लॉकडाउन के चलते भूखमरी के कगार पर पहुंची सेक्स वर्कर्स, आने वाले पांच-छह महीने तक इनकी मुश्किलें नहीं होंगी कम

समाज के आख़िरी कतार में खड़ी सेक्स वर्कर्स एक वो बड़ी आबादी है जो लॉक डाउन में सरकार की मदद की तमाम योजनाओं में शामिल नहीं है। इस पेशे से जुड़ी लाखों महिलाओं को रोजाना खाने की चिंता परेशान कर रही है। ये सेक्स वर्कर आने वाले दिनों में अपने धंधे को लेकर भी काफी चिंतित हैं।

Neetu SinghNeetu Singh   9 April 2020 2:09 PM GMT

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लॉकडाउन के चलते भूखमरी के कगार पर पहुंची सेक्स वर्कर्स, आने वाले पांच-छह महीने तक इनकी मुश्किलें नहीं होंगी कम

देशव्यापी लॉक डाउन के बाद हाशिए पर खड़ा सेक्स वर्कर्स का एक बड़ा तबका इन दिनों भुखमरी के कगार पर पहुंच गया है। लॉकडाउन के चलते इनके पास एक भी ग्राहक नहीं पहुंच पा रहे हैं। आमदनी न होने से इनके लिए अब एक-एक दिन काटना मुश्किल हो रहा है।

"हमारा पेशा ऐसा है जिसमें रोज कमाने रोज खाने वाली स्थिति होती है। घर में किसी को पता नहीं कि हम सेक्स वर्कर हैं। सबको लगता हैं हम कहीं ऑफिस में काम करने जाते हैं। सरकार की घोषणा के बाद अब तो घर में सबको ये लग रहा है कि हम काम पर नहीं जाएंगे तब भी हमें पैसा मिलेगा," राजस्थान के अजमेर जिले की एक सेक्स वर्कर नमिता (बदला हुआ नाम) ने अपनी आपबीती बताई।

"बच्चे रोज पूछते हैं मम्मी आपकी सैलरी कब आयेगी? क्या जवाब दूँ उन्हें कि तुम्हारी माँ एक सेक्स वर्कर है? मजबूरी थी इस पेशे में आना, नहीं तो बच्चों को क्या खिलाती? पति शराबी है उसे घर के खर्चों से कोई मतलब नहीं है", नमिता ने अपने धंधे में आने वाले दिनों को लेकर आशंका जताई, "इस वायरस का लोगों में बहुत दहशत है, मुझे नहीं लगता छह सात महीने तक कोई हमारे पास आएगा भी। हमें भी डर लगेगा कि जो व्यक्ति हमारे पास आया है पता नहीं वो कहां का है?"


नमिता देश की पहली महिला सेक्स वर्कर नहीं है जो इन दिनों रोजमर्रा के खर्चों के लिए परेशान है। नमिता की तरह इस पेशे से जुड़ी लाखों सेक्स वर्कर्स के लिए इन दिनों अपने परिवार की रोजी-रोटी चलाना मुश्किल हो गया है। ये सेक्स वर्कर आने वाले दिनों में अपने धंधे को लेकर भी काफी चिंतित हैं।

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में लगभग 30 लाख सेक्स वर्कर्स हैं जिनमें से नमिता एक हैं। ह्यूमन राइट्स वॉच की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग दो करोड़ सेक्स वर्कर हैं, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस धंधे से जुड़ी हैं।

"जल्दी ही ये लॉक डाउन नहीं खुला तो हमारा परिवार भुखमरी की कगार पर पहुंच जायेगा। सरकार ने रातोंरात लॉकडाउन कर दिया, हमें मौका की नहीं मिला कि हम आने वाले दिनों को लेकर तैयारी कर पाते," दिल्ली की एक सेक्स वर्कर ने अपनी आपबीती बताई।

समाज के आख़िरी कतार में खड़ी सेक्स वर्कर्स देश की एक वो बड़ी आबादी है जो लॉक डाउन में सरकार की मदद की तमाम योजनाओं में शामिल नहीं है। हजारों सेक्स वर्कर्स को सरकारी राशन इसलिए नहीं मिल पा रहा क्योंकि इनके पास राशनकार्ड ही नहीं है। इस पेशे से जुड़ी लाखों महिलाओं को अब रोजाना खाने की चिंता परेशान कर रही है। रेड-लाइट एरिया में कई सेक्स वर्कर एचआईवी पॉज़िटिव और टीबी की मरीज़ भी हैं। इनके लिए इन दिनों अस्पताल पहुंचना भी दूभर हो गया है।

