एक क्लिक पर घर पहुंच रहीं दवाएं

ई-फार्मेसी के जरिए ऑनलाइन साइट मरीजों के घर पहुंचा रहीं हैं दवाएं

Deepanshu MishraDeepanshu Mishra   22 Sep 2018 6:48 AM GMT

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एक क्लिक पर घर पहुंच रहीं दवाएं

लखनऊ। घर बैठे खाना और दूसरी घरेलू चीजों की तरह दवाएं भी ऑनलाइन मिल रही हैं। अभी तक ये सुविधा कुछ बड़े शहरों में थी, लेकिन जल्द ही छोटे शहरों और कस्बों तक पहुंच जाएगी। ऑनलाइन यानि ई-फार्मेसी के तरफदारों का कहना है ये सुविधा मरीजों का समय और पैसा दोनों बचाएगी। केमिस्ट एसोसिएशन इसके विरोध में है।

लखनऊ के गोमतीनगर में रहने वाले विवेक कुमार पिछले कुछ दिनों से किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज में अपना इलाज करवा रहे हैं, डॉक्टर जो दवाएं लिखते हैं वो सिर्फ मेडिकल कॉलेज के आसपास मिलती हैं। जिसके लिए उन्हें कई चक्कर लगाने पड़ते थे। पिछले महीने उन्होंने ये दवाएं एक ऑनलाइन साइट के जरिए मंगानी शुरु कर दी हैं।

ई-फार्मेसी पर विवेक कहते हैं, "हम जैसे नौकरीपेशा लोगों के लिए ये बहुत अच्छी सुविधा है। पहले तो कई बार मुझे सिर्फ 50 रुपए वाली पांच गोलियां लेने के लिए चौक (मेडिकल कॉलेज) जाना पड़ता था, जिसमें 50 रुपए से ज्यादा का पेट्रोल और कई घंटे बर्बाद होते थे, क्योंकि ये दवा सिर्फ वहीं के मेडिकल स्टोर वाले रखते हैं।"

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दौड़ती भागती जिंदगी में विवेक जैसे लाखों लोग ई-फार्मेसी को आसान मान रहे हैं। ई-फार्मेसी वो सुविधा है जिसके तरह कुछ ऑनलाइन वेबसाइट और ऐप के जरिए दवाएं मंगाई जा सकती है। इसके लिए उपभोक्ता को अपनी दवाओं की सूची के साथ अपना पर्चा (डिस्क्रिप्शन) लोड करना होता है। जिसके 24 घंटे के अंदर दवाएं घर पहुंच जाती हैं। यहां पर भुगतान की सुविधाएं पहले और बाद दोनों तरह से हैं। सरकार इस सुविधा को बढ़ावा दे रही है आने वाले कुछ दिनों में ऑनलाइन दवाओं की बिक्री के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय गाइडलाइंस भी लागू पूरी तरह से हो जाएंगी।

भारत में ई-फार्मेसी बाजार का अनुमानित आकार 1000 करोड़ रुपये है जो पारंपरिक भारतीय फार्मा बाजार का सिर्फ 1 प्रतिशत है। अनुमान है कि 2025 तक यह कुल आकार का 10-15 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।

ऑनलाइन दवाई बेचने वाली एक वेबसाइट 'क्लिक योर मेड' की सीईओ करिश्मा खन्ना ने बताया, "ऑनलाइन दवाई खरीदना ग्राहक के बहुत अच्छा साधन है। व्यक्ति को घर बैठे दवाई मिल जाती है। कोई भी खाने की चीजें जैसे घर आती हैं वैसे ही हम दवाई भी आसानी से और सुरक्षित पहुंचाते हैं। हम लोग पहले भी पर्चा मांगते हैं और आर्डर लेकर पहुंचने वाला हमारा प्रशिक्षित कर्मचारी लोगों के घर पर भी पर्चा चेक करता है। ई-फार्मेसी ज्यादा प्रमाणित है।'

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उत्तर प्रदेश फर्मास्यूटिकल उद्योग नीति- 2018 के अनुसार भारत में फर्मास्यूटिकल उद्योग का कारोबार वर्ष 2015-16 में 2,04,627.15 करोड़ रूपये का था। वर्ष 2015-16 में भारत में ड्रग्स, फर्मास्यूटिकल और फाइन केमिकल्स का निर्यात 1,09,770 करोड़ रूपये का था। भारत विश्व में 220 से भी अधिक देशों को दवाई निर्यात करता है।

सरकार द्वारा लाये गये नए नियमों के बारे में करिश्मा ने बताया, "यह नियम हमारे पक्ष में हैं। हम पहले सरकार के द्वारा बनाये गये कानून के अंतर्गत ही काम करते थे।" एक तरह जहां ई-फार्मेसी के कारोबार से जुड़े कारोबारी और स्टार्टअप खुश हैं वहीं परंपरागत मेडिकल स्टोरी और दवा कारोबारियों ने विरोध तेज कर दिया है।

ऑल इंडिया ऑर्गेनाइजेशन ऑफ केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट (एआईओसीडी) ने ई-फार्मेसी के विरोध में पूरे देस में 27 सितंबर की से 28 सितंबर की आधी रात तक मेडिकल स्टोरी बंद रखने का ऐलान किया है। संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेएस सिंधे ने इसे मरीजों के लिए घातक बताया है। सिंधे ने फोन पर कहा, दवा का ऑनलाइन व्यापार मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होगा। एमटीपी किट, सिडनेफिल, ताडलाफिल, कोडीन जैसी आदत डालने वाली दवाएं तक बिना पर्चे और जवाबदेही के दे रहे हैं।' उनके मुताबिक मनोचिकित्सक और अन्य विशेषज्ञों की दवाएं तक पुराने और बनावटी पर्चों पर बेची जा रही हैं। सिर्फ मेडिकल स्टोर यूनियन ही नहीं फार्मास्टि भी नई व्वयस्था से नाखुश हैं। डिप्लोमा फार्मासिस्ट एसोसिएशन उत्तर प्रदेश के डॉ केके सचान कहते हैं, "ई-फार्मेसी से दवाई खरीदने पर हमें यह नहीं पता चल पायेगा कि जिससे हम दवाई खरीद रहे हैं उसके पास कोई डिग्री हैं कि नहीं जबकि सामान्य मेडिकल स्टोर पर हम दवाई देने वाले से पूछ सकते हैं कि फार्मासिस्ट कहाँ है।"

ई-फार्मेसी की शर्तें

ड्रग कंट्रोलर के अनुसार ई-फार्मेसी के माध्यम से दवाओं की बिक्री पर नियम के तहत कोई भी व्यक्ति पंजीकरण के बगैर स्टोरेज, वितरण या ई-फार्मेसी के माध्यम से दवाओं की बिक्री नहीं कर सकता। जो ई-फार्मेसी के जरिए कारोबार करना चाहता है वह सैन्ट्रल लाइसेंसिंग ऑथोरिटी से रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन कर सकता है। रजिस्ट्रेशन कराने वालों को सूचना तकनीक अधिनियम 2000 के नियमों का पालन करनी पड़ेगी। नए नियमों के तहत लाइसेंस फीस 50,000 रुपए तथा हर तीन साल में रिन्यू कराना होगा। यहां पर औषधि नियंत्रण विभाग के अधिकारी न केवल स्टोर बल्कि छापे मार सकेंगे।

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