कोरोना से बचाव: किन राज्यों में हुए ज्यादा जागरुकता कार्यक्रम, कौन से राज्य रह गए फिसड्डी?

ग्रामीण भारत में कोविड-19 की रोकथाम के लिए सरकार की तरफ से कितने प्रतिशत जागरुकता कार्यक्रम हुए? इस सवाल का जवाब जानने के लिए देश के सबसे बड़े ग्रामीण मीडिया हाउस गांव कनेक्शन की सर्वे विंग "गांव कनेक्शन इनसाइट्स" ने एक सर्वे किया गया। पढ़िए इस सवाल के जवाब में ग्रामीणों ने क्या कहा?

Neetu SinghNeetu Singh   26 Dec 2020 5:09 PM GMT

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कोरोना से बचाव: किन राज्यों में हुए ज्यादा जागरुकता कार्यक्रम, कौन से राज्य रह गए फिसड्डी?

कोरोना महामारी की चपेट में लगभग एक साल से भारत समेत कई देश शामिल हैं। दुनियाभर में इस महामारी से अब तक 78.7 मिलियन लोग संक्रमित हुए हैं। विश्व भर में कोरोना के चलते अब तक 17 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।

इस महामारी से बचाव के लिए कितने प्रतिशत गांवों में सरकार की तरफ से जागरुकता कार्यक्रम हुए? क्या ग्रामीण भारत को जागरुक किया गया? किन राज्यों में सबसे ज्यादा जागरुकता कार्यक्रम हुए? कोरोना प्रसार वाले क्षेत्रों में जागरुकता की क्या स्थिति रही? कहाँ सबसे कम प्रयास किये गये?

इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए देश के सबसे बड़े ग्रामीण मीडिया हाउस गांव कनेक्शन की सर्वे विंग "गांव कनेक्शन इनसाइट्स" ने देश के 16 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के 60 जिलों के 6040 परिवारों के बीच एक दिसंबर से 10 दिसंबर के बीच फेस टू फेस एक सर्वे किया। सर्वे में पूछा गया कि कोरोना को नियंत्रित करने के लिए क्या आपके गांव में सजगता बरतने या बचाव के लिए कोई जागरुकता कार्यक्रम आयोजित किया गया?

इस सवाल के जवाब में ग्रामीण भारत के आधे से अधिक (58 फीसदी से ज्यादा) लोगों ने कहा कि हां, उनके गांव में जागरुकता कार्यक्रम हुए।


सवाल : कोरोना से बचने के लिए क्या आपके गाँव में कोई जागरुकता कार्यक्रम आयोजित किया गया?

जवाब : हां : 58.4%

नहीं : 30.2%

पता नहीं : 11.5%

मध्य प्रदेश के भोपाल जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर बरखेड़ी अब्दुल्ला ग्राम पंचायत की सरपंच भक्ति शर्मा गाँव कनेक्शन को फोन पर बताती हैं, "जैसे ही पता चला कि कोरोना का कम्युनिटी स्प्रेड हो सकता वैसे ही गांवों में लोगों को जागरुक करना शुरु कर दिया। लोगों को साफ़-सफाई, बार-बार हाथ धुलने की आदत, मास्क बांधना, जरुरत पर ही बाहर निकलना और सोशल डिस्टेंसिंग के फायदे बताने शुरु कर दिए।"

भक्ति शर्मा आगे कहती हैं, "यही वजह है कि गाँव में बड़ी संख्या में लोग वायरस की चपेट में आने से बच गये। जब शहर से मजदूर लौट रहे थे तभी मध्य प्रदेश की सभी ग्राम पंचायतों को सरकार की तरफ से पैसा ट्रान्सफर कर दिया गया। ये पैसे गांव में साफ़-सफाई, शहर से लौट रहे मजदूरों के लिए पंचायत में रहने और खाने की व्यवस्था, मास्क बांटने जैसे कई खर्चों के लिए दिए गये। इस वजह से भी कम्युनिटी स्प्रेड गांवों में काफी हद तक रुका।"

गांव कनेक्शन ने इस सर्वे में देश की विविधता को ध्यान में रखते हुए सभी जाति, धर्म, लिंग, आय-वर्ग, समुदाय और क्षेत्र के लोगों को शामिल किया है। सर्वे में राज्यों का चयन केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के कोविड-19 से संबंधित आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए किया गया।

गाँव कनेक्शन के इस सर्वे में देश के उत्तरी राज्यों के अंतर्गत उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, जम्मू और कश्मीर और हरियाणा को शामिल किया गया है। वहीं दक्षिणी राज्यों में केरल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक शामिल है। पश्चिमी राज्यों में महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश व पूर्वी व उत्तर-पूर्वी राज्यों के अंतर्गत ओडिशा, असम, पश्चिम बंगाल और अरुणाचल प्रदेश को शामिल किया गया है।


देशभर में ग्राम पंचायतों पर काम कर रहे तीसरी सरकार के संस्थापक डॉ चंद्रशेखर प्राण बताते हैं, "मुझे लगता है कोरोना से बचाव के लिए जागरुकता में तो कहीं कोई कमी नहीं रखी गयी। ये कह पाना मुश्किल होगा कि जागरुकता कार्यक्रम सिर्फ सरकार की तरफ से किये गये। क्योंकि कोरोना से रोकथाम के लिए लोगों ने अपने स्तर भी बहुत प्रयास किये। इस पहल में कई गैर सरकारी संगठन, महिला संगठन और युवा मंडल सब आगे आये।"

