क्या कोरोना ने देश में मनरेगा 2.0 की जरूरत को बढ़ा दिया है?

लॉकडाउन के दौरान ग्रामीण समाज को रोजगार देने सहित बदहाल अर्थव्यवस्था को संभालने में भी मनरेगा ने अपनी भूमिका निभाई है। इसीलिए ग्रामीण भारत को समझने वाले विशेषज्ञ अब मान रहे हैं कि मनरेगा 2.0 लाने का यह सबसे अच्छा वक्त है।

Madhav SharmaMadhav Sharma   13 Aug 2020 7:45 AM GMT

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क्या कोरोना ने देश में मनरेगा 2.0 की जरूरत को बढ़ा दिया है?राजस्थान में केंद्र सरकार से मनरेगा में साल में 200 दिन रोजगार दिए जाने की मांग करते ग्रामीण।

"मेरी राजनैतिक सूझबूझ कहती है, मनरेगा कभी बंद मत करो। मैं ऐसी गलती कभी नहीं कर सकता, क्योंकि मनरेगा आपकी (कांग्रेस सरकारों की) विफलताओं का जीता-जागता स्मारक है। आज़ादी के 60 साल बाद आपको लोगों को गड्ढे खोदने के लिए भेजना पड़ा। यह आपकी विफलताओं का स्मारक है। मैं गाजे-बाजे के साथ इस स्मारक का ढोल पीटता रहूंगा। दुनिया को बताऊंगा, ये गड्ढे जो तुम खोद रहे हो, ये 60 सालों के पापों का परिणाम हैं। मेरी राजनैतिक सूझबूझ पर आप शक मत कीजिए ... मनरेगा रहेगा, आन-बान-शान के साथ रहेगा, और गाजे-बाजे के साथ दुनिया में बताया जाएगा।"

वर्ष 2015 में संसद में पीएम मोदी का दिया यह बयान फिलहाल मनरेगा के आंकड़ों से फीका होता दिखाई दे रहा है। कोरोना संकट में भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को खड़ा रखने का काम मनरेगा ने किया है। राजनीतिक बयानों के इतर एनडीए सरकार द्वारा मनरेगा का बजट बढ़ाना दिखाता है कि ग्रामीण भारत को सशक्त करने के लिए फिलहाल इससे बेहतर योजना देश में नहीं है। यही कारण है कि नोटबंदी और लॉकडाउन के बाद मनरेगा में सरकार ने बजट बढ़ाया है।

इस बार केन्द्रीय बजट में सरकार ने मनरेगा को 61 हजार करोड़ रुपए आवंटित किए थे। कोरोना संकट को लेकर सरकार के 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज में से मनरेगा को 40 हजार करोड़ रुपए अतिरिक्त मिले। इस तरह मनरेगा को एक लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा का बजट मिला है।

आंकड़े और जमीनी मीडिया रिपोर्ट्स बता रही हैं कि लॉकडाउन के दौरान जब शहरों से प्रवासी वापस अपने गांवों में लौटे तो उन्हें मनरेगा ने ही सबसे ज्यादा सहारा दिया। प्रवासियों की इस भीड़ ने मनरेगा में लीक से हटकर कुछ काम भी किए हैं। इन कामों से ना सिर्फ उन गांवों बल्कि पर्यावरण को भी फायदा पहुंचेगा। इसीलिए अब यह मांग उठने लगी है कि देश में मनरेगा 2.0 लाने का यह सबसे बेहतर वक्त है।

कोरोना वायरस से देश में लगे पूर्ण लॉकडाउन के ख़त्म होने के बाद गाँव कनेक्शन ने 20 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों के 179 जिलों में 25,371 से ज्यादा ग्रामीणों के बीच सर्वे किया। अलग-अलग राज्यों में किये गए इस सर्वे में सामने आया कि राजस्थान में 59 प्रतिशत ग्रामीणों को लॉकडाउन के दौरान मनरेगा में काम मिल सका, यानी काम की मांग करने वाले आधे से ज्यादा लोगों को मनरेगा में रोजगार मिला। मनरेगा में रोजगार को लेकर यह अच्छे संकेत रहे।


