कम होती मजदूरी, बिगड़ती सेहत और काम में गिरावट – भीषण गर्मी का खामियाजा भुगत रही है ग्रामीण भारत की कामकाजी आबादी
ग्रामीण भारत में गर्म हवाएं कहर बरपा रही है। खेतिहर मजदूरों के लिए यह बेहद मुश्किल समय है। चिलचिलाती धूप में खेतों में काम या फिर अपनी फसलों की देखभाल करने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा है। जानकारों का कहना है कि ये स्थिति अभी लंबे समय तक बनी रहने वाली है। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड से एक ग्राउंड रिपोर्ट-
Aishwarya Tripathi and Pratyaksh Srivastava 24 April 2023 6:06 AM GMT
लमोरा (महोबा) और लखनऊ, उत्तर प्रदेश। चिलचिलाती दुपहरी में पसीने से तरबतर गंगा चरण रैकवार अपने खेत में काम कर रहे थे। प्यास से जब गला सूखने लगा तो धूप से कुछ देर राहत पाने के लिए वह एक पेड़ की ओर चल पड़े। लमोरा गाँव के इस 17 साल के बटाईदार किसान ने खेत में प्लास्टिक के पाइप से पानी पिया और गमछे से अपने चेहरे का पसीना पोंछा। बमुश्किल कुछ मिनट ही आराम किया होगा, वह दो बीघे (आधा हेक्टेयर) में फैले अपने खेत में काम करने के लिए चल दिए।
उनका 16 वर्षीय भाई मोहित रैकवार और उनकी 40 साल की मां हरिकुंवर रैकवार भी वहीं उनके साथ भरी दुपहरी में खेतों में काम कर रहे थे। अपने भाई और मां के साथ मेंथा की फसल लगाने में व्यस्त गंगा चरण के लिए ज्यादा देर आराम करना संभव नहीं था।
रैकवार को पता था कि मेंथा की गुणवत्ता और मात्रा के आधार पर वह अपनी फसल से कितना पैसा कमा पाएंगे। और वैसे भी बटाईदार किसान होने के नाते उन्हें अपनी फसल का आधा हिस्सा खेत के मालिक को भी देना था। उनकी ओर से किसी भी तरह की देरी या लापरवाही से नुकसान हो सकता है, इसलिए आराम करने का तो सवाल ही नहीं उठता, अब भले ही कितनी भी गर्मी क्यों न हो।
“ऐसा लगता है जैसे गर्म पानी मुझे बीमार कर देगा। सिर्फ दोपहर के खाने के लिए हम एक घंटे के लिए रुकते हैं, वरना तो हमें पूरे दिन धूप में खड़ा रहना पड़ता है, "उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के महोबा जिले के रहने वाले गंगा चरण ने गाँव कनेक्शन को अपनी परेशानी बताते हुए कहा।
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— Ministry of Health (@MoHFW_INDIA) April 21, 2023
बुंदेलखंड देश के सबसे अधिक सूखे इलाकों में से एक है। यहां तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंच जाता है और लगातार सूखे का कारण बनता है। यहां रहने वाले तमाम लोग, चाहे वे किसान हों या दिहाड़ी मजदूर, भीषण गर्मी में काम करने के लिए मजबूर हैं। उनके पास काम करते रहने के अलावा कोई चारा नहीं है, क्योंकि काम न करने का मतलब है दाने-दाने के लिए मोहताज हो जाना।
अभी तो अप्रैल का महीना है, लेकिन भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, पूर्वी उत्तर प्रदेश (जहां महोबा स्थित है) में भीषण गर्मी का प्रकोप देखा जा रहा है। अभूतपूर्व गर्मी के कारण देश के कई अन्य हिस्सों में कुछ राज्यों में स्कूल बंद कर दिए गए हैं। आईएमडी ने हीटवेव अलर्ट जारी किया है और लोगों को घरों के अंदर रहने की चेतावनी दी है।
इन सभी चेतावनियों और आंकड़ों का भूरी देवी के लिए कोई मतलब नहीं है। भले ही कितनी भी गर्मी क्यों न हो, उन्हें तो रोज़ाना गर्म खोलती तेल की कड़ाही के सामने बैठकर समोसे तलने ही पड़ेंगे। महोबा के सूपा गाँव में रहने वाली भूरा देवी अपनी प्यास बुझाने के लिए अपने पास पानी की दो लीटर की प्लास्टिक की बोतल रखती हैं।
