तबाही के 15 दिन: ओलों की सफेद चादर के नीचे दबे किसानों के अरमान

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  • किसानों के खेतों पर बर्फ की चादर
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लखनऊ/सीतापुर/ललितपुर/सोनभद्र/बाराबंकी। "मैं पिछले 20-25 सालों से खेती कर रहा हूं, लेकिन आज तक इतने बड़े ओले नहीं देखे। सिर्फ 10 मिनट ओले गिरे थे और खेतों में फसलों की जगह सिर्फ सफेद चादर नजर आ रही थी।" उत्तर प्रदेश में सीतापुर जिले के गोपालापुर के किसान नंदू पांडेय (45 वर्ष) बताते हैं।

नंदू पांडे उत्तर प्रदेश में उसी सीतापुर जिले में रहते हैं जहां 13 मार्च की सुबह भीषण ओलावृष्टि के बीच गिरी आसमानी बिजली से 5 लोगों की मौत हो गई। आसमानी बिजली से अकेले उत्तर प्रदेश में पिछले 12-13 मार्च के बीच के 24 घंटों में 28 लोगों की मौत हुई।

भारत के कई राज्यों में बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि और तेज हवाओं के कई दौर चले हैं, जिनसे पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों में गेहूं, सरसों, चना, जौ, मसूर, केला और सब्जियों की फसलों को भारी नुकसान पहुंचा है। इससे पहले 29 फरवरी को भी महाराष्ट्र के नाशिक समेत देश के कई इलाकों बारिश के साथ ओले गिरे थे। मौसम वैज्ञानिकों ने इसकी वजह पश्चिमी विक्षोभ बताते हुए चेतावनी जारी की थी। फसलों के लगातार नुकसान के चलते मौसम प्रभावित देश के कई इलाकों में किसानों की होली फीकी रह गई।


मौसम विभाग से जुड़े कृषि मौसम विभाग में तकनीकी अधिकारी और नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या के नोडल अधिकारी अमर नाथ मिश्रा फोन पर गांव कनेक्शन को बताते हैं, "मौसम तो लगातार बदल ही रहा है। इस साल जनवरी से अब तक 160 मिलीमीटर की बारिश हो चुकी है। ये पिछले कई वर्षों के मुकाबले लगभग दोगुनी है।'

डॉ. मिश्रा बताते हैं, "बारिश और ओलावृष्टि से हमारे जोन के बाराबंकी समेत 11 जिलों में 30 फीसदी तक फसल उत्पादन कम होने की आशंका है। गेहूं का गिरना नुकसानदायक है। उन किसानों को भी नुकसान हुआ है जो आलू की मैच्योर (परिपक्क फसल) फसल की खुदाई नहीं कर पाए थे।"

सीतापुर से सटे यूपी के बाराबंकी जिले में असवानपुर गांव के किसान गिरिजा प्रसाद विश्वकर्मा बताते हैं, "गेहूं, रामदाना और सरसों की फसलें ऐसे बर्बाद हुई हैं जैसे किसान खेत में काटकर रखता है, जो फसलें गिर गईं उनमें कुछ होने वाला नहीं है।' बाराबंकी में मार्च महीने में भारी बारिश के साथ ओले गिरे जिससे गेहूं के साथ आलू की फसल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है।


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बाराबंकी के एडीएम संदीप कुमार गुप्ता ने बताया कि 1 मार्च से 13 मार्च तक हुई बेमौसम बरसात और ओले गिरने से जिले के 21278 किसानों की 4079 हेक्टेयर गेहूं आलू टमाटर सरसों की फसलें बर्बाद हुईं हैं, जिससे लगभग 20 करोड़ 65 लाख रुपए की क्षति का अनुमान लगाया जा रहा है। 13 मार्च को ओलावृष्टि के बाद खेतों में नुकसान का जायजा लेकर लौटे जिलाधिकारी डॉ. आदर्श कुमार ने कहा कि जिले में काफी नुकसान हुआ है। कई खेतों में शत प्रतिशत नुकसान हुआ है। किसानों को तत्काल राहत के लिए जल्द रिपोर्ट बनाकर राहत आयुक्त महोदय को भेज दूंगा और वहां से राहत आते ही किसानों तक पहुंचाऊंगा।'

बारिश से गेहूं की फसल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है। तस्वीर उत्तर प्रदेश के सीतापुर की है।

