दिल्ली की हवा खराब होते ही जारी होनी चाहिए थी चेतावनी 

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दिल्ली की हवा खराब होते ही जारी होनी चाहिए थी चेतावनी दिल्ली में वायु प्रदूषण का एक दृश्य।

दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए वर्ष 2016 में तैयार किया गया आपातकालीन वायु गुणवत्ता वाली चेतावनी प्रणाली का एकमात्र उद्देश्य विफल हो गया है। वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर का नागरिकों को चेतावनी देने में यह तंत्र सफल नहीं हो पाया। पिछले एक महीने से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के निवासियों को हर दिन एक चेतावनी मिलनी चाहिए थी कि वायु गुणवत्ता स्वीकार्य स्तर से बदतर है।

पिछले आठ दिनों से 16 अक्टूबर, 2017 तक दिल्ली की वायु गुणवत्ता बद्तर रही। दिल्ली की वायु गुणवत्ता विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा निर्धारित सुरक्षित सीमा से 10-12 गुना ऊपर दर्ज की गई है। यहां हम यह बताते चलें कि सरकार ने अपनी योजना पर ध्यान नहीं दिया, जिसमें हवा को स्वच्छ बनाना भी शामिल था। इसके अलावा, अधिकारियों को थर्मल पावर प्लांटों पर प्रदूषण नियंत्रणों को लागू करना, सड़कों पर धूल को रोकने के लिए पानी का छिड़काव करना और ट्रैफिक जाम को रोकना था।

पिछले एक महीने में, दिल्ली के निवासियों को हर दिन एक चेतावनी प्राप्त होनी चाहिए थी, जिससे उन्हें वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) रीडिंग के खतरे की ओर बढ़ते स्तरों की चेतावनी मिलनी चाहिए थी। 8 अक्टूबर, 2017 के बाद से, वायु गुणवत्ता स्तर ‘खराब’ स्तर को आठ बार पार कर चुका है, ‘बहुत खराब से गंभीर’ स्तर तक 21 बार पार हुआ है जबकि ‘आपातकाल’ स्तर तक एक बार गया है, जैसा कि सरकार की अपनी चेतावनी प्रणाली, ‘ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान’ (ग्रैप) के आंकड़ों से पता चलता है।

स्वतंत्र शोधकर्ता ऐश्वर्य मदिननी, जिन्होंने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक्यूआई रीडिंग्स का विश्लेषण किया कहते हैं, “सरकार ने कार्रवाई के दिशा-निर्देशों के अनुसार, ग्रैप को लागू करने और व्यवस्थित रूप से स्वास्थ्य सलाह जारी करने के लिए पर्याप्त समय दिया है। हालांकि, जन जागरूकता पैदा करने और नागरिकों को उनके स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए सतर्क करने का प्रयास केवल आपातकालीन स्थिति तक पहुंचने के बाद ही हुआ।

योजना लागू करने के लिए तैयार, मगर ऐसा हो नहीं पाया

वर्ष 2016 में जब पिछले 17 वर्षों में दिल्ली ने सबसे बद्तर काले-धुंएं का सामना किया, सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के तहत सीपीसीबी ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को, विशेष रूप से सर्दियों में, वायु प्रदूषण संकट को हल करने के लिए, ग्रैप प्रस्तुत किया है।

हालांकि, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 12 जनवरी, 2017 को ग्रैप को मंजूरी दी थी, योजना 10 महीने बाद, 18 अक्टूबर 2017 को नोडल पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण से अनुमोदन प्राप्त हुआ।

सीपीसीबी वायु-गुणवत्ता मॉनिटर द्वारा उत्पन्न राष्ट्रीय वायु-गुणवत्ता सूचकांक (एएयूआई) रीडिंग के आधार परगैप सिस्टम प्रदूषण के स्तर को “अच्छा” (एक्यूआई 0 से 50), “संतोषजनक” (50 से 100), “मध्यम” (100 से 200), “खराब” (200 से 300), “बहुत खराब” (300 से 400) और “गंभीर” (400 से 500) में वर्गीकृत किया है। प्रदूषण के प्रत्येक स्तर में वृद्धि को रोकने के लिए प्रतिबंध शामिल हैं। यह इस तरह से काम करने वाला है

