कोविड संकट के बावजूद स्वास्थ्य बजट में कमी, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की अनदेखी: जन स्वास्थ्य अभियान

सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने स्वास्थ्य बजट और बढ़ाने की मांग की है, जन स्वास्थ्य अभियान के अनुसार, कुल बजट में स्वास्थ्य का हिस्सा पिछले वर्ष की तुलना में 2.35% से घटकर 2.26% हो गया है। इसका मतलब यह भी है कि केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र के प्रति अपनी प्राथमिकता कम कर दी है ।

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कोविड संकट के बावजूद स्वास्थ्य बजट में कमी, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की अनदेखी: जन स्वास्थ्य अभियान

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि बजट अनुमान 2022-23 ने स्वास्थ्य क्षेत्र को 86,606 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, जो वित्त वर्ष 2021-22 के संशोधित अनुमान 85,915 करोड़ रुपये की तुलना में मामूली वृद्धि है। फोटो: अभिषेक वर्मा

"कोविड-19 महामारी की पहली दो लहरों के दौरान देश को जिस अभूतपूर्व मानवीय आपदा का सामना करना पड़ा और अल्प-संसाधन वाली सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली पर निर्भर लोगों के जीवन की रक्षा के लिए अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं को देखते हुए केंद्र सरकार से यह उम्मीद की गई थी कि वह वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए स्वास्थ्य बजट बढ़ाएगी और भारत की कमजोर स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार के लिए ठोस उपाय करेगी। लेकिन लोगों उम्मीदों के विपरीत, 2022-23 के बजट में स्वास्थ्य और संबंधित कार्यक्रमों के लिए आवंटन वास्तविक रूप से 2021-22 के संशोधित अनुमान के मुकाबले 7% कम हो गया।"

स्वास्थ्य अधिकारों के लिए काम करने वाले जन स्वास्थ्य अभियान ने केंद्रीय बजट 2022-23 में स्वास्थ्य बजट कम करने का विरोध किया है। जेएसए ने कहा है कि वो संसद से अपील करते हैं कि वह कटौती को अस्वीकार करें और स्वास्थ्य के लिए संयुक्त रूप से आवंटन बढ़ाने का आह्वान करें।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि बजट अनुमान 2022-23 ने स्वास्थ्य क्षेत्र को 86,606 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, जो वित्त वर्ष 2021-22 के संशोधित अनुमान 85,915 करोड़ रुपये की तुलना में मामूली वृद्धि है।


जन स्वास्थ्य अभियान के अनुसार, कुल बजट में स्वास्थ्य का हिस्सा पिछले वर्ष की तुलना में 2.35% से घटकर 2.26% हो गया है। इसका मतलब यह भी है कि केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र के प्रति अपनी प्राथमिकता कम कर दी है ।

कोविड से संबंधित प्रावधानों को वापस लिया जा रहा है?

जन स्वास्थ्य अभियान ने 2 फरवरी को जारी विज्ञप्ति में कहा है किजहां तक कोविड से संबंधित व्यय का संबंध है, वित्तीय वर्ष 2020-21 में 11,940 करोड़ था और 2021-22 के लिए संशोधित अनुमान 16,545 करोड़ था जों कि बहुत कम साबित हुआ था । 2022-23 में कोविड सम्बंधित कार्य के लिए महज 226 करोड़ का आवंटन किया है जो की स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए बीमा कवर है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कहा है कि हम न केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य की सभी सेवाओं की मांग करते हैं, बल्कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में केंद्र सरकार के खर्च में पर्याप्त वृद्धि के माध्यम से सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की क्षमता का सुनिश्चित विस्तार चाहते है ताकि कोविड -19 संबंधित देखभाल को सार्वजनिक प्रणालियों के माध्यम से अधिकतम संभव सीमा तक स्वतंत्र रूप से लोगों को उपलब्ध कराया जा सके। इसके अलावा, कोविड -19 टीकाकरण के लिए पहले आवंटित किए गए ₹35,000 करोड़ में भारी कटौती की गई है, जिसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक संसाधनों में कमी हो सकती है, जिससे कि सभी को कोविड -19 टीकाकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने में विफल हो सकते हैं, विशेष रूप से भविष्य के टीकाकरण की जरूरतें और बच्चों के लिए टीकाकरण हैं।

फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कर्मियों का भुगतान कब होगा?

फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने महामारी के दौरान कई मुश्किलों और यहां तक कि वेतन में कटौती और भुगतान में देरी के साथ अक्सर जान गंवाने के बावजूद भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि, सांकेतिक उपायों से परे, इन समर्पित स्वास्थ्य कर्मियों के मुआवजे में सुधार के लिए शायद ही कोई ठोस कदम उठाया गया हो। यहां तक कि स्वास्थ्य कर्मियों को बीमा प्रदान करने का प्रावधान भी कम कर दिया गया है।


वर्ष 2021-22 के संशोधित बजट 813 करोड़ रु. से वर्ष 2022-23 में महज 226 करोड़ का वंटन किया गया हैं। यहीं पर यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि जिस टीकाकरण की उल्लेखनीय सफलता का दावा किया जा रहा है, उसके पीछे आशा और अन्य फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के निरंतर अथक प्रयास है, लेकिन एनएचएम बजट में कटौती से आशा और एएनएम को दिए जाने वाले भुगतान पर काफी असर पड़ेगा।

