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कोरोना में मुरझा गया फूलों का कारोबार, “भैया इसे बेच देहा, जवन पैसा मिली तू रख लेहा”, देखिए वीडियो

ये लगातार दूसरा साल है जब फूल के कारोबार से जुड़े किसान, कारोबारी से लेकर माली तक सबके चेहरे मुरझाए हुए हैं। मंदिरों और घाटों के शहर वाराणसी में हजारों लोगों की कमाई फूलों से चलती थी, लेकिन आजकल मुश्किल से 2 वक्त की रोटी का इंतजाम हो पा रहा।
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वाराणसी (उत्तर प्रदेश)। “भैया इसे बेच देहा, जवन पैसा मिली तू रख लेहा। अब हम मंडी से जात हई। सुबेरे से बइठल-बइठल थक गइली, लेकिन माला न बिचल।”

वाराणसी की फूल मंडी में एक दुकानदार ने अपने पड़ोसी दुकानदार से भोजपुरी में जो कहा उसका आशय है, “ये माला आप बेच दीजिएगा और जो पैसा मिले वो रख लीजिएगा, हम मंडी से जा रहे हैं। सुबह से बैठे-बैठे थक गए लेकिन माला नहीं बिकीं।”

गुड़हल के फूलों की माला देना वाला इतना मायूस था कि उसने रिपोर्टर को अपना नाम नहीं बताया और मुड़कर चला गया। लेकिन पड़ोसी दुकानदार बबलू उनके उनकी, अपनी और अपने जैसे तमाम मालियों की परेशानी की वजह बताते हैं, “कोरोना के चलते हालात इतने खराब हो गए हैं कि आदमी बिना खाए (भुखमरी) में मर जाएगा। बाजार में माला-फूल की लागत ही नहीं निकल पा रही है तो कमाई की बात ही दूर है। कोरोना के अलावा इधर बरसात होने से कारोबार और प्रभावित हो गया है। बारिश के बाद जिन फूलों पर पानी का दाग लगा है, उनकी बिक्री नहीं होती।”

कोरोना महामारी के चलते पूरे देश में फूलों के कारोबार की कमर टूट गई है। ये लगातार दूसरा साल है जब शादी ब्याह के सीजन सहालग (मार्च-मई तक) में फूल की मांग न के बराबर रही है, यहां तक कि कोरोना के संक्रमण के चलते पूरे देश में मंदिर और धार्मिक कामकाज पूरी तरह ठप रहे, जिसके चलते फूलों की खेती करने वाले किसान, कारोबारी और माली सब परेशान हैं। कई शहर ऐसे भी हैं जहां की एक बड़ी आबादी इससे सीधे जुड़ी थी उनकी आजीविका बंद हो गई है। बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी यानि वाराणसी उन्हीं में एक है।

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वाराणसी की फूल मंडी में ग्राहकों का इंतजार करते माली। फोटो- आनंद कुमार

मंदिरों और घाटों के शहर वाराणसी के माली-व्यापारी सब परेशान

मंदिरों,घाटों और गलियों के शहर वाराणसी में हजारों मंदिर हैं। कुछ इलाकों में हर घर में मंदिर हैं। इन मंदियों और घाटों पर रोजाना लाखों रुपए की फूलों की खपत होती थी लेकिन अब सब लगभग बंद जैसा ही है।

“कोरोना कर्फ्यू के कारण मंदिर-मस्जिद लगभग बंद ही है। शादियां भी पाबंदियों के साथ हो रही हैं। दाल-रोटी तक के लिए भी कमाई नहीं हो पा रही है। किसान फूल मंडी में माला-फूल बेचने वाली सुदामा देवी गांव कनेक्शन से अपना दर्द बताती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संसदीय सीट की निवासी सुदामा देवी (46 वर्ष) आगे कहती हैं, “कोई सरकार हम लोगों का ध्यान नहीं दे रही है।”

वाराणसी में स्थित पूर्वांचल की सबसे बड़ी किसान फूल मंडी में फूलों का कारोबार मुरझा गया है। फूलों की मांग घट जाने के कारण फूल भारी मात्रा में खराब हो जा रहे हैं और उसे कचरे में ही फेंकना पड़ रहा है।