मूलरूप से यूपी के प्रतापगढ़ जिले के रहने वाले डॉ चंद्रशेखर प्राण आगे कहते हैं, "कोरोना को लेकर हुए जागरूकता अभियान में आपको राज्यवार भिन्नता मिलेगी। उत्तर भारत में ये आंकड़े कम देखने को मिलेगे जबकि पूर्वी और दक्षिणी राज्यों में ये प्रतिशत ज्यादा होगा।"

उत्तर-पूर्वी राज्यों के 1421 लोगों में से 61.9 फीसदी (880) ने कहा कि उनके गाँव में कोविड से बचाव के लिए जागरुकता कार्यक्रम हुए। पश्चिमी राज्यों में 1186 में से 69.7 फीसदी (827), दक्षिणी राज्यों में 1216 में से 62 फीसदी (754) और उत्तरी राज्यों के 2217 में से 48 फीसदी (1065) लोगों ने कहा कि उनके गाँव में कोविड-19 की रोकथाम के लिए जागरुकता कार्यक्रम किये गये।


परमजीत कौर मान कहती हैं, "पंजाब की बात करें तो सरकार ने इसे गम्भीरता से नहीं लिया। लेकिन टीबी पर, अखवार में लोगों की बातें सुन-सुनकर लोग खुद से ही बहुत जागरुक हुए। 'दो गज दूरी, मास्क बहुत जरुरी' ये तो लोगों की जुबान पर रट गया है।"

परमजीत कौर आशा वर्कर फैसिलेटर यूनियन पंजाब की महासचिव हैं। इस संगठन में 18,000 आशा कार्यकर्ता सदस्य हैं।

परमजीत कौर आगे कहती हैं, "जब सरकार ने कोरोना महामारी से बचाव के लिए आशा वर्कर्स को ही सेनेटाइजर और मास्क नहीं दिए गये तो फिर गांव की तो बात ही छोड़िए। बहुत सारे एनजीओ (गैर सरकारी संगठन) आगे आये। आशा कार्यकर्ता, स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने भी लोगों को खूब जागरुक करने का काम किया। अपने-अपने स्तर सभी ने सावधानियां बरतीं लेकिन इसमें सरकार का कोई ख़ास योगदान नहीं रहा।"

गाँव कनेक्शन सर्वे में कोरोना से सबसे कम प्रभावित से लेकर सबसे अधिक प्रभावित राज्य पूर्व से लेकर पश्चिम और उत्तर से लेकर दक्षिण तक शामिल रहे। कोरोना से सबसे अधिक प्राभावित क्षेत्र में 1807 में से 64.6 % (1168) लोगों ने कहा कि उनके गांव में कोविड-19 से बचाव के लिए जागरुकता कार्यक्रम हुए जबकि मध्यम प्रसार दर वाले क्षेत्र में 2018 में से 66.7 फीसदी (1345) और सबसे कम प्राभावित क्षेत्र में 2215 में से 45.7 फीसदी (1013) लोगों ने जागरुकता कार्यक्रम होने की बात को स्वीकार किया।


डॉ चन्द्रशेखर प्राण कहते हैं, "लोग एक दूसरे की बातें सुन-सुनकर भी बहुत सजग हुए। आशा बहुओं ने गांवों में सबसे ज्यादा जागरुकता फैलाने का काम किया। उन्होंने घर-घर जाकर बताया कि बार-बार साबुन से हाथ धुलें, सब्जियां गर्म पानी से धुलें, बाहर का खाना कम से कम खाएं। इस कोरोना की वजह से पहली बार ग्राम पंचायतों में इतनी साफ़-सफाई और जागरुकता देखने को मिली। कुछ राज्यों में तो साफ़-सफाई एवं स्वच्छता के लिए बजट भी दिए गये पर कुछ राज्यों में बजट नहीं था।"

सर्वे में एक सवाल यह भी पूछा गया था कि खुद के और परिवार के बचाव के लिए आपने किन-किन बातों को फॉलो किया? इसके जवाब में 67.2 % लोगों ने कहा कि उन्होंने बाहर जाते वक़्त हर समय मास्क लगाये रखा। 41.8 % लोगों ने कहा कि उन्होंने किसी भी वस्तु को छूते वक़्त अगर उन्हें कोविड-19 के संक्रमण होने की संभावना लगी तो उसके बचाव के लिए उन्होंने हर बार साबुन से हाथ धुले या सेनेटाइज किये।

सर्वे में मार्जिन ऑफ एरर की संभावना 5 फीसदी है। सर्वे में शामिल 41 फीसदी लोगों की मासिक आय 5,000 रुपए से भी कम है, वहीं 37 फीसदी लोग 5000 से 10,000 के बीच कमाई करने वाले हैं। प्रति माह एक लाख से ज्यादा कमाई करने वालों का प्रतिशत 0.1 फीसदी (दशमलव एक फीसदी) है। सर्वे में लोगों से कोरोना वैक्सीन की जररुत, उस पर भरोसा, कोरोना की गंभीरता, उनके आसपास के कोविड मरीज निकलने, उनके इलाज, खानपान, कोरोना से बचने के लिए आजमाए गए उपायों पर सवाल किए है। इस सर्वे के सभी नतीजों को आप "द रूरल रिपोर्ट 3 : कोविड-19 वैक्सीन एंड रूरल इंडिया" नाम से जारी किया है, जिसे आप www.ruraldata.in पर पढ़ सकते हैं।

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