मानसिक स्वास्थ्य की लगातार उपेक्षा

स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने मानसिक स्वास्थ्य का भी मुद्दा उठाया है। उनके अनुसार वित्त मंत्री ने एक विशेष राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम की घोषणा की है, लेकिन मौजूदा राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनएमएचपी) और केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित विभिन्न संस्थानों को उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा है। NMHP को महज 40 करोड़ का मामूली आवंटन दिया गया है जो कि 2019-20 के बाद से समान है। यह राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के लिए प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष केवल 30 पैसे खर्च करने के बराबर है! इसके अलावा आवंटित धनराशि भी काफी हद तक कम खर्च की गई है।

2020-21 में वास्तविक व्यय मात्र 20 करोड़ किया गया। मानसिक स्वास्थ्य के लिए शीर्ष संस्थान के रूप में निमहंस के बजट को कुछ हद तक बढ़ाया गया है। वर्ष 2021-22 के 500 करोड़ से वर्ष 2022-23 में 560 करोड़ किया गया हैं, लेकिन व्यापक रूप में यह स्पष्ट रूप से अपर्याप्त है। अपनी स्थापना के कई वर्षों के बाद भी जमीनी स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के लिए पर्याप्त सहयोग के अभाव में मानव संसाधनों की कमी बनी हुई ह


केवल टेली-मेडिसिन कार्यक्रम पर भरोसा करके सेवाओं में उन प्रमुख कमियों को भरने का प्रयास करने का अर्थ है कि समाज का एक बड़ा वर्ग गुणवत्तापूर्ण मानसिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं से वंचित रहेगा। इसके अलावा स्वास्थ्य बजट में विकलांग व्यक्तियों के लिए कोई विशिष्ट राशि आवंटित नहीं की गई है, हालाँकि सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अंतिम वित्तीय वर्ष के बजट से 2022-23 के केंद्रीय बजट12 प्रतिशत की वृद्धि हुई है ।

डिजिटल मॉडल पर सारा ध्यान

आयुष्मान भारत डिजिटल स्वास्थ्य मिशन के लिए बजट पिछले वर्ष में आवंटित 30 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2022-23 के लिए आयुष्मान डिजिटल स्वास्थ्य मिशन का 200 करोड़ रुपये हो गया है, एक वर्ष में लगभग सात गुना वृद्धि हुई है।

जन स्वास्थ्य अभियान का कहना है, "यह वास्तविक 'स्वास्थ्य देखभाल' की उपेक्षा करते हुए 'स्वास्थ्य कार्ड' पर अनुचित जोर देने के समान है।

वास्तविक सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा वितरण प्रणाली की उपेक्षा करते हुए महामारी के बीच में इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड बनाने के लिए सरकार की प्राथमिकता से कार्यक्रम के मुख्य इरादों के बारे में गंभीर संदेह पैदा करता है। सरकार के इस कदम से यह संभावना मजबूत होती हैं कि इस योजना से बड़ी आईटी कंपनियों और वाणिज्यिक स्वास्थ्य बीमा कंपनियों को लाभ होने वाला है, जबकि व्यक्तिगत जानकारी की सुरक्षा संदिग्ध बनी हुई है।

इस बीच केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि यह बजट आत्मनिर्भर भारत बनाने में कारगर साबित होगा।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन आवंटन में कटौती क्या सही है

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन सबसे महत्वपूर्ण प्रमुख योजनाओं में से एक है जो अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन कर रहा है और माताओं और बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार में योगदान दे रहा है। हालांकि, वर्ष 2019-20 के बाद से राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के लिए बजट आवंटन में वास्तविक रूप से गिरावट आई है। वर्ष 2020-21 में एनएचएम पर वास्तविक व्यय रु. 37,080 करोड़ था, लेकिन अब 2022-23 में एनएचएम के लिए आवंटन केवल 37,000 करोड़ किया हैं जो केवल मात्र 80 करोड़ की गिरावट नहीं है, बल्कि वास्तविक रूप में यह वास्तव में 4106 करोड़ रुपये की कटौती है।

इसका मतलब है कि 2020-21 में एनएचएम के तहत प्रदान की जाने वाली आवश्यक सेवाएं वर्तमान सीमित संसाधनों के साथ प्रदान नहीं की जा सकती हैं। यह आवश्यक था कि सरकार सुरक्षित मातृत्व, सार्वभौमिक टीकाकरण सुनिश्चित करने और महामारी के दौरान हुए नुकसान को पाटने के लिए विभिन्न रोग नियंत्रण कार्यक्रमों का विस्तार करने के लिए विशेष प्रयास किया जाये, लेकिन इस प्रमुख आवश्यकता को नजरअंदाज कर दिया गया है।

प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना को खत्म करें

कोविड -19 महामारी के दौरान यह देखा गया है कि प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई) कोविड-19 के दौरान गरीब और वंचित वर्गों को स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने में पूरी तरह विफल रही। इसके अलावा, कोविड -19 के दौरान, बीमा दावों में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई। बजट अनुमान 2021-22 में PMJAY के लिए आवंटित राशि रु 6400 करोड़ थी, लेकिन जैसा कि संशोधित अनुमानों से पता चला है कि इसमें से केवल आधा यानि की मात्र 3199 करोड़ रुपये वास्तव में उपयोग किए जाने का अनुमान हैं । इन विफलताओं के बावजूद, सरकार इस योजना के लिए बड़े और बेकार आवंटन जारी रखे हुए है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि फरवरी 2020 तक PMJAY के तहत 75% भुगतान निजी क्षेत्र को हुआ है, जो यह साबित करता है कि PMJAY जैसी योजनाएं सरकारी धन को निजी क्षेत्र की ओर मोड़ती हैं। सरकार को तुरंत PMJAY को बंद करना चाहिए और इसके बजाय सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करने के लिए इन संसाधनों का उपयोग करना चाहिए।

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