किसान मंडी के संचालक विशाल दुबे गांव कनेक्शन को बताते हैं, “जनवरी 2020 में 20-25 लाख रुपए का कारोबार होता था लेकिन अब कोरोना महामारी के चलते 7-8 लाख रुपए का ही काम हो पा रहा है।”

वो आगे कहते हैं, “मंदिर लगभग बंद हो जाने की वजह से हमारे यहां के छोटे व्यापारी पूरी तरह बेरोजगार हो गए हैं। कुछ देर के लिए मंदिर खुलते भी हैं तो काफी कम लोग दर्शन करने जा रहे हैं तो इस कारण मंदिरों के बाहर बैठे माली की कोई कमाई नहीं हो पा रही है। उनके लिए लागत निकलना मुश्किल हो गया है।”

किसान फूल मंडी वाराणसी- फोटो आनंद कुमार

3000 मंदिरों वाले वाराणसी में हजारों लोग करते हैं फूलों का काम

एक ट्रैवल वेबसाइट के मुताबिक वाराणसी में लगभग 3000 मंदिर हैं। अकेले विश्वविख्यात काशी विश्वनाथ मंदिर में ही आम दिनों जितने फूल लगते थे, उतने अब सैकड़ों मंदिर का काम चल रहा रहा है। वाराणसी विकास प्राधिकरण के सचिव विशाल सिंह गांव कनेक्शन को बताते हैं, “काशी विश्वनाथ मंदिर में कोरोना से पहले रोज 210-280 कुंतल फूल लग जाता था और कोरोना के दौरान रोज 35-40 कुंतल फूल लग रहा है।”

मंदिरों और दूसरे कामकाजों, पर्व-त्योहारों में कोरोना के पहले और बाद का फूलों की खेती का खपत के अंतर का सबसे ज्यादा असर उन मजदूरों और मालियों पर पड़ा है जो किसानों से फूल खरीदकर माला बना बेचते थे।

32 वर्षीय लालू राजभर पिछले 10 साल से माला-फूल बेचते हैं। वह कच्चा रोजगार करते हैं। गेंदा फूल की माला दिखाते हुए वे बताते हैं, ” कोरोना के कारण माला-फूल का कारोबार करीब 80 प्रतिशत नुकसान में चल रहा है। पहले ही हम कोरोना कर्फ्यू की मार झेल रहे थे, अब बारिश के चलते और कारोबार पर प्रभाव पड़ा है।”

वे आगे बताते हैं, “पहली बार फूल के कारोबार पर इतना बुरा असर पड़ा है। बहुत मुश्किल से घर में दो वक्त की रोटी का इंतजाम हो पाता है। घर पर तीन लड़की और एक लड़का है, उनकी पढ़ाई-लिखाई का खर्चा निकालना मुश्किल हो गया है, दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना ही हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई है।”

माला-फूल की बिक्री नहीं होने का कारण पूछने पर लालू गांव कनेक्शन को बताते हैं, “अभी भगवान के मंदिर का दरवाजा लगभग बंद है, कई जगहों पर मंदिर खुल रहे हैं तो ज्यादा समय के लिए नहीं खुल रहे हैं और पहले की तरह दर्शनार्थी भी नहीं आ रहे हैं। वहीं, इन दिनों अच्छी लगन (शादी मुहूर्त) होने के बावजूद भी कोरोना कर्फ्यू के चलते शादियों में पहले जैसी फूलों की मांग नहीं आ रही है। शनिवार और रविवार को साप्ताहिक कर्फ्यू के चलते भी मंडी बंद रहती है। ऐसे में कमाई कहां हो पा रही है।”

लालू राजभर इन दिनों मुश्किल से 300-400 रुपए तक की कमाई कर पा रहे हैं। जबकि सामान्य दिनों और सहालग के दौरान 800 तक की भी कमाई हो जाती थी।

पूर्वांचल की सबसे बड़ी फूल मंडी है वाराणसी

वाराणसी की किसान फूल मंडी में गोरखपुर, देवरिया, मऊ, गाजीपुर, जौनपुर, आजमगढ़ समेत पूरे पूर्वांचल के व्यापारी माला-फूल खरीदने के लिए आते हैं। यहां तक की कई बार गेंदे के फूल कोलकाता तक से मंगाए जाते थे।

“सब्जी मंडियां खुल रही थी लेकिन फूल मंडी बंद थी”

