'अपने गांव में रहता तो कम से कम छत और दुआरे बैठकर खुली हवा में सांस तो ले पाता'

Mithilesh DharMithilesh Dhar   23 March 2020 1:45 PM GMT

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अपने गांव में रहता तो कम से कम छत और दुआरे बैठकर खुली हवा में सांस तो ले पाताये फोटो शनिवार 21 मार्च की है। मुंबई के लोकमान्य तिलक टर्मिनस रेलवे स्टेशन पर यात्रियों की भीड़।

"पांच दिन से 15 बाई 8 के कमरे में बंद हूं। अपने गांव में रहता तो कम से कम छत और दुआरे बैठकर खुली हवा में सांस तो ले पाता।" मुंबई के नालासोपाड़ा में रहने वाले पंकज कुमार कहते हैं।

पंकज अपने घर पटना सिटी से लगभग 1,900 किमी दूर मुंबई के नालासोपाड़ा में चाऊमीन और बर्गर की ठेलिया लगाते हैं और इसी इलाके में अपने तीन दोस्तों के साथ किराये के घर में रहते हैं।

वे बताते हैं, "कोरोना वायरस की वजह से सब काम बंद है। एक दिन दुकान लगाया भी था लेकिन ग्राहकी नहीं हुई। सारा सामाना फेंकना पड़ा। अब कोई बाहर ही नहीं निकल रहा तो ठेला किसके लिए लगाउंगा। कम से कम रोज 1,500 से 2,000 रुपए की कमाई हो जाती थी। चार दिन से कम बंद है। घर जाने का प्लान बना ही रहा था कि अब तो ट्रेन भी बंद है।"

"अपने फ्लैट के तीसरे मंजिले पर रहता हूं। ऊपर तीन मंजिला और है, जिनमें बाहर के ही परिवार रहते हैं। उनके घरों में तो कई बच्चे भी हैं जो छतों पर ही आजकल क्रिकेट खेलकर समय बिता रहे हैं। वे लोग भी अपने गांव जाना चाहते थे, लेकिन ट्रेन बंद होने की वजह से नहीं जा पाये।" पंकज आगे कहते हैं।

ये कहानी बस पंकज की नहीं है। पंकज की तरह लाखों लोग जो अपने घरों से दूर महानगरों में रह रहे हैं वे अब कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए अपने गांव, अपने घर लौटना चाह रहे हैं।

गांव लौटने की एक बड़ी वजह यह भी है कि लॉकडाउन (आपातकालीन/आवश्‍यक सेवाओं को छोड़कर सभी सेवाओं पर रोक) की वजह से किसी का ऑफिस बंद हो गया है तो कोई दुकान नहीं लगा पा रहा है।

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कोरोना वायरस के प्रकोप को देखते हुए इंडियन रेलवे ने 31 मार्च तक सभी ट्रेनें बंद कर दी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से अपील भी की है कि लोग जहां है वहीं रहें। गांव लौटने से गांव में भी यह महामारी फैल सकती है। कोरोनो से अब देश में कुल 8 मौतें हो चुकी हैं जबकि 400 से ज्यादा लोग इस घातक बीमारी की चपेट में हैं।

इसकी रोकथाम के लिए नई दिल्ली, कर्नाटक, केरल, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान जैसे प्रदेशों के कई जिलों में लॉकडाउन की घोषण कर दी गई है, जबकि महाराष्ट्र और पंजाब में कर्फ्यू लगा दिया गया है। दुनियाभर में इससे 14,000 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है।

शहरों में परिवार के साथ रहने वाले लोग ज्यादा परेशान हैं। भूपेश दुबे वैसे मूल निवासी जौनपुर के मड़ियाहूं के हैं लेकिन पिछले पांच वर्षों से हरियाणा के फरीदाबाद में पत्नी और दो बच्चों के साथ रहते हैं और गुरुग्राम की एक टेक्स्टटाइल्स कंपनी में काम करते हैं।


वे कहते हैं, "दो कमरे के घर में रहता हूं। काम ऐसा है कि घर से नहीं कर सकता। मेरे कंपनी के कुछ लोग घरों से काम कर भी रहे हैं। तीन दिन से घर में ही हूं। मेरा तो बहुत सारा समय मोइबल में बीत जा रहा, लेकिन बच्चों को दिक्कत हो रही है। एक बेटा 10 साल का है और दूसरा 6 साल का। पार्क और स्टेडियम भी बंद हैं। वे कहीं बाहर भी नहीं जा पा रहे। ज्यादा चिंता उनकी ही है।"

"गांव में तो बड़ा घर है। दुआरा (द्वारा) ही इतना बड़ा है कि 50-100 लोग आराम से कुर्सी लगाकर बैठ सकते हैं। घर पर कभी इतना समय मिलता ही नहीं। पहले से पता होता तो गांव जरूर चला जाता। बच्चे भी खुश रहते और मुझे भी परिवार के साथ ऐसा समय बिताने का मौका मिलता जिसमें कम से कम यह नहीं सोचना पड़ता कि छुट्टी खत्म होने वाली है, वापस जाना है।" भूपेश आगे कहते हैं।

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लॉकडाउन होने की वजह से सभी कामकाज ठप हैं। डेली बेसिस पर काम करने वाली बड़ी जनसंख्या के पास इस समय काम नहीं है। इसे देखते हुए ही रेलवे ने बड़े शहरों से बिहार और उत्तर प्रदेश के लिए विशेष ट्रेनों की व्यवस्था की थी, क्योंकि उत्तर प्रदेश और बिहार की एक बड़ी आबादी मुंबई, दिल्ली जैसे शहरों में रहती है।

लेकिन स्टेशनों पर बढ़ती भीड़ और कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए देश में चलने वाली सभी ट्रेनों को एहतियातन 31 मार्च तक बंद कर दिया गया है।

ऐसे में कुछ लोगों का यह भी मानना है कि पहले तो गांव जाना चाह रहे थे, लेकिन अभी के जो हालात हैं उसे देखते हुए जहां है वहीं रहना ठीक है।

उत्तर प्रदेश, जिला उन्नाव के पुरवा के रहने वाले मोहम्मद दिलशाद नई दिल्ली में एक मल्टीनेशनल कंपनी में नेटवर्क इंजीनियर हैं। वे कहते हैं, "मेरा तो ट्रेन से टिकट था, लेकिन कैंसिल करावाना पड़ा। ऐसे हालात में सबको अपने गांव की याद आती है। मैं भी जाना चाहता था। बहुत प्रयास किया, लेकिन साधन की कोई व्यवस्था नहीं हो पाई, लेकिन अब यह भी सोचता हूं की यहीं ठीक है। शायद एक जगह रुके रहने में ही बुद्धिमानी है।"

बुंदेलखंड के हमीरपुर के रहने वाले संतोष प्यासा भी यही सोचते हैं। वे नोएडा के सेक्टर 22 में रहते हैं।

वे कहते हैं, "जब आपको ऑफिस न जाना हो तो अपने गांव से बढ़िया कोई दूसरी जगह रहने लायक हो ही नहीं सकती। मैं भी जाने वाला था, लेकिन अब लग रहा कि नहीं जाना चाहिए। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी तो कह रहे हैं कि आप गांव जाकर लोगों की जान को खतरे में डाल सकते हैं।"

   

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