भूख की गंभीर श्रेणी वाले देश भारत में एक लाख क्विंटल से ज्यादा अनाज गोदामों में ही सड़ गया, हर आदमी साल में 50 किलो खाना बर्बाद कर रहा

वर्ष 2017 से 2020 के बीच 11,520 टन (115,200 क्विंटल) अनाज सरकार के गोदामों में रखे-रखे ही सड़ गया, जिसकी कुल कीमत लगभग 15 करोड़ रुपए बताई गई है।

Mithilesh DharMithilesh Dhar   6 March 2021 11:30 AM GMT

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United Nations Environment Programme, unep report on food waste 2021, Food Waste Index Report 2021देश में एक तरफ जहां एक बड़ी आबादी कुपोषित है तो वहीं दूसरी ओर अनाज और खाना बर्बाद भी हो रहा है। (फोटो- Pixabay से साभार)

जिस देश की लगभग 14 फीसदी आबादी (2011 में हुई जनगणना के हिसाब से लगभग 169,427,079 लोग) कुपोषित हो उस देश का प्रति व्यक्ति सालाना 50 किलो तैयार खाना बर्बाद कर रहा है। भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स (भूख सूचकांक) में शामिल 107 देशों में से 94वें स्थान है। इन गंभीर हालातों के बावजूद पिछले चार वर्षों में रखरखाव के अभाव में 11,520 टन अनाज बर्बाद हो गया।

चार फरवरी 2021 को संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की रिपोर्ट, UN Food Waste Index Report 2021 के अनुसार भारत में सालाना प्रति व्यक्ति लगभग 50 किलो तैयार (पका हुआ खाना) खाने की बर्बादी हो रही है। वहीं अगर पूरी दुनिया की बात करें तो यह औसतन सालाना प्रति व्यक्ति 121 किलो है जिसमें से घरों बर्बाद हो खाने की हिस्सेदारी 74 किलो है। ये रिपोर्ट ऐसे वक्त में आई है जब कोरोना काल में जब सरकार की तमाम योजनाओं के बावजूद एक बड़ी आबादी को भरपेट खाना नहीं मिला है।


दक्षिण ऐशियाई देशों में सबसे ज्यादा खाना अफगानिस्तान (82 किलो सालाना प्रति व्यक्ति) में बर्बाद हो रहा है। इसके बाद 79 किलो के साथ नेपाल, 76 किलो के साथ श्रीलंका, 74 किलो के साथ पाकिस्तान और 65 किलो के साथ बांग्लादेश का नंबर आता है। हालांकि भारत खाना बर्बादी के मामले में दक्षिण एशियाई देशों में सबसे नीचे है।

तैयार खाना ही नहीं, देश में अनाज भी हो रहा बर्बाद

दो फरवरी 2021 को लोकसभा में पूछे गये एक सवाल के जवाब में उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय खाद्य सार्वजनिक वितरण विभाग ने बताया कि भारतीय खाद्य निगम के गोदामों (स्वयं और किराये के) में वर्ष 2017 से 2020 के बीच 11,520 टन (115,200 क्विंटल) अनाज सड़ गया, जिसकी कुल कीमत लगभग 15 करोड़ रुपए बताई गई।


एक तरफ खाने की बर्बादी, दूसरी तरफ भूख

ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2020 में भारत का स्कोर 27.2 है और इसे भूख की गंभीर श्रेणी में माना गया है। मतलब भारत में भूख की स्थिति चिंताजनक चिंताजनक है। 107 देशों वाले इस सूचकांक में भारत 94वें नंबर पर है। भारत अपेक्षाकृत कमजोर माने जाने वाले पड़ोसी देशों पाकिस्तान (88), नेपाल (73), बांग्लादेश (45) और इंडोनेशिया (70) से भी पीछे है। हंगर-इंडेक्स में चीन दुनिया में सबसे संपन्न 17 देशों के साथ पहले नंबर पर है। श्रीलंका और म्यामांर की स्थिति भी भारत से बेहतर है।

ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत सिर्फ 13 देंशों से आगे हैं और ये रवांडा, नाइजीरिया, अफगानिस्तान, लीबिया, मोजाम्बिक और चाड जैसे देश हैं।

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वर्ष 2019 में 117 देशों में भारत की रैंकिंग 102 थी। इस तरह देखें तो भारत की स्थिति में सुधार तो हुआ लेकिन सूचकांक में शामिल देशों की संख्या भी घटी है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की करीब 14 फीसदी जनसंख्या कुपोषण का शिकार है। वहीं भारत के बच्चों में स्टंटिंग रेट 37.4 फीसदी है। स्टन्ड बच्चे वे होते हैं, जिनकी लंबाई उनकी उम्र की तुलना में कम होती है।


संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की संस्था खाद्य एवं कृषि संगठन (UNFAO) की एक रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2019 में पूरी दुनिया के लगभग 69 करोड़ लोग भूखे रहे थे। फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी के दौरान तो भूखे रहने वालों की संख्या में भारी वृद्धि का अनुमान है। रिपोर्ट कहती है, "तीन अरब लोगों को स्वास्थ्यप्रद भोजन नहीं मिला। इसे देखते हुए लोगों को अपने-अपने घरों में खाने की बर्बादी घटानी चाहिए।

लॉकडाउन में और बढ़ी खाने की दिक्कत

कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए देश में लगाये गये लॉकडाउन के समय देश की एक बड़ी आबादी को खाने की दिक्कतों का सामना करना पड़ा, खासकर ग्रामीण भारत में समस्या और भयावह रही। देश के सबसे बड़े रूरल मीडिया प्लेटफॉर्म गांव कनेक्शन ने महामारी के प्रभाव को समझने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण सर्वे किया। यह सर्वे देश के 23 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 179 जिलों में 30 मई से 16 जुलाई, 2020 के बीच हुआ था जिसमें 25,300 उत्तरदाता शामिल हुए थे।

गांव कनेक्शन के इस सर्वे के अनुसार देश के 68 प्रतिशत ग्रामीणों ने तब कहा था कि लॉकडाउन के दौरान उन्हें खाने-पीने की चीजों के लिए मुश्किलें उठानी पड़ी। इतना ही नहीं, लॉकडाउन के समय में इन ग्रामीणों के परिवार के लोगों को कई बार खाना न मिलने की वजह से भूखे पेट सोना पड़ा।

सर्वे के अनुसार लॉकडाउन के दौरान भोजन की व्यवस्था करने में 76 प्रतिशत गरीब परिवारों को कहीं ज्यादा मुश्किलें आईं, जबकि निम्न वर्ग के ग्रामीण परिवारों में यह आंकड़ा 68 प्रतिशत रहा, अमीर और मध्य परिवारों की तुलना में कहीं ज्यादा। ये आंकड़ें बताते हैं गरीब परिवारों के सामने भुखमरी जैसे हालात बने और लॉकडाउन के दौरान ऐसी कई भयावह तस्वीरें भी सामने आईं थीं।

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झारखण्ड के लातेहार जिले के हेसातू गाँव में लॉकडाउन के दौरान 16 मई को एक मजदूर वर्ग के परिवार में पांच साल की बच्ची की मौत हो गई। तब प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़ ने आरोप लगाया कि जिस परिवार में बच्ची की मौत हुई है उस घर में दो दिन से चूल्हा नहीं जला था क्योंकि उस घर में अनाज का एक दाना नहीं था।

दिसंबर 2020 में राइट टू फूड फाउंडेशन की हंगर वॉच की रिपोर्ट में सामने आया था कि लॉकडाउन के समय कई परिवारों को भूखे सोना पड़ा। रिपोर्ट में देश में वर्ष 2015 के बाद से अब तक भूख से कथित तौर पर हुई 100 मौतों का भी जिक्र किया गया।

रोजी-रोटी अधिकार अभियान के इस सर्वे में झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु, दिल्ली, छत्तीसगढ़, राजस्थान और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के 3,994 लोग शामिल हुए थे। सितंबर और अक्टूबर के बीच हुए इस सर्वे में शहरी और ग्रामीण, दोनों आबादी को शामिल किया गया था।

सर्वे में दावा किया गया था कि लॉकडाउन के दौरान भारत के कई परिवारों को कई-कई रातें भूखे रह कर गुजारनी पड़ीं। इनके पास खाने के लिए कुछ नहीं था। यह स्थिति लगभग 27 फीसदी लोगों की थी। यही नहीं सर्वे में दावा किया गया कि लॉकडाउन के समय लगभग 71 फीसदी लोगों के भोजन की पौष्टिकता में कमी आई। 40 फीसदी लोगों के भोजन की गुणवत्ता काफी खराब रही और दो-तिहाई लोगों के भोजन की मात्रा में कमी आई। 28% लोगों के भोजन की मात्रा में लॉकडाउन के बाद गिरावट आई। ये हालात तब हैं जब सरकार ने तीन महीने तक 80 करोड़ लोगों को मुफ्त में राशन दिया, (प्रति यूनिट 5 किलो)

आनज गोदामों में रखा ही क्यों है?

एक तरफ खाने की बर्बादी और दूसरी तरफ भूख, ऐसा हो क्यों हो रहा? इस मुद्दे पर मजदूर किसान शक्ति संगठन के संस्थापक और खाने के अधिकार पर काम कर रहे हैं राजस्थान के निखिल डे गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "देखिये, जहां तक बात UN Food Waste Index Report 2021 की है तो प्रति व्यक्ति सालाना 50 किलो पके हुए खाने कर बर्बादी औसतन सबसे ज्यादा अमीर घरों या पार्टियों में होती है। गांवों में तो ये संभव ही