राजस्थान के अलावा छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड में भी क्रमशः 70 और 65 प्रतिशत ग्रामीणों को लॉकडाउन के दौरान मनरेगा में काम मिल सका। मगर गौर करने वाली बात यह है कि अन्य राज्यों में यह प्रतिशत काफी कम रहा है। झारखण्ड, महाराष्ट्र, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और गुजरात में 10 प्रतिशत ग्रामीणों को भी लॉकडाउन के दौरान मनरेगा में काम नहीं मिल सका। ऐसे में जरूरत है कि मनरेगा को लेकर सरकार को एक बार फिर नए तरीके से सोचने की जरूरत है।

सामाजिक कार्यकर्ताओं से लेकर विपक्ष द्वारा मनरेगा में काम के दिन बढ़ाने, प्रोडक्टिव काम कराने और अन्य संशोधनों की मांग लगातार की जा रही है। मनरेगा के तहत हुए कामों और गांवों में उत्पादक काम बढ़ाने की मांग को जायज ठहराते दो उदाहरण नीचे दिए जा रहे हैं।

उदाहरण – 1 : अजमेर जिले का पुष्कर शहर पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। सुंदरता के साथ-साथ पुष्कर की पहचान तीर्थ के रूप में भी है और यहां के सरोवरों की महत्ता आस्थावानों को पूरे देश से यहां खींच कर लाती है। तीन तरफ से अरावली की पहाड़ियों से घिरे इस शहर की अपनी समस्याएं भी हैं। यहां के सरोवरों में पानी की कमी हमेशा बनी रहती है, लेकिन इस बार मनरेगा के जरिए इस समस्या का समाधान ढूंढ़ने की कोशिश की गई है।

करीब 10 साल पहले पहाड़ियों से बरसाती पानी को सरोवर तक लाने के लिए यहां पांच फीडर (बड़े नाले) बनाए गए थे, लेकिन समय के साथ इन फीडरों में तीन से पांच फीट तक मिट्टी, पत्थर और रेत भर गई थी। कोरोना वायरस के कारण लगे लॉकडाउन के दौरान प्रशासन ने इन फीडरों को मनेरगा के जरिए साफ करने का विचार किया। अप्रैल महीने से शुरू हुए मनरेगा साइट्स में इनकी सफाई शुरू की गई और अनलॉक-1 के वक्त तक तीन फीडर पूरी तरह साफ किए जा चुके थे। यह पहली बार था कि फीडर बनने के बाद इनकी सफाई कराई जा रही थी। ग्राम पंचायत गनाहेड़ा और कानस के करीब पांच सौ से अधिक मनरेगा श्रमिकों ने इनकी सफाई की है। इसका फायदा यह हुआ कि इस बार अब तक हुई बारिश से पिछले सालों की तुलना में पुष्कर सरोवर में ज्यादा पानी की आवक हुई है।

अजमेर के गनाहेड़ा ग्राम पंचायत में पुष्कर सरोवर में जाते फीडरों को मनरेगा के तहत साफ किया गया।

सहायक अभियंता के पद पर काम कर रहे स्थानीय अधिकारी शलभ टंडन का मानना है कि अगर बारिश और अच्छी हुई तो पुष्कर में हर साल लगने वाले पशु मेले के लिए प्रशासन को पानी की किल्लत से भी नहीं जूझना पड़ेगा। साथ ही महामारी के बाद यहां आने वाले तीर्थ यात्रियों को भी सरोवर में पानी की कमी नहीं खलेगी।

उदाहरण – 2 : पाली जिले के भांवरी गांव में पंचायत की 3080 बीघा जमीन बरसों से बंजर पड़ी है। लॉकडाउन के दौरान ग्रामीणों ने गांव में एक तालाब खुदवाने के लिए पंचायत में प्रस्ताव लिया। करीब 2200 बीघा जमीन पर तालाब खुदाई का काम मनरेगा के जरिए शुरू किया गया। अब तक करीब तीन फीट तक खुदाई हो चुकी है।

पंचायत सहायक ओमप्रकाश बताते हैं, "धीरे-धीरे इसे 15-20 फीट तक गहरा किया जाएगा। इससे पहाड़ियों से बहकर आने वाला बरसात का पानी एक जगह जमा होगा। फायदा यह होगा कि गांव की मवेशियों को पीने का पानी उपलब्ध होगा, साथ ही ग्रामीणों की जरूरतें भी तालाब से पूरी होंगी। इसके अलावा आस-पास की जमीन हरियाली होगी।" ओमप्रकाश का कहना है कि बची हुई जमीन पर चारागाह विकसित करने का प्लान है जिसे मनरेगा से ही तैयार किया जाएगा।

