्विसेज को मिलाकर काम करना चाहिए। यूनिवर्सल बेसिक इनकम की जगह यूनिवर्सल बेसिक सर्विसेज किया जाना चाहिए।''

जयती घोष बताती हैं, ''यूनिवर्सल बेसिक सर्विसेज को हम ऐसे समझ सकते हैं कि सभी की बुनियादी जरूरतों को लेकर काम किया जाए। हेल्‍थ, एजुकेशन, न्‍यूट्र‍िशन जैसी पब्‍लिक सुविधाओं को बेहतर किया जाए। अगर इन बुनियादी जरूरतों को सुधारा जाए तो ज्‍यादा बेहतर होगा।''

जब उनसे पूछा गया कि क्‍या न्‍यूनतम आमदनी को लागू कर पान संभव है। इसपर जयती घोष कहती हैं, ''न्‍यूनतम आमदनी को लागू कर पाने का सवाल ही नहीं उठता। क्‍योंकि अभी इसको लेकर कोई खाका तैयार ही नहीं है। आर्थ‍िक सर्वेक्षण में जो कहा गया है वो बहुत डरावना है। क्‍योंकि इसमें कहा गया है कि बहुत सी ऐसी स्‍कीम को बंद किया जा सकता है जो बेकार हैं। लेकिन यह कैसे तय होगा कि कौन सी योजना बेकार है। सभी योजनाओं के अलग-अलग मायने होते हैं। किसी छात्र को छात्रवृति मिल रही है उसे यूनिवर्सल बेसिक इनकम में नहीं ला सकते।'' जयती कहती हैं, ''यूबीआई की जगह यूनिवर्सल बेसिक सर्विसेज, यूनिवर्सल वर्क गारंटी और यूनिवर्सल पेंशन पर काम होना चाहिए।'' इन चर्चाओं और घोषणाओं से इतर जमीन पर न्‍यूनतम आमदनी का फॉर्मूला कितना कारगर होगा इसपर संशय बरकरार है। फिलहाल तो हालिया समाज कल्‍याण की योजनाएं ही दम तोड़ती नजर आ रही हैं।

  

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