कर्नाटक के कोलार जिला की रहने वाली एक सेक्स वर्कर ने बताया, "हम जिस एरिया में रहते हैं वहां 3,000 सेक्स वर्कर रहती हैं। यहाँ पर 80 फीसदी सेक्स वर्कर स्ट्रीट बेस्ड हैं, होम बेस्ड केवल 20 प्रतिशत ही हैं। लॉक डाउन में स्ट्रीट बेस्ड सेक्स वर्कर की जिंदगी तबाह हो गयी है। इस समय इनके लिए एक समय का खाना खाना भी मुश्किल हो गया है। सरकार इनपर कोई ध्यान नहीं दे रही है।"

देश में कुछ रेडलाईट एरिया हमेशा चर्चा में रहती हैं। एशिया का सबसे बड़ा रेडलाइट एरिया सोनागाछी (कोलकाता) को माना जाता है। यहां लगभग तीन लाख महिलाएं देह व्यापार से जुड़ी हैं। दूसरे नंबर पर मुंबई का कमाठीपुरा है,जहां दो लाख से अधिक सेक्स वर्कर हैं। दिल्ली का जीबी रोड, आगरा का कश्मीेरी मार्केट, ग्वालियर का रेशमपुरा, पुणे का बुधवर पेठ भी काफी चर्चित है।

छोटे शहरों की बात करें तो वाराणसी का मडुआडिया, मुजफ्फरपुर का चतुर्भुज स्थान,आंध्र प्रदेश के पेड्डापुरम व गुडिवडा, सहारनपुर का नक्काफसा बाजार इलाहाबाद का मीरागंज, नागपुर का गंगा जुमना और मेरठ का कबाड़ी बाज़ार भी इसी बात के लिए प्रसिद्ध है। पर लॉक डाउन की स्थिति में ये सभी एरिया बंद है।

यहाँ रहने वाली सेक्स वर्कर कुछ तो अपने शहरों को पलायन कर गयी हैं तो कुछ यहाँ की संकरी कोठरियों में कैद होकर रह गयी हैं। इन कोठरियों में इनके पास न तो साफ़-सफाई के पर्याप्त इंतजाम हैं और न ही राशन की व्यवस्था। कुछ स्वयं सेवी संस्थाएं इनकी मदद के लिए आगे आयी हैं पर वो सभी के लिए पर्याप्त नहीं है।

ऑल इंडिया नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर संगठन से जुड़ी दिल्ल्ली में रहने वाली कुसुम सेक्स वर्कर के हक और अधिकारों के लिए काम करती हैं। कुसुम बताती हैं, "इस लॉक डाउन से होम बेस्ड सेक्स वर्कर्स को बहुत दिक्कतें हैं। जीबी रोड में जो सेक्स वर्कर हैं उनके पास तो कुछ स्वयं सेवी संस्थाएं पहुंचकर मदद भी कर रही हैं पर इन सेक्स वर्कर के बारे में कोई नहीं जानता। होम बेस्ड सेक्स वर्कर की संख्या अनगिनत है। एक कालोनी की अगर हम बात करें तो लगभग 500 महिलाएं होम बेस्ड सेक्स वर्कर्स हैं।"

कुसुम के अनुसार सेक्स वर्कर का ये कारोबार तीन हिस्सों में बंटा है। पहला है- ब्रोथल वर्कर जैसे जीबी रोड, (चिन्हिंत जगह) दूसरा-होम बेस्ड जो महिलाएं घर में रहती हैं और अपने ग्राहक खुद तय करती हैं। तीसरा है स्ट्रीट बेस्ड और ब्रोकर ब्रेस्ड- जो दलालों के सहारे काम करती हैं। ऑल इंडिया नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर संगठन इन्हीं की आवाज़ उठाता है।

"हमारा संगठन जितने लोगों तक संभव हो पा रहा है राशन पहुंचा रहा है पर वो राशन भी कबतक चलेगा और कितने लोगों तक हम पहुंचाएंगे? अगर ये लॉक डाउन बढ़ा तो इनकी मुसीबतें और बढ़ जायेगीं। चिंता का विषय इस समय उन महिलाओं के लिए है जो किराए पर रहती हैं। कहां से वो किराया देंगी? कईयों का खर्चा तो इस समय कर्ज के पैसों से चल रहा है जो उन्होंने ब्याज पर लिया है," कुसुम ने सेक्स वर्कर्स की परेशानियां बताईं।

