भारत में जलवायु परिवर्तन: सूखा, बाढ़ और बर्बाद होती खेती की भयानक तस्वीर

किस्से-कहानियों और फिल्मों में हम जिस तबाही की बात करते थे वह हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रही है। पर अभी भी समय है, इस तबाही को रोका जा सकता है। बस जरूरत है इस जोखिम को समझने की और उससे निबटने के लिए अपनी-अपनी भूमिकाएं तय करने की।

Alok Singh BhadouriaAlok Singh Bhadouria   16 Jun 2018 8:48 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
भारत में जलवायु परिवर्तन: सूखा, बाढ़ और बर्बाद होती खेती की भयानक तस्वीर

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की छठी रिपोर्ट जो अक्टूबर में साउथ कोरिया में जारी होनी थी वह हाल ही में लीक हो गई। इसके मसौदे से जो बातें बाहर आई हैं वे डराने वाली हैं। इसमें साफ तौर पर दुनिया को आगाह किया गया है कि अगर तेजी से कड़े कदम नहीं उठाए गए तो अगले 22 बरस में दुनिया का तापमान 1.5 डिग्री तक बढ़ जाएगा। वर्तमान समय में जिस स्पीड से ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन हो रहा है उसे देखते हुए आशंका है कि इस सदी के आखिर तक दुनिया का तापमान 3 डिग्री से भी ऊपर निकल जाए। भारत पर इस ग्लोबल वॉर्मिंग का क्या असर होगा हम यह जानने की कोशिश कर रहे हैं।

क्लाइमेट चेंज या जलवायु परिवर्तन के जोखिम को समझने के लिए वर्ल्ड बैंक ने पोस्टडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च एंड क्लाइमेट एनालिटिक्स को नियुक्त किया था। इसकी रिपोर्ट "टर्न डाउन द हीट" 2013 में जारी हुई। इसमें इस बात पर शोध किया गया था कि अगर दुनिया का तापमान 2 से 4 डिग्री तक बढ़ता है तो दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्वी एशिया और सब-सहारा अफ्रीका इलाकों पर उसके क्या परिणाम होंगे। वैज्ञानिकों ने आधुनिक कंप्यूटर सिमुलेशन का इस्तेमाल करके इन तीन इलाकों की खेती, जल संसाधन, शहरों और तटीय क्षेत्र पर ग्लोबल वॉर्मिंग के संभावित परिणामों का आंकलन किया। भारत के बारे में उनके अनुमान कुछ इस तरह थे, प्रस्तुत है इसकी पहली कड़ी :

भयानक गर्मी का दौर


वर्तमान स्थिति: भारत में इस समय साल के 8 महीने गर्मी पड़ने लगी है।

भविष्य की आशंका: आने वाले समय में गर्मी और बढ़ेगी। गर्म मौसम के असामान्य और अभूतपूर्व दौर बार-बार आएंगे और इनका दायरा बढ़ता जाएगा।

4 डिग्री सेल्सियस तक ताप बढ़ा तो पश्चिमी तट और दक्षिणी भारत को खुद को तेज-तापमान के हिसाब से ढालना होगा जिसका असर खेती पर भी दिखाई देगा।

क्या तैयारी कर सकते हैं: शहरी इलाके गर्मी के गढ़ बनते जा रहे हैं, शहरी योजनाकारों को गर्मी से बचने के लिए रास्ते खोजने होंगे

सूखों का मौसम

वर्तमान स्थिति: ऐसे सबूत हैं कि 1970 के बाद से दक्षिण एशिया में सूखों की आमद बढ़ गई है। सूखों का दूरगामी परिणाम होता है। 1987 और 2002-2003 के सूखों ने भारत के लगभग आधे हिस्से की खेती को प्रभावित किया है इससे कृषि उत्पादकता में भी गिरावट आई।

भविष्य की आशंका: कुछ क्षेत्रों में विशेष रूप से उत्तर-पश्चिमी भारत, झारखंड, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ में सूखे बार-बार आने की आशंका है। 2040 के दशक तक भयानक गर्मी के कारण फसलों की पैदावार में काफी गिरावट आ सकती है।

क्या तैयारी कर सकते हैं: सूखे का मुकाबला करने में सक्षम फसलों की किस्मों का विकास किया जाना चाहिए। इससे सूखे के असर को कुछ हद तक कम किया जा सकता है।

बारिश के पैटर्न में बदलाव


वर्तमान स्थिति: 1950 के बाद से मॉनसूनी बारिश में लगातार गिरावट देखी जा रही है। इसके अलावा किसी-किसी वर्ष भारी बारिश की घटनाएं भी बढ़ी हैं।

भविष्य की आशंका: वैश्विक तापमान में 2 प्रतिशत की बढ़ोतरी से भारत में मॉनसून की अनिश्चितता बहुत ज्यादा बढ़ जाएगी।

4 डिग्री तक तापमान बढ़ने पर मॉनसून का सीजन भारी वर्षा वाला रहेगा। ऐसी बारिश आज 100 साल बाद होती है पर तब हर 10 साल में ऐसी बारिश हुआ करेगी।

