इस नए बिल से क्यों कांप रहे हैं एमबीबीएस डॉक्टर ?

Shrinkhala PandeyShrinkhala Pandey   2 Jan 2018 6:32 PM GMT

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इस नए बिल से क्यों कांप रहे हैं एमबीबीएस डॉक्टर ?देश भर के डाक्टर हड़ताल पर।

देश भर के डॉक्टरों ने आज लोकसभा में पेश होने वाली नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) बिल के विरोध में हड़ताल किया। ये हड़ताल 12 घंटे की थी जो लगभग 10 घंटे चली। इसके तहत सारे प्राइवेट अस्पतालों की ओपीडी बंद रहे सिर्फ इमरजेंसी सेवाएं चलीं।

डॉक्टर इस नए बिल के कुछ नियमों का विरोध कर रहे थे, जिसके चलते उन्होंने ये हड़ताल की थी। अभी 2.77 लाख डॉक्टर आईएमए के सदस्य हैं। सरकार ने उनकी इन बातों को संज्ञान में लेते हुए बिल को आज लोकसभा में पेश न करके स्थायी समिति को सौंप दिया, जहां इस बिल पर पुन: विचार किया जाएगा।

सरकार ने डॉक्टरों की कमी को ध्यान में रखकर आयुष डॉक्टरों को भी एलोपैथ की मान्यता देने का फैसला किया था लेकिन एमबीबीएस डॉक्टरों को ये बात पंसद नहीं आ रही है। इस बारे में उत्तर प्रदेश के आईएमए के सचिव डॉ राजेश सिंह बताते हैं, “हम नए बिल का विरोध कर रहे थे क्योंकि इसके कुछ नियम गलत हैं। जैसे आयुष डॉक्टरों को एक कोर्स कराकर उन्हें सर्टिफिकेट दे दिया जाएगा जिससे वो भी एलोपैथ की दवाएं लिख पाएंगें और एमबीबीएस के बराबर हो जाएंगें, इस तरह होम्योपैथ व आयुर्वेद पूरी तरह खत्म हो जाएगा।

वहीं आईएमए के पूर्व प्रेसिडेंट केके अग्रवाल के मुताबिक, इस बिल में ऐसे प्रावधान हैं जिससे आयुष डॉक्टर्स को भी मॉडर्न मेडिसिन प्रैक्टिस करने की अनुमति मिल जाएगी। इसके लिए कम-से-कम एमबीबीएस की योग्यता होनी चाहिए। इस तरह तो झोलाछाप डॉक्टरों को कारोबार भी फल फूल सकता है।

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दूसरा अब तक प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में 15% सीटों का फीस मैनेजमेंट तय करती थी और 85 फीसदी सरकार। नए बिल के मुताबिक मैनेजमेंट को 60% सीटों का फीस तय करने का अधिकार होगा, सरकार 40 फीसदी फीस ही तय करेगी। इससे गरीब मरीजों को परेशानी होगी।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ।

पांच साल का एमबीबीएस को कोर्स करने वाले डॉक्टरों को दोबारा फेल होने का डर भी सता रहा है। बिल में एमबीबीएस के बाद एक और परीक्षा अनिवार्य कर दी गई है। इस तरह अब मेडिकल स्टूडेंट कोर्स करने के बाद सीधे प्राइवेट प्रैक्टिस नहीं कर पाएंगें परीक्षा में पास होने वाले छात्र ही प्राइवेट प्रैक्टिस कर पाएंगें। इस बारे में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन लखनऊ के अध्यक्ष डॉ सूर्यकांत त्रिपाठी का कहना है, “इस तरह छात्रों का भविष्य खतरे में आ सकता है इतनी परीक्षाएं देने के बाद एक और परीक्षा लेने का क्या मतलब है, अगर छात्र उसमें फेल हो जाता है तो उसकी पूरी पढ़ाई बेकार रहेगी।”

डॉ राजेश सिंह बताते हैं कि इसके साथ ही जहां पहले 130 सदस्य होते थे और हर राज्य का एक-एक प्रतिनिधि होता था। इसमें सरकार 25 फीसदी को चयनित करती थी लेकिन अब इसका उल्टा हो गया है। 90 फीसदी का चयन सरकार करेगी, और इस तरह नए बिल के मुताबिक कुल 25 सदस्य होंगे, जिसमें 36 राज्यों में से केवल 5 प्रतिनिधि ही होंगे।

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