कुसुम जिस संगठन से जुड़ी हैं उस संगठन से देशभर की लगभग पांच लाख सेक्स वर्कर जुड़ी हैं। ऑल इंडिया नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर संगठन देश के 16 राज्यों में काम करता है। इस संगठन में विभिन्न राज्यों से 108 कम्यूनिटी बेस्ड संगठन जुड़े हैं।

इस संगठन की सयुंक्त सचिव सुल्ताना बेगम राजस्थान के अजमेर जिले में 580 रजिस्टर्ड सेक्स वर्कर के लिए आवाज़ उठाती हैं। ये गाँव कनेक्शन को फोन पर बताती हैं, "जितनी भी महिलाएं इस पेशे में हैं उनमें 60-70 फीसदी लोगों के परिवारों में पता ही नहीं है कि वो सेक्स वर्कर हैं। ऐसे में उनके परिवारों को लगता है कि वो जहाँ काम करती हैं उन्हें वहां से पैसा तो मिलेगा ही। इस समय ये सेक्स मानसिक तनाव से जूझ रही हैं क्योंकि इनके पास परिवार का खर्चा चलाने के लिए कोई दूसरा उपाय नहीं है।"

"जो लोग जानते हैं कि ये सेक्स वर्कर हैं वो लोग इन्हें बहुत अमीर समझते हैं पर इनकी तकलीफ यही समझ सकती हैं। ऐसे में रेगुलर क्लाइंट भी इन्हें एडवांस में पैसे नहीं दे रहे हैं। इनके काम को कभी काम का दर्जा मिला ही नहीं, तभी तो आज इन्हें सरकार की किसी योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है। सरकार से हमारा निवेदन है जल्दी ही इन सेक्स वर्कर की मदद करिए नहीं तो इनका परिवार भूखों मर जाएगा, " सुल्ताना ने सेक्स वर्कर्स की लॉक डाउन के समय की मुश्किलें बताईं।

देश के लगभग हर राज्य के किसी न किसी इलाके में देह व्यापार का धंधा अपने पैर पसारे हुए है, जहां लाखों महिलाएँ दुनिया से कटकर बेबस ज़िंदगी जी रही हैं। इस पेश में शामिल ज्यादातर महिलाएं घर की मजबूरी, बच्चों का पेट पालने, या फिर पति की बीमारी के चलते ये काम शुरू करती हैं, तो कईयों को अनजाने में इन बदनाम बाज़ारों में बेच दिया जाता है।


ऑल इंडिया नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर संगठन के को-ऑर्डिनेटर अमित कुमार बताते हैं, "देश में कोरोना वायरस के शुरुआती दौर में जीबी रोड दिल्ली में रहने वाली 60 फीसदी सेक्स वर्कर अपने घरों को लौट चुकी थीं। अब वहां 40 फीसदी ही बची हैं। जिनके खाने का इंतजाम तो उनकी कोठा मालकिन कर रही हैं लेकिन किराए में कोई रियायत नहीं बरती है। ये अभी दोगुने कीमत पर ब्याज लेकर अपना काम चला रही हैं।"

"आने वाले समय में ये सेक्स वर्कर्स किराया, राशन, पलायन और कर्ज से जूझती नजर आयेंगी। जो सेक्स वर्कर अपने घरों को लौट गयी हैं वो इस वायरस के खौफ़ से जल्दी वापस नहीं आयेंगी। जो आयेंगी भी उनके साथ सुरक्षा के नाम पर पुलिसिया अत्याचार होगा। क्लाइंट की संख्या पांच छह महीने तक बहुत कम रहेगी यानि पहले की तुलना में आधी," अमित ने लॉक डाउन हटने के पांच छह महीने के इनके कारोबार के बारे में बताया।

गुजरात के सूरत जिले में रहने वाली एक सेक्स वर्कर ने वहां की मुश्किलें साझा की, "हमारे यहाँ ज्यादातर सेक्स वर्कर रोज कमाती हैं रोज खाती हैं। अगर किसी से मदद भी मांगें तो हमारा नाम सुनते ही लोग पीछे हट जाते हैं। स्वयं सेवी संस्थाएं भी कितना और कितने दिनों तक मदद करेंगी। मकान का किराया देना है, बच्चे रो-रोकर परेशान हैं क्योंकि उन्हें दिन में पेटभर खाना ही नहीं मिल रहा। ऐसे में एक सेक्स वर्कर किससे गुहार लगाये?"

   

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