इसके अलावा पाली के ही मणिहारी ग्राम पंचायत में किसान और पशुपालक श्रवण कुमार के घर पर मनरेगा के जरिए पशुओं के लिए शेड का निर्माण हुआ है। श्रवण कहते हैं, "पहले मैं अपनी बकरी और भैंस छप्पर में बांधता था। बारिश में पशुओं को सबसे ज्यादा दिक्कत होती थी, लेकिन अब मनरेगा से टीन शेड डाला गया है। पशुओं के बैठने के लिए सूखी जगह है और दिन में भी धूप में नहीं बांधना पड़ता।"

पाली जिले के मणिहारी ग्राम पंचायत में मनरेगा के जरिए बना श्रवण का शेड

ऊपर के दोनों उदाहरण के अलावा राजस्थान में मनरेगा के जरिए हुए उत्पादक कामों की लंबी फेहरिस्त है। राज्य सरकार के आंकड़े बताते हैं कि अकेले अजमेर जिले में लॉकडाउन के दौरान जल संरक्षण के 1,112 काम शुरू किए गए हैं, जिनमें से 69 कार्य पूरे हो चुके हैं। वहीं, पाली में जल संरक्षण के 603 काम चल रहे हैं और 30 जुलाई तक 23 काम पूरे किए जा चुके हैं।

पूरे राज्य की बात करें तो प्रदेश में जल संरक्षण, जलग्रहण प्रबंधन, सिंचाई, चारागाह विकास और पौधारोपण के लाखों कामों को मंजूरी दी गई है। इनमें से 81,540 काम चल रहे हैं और लॉकडाउन के दौरान 4,545 काम पूरे कराए गए हैं।

मनरेगा के जरिए राजस्थान में ग्रामीण परिवारों की भूमि उत्पादकता से संबंधित कार्य, पशु शेड निर्माण जैसे 1,48,611 काम चल रहे हैं और इनमें से 9,578 कार्य लॉकडाउन के दौरान पूरे किए गए हैं। इसके अलावा प्रधानमंत्री आवास योजना में 75,361 आवास बनाए गए हैं जिनमें अकुशल मजदूर मनरेगा के तहत काम में लगाए गए हैं।

अकेले राजस्थान में ऐसे सैंकड़ों उदाहरण हैं जो बताते हैं कि मनरेगा से ग्रामीण भारत में काफी कुछ बदला जा सकता है। लॉकडाउन के दौरान ग्रामीण समाज को रोजगार देने सहित बदहाल अर्थव्यवस्था को संभालने में भी मनरेगा ने अपनी भूमिका निभाई है। इसीलिए ग्रामीण भारत को समझने वाले विशेषज्ञ अब मान रहे हैं कि मनरेगा 2.0 लाने का यह सबसे अच्छा वक्त है।

सरकार योजना में आज के ग्रामीण भारत की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए संशोधन करे। नए कामों को जोड़ा जाए ताकि ज्यादा से ज्यादा संख्या में लोगों को रोजगार मिले। ऐसे उत्पादक कार्य कराए जाएं जिससे गांव आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ें।

राजस्थान के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद ओझा इस बात से सहमत हैं कि अब मनरेगा एक्ट में संशोधन की जरूरत है। वे कहते हैं, "कोरोना से जंग में मनरेगा ने ग्रामीणों के साथ-साथ प्रवासियों को भी रोजगार उपलब्ध कराया है। अब वक्त है कि इसे संशोधित किया जाए और आज के ग्रामीण भारत की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए मनरेगा के जरिए काम हों क्योंकि जब ये मनरेगा कानून बनाया गया और आज के भारत में काफी बदलाव हुआ है। बीते 15 साल में देश में तकनीक का काफी विस्तार हुआ है। सरकार को इसका फायदा उठाना चाहिए।"

