मेरा गाँव कनेक्शन : जाट शासकों की कहानी कहता है उत्तर प्रदेश का हड़ौली गाँव  

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
मेरा गाँव कनेक्शन : जाट शासकों की कहानी कहता है उत्तर प्रदेश का हड़ौली गाँव  मेरा गाँव कनेक्शन सीरीज़ का पहला भाग ।

भारत गाँवों का देश है, इसलिए नहीं कि देश में करीब चौसठ लाख गाँव हैं, इसलिए भी नहीं कि देश की करीब 69 फीसदी आबादी, यानी करीब 83 करोड़ लोग गाँवों में रहते हैं, बल्कि इसलिए कि चाहे गाँव में रहें , या शहर में , या दुनिया के किसी भी कोने में, हम सब थोड़ा-थोड़ा गाँव अपने भीतर लेकर चलते हैं... शायद तभी अपने गाँव का ज़िक्र आते हमारी आंखों के सामने वो हरे-भरे खेत आ जाते हैं, वो खलिहान, वो शरारतें, वो पेड़ पर पड़ा झूला, वो गुड़ की मिठास, अच्छा - बुरा...कितना कुछ था , कितना कुछ है, जो हमें अपने गाँव से जोड़े रखता है। गाँव की उन्हीं यादों से फिर से रिश्ता जोड़ते हैं, हमारी विशेष सीरीज़ ' मेरा गाँव कनेक्शन ' के पहले हिस्से में अपने गाँव ' हड़ौली ' से जुड़ी यादों को ताज़ा कर रही हैं रश्मि कुलश्रेष्ठ, जो एक लेखिका भी हैं।

गाँव बायोडाटा -

गाँव- हड़ौली

ज़िला - महामाया नगर ( हाथरस) , उत्तर-प्रदेश

नज़दीकी शहर - सासनी

हड़ौली गाँव -

उत्तर प्रदेश के महामाया नगर (हाथरस) का छोटा सा गाँव है हड़ौली। सासनी तहसील के इस गाँव में 1968 लोग रहते हैं। साल 2011 की जनगणना के मुताबिक इस गाँव में 1,011 पुरुषों के मुकाबले सिर्फ 975 महिलाएं हैं।

अब भी याद है सरपत की झाड़ से बनी कलम -

"अरे लाली बड़े दिनन बाद आई है... गामन में अच्छा ना लगता का?"

गाँव जबसे छूटा तबसे ये लाली शब्द का संबोधन, वो गाँव के किसी अड़ोसी-पड़ोसी का लाड़-दुलार, बागों की कच्चे अमरूद बेर, मटर की फली...सबकुछ छूट गया।

मेरा गाँव उत्तर प्रदेश के हाथरस ज़िले की तहसील सासनी में है। गाँव तब से याद में बसा है जबसे मैंने यादों को सहेजना सीखा। स्टेशन से गाँव तक जाते वो कच्चे रास्ते... उन पर उड़ती धूल... रास्तों के किनारे उगे सरपत की झाड़। वो सरपत जिसे बाबा तोड़कर हमारे लिए कलम बनवाते थे...कहते कि कलम से लिखने से राइटिंग अच्छी होती है। अब उनको क्या पता था कि कलम हाथ से छूट जाएगी और उंगलियां कीबोर्ड पर चलने लगेंगी।

हाथरस जिले का सासनी रेलवे स्टेशन।

पापा की नौकरी दूसरे ज़िले में थी तो कभी लंबे वक़्त के लिए गाँव में रहने का मौका नहीं मिला। गाँव से मेरा नाता बस त्योहार और गर्मियों की छुट्टियों भर का ही रहता। पर हां, पापा की बातों में हम भाई-बहन रोज़ थोड़ा-थोड़ा गाँव जीते। कभी बेरिया के झाड़ के कांटो वाले क़िस्से में, कभी गाँव में ठहरने वाली बारात के स्वागत में, तो कभी डकैतों के हमले में। हां...मैंने देखा तो नहीं पर पापा से बहुत सुने हैं, डकैतों के क़िस्से। पापा जब कोई ऐसा क़िस्सा सुनाते तो गाँव मेरे लिए एकदम किसी ब्लैक एंड व्हाइट फ़िल्म के स्क्रीनप्ले जैसा हो जाता। जहां लोगों में प्यार होता और डकैतों का अत्याचार। डकैत के हमलों के बारे में तो ज़्यादा कुछ नहीं बता सकती पर हां...प्यार भरपूर होता वहां। मैं सुबह दूध का गिलास अपने घर पर गटकती तो दोपहर का खाना पड़ोस वाली अम्मा के घर...और रात का खाना ना जाने कहां।

शाम को द्वार पर लगी सारे बड़े-बुज़ुर्गों की चौपाल में बैठकर भगवान की कथाएं सुनना आज कल के वीडियो गेम और कार्टून से ज़्यादा रुचिकर होता। भोंपू बजाकर दूध-पानी वाली 'बरफ़' आज की चॉकोचिप वाली आइसक्रीम से ज्यादा टेस्टी होती थी। गाँव की ज़िंदगी कुछ ज़्यादा ज़ायके वाली होती है। भैसों को चारा खिलाने ले जाना, उन्हें पानी पीते हुए घंटों देखना और गोबर से ज़मीन की लिपाई...लगता जैसे सबकुछ कितना अलग है..कितना मिट्टी से जुड़ा हुआ है।

गाँव में गेंहू के खेत के अलावा गोभी, आलू, मटर, अमरूद, आम वगैरह की काफी खेती हुआ करती थी । आम तो इतने कि सारे घरवाले शाम के वक़्त बैठकर आम खाने का कॉम्पटीशन करते , उसके बाद फुंसियां निकलती तो अम्मा नीम की छाल घिसकर लगाती थी।

जाट शासक राजा पाहुप सिंह का किला।

गाँव के पास में ही सासनी का क़िला था...जिसे जाट शासक राजा पाहुप सिंह ने बनवाया था। बचपन में इस क़िले के इर्द-गिर्द कितनी डरावनी कहानियां बुनकर डराया करते थे चाचा। ये क़िला तो शायद अब भी होगा...पर मैं अब गाँव से नहीं जुड़ी हूं। छूट गई हैं वो गलियां, वो रास्ते जिनपर साल में दो बार ही जाना होता था...पर वो सालभर का कोटा पूरा कर देता था।

सासनी रेलवे स्टेशन ।

बरोसी में उबले दूध का स्वाद , आम की चटनी से चूल्हे की रोटी, उबले गेंहू को भूनकर बनाया गया घाट, कुएं का ठंडा पानी... सब तो मेरी ज़िंदगी में कहीं खो गया है...पर मेरा गाँव आज भी बसा है मेरे भीतर.. एक याद बनकर।

Rural Life 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.