कितना खतरनाक हो सकता फलों और सब्जियों पर रसायनों का इस्तेमाल

हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने सब्जियों में कीटनाशकों के प्रयोग से संबंधित जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए कहा, "फलों को पकाने के लिए कीटनाशकों व रसायनों का प्रयोग उपभोक्ताओं को जहर देने के समान है। ऐसे लोगों पर कानूनी कार्रवाई से ही यह रुकेगा।"

Divendra SinghDivendra Singh   3 Feb 2020 10:28 AM GMT

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कितना खतरनाक हो सकता फलों और सब्जियों पर रसायनों का इस्तेमाल

पिछले वर्ष नेपाल ने भारत की सब्जियों और फलों पर रोक लगा दी थी, साल 2014 में यूरोपियन देशों ने अल्फांसो आम के निर्यात पर रोक लगा दी थी, इसके पहले भी कई देशों ने भारत की सब्जियों और फलों के निर्यात पर रोक लगा दी थी, इनके पीछे एक ही कारण है कीटनाशक और रसायनों का अंधाधुंध इस्तेमाल।

हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने सब्जियों में कीटनाशकों के प्रयोग से संबंधित जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए कहा, "फलों को पकाने के लिए कीटनाशकों व रसायनों का प्रयोग उपभोक्ताओं को जहर देने के समान है। ऐसे लोगों पर कानूनी कार्रवाई से ही यह रुकेगा। आम को पकाने के लिए कैल्शियम कार्बाइड का प्रयोग किसी को जहर देने के समान है तो ऐसे लोगों को भारतीय दंड संहिता की संबंधित धारा क्यों नहीं लगनी चाहिए। अगर ऐसे लोगों को दो दिन के लिए भी जेल भेजा जाता है तो उसका भी काफी असर होगा।"

न्यायमूर्ति जीएस सिस्तानी व एजे भंबानी की खंडपीठ ने फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया से पूछा कि क्या अब भी आम को पकाने के लिए अब भी कैल्शियम कार्बाइड का इस्तेमाल हो रहा है?

कैल्शियम कार्बाइड का इस्तेमाल आम को पकाने के लिए किया जाता है, लंबे समय तक इसके इस्तेमाल से कई तरह की बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है। जल्दी बिक्री और ज्यादा मुनाफे की चाहत में आमों को इस रसायन का उपयोग कर पका दिया जाता है और बाजार में खुलेआम बेच दिया जाता है।

भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. अनुराग त्रिपाठी बताते हैं, "रसायन कोई भी हो सेहत के लिए खतरनाक ही होता है, कैल्शियम कर्बाइड से कई तरह की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। फसलों में कीटनाशकों का ज्यादा इस्तेमाल भी खतरनाक होता है।"


याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कृषि मंत्रालय से भी पूछा है कि क्या कोई ऐसी किट है जिससे उपभोक्ता खुद घर पर फलों में कैल्शियम कार्बाइड का पता लगा सके। मंत्रालय ने बताया कि ऐसी कोई किट उपलब्ध नहीं है और कैल्शियम कार्बाइड की जांच केवल प्रयोगशाला में की जा सकती है।

दिल्ली सरकार के स्थायी अधिवक्ता नौशाद अहमद खान ने कोर्ट को बताया कि संबंधित विभाग जांच के लिए बाजारों से फलों के सैंपल लेता है और उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए मुहिम भी चलाता है। कुछ सैंपलों की जांच में रसायन नहीं पाया गया है और बाकी सैंपलों की जांच रिपोर्ट का इंतजार है।

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कोर्ट खुद शुरू की गई जनहित याचिका के साथ ही दो अन्य लोगों की उन याचिकाओं पर भी सुनवाई कर रहा है जिनमें खाद्य पदार्थों विशेषकर कृषि उत्पादों पर कीटनाशकों व रसायनों के प्रयोग पर नियंत्रण लगाने का निर्देश देने की मांग की गई है। कोर्ट की ओर से नियुक्त न्याय मित्र राजुल जैन ने कुछ समय पहले रिपोर्ट दाखिल कर कहा था कि फलों व सब्जियों में कीटनाशकों व रसायनों के अधिक प्रयोग के कारण कई देशों ने इनका आयात बंद कर दिया है और कई देश इस पर विचार कर रहे हैं।

कैलिशयम कार्बाइड के दुष्प्रभाव के बारे में हर्बल जानकार दीपक आचार्य अपने एक लेख में लिखते हैं, "कैल्शियम कार्बाइड से पके हुए आम किस तरह घातक हो सकते हैं, इसका आकलन भी कर पाना आमजनों के लिए मुश्किल है। लेकिन, आम व्यापारियों के पास अपने तर्क हैं, इनके अनुसार ज्यादातर देशभर में आम दक्षिण भारत और गुजरात से पहुंचाए जाते हैं। ऐसे में अगर इनको प्राकृतिक तौर पर पकने दिया जाए तो बाद में व्यापार के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजते समय आम मंजिल तक पहुंचने से पहले ही खराब हो चुका होगा।

यह तर्क व्यक्तिगत तौर पर मुझे समझ में नहीं आया क्योंकि कैल्शियम कार्बाइड के अलावा भी अन्य रसायन हैं जो सेहत के लिए घातक नहीं हैं। इनका इस्तेमाल आम पकाने के लिए किया जा सकता है और इनकी कीमत 5 से 10 रुपयों के बीच ही होती है। अगर विक्रेताओं की मानी जाए तो इन रसायनों की यह कीमत ज्यादा ही है और वे अपने मुनाफे को कम होता देख कैल्शियम कार्बाइड का ही इस्तेमाल चोरी चुपके कर रहे हैं। यह बाजार में 2-3 रूपए में ही उपलब्ध है।


कितने खतरनाक हो सकते हैं रसायन

फलों, सब्जियों और अनाज को कीड़े, रोग और खरपतवार से बचाने के लिए कई तरह के रसायन का छिड़काव किया जाता है, लेकिन इस कीटनाशक का सिर्फ एक हिस्सा ही कीड़ों और रोगों को मारने का काम आता है, बाकि 99 फीसदी का बड़ा हिस्सा उस फल और अनाज में समा जाता है, जो खाने वालों को बीमार कर सकता है।

कीटनाशकों के प्रभाव से अस्थमा, ऑटिज्म, डायबिटीज, परकिंसन, अल्ज़ाइमर, प्रजनन संबंधी अक्षमता और कई तरह का कैंसर होने का खतरा रहता है। यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज व गुरु तेग बहादुर अस्पताल, नई दिल्ली के डॉक्टरों ने पिछले कई वर्षों में 30-54 वर्ष के कई मरीजों के खून की जांच की तो सामने आया कि उनके खून में अल्फा और बीटा एंडोसल्फन, डीडीटी और डीडीई, डिल्ड्रिन, एल्ड्रिन, और अल्फा, बीटा, और गामा एचसीएच जैसे कई खतरनाक कीटनाशकों की मात्रा मिली। रिसर्च में शामिल इन डॉक्टरों में डॉ. अशोक कुमार त्रिपाठी भी हैं, जो कई साल से कीटनाशकों के दुष्प्रभाव पर रिसर्च कर रहे हैं।

"हमने लगभग 20 साल तक एक हज़ार से भी ज्यादा लोगों की जांच की तो पाया कि मरीजों में प्री मैच्योर बेबी, किडनी में इंफेक्शन, कई तरह के कैंसर जैसी बीमारियों की वजह कीटनाशक था, "रिसर्च के प्रमुख डॉ. अशोक कुमार त्रिपाठी ने आगे बताया, "डीडीटी, एंडोसल्फान जैसे कई कीटनाशक लंबे समय तक पर्यावरण में रहते हैं।" तमाम हादसों के बाद भारत में 2013 में एडोसल्फान पर प्रतिबंध लगाया गया था, जबकि बाकी दुनिया के कई देशों में ये पहले से प्रतिबंधित था।

ऐसे कीटनाशक बिक रहे हैं, जो दूसरे एक या एक से ज्यादा देशों में प्रतिबंधित हैं

भारत में अब बेनोमिल, कार्बाराइल, डायाजिनोन, फेनारिमोल, फेंथियॉन, लिनुरान, मिथॉक्सी एथाइल मरकरी क्लोराइड, थियोमेटॉन, मेथिल पार्थियॉन, सोडियम सायनाइड, ट्राइडीमार्फ और ट्राईफ्लूरालिम की बिक्री, निर्माण और निर्यात-आयात नहीं होगा। जबकि 31 दिसंबर 2020 के बाद ट्रायाजोफस, ट्राइक्लोरोफोन, एलाचलोर, डिचलोरवस, फोरेट, फोस्फामिडॉन को देश में प्रतिबंधित कर दिया जाएगा।

भारत में 100 से ज्यादा ऐसे कीटनाशक बिक रहे हैं, जो दूसरे एक या एक से ज्यादा देशों में प्रतिबंधित हैं। भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा कीटनाशक उत्पादक देश है। विश्व भर में प्रति वर्ष लगभग 20 लाख टन कीटनाशक का उपयोग किया जाता है। टॉक्सिक लिंक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 108 टन सब्जियों को बचाने के लिए 6000 टन कीटनाशक का प्रयोग किया जाता है। जबकि कुल कीटनाशकों में से करीब 60 फीसदी का उपयोग कपास में होता।

वर्ष 2018 के बाद यूरोपीय संघ के 28 देशों में तितलियों और मधुमक्खियों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटनाशकों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया था। यूरोपीय देश इससे पहले भी कई कीटनाशकों का इस्तेमाल रुकवा चुके हैं, जो भारत में धड़ल्ले से इस्तेमाल किए जाते हैं।

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