वहीं बजट एनालिसिस राजस्थान सेंटर के फाउंडर डायरेक्टर नेसार अहमद कहते हैं, 'कोरोना संकट के बाद मनरेगा में 200 दिन काम देने की मांग लगातार चल रही है। यह मांग दिखाती है कि अगर गांवों में ही लोगों को उचित मजदूरी पर काम मिले तो वे शहरों में पलायन नहीं करेंगे।"


वे आगे कहते हैं, "मेरे हिसाब से मनरेगा को अब अपग्रेड करने की जरूरत है, लेकिन इसका डिजायन कैसा होगा ये सरकार को तय करना चाहिए। सरकार विशेषज्ञों की एक कमेटी बना सकती है और मनरेगा में कराए जाने वाले कामों की लिस्ट फिर से बनाई जा सकती है। हालांकि मनरेगा में अब 260 तरह के काम कराए जा सकते हैं, लेकिन इस संख्या को भी बढ़ाया जा सकता है। व्यक्तिगत लाभ, पर्यावरण संरक्षण, संपत्ति निर्माण, पोषण, स्वास्थ्य जैसे विषयों को इसमें जोड़ा जा सकता है। साथ ही अकुशल मजदूरों के अलावा कुशल और अर्धकुशल श्रमिकों को उचित मजदूरी के साथ मनरेगा के जरिए काम दिया जा सकता है।"

मनरेगा में काम के दिन बढ़ाने और इसे संशोधित कर और मजबूत बनाने के संदर्भ में 'गांव कनेक्शन' ने राजस्थान के मनरेगा आयुक्त पी.सी. किशन से बात की। उन्होंने कहा, "मनरेगा में एक दिन में सबसे ज्यादा 53.45 लाख रोजगार दिया जो बीते साल से 20 लाख ज्यादा है। साल के शुरुवाती पांच महीनों में ही लक्ष्य (30 करोड़) का 73 फीसदी (22.18) मानव दिवस सृजन हो चुका है। काम की अधिकता के चलते इस साल राजस्थान वित्तीय वर्ष के बीच में लेबर बजट का रिवीजन कर लक्ष्य को 35 करोड़ मानव दिवस किया जा सकता है।"

किशन आगे बताते हैं, "मनरेगा में काम के दिनों की संख्या 100 से बढ़ाकर 200 करने की मांग कई जगहों से उठी है। पार्टी लाइन से ऊपर जाकर कई मुख्यमंत्रियों ने भारत सरकार को इस संबंध में पत्र भी लिखे हैं। अब केन्द्र सरकार ही मनरेगा को लेकर कोई फैसला लेगी। पशुओं के लिए शेड निर्माण, आवास निर्माण, तालाब खुदाई, सिंचाई के कार्य मनरेगा के जरिए करने पर हमारा फोकस है।"

राजस्थान के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता और मजदूर किसान शक्ति संगठन के संस्थापक सदस्य शंकर सिंह भी मनरेगा 2.0 की सख्त जरूरत की वकालत करते हैं। वे कहते हैं, "हमारा जीवन गांवों में ही काम करते हुए गुजरा है। ये पहली बार देख रहे हैं कि कोई सरकारी योजना आम लोगों की जिंदगी को सीधे तौर पर प्रभावित कर रही है। यकीन मानिए अगर मनरेगा नहीं होता तो गांवों में कोरोना से ज्यादा तकलीफदेय भुखमरी और बेकारी होती। मनरेगा में प्रवासियों ने बहुत टिकाऊ काम किए हैं जो भविष्य में भी काम आएंगे। मांग है कि मनरेगा में काम के दिन 200 किए जाने चाहिए और इसमें आज के समय के हिसाब से जरूरी संशोधन करने चाहिए।"

शंकर आगे कहते हैं, "सभी राजनीतिक दलों को अपने एजेंडा से बाहर आकर मनरेगा पर एक मत होना चाहिए और ग्रामीण भारत को सशक्त करने के लिए इसे संशोधित करना चाहिए क्योंकि 2006 में जब यह कानून के तौर पर लागू हुआ तब परिस्थितियां कुछ और थीं और आज उनमें काफी बदलाव आ चुका है। मनरेगा में काम किस तरह के हों यह बाद की बात है, पहले मनरेगा 2.0 पर पूरे देश में एक बहस का माहौल बनना जरूरी है ताकि नए विचार आएं और चीजें बेहतर हों।"

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