500 से अधिक एक्यूआई रीडिंग को ‘आपात’ स्थिति माना जाता है और ऐसी स्थिति में बाहरी गतिविधियां बंद की जाती हैं। ये उपाय अधिकारियों के लिए नए नहीं हैं।कानपुर आईआईटी द्वारा ये सिफारिश किए गए थे और रिपोर्ट जनवरी 2016 में दिल्ली सरकार को प्रस्तुत किया गया था, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 10 नवंबर, 2016 की रिपोर्ट में बताया है।

कहां चूक गई सरकार ?

अक्टूबर 2017 के पहले सप्ताह में दिल्ली में वायु की गुणवत्ता ‘मध्यम’ से ‘खराब’ की ओर जाने लगी और यह और बद्तर होती गई।

ट्रैफिक को रोकने के अलावा, बिजली संयंत्रों पर प्रदूषण मानकों को लागू करने और धूल को रोकने के लिए पानी छिड़कने के अलावा, सरकार को सोशल मीडिया और मोबाइल एप्लिकेशन का उपयोग करके नागरिकों को भी प्रदूषण स्तरों की जानकारी देनी चाहिए।

दिवाली की शुरुआत के साथ वायु की गुणवत्ता और बद्तर हो गई। 17 अक्टूबर से 6 नवंबर, 2017 तक, क्षेत्र ने ‘बहुत खराब’ वायु गुणवत्ता दर्ज की, जो डब्लूएचओ सीमा से 12-15 गुना अधिक है, जैसा हमने पहले कहा है।

दिवाली के दिन 20 अक्टूबर, 2017 को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सीपीसीबी मॉनिटर ने 403 के एक्यूआई रीडींग के साथ प्रदूषण का ‘गंभीर’ स्तर दर्ज किया है, जो डब्ल्यूएचओ द्वारा तय सीमा से 16 गुना ऊपर है, जो सर्वोच्च न्यायलय द्वारा पटाखों पर प्रतिबंध के खराब कार्यान्वय का संकेत देते हैं।

पिछले तीन हफ्तों में, अपनी योजना के मुताबिक सरकारी अधिकारियों को कमजोर लोगों, बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों के लिए स्वास्थ्य संबंधी चेतावनी जारी करनी थी। डीजल से चलने वाले जनरेटर के उपयोग पर प्रतिबंध लगाना था। पार्किंग की फीस में वृद्धि, सार्वजनिक परिवहन सेवाओं में वृद्धि और लकड़ी और कोयले के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाना चाहिए था।

विभिन्न एजेंसियों का साथ के बाद ही ग्रैप हो सकता है सफल

सफल होने के लिए, ग्रैप के अधिकांश घटकों को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) और पड़ोसी राज्यों में फैले विभिन्न एजेंसियों और निकायों से ठोस और समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है।

मदिनेनी कहते हैं कि “हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश तक कार्रवाई के विस्तार के साथ जारी किए जाने वाले प्रत्येक श्रेणी के अलर्ट के तहत ग्रैप के उपायों का एक महत्वाकांक्षी सेट है। फिर भी, प्रणाली एनसीआर राज्यों में फसल की आग के मामले को हल करने के लिए एक उपयुक्त निवारण योजना का उल्लेख नहीं करती है, जिसके लिए साक्ष्य स्पष्ट रूप से प्रदूषण के स्तरों में 25 फीसदी की वृद्धि दर्शाता है। दिवाली के लिए आतिशबाजी पर प्रतिबंध को कम या पूरी तरह से न लागू कर पाना भी एक ढकोसले की तरह लगा, जिससे आज हम आपातकालीन स्थिति में पहुंचे हैं। “

    

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