भूरी देवी ने बताया कि वह रोज दो घंटे समोसे तलती हैं और उन्हें बेचकर अपना गुजारा चलाती हैं। दोपहर करीब दो बजे थे. तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के आसपास बना हुआ है. लेकिन इसके बावजूद उन्हें इस चिलचिलाती धूप में अपनी भाभी बिनीता के साथ चूल्हे के लिए जलाऊ लकड़ी लेने के लिए जाना पड़ेगा। वह कहती हैं कि तभी तो वह समोसे तल पाएंगी।
बिनीता ने अपने हाथ में कुल्हाड़ी पकड़ते हुए गाँव कनेक्शन से कहा, "हमें लकड़ियों की तलाश में चार किलोमीटर गर्मी में पैदल चलना पड़ता है। अगर हम ऐसा नहीं करेंगे, तो चूल्हा कैसे जलेगा।"
बढ़ती गर्मी से जनजीवन प्रभावित होने का यह खतरा वास्तविक है। इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन (ILO) की 2019 की रिपोर्ट - वर्किंग ऑन ए वार्मर प्लेनेट - द इम्पैक्ट ऑफ़ हीट स्ट्रेस ऑन लेबर प्रोडक्टिविटी एंड डिसेंट वर्क - में चेतावनी दी गई है कि भारत में हीट स्ट्रेस के कारण 2030 में 5.8 प्रतिशत काम के घंटे कम होने की उम्मीद है। अपनी बड़ी आबादी के चलते देश 2030 में 3.4 करोड़ लोगों को अपनी नौकरियां खोनी पड़ सकती हैं।
इतना ही नहीं, विश्व बैंक की 2022 की एक और रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि 2030 तक, पूरे भारत में सालाना 16 से 20 करोड़ से ज्यादा लोगों के घातक गर्मी की चपेट में आने की संभावना है।
अध्ययन बताते हैं कि भारत में 2000-2004 और 2017-2021 के बीच भीषण गर्मी के कारण होने वाली मौतों में 55 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई है। गर्मी की चपेट में आने से 2021 में भारतीयों के बीच 167.2 बिलियन संभावित श्रम घंटों का नुकसान हुआ। इसकी वजह से देश की जीडीपी के लगभग 5.4 प्रतिशत के बराबर आय का नुकसान हुआ है।
एक प्राइवेट मौसम पूर्वानुमान एजेंसी ‘स्काईमेट वेदर’ में क्लाइमेट चेंज एंड मेट्रोलॉजी के उपाध्यक्ष महेश पलावत ने गाँव कनेक्शन को बताया, “पहले, ज्यादातर कृषि गतिविधियां (आमतौर पर फसलों की बुवाई और कटाई) साल के उस समय की जाती थीं जब मौसम इतना परेशान करने वाला नहीं होता था. लेकिन अब समय से पहले पड़ने वाली भयंकर गर्मी ने कृषि गतिविधियों के समय को बिगाड़ कर रख दिया है। मौसम में यह बदलाव कुछ समय की बात नहीं है. यह अब लंबे समय तक बना रहेगा. इसलिए राज्यों को किसानों को राहत देने करने के लिए नीतियां बनानी होंगी।"
आईएमडी की ओर से 21 अप्रैल 1.30 बजे जारी किए गए मौसम बुलेटिन के अनुसार, पूर्वी भारत और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में कल का अधिकतम तापमान 40-40 डिग्री सेल्सियस के बीच रहा। वहीं पश्चिमी हिमालय क्षेत्र (12-25 डिग्री सेल्सियस) को छोड़कर देश के बाकी हिस्सों-मध्य भारत, महाराष्ट्र और रायलसीमा के कुछ के अंदरूनी हिस्सों में तापमान 35-40 डिग्री सेल्सियस बना रहा था।
पलावत के मुताबिक बढ़ते तापमान के साथ बारिश के पैटर्न में बदलाव से भारत में कृषि का नक्शा भी बदलेगा।
उन्होंने कहा, "देश के उत्तर-पश्चिम भागों में भरपूर फसल के लिए जाने जाने वाले पंजाब और हरियाणा जैसे इलाकों में उत्पादन में गिरावट दर्ज की जाएगी. वहीं मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में उत्पादन में बढ़ोतरी के आसार हैं।"
दिल्ली स्थित इंटरनेशनल फोरम फॉर एनवायरमेंट, सस्टेनेबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी (iFOREST) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी चंद्र भूषण ने गाँव कनेक्शन को बताया कि पिछले कुछ सालों में ग्रामीण इलाकों में रह रहे लोग गर्मी की मार झेल रहे हैं। उनके अनुसार, अब तक ग्रामीण आबादी को प्रतिकूल मौसम की स्थिति से बचाता आ रहा पारंपरिक ज्ञान अब बदलती जलवायु परिस्थितियों के साथ बेमानी हो गया है।
भूषण ने गाँव कनेक्शन को बताया, “भारतीय किसानों का पारंपरिक ज्ञान खेती करने के तरीकों के लिए काफी सालों से फायदेमंद रहा है। लेकिन ये अब काम नहीं करेगा. बुवाई, निराई के समय, तकनीक, तौर-तरीके, हर चीज को बदलती जलवायु के अनुरूप बदलना होगा।"
रैकवार जहां दो बीघा खेत में मेंथा लगा रहे थे, वहां से थोड़ी दूरी पर 62 वर्षीय सोमवती सुलेरी की अस्थायी झोपड़ी बनी थी। उन्होंने झोपड़ी के सामने वाले हिस्से में अपनी कुछ रंगीन साड़ियों को इस उम्मीद में लटका दिया था कि वे झोपड़ी के अंदरूनी हिस्से को ठंडा कर देंगी. इस झोपड़ी में वह अपने खेतों को देखते हुए कुछ देर आराम करती हैं। एक दिन पहले वह आगे से खुली अपनी इस झोपड़ी में बैठ, अपने खेतों पर बरसती आग को देख रही थी।
सोमवती ने गाँव कनेक्शन को बताया, "मुझे मिचली आ रही थी। चक्कर भी आने लगे। बस लेटने का मन कर रहा था। मैं घर पहुंची, अपने आप को ठंडा करने के लिए सिर पर पानी की भरी बाल्टी उड़ेली और सिर पर ठंडा तेल की मालिश की। लेकिन फिर भी मैं ठीक महसूस नहीं कर रही थी। आखिरकार, मुझे कुछ दवाएं लेनी पड़ीं।"
बेतहाशा गर्मी में काम करना 27 साल के राम दयाल कुशवाहा को भी अकसर बीमार कर देता है। लेकिन इसके लिए वह ज्यादा कुछ नहीं कर पाते है। लमोरा गाँव में राजमिस्त्री का काम करने वाले कुशवाहा ने दीवार बनाने के लिए ईंटें बिछाते हुए गाँव कनेक्शन को बताया, "गर्मी असहनीय है। इस बार मैं महीने में 20 दिन से ज्यादा काम नहीं कर पाया। बीमार होने के बाद भी मुझे काम पर जाना पड़ता है, क्योंकि मेरा घर मेरी दिहाड़ी से ही चलता है।" चिलचिलाती गर्मी में एक सीढ़ी पर संतुलन बनाकर सारा दिन काम करने के बाद कुशवाहा एक दिन में 600 रुपये कमा पाते हैं।
जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट के विशेषज्ञ समीक्षक अविनाश मोहंती ने कहा कि इस मामले में तुरंत सरकारी हस्तक्षेप की जरूरत है।
मोहंती ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हीट वेव संकट सिर्फ एक मौसम संबंधी घटना नहीं है, बल्कि एक सामाजिक-आर्थिक चुनौती भी है, जिसमें राज्य को हस्तक्षेप करने और कूलिंग समाधानों को सब्सिडी देने की आवश्यकता है। ये कूलिंग समाधान अब ग्रामीण आबादी के अस्तित्व के लिए जरूरी हो गए हैं। हमारी 60 प्रतिशत से ज्यादा भारतीय आबादी गांवों में रहती है। मोहंती दिल्ली स्थित आईपीई-ग्लोबल - एक अंतरराष्ट्रीय विकास संगठन- " क्लाइमेट चेंज एंड सस्टेनेबिलिटी” के सेक्टर हेड हैं।
मोहंती ने कहा, “पहले समाधान में, देश में विकसित हो रही हीट वेव लैंडस्केप की मैपिंग शामिल होनी चाहिए, जिसके बाद भीषण गर्मी झेल रहे इलाकों पर विचार करते हुए सूक्ष्म स्तर पर योजना बनाई जानी चाहिए। तीसरा उपाय कम लागत वाले उपकरणों के रूप में कूलिंग समाधानों का समान वितरण होना चाहिए। इसमें राज्य का समर्थन महत्वपूर्ण होगा।”
भारत में भीषण गर्मी की स्थिति दुनिया के विकसित हिस्सों जैसे पश्चिमी यूरोप और स्कैंडिनेवियाई देशों में प्रतिकूल परिस्थितियों के बराबर है। यहां राज्य घरों में सेंट्रल हीटिंग का समर्थन करते हैं, क्योंकि इनके बिना भयंकर सर्दियों में उन देशों में रहना असंभव है।
उन्होंने कहा, "हालांकि इन देशों में सामाजिक-आर्थिक स्थितियों की तुलना भारत से नहीं की जा सकती है, लेकिन यहां राज्य के समर्थन की बहुत ज्यादा जरूरत है।"
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