मौसम के चलते हुई फसल बर्बादी के आंकड़े अभी तक राष्ट्रीय स्तर पर जारी नहीं हुए हैं। लेकिन 13-14 मार्च के पहले तक सबसे ज्यादा नुकसान राजस्थान में जताया जा रहा था। राजस्थान के कृषि विभाग के मुताबिक 4 लाख 53 हजार हेक्टेयर में फसल का नुकसान हुआ है।

राजस्थान में रहकर कृषि पत्रकारिता करने वाले वीरेंद्र सिंह परिहार गांव कनेक्शन को बताते हैं, "बारिश और ओलावृष्टि के चलते राज्य 19 जिलों में नुकसान हुआ है। ये नुकसान 5 से 90 फीसदी तक है लेकिन औसत मिलाकर देखें तो किसानों को मुताबिक इस बार कम से कम 30 फीसदी फसल उत्पादन कम हो जाएगा।'

अंग्रेजी वेबसाइट द पायनियर में 12 मार्च को छपी खबर के मुताबिक भारत मौसम विभाग (आईएमडी) ने अंदेशा जताया है कि बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि के चलते रबी के सीजन में फसलों का उत्पादन कम हो सकता है।

नंदू पांडे कहते हैं, "पूरे देश में कोरोना का शोर है, लेकिन हम किसानों के लिए इससे बड़ी कोई तबाही नहीं है। किसान की कमर टूट गई है।"

भारत के किसानों के लिए ये लगातार दूसरा साल है जब मौसम ने उनको भारी नुकसान पहुंचाया है। यूपी के सूखा प्रभावित बुंदेलखंड में ललितपुर के बुजुर्ग किसान लालजी मौसम से बर्बादी की कहानी बताते बताते खेत में ही रोने लगते हैं। चने के खेत में बैठे लालजी कहते हैं, ये फसल भी गई आगे भगवान जाने क्या होगा?'

बुंदेलखंड में दहलनी फसलों को बहुत नुकसान पहुंचा है।

लालजी के आंसू बुंदेलडखंड और दूसरे किसानों की त्रासदी को बयां करते हैं। ललितपुर में ही सेमरा गांव के किसान अरविंद कुमार निरंजन कहते हैं, "चना मसूर, सरसों कुछ नहीं बचा। बरसात के सीजन में उड़द की फसल खत्म हो गई थी, अब दलहनी फसलें चौपट हो गईं।"

सितंबर-अक्टूबर 2019 में अतिवृष्टि के चलते बुंदलेखड रीजन में उड़द की फसल बर्बाद हो गई थी, जिसके चलते ललितपुर बांदा समेत बुंदेलखंड के कई जिलों में कई किसानों ने आत्महत्या कर लगी थी। किसानों के घर दीवाली के दिए नहीं चले थे और गर्मियों में होने वाला पलायन अक्टूबर में ही शुरु हो गया। (गांव कनेक्शन ने इस मुद्दे पर लगातार ख़बरें की थीं)।

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उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश को मिलाकर बनने वाला बुंदलेखंड, महाराष्ट्र में लातूर और उस्मानाबाद, कर्नाटक में कलबुर्गी, बिहार के मोकामा बेल्ट में बड़े पैमाने पर दलहनी फसलों की खेती होती है, लेकिन साल 2019 और 2020 की बारिश से भारत के दाल मिशन को झटका लग सकता है। भारत में साल 2018-29 में करीब 23.40 मिलिटन टन दलहन का उत्पादन हुआ था, जबकि हमारी राष्ट्रीय खपत 26-27 मिलिटन टन है। केंद्र सरकार ने इस साल 26.30 मिलियन टन का लक्ष्य रखा था, लेकिन मौसम का बदलाव उसे झटका दे सकता है।

मध्य प्रदेश में भी 13 मार्च को बारिश और ओलावृष्टि हुई। सिवनी के युवा किसान शिवम बघेल कहते हैं, "चना और तेवड़ा (दलहनी फसल) की कटाई चल रही थी, जिनकी फसल घर आ गई वह तो बच गई, बाकी किसानों की शायद ही बची हो। दो बार में करीब 20 मिनट तक ओलावृष्टि हुई है।" सिवनी के साथ ही मध्य प्रदेश में छिंदवाड़ा जिले के चौराई में भी फसलों को काफी नुकसान पहुंचा है।

रिपोर्ट- अरविंद शुक्ला, मिथिलेश धर, मोहित शुक्ला, अरविंद परमार, वीरेंद्र सिंह, दीपक सिंह, भीम कुमार

अतिरिक्त सहयोग- मोहम्मद शानू

    

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