पूर्वांचल की कालीन ने देश-दुनिया में बनाई अपनी पहचान

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पूर्वांचल की कालीन ने देश-दुनिया में बनाई अपनी पहचानहस्तशिल्प

लखनऊ। पूर्वांचल के जिलों भदोही और बनारस में तैयार कालीन देश-दुनिया में अपनी पहचान बना चुकी है। भारत में लगभग 10 हजार करोड़ वाले इस पारंपरिक हस्तशिल्प को बौद्धिक संपदा अधिकार का दर्जा मिल चुका है। प्राचीन और आधुनिक डिजाइनों में तैयार यहां के कालीन की विश्व बाजार में भारी मांग हो रही है। कालीन नगरी के नाम से विख्यात भदोही और आसपास के नौ जनपदों को इस क्राफ्ट के लिए पंजीकृत किया गया है।

भदोही के व्यापारी और कालीन निर्यात संवर्धन परिषद के सदस्य अब्दुल रब ने बताया, "फिलहाल भारत अभी कालीन उद्योग के क्षेत्र में विश्व बाजार में पहले नंबर पर है। पूर्वांचल में हस्तशिल्प कालीन निर्यात प्रतिवर्ष 15 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। प्रदेश सरकार को इस क्षेत्र में ध्यान देने की जरूरत है।"

भदोही के कालीन व्यवासायी पीयूष बरनवाल का कहना है, "विश्व कालीन बिरादरी में कुलीन साबित हो रही भदोही की मखमली कालीन को सात वर्ष पहले 2010 में जीआई (जियोग्राफिकल इंडीकेशन) टैग की संजीवनी मिलने से अब कारीगरी का हुनर विश्व बाजार में भदोही को नए मुकाम पर ले आया है। मुगलकाल से ही कालीन व्यवसाय ने भदोही व मीरजापुर परिक्षेत्र की विश्व साख कायम रखी है। जीआई टैग मिलने के बाद बड़े आयातक भी मखमली कालीनों की ओर आकर्षित हुए और गर्दिश के दौर से गुजर रहे कालीन व्यवसाय और अधिक बल मिला है।"

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कालीन निर्यात संवर्धन परिषद (सीईपीसी) के अध्यक्ष महावीर प्रताप शर्मा ने बताया, "भारतीय कालीन उद्योग विश्व बाजार में निर्यात के क्षेत्र में पिछले कई वर्ष से पहले स्थान पर है। विश्व का 34 प्रतिशत मार्केट भारत का है।" उन्होंने आगे बताया कि यह ऐसा उद्योग है जिसमें 20 लाख लोगों को व ग्रामीण बुनकरों, विशेषकर महिलाओं को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्राप्त है।

वैश्विक कारोबार 10 हजार करोड़ के पार

कालीन निर्यात संवर्धन परिषद (सीईपीसी) के आंकड़ों पर गौर करें तो इसमें निरंतर वृद्धि ही दर्ज की गई है। देश के हस्तनिर्मित कालीन के निर्यात का आंकड़ा 10 हजार करोड़ से पार जा चुका है जिसमें भदोही परिक्षेत्र की हिस्सेदारी 80 प्रतिशत है।

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चुनौतियां भी कम नहीं

वर्ष 1990 तक यह उद्योग व्यवसाय की दृष्टि से चरम पर था। हालांकि इसके बाद धीरे-धीरे बाजार गिरता गया। वर्ष 2000 के बाद भारत में हो रहे बाल श्रम के नाम पर विदेशों में हो रही किरकिरी ने उद्योग को भारी नुकसान पहुंचाया, एक झटके में विदेशों से हो रहे व्यापार बंद हो गया जिससे करोड़ों के आर्डर रद्द हो गए थे। अब जीआई टैग से कालीन का कारोबार फिर से फल-फूल रहा है। आज भी अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, हालैंड, सहित यूरोपीय महाद्वीप के अन्य देशों में हस्तनिर्मित कालीनों की मांग पहले जैसी ही है।

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ड्यूटी ड्रॉबैक व जीएसटी की दुश्वारी भी

अखिल भारतीय कालीन निर्माता संघ (एकमा) के पूर्व अध्यक्ष व कालीन व्यवासायी भोलानाथ बरनवाल बताते हैं, "कालीन उद्योग के सामने ड्यूटी ड्रॉबैक की समस्या है। केंद्र सरकार निर्यात प्रोत्साहन के तहत व्यापारियों को ड्यूटी ड्रॉबैक के तौर पर आर्थिक सहायता देती है। एक अक्टूबर से इसे पांच फीसदी से घटाकर महज चार फीसदी कर दिया गया है। विदेशी खरीदारों को छह माह से लेकर एक वर्ष तक एक ही रेट पर माल देना होता है। डॉलर के कमजोर होने से व्यापारियों को नुकसान उठाना पड़ता है। वहीं जीएसटी के तहत कच्चे माल पर व्यापारी पिछले पांच माह से पांच फीसदी टैक्स अदा कर रहे हैं। बताया जाता है कि माल एक्सपोर्ट होने के बाद इसे वापस कर दिया जाएगा, मगर जीएसटी पोर्टल में गड़बड़ी की वजह से अभी तक ऐसा नहीं हो सका।

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यूरोप और अमेरिका में सबसे ज्यादा निर्यात

भदोही और बनारस की कालीन सबसे ज्यादा यूरोप और अमेरिका निर्यात की जाती है। तुर्की, जर्मनी, चीन और कोरिया समेत अन्य कई देशों में भी यहां के कालीन की मांग बहुत ज्यादा है। पूरे भारत से 80 प्रतिशत कालीन का निर्यात भदोही और बनारस से ही होता है।

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कालीन निर्यात आंकड़ा (सीईपीसी)

वर्ष---------------------------------------राशि

  • 2011-12---------------------------4583.08 करोड़
  • 2012-13---------------------------5875.88 करोड़
  • 2013-14---------------------------7108.31 करोड़
  • 2014-15---------------------------8441.95 करोड़
  • 2015-16---------------------------9481.36 करोड़
  • 2016-17---------------------------10001.90 करोड़

(नोट : 2017 मार्च तक का निर्यात)

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