किसान फूल मंडी के संचालक विशाल दुबे (37 वर्ष) ने गांव कनेक्शन को बताया, “कोरोना कर्फ्यू के बाद से ही फूल कारोबार की स्थिति बहुत दयनीय हो गई है। फूल किसानों को तो समझ नहीं आ रहा है कि वे माला-फूल लेकर कहां जाए, क्योंकि प्रशासन ने फूल मंडी को छोड़कर बाकी सभी मंडियों को कोरोना कर्फ्यू में छूट दे रखी थी। क्या सिर्फ सब्जी बेचने वाले ही किसान है? फूल बेचने वाले किसान नहीं है? लेकिन इनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। वे लाठी-डंडा खाकर चोरी-छिपे फूल बेचने को मजबूर थे। वे इतने तकलीफ में आ चुके थे कि उनकी समस्याओं को देखते हुए हमने जिला प्रशासन के सहयोग से मंडी खुलवाना पड़ा।”

वो आगे बताते हैं, “अब धीरे-धीरे स्थितियों में सुधार आने लगा है मगर इस लगन में कारोबार के फलने फूलने को लेकर जितना लोगों ने उम्मीद किया था उसका आधा भी पूरा नहीं हुआ।”

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार साल 2019-20 में 323 हजार हेक्टेयर में संगंध और औषधीय फूलों की खेती हुई थी और 3000 हजार मीट्रिक टन उत्पादन हुआ था जबकि साल 2020-21 के प्रथम अग्रिम अनुमान के मुताबिक रबका घटकर 318 रह गया और 2793 हजार मीट्रिक टन उत्पादन होने का अनुमान था।

फूल कारोबार तौल और संख्या दोनों में होता है। विशाल दुबे ने कहा, प्रमुख फूलों में आजकल रोजोना 20 से 25 हजार गेंदा, 15-20 हजार रजनीगंधा, 25-30 हजार बेला के फूल, 4 कुंतल गुलाब आ आते हैं। पहले की अपेक्षा मुश्किल से 25 फीसदी व्यापारी माल खरीदने आते हैं।

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मंदिर के बंद कपाट, कोरोना में धार्मिक स्थल कोविड प्रोटोकॉल के साथ ही खोले जा रहे थे। 

लोग मंदिरों के बाहर से ही दंड़वत कर निकल जाते हैं

वाराणसी के ही दुर्गाकुण्ड स्थित दुर्गा मंदिर के बाहर माला-फूल बेचने वाले मोनू कुमार (28 वर्ष) गांव कनेक्शन को बताते हैं, “जब दर्शनार्थी आ ही नहीं रहे हैं तो कहां से माला-फूल बिकेगा? ज्यादातर लोग मंदिर के बाहर से ही दंडवत करके निकल जा रहे हैं। मंदिर के अंदर कुछ ही भक्त जा रहे हैं तो वे ही माला-फूल खरीदते हैं।”

मोनू पिछले 5 साल से मंदिर के बाहर माला-फूल बेच रहे हैं। वो आगे बताते हैं कि सुबह से सिर्फ 100 रुपये का माला-फूल बिक पाया है।

2021 से पहले 2020 में भी लंबे लॉकडाउन के चलते फूलों के कारोबार से जुड़े लोगों की आजीविका प्रभावित हुई थी, किसी तरह गाड़ी पटरी लौटने लगी थी दो कोरोना कर्फ्यू (सीमित लॉकडाउन) लग गया। कमाई का जरिया न होने के कई लोग कर्जदार हो गए हैं।

कर्ज़ लेने को मजबूर हुए कई माली

वाराणसी के सारनाथ में रहने वाली लीलावती राजभर (72 वर्ष) फूल की किसान भी हैं और थोक कारोबारी भी। उनका लगभग पूरा जीवन फूलों के काम के साथ बीता है। अब उनके चार बेटे भी इसी काम हैं लेकिन गल्ला (पैसों का लेनेदन) वहीं संभालती हैं। वो बताती हैं, ” पिछले साल मई महीने में 5 लाख के फूल मंगवाए थे, लेकिन उनकी बिक्री से सिर्फ 3 लाख रुपए मिले थे, 2 लाख रुपए का घाटा हो गया था। इसके बाद स्थिति खराब होती चली गई।”

किसान मंडी में रजनीगंधा, जरबेरा आदि फूलों को दिखाते हुए लीलावती कहती हैं, “आप खुद देख लीजिए। ये सभी फूल सुबह से ही इसी तरह पड़े हैं, अभी तक कोई खरीददार नहीं मिला है।” लीलावती के मुताबिक पिछले साल उन्हें फूल के काम में पहले इतना घाटा हुआ फिर काम पूरी तरह बंद हो गया तो परिवार चलाने के लिए कर्ज लेना पड़ा था। साथ ही उन्हें घर चलाने के लिए दूसरों के घरों में बर्तन तक मांजने पड़े थे।

दुर्गाकुंड स्थित दुर्गा मंदिर के बाहर फूल बेचने वाले दुलारा चौहान (46वर्ष) उन्हें घर चलाने के लिए कर्ज़ लेना पड़ा है। वो गुस्से में कहते हैं, “कर्जा पर कर्जा चढ़ा जा रहा है, लेकिन कमाई नहीं हो पा रही है। सुबह से अभी तक एक भी माला-फूल की बिक्री नहीं हो पाई है। अब आप ही बताइए कि कहां से कमाएंगे और कैसे खाएंगे?”

इतना ही नहीं फूल का जो कारोबार हो रहा है उसके भी रेट आधे से कम हो गए हैं। सारनाथ के माली कन्हैया लाल (70) रजनीगंधा के फूल से बनी माला दिखाते हुए कहते हैं, “इन दिनों यह माला 50 से 100 रुपये में बेचने को मजबूर है। पहले 200 से 300 रुपये तक प्रति माला की बिक्री हो जाती थी। दिनभर में मुश्किल से 200 से 250 रुपये तक की कमाई हो पा रही है।”

मंदिर के अलावा फूलों का मुख्य कारोबार शादी बारात, चुनाव आदि के दौरान होता है। लेकिन कोविड संक्रमण के चलते इऩकी संख्या काफी कम हो गई है। जो शादियों हो रही हैं वहां 25-30 लोग बुलाए जा रहे। सादे और सामान्य समारोह होने के चलते फूलों की खपत भी न के बराबर है।

अच्छी लगन होने के बावजूद भी माला-फूल की बिक्री नहीं होने का क्या कारण है? इस सवाल के जवाब में मंडी संचालक विशाल दुबे बताते हैं, “कोरोना कर्फ्यू में ट्रांसपोर्टेशन से संबंधित पाबंदियों के चलते अन्य प्रदेशों और आस-पास जिलों के व्यापारी फूल मंडी में नहीं आ पाएं।”

फूलों से बुके बनाकर बेचने वाले जुनैद (26) बताते हैं, “फूल कारोबार पर कोरोना कर्फ्यू की मार ऐसी पड़ी है कि लागत तक निकल पा रहा है। कमाई के बारे में क्या ही बताए। दिनभर में 2-4 बुके की बिक्री हो जा रही है। हर शाम को बचे हुए बुके को फेंकना पड़ता है।”

गांव कनेक्शन ने कोरोनाश और कोरोना फ्रुट प्रिंट सीरीज में पिछले साल बताया था फूल कारोबार का हाल 

गांव कनेक्शन ने पिछले साल अपनी सीरीज ‘कोरोनाश’ और कोरोना फ्रुटप्रिंट में बताया था कि कैसे फरवरी-मार्च में फूलों के कारोबार पर असर पड़ा और कई राज्यों में किसानों को अपनी फसल खेती में ही जोतनी पड़ गई थी।

मध्य प्रदेश में सतना जिले में बगहा वार्ड नंबर एक निवासी नीरज त्रिपाठी ने तीन एकड़ में कोलकाता से पौध मंगवाकर गुलदावदी (सेवंती) लगाई थी, उन्हें सादियों के सीजन से अच्छी कमाई की उम्मीद थी लेकिन भारी नुकसान हो गया। वो बताते हैं, ” मैं तो बर्बाद हो गया हूं, मैंने पहले नवंबर में पौधे लगाए थे, जिसमें जनवरी में फूल आए थे। जनवरी, फरवरी, मार्च में इस बार शादियां ही नहीं थीं, तो मेरा जो फूल 250 रुपये किलो में बिकता था वो कुछ 40 रुपये किलो में बिका और कुछ खेत में ही खराब हो गया। फिर कोरोना आ गया।”

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