मॉनसून की अनिश्चितता से लंबे सूखे के दौर और भयानक बाढ़ की त्रासदी देश के बड़े हिस्से को परेशान करेंगे।

भारत के उत्तर पश्चिमी तट से दक्षिण पूर्वी तट के इलाके में औसत से ज्यादा बारिश होगी। जिस साल बारिश नहीं होगी उस साल भयानक सूखा पड़ेगा और जिस बार बारिश हुई तो इतनी ज्यादा होगी कि उससे तबाही होगी।

क्या तैयारी कर सकते हैं: मौसम के बेहतर पूर्वानुमान के लिए बेहतर हाइड्रोमीटीरियोलॉजी सिस्टम और बाढ़ चेतावनी सिस्टम अपनाने होंगे ताकि समय रहते लोगों को आपदा के आने से पहले सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया जा सके। मकान बनाते समय कड़े नियमों का पालन करना होगा ताकि घर, सड़क, पुल वगैरह बाढ़ के समय सुरक्षित रहें।

गिरता भूजल स्तर


वर्तमान स्थिति: भारत की 60 प्रतिशत से अधिक खेती वर्षा पर निर्भर है। जलवायु परिवर्तन के असर की बात न भी करें तब भी भारत के 15 प्रतिशत भूजल संसाधनों का आवश्यकता से अधिक दोहन हुआ है।

भविष्य की आशंका: यह बता पाना मुश्किल है कि भविष्य में भूजल का स्तर कितना और नीचे गिरेगा लेकिन यह तय है कि बढ़ती जनसंख्या के दबाव और हमारी अतिउपभोग वाली जीवनशैली व उद्योग क्षेत्र की मांग जैसे कारकों की वजह से इसमें और कमी आएगी।

क्या तैयारी कर सकते हैं: हमें भूजल संसाधनों को और किफायत व कुशलता से इस्तेमाल करने की आदत डालनी होगी।




कृषि और खाद्य सुरक्षा


वर्तमान स्थिति: जलवायु परिवर्तन के बिना भी बढ़ती जनसंख्या की वजह से दुनिया भर में खाद्य पदार्थों के दाम बढ़ रहे थे। अब तो खेती पर जलवायु परिवर्तन का असर भी देखने में आ रहा है।

चावल: वैसे तो देश में चावल की कुल पैदावर में वृद्धि हुई है, लेकिन बढ़ते तापमान और कम बारिश का असर भारत में हो रहे चावल के उत्पादन पर देखा जा रहा है। अगर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव न होता तो भारत में चावल की औसत पैदावार 6 प्रतिशत और ज्यादा होती।

गेहूं: हाल ही में हुई रिसर्च के मुताबिक, उत्तरी भारत में ऊंचे तापमान (34 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा) की वजह से गेहूं के उत्पादन पर असर पड़ा है। जैसे-जैसे तापमान में वृद्धि होती जाएगी स्थिति और खराब होती जाएगी।

भविष्य की आशंका: पानी की किल्लत, बढ़ते तापमान, समुद्र के बढ़ते जल स्तर की वजह से खेती योग्य जमीन में खारे पानी का पहुंचना ये सब वे खतरे हैं जो भविष्य में फसलों की पैदावार और देश की खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा साबित होंगे।

जैसी परिस्थितियां अभी हैं अगर वे जारी रहीं तो गेहूं और चावल के उत्पादन में काफी गिरावट आएगी। अगर तापमान में बढ़ोतरी 2 डिग्री सेल्सियस के नीचे रही तब भी देश का खाद्यान्न आयात दोगुना हो जाएगा।

क्या तैयारी कर सकते हैं: फसल विविधीकरण, और अधिक कुशलता से पानी का इस्तेमाल, बेहतर मिट्टी प्रबंधन व सूखा प्रतिरोधी फसलों के विकास की बदौलत कुछ नकारात्मक प्रभावों को कम करने में मदद मिल सकती है।

इस रिपोर्ट में ग्लेशियरों का पिघलना, समुद्र के जलस्तर में बढ़ोतरी, ऊर्जा सुरक्षा, जल सुरक्षा, स्वास्थ्य व लोगों का पलायन और संघर्ष जैसे मुद्दों पर भी बात की गई थी। इसकी चर्चा लेख की अगली कड़ी में करेंगे लेकिन इतना तय है कि गाहेबगाहे किस्से-कहानियों और फिल्मों में हम जिस तबाही की बात करते थे वह हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रही है। पर अभी भी समय है, इस तबाही को रोका जा सकता है; सभी वैज्ञानिकों की ऐसी राय है। बस जरूरत है इस जोखिम को समझने की और उससे निबटने के लिए अपनी-अपनी भूमिकाएं तय करने की तभी हमारी अगली पीढ़ी सुरक्षित जीवन जी पाएगी।

यह भी देखें: जलवायु परिवर्तन पर आईपीसीसी की रिपोर्ट लीक: असमय बारिश, बाढ़ और अकाल की खेती पर पड़ेगी मार

यह भी देखें:जल लुप्तप्राय हो रहा है, नासा ने दी चेतावनी

यह भी देखें: नहाने में इतना पानी बर्बाद न करिए कि कल हाथ धोने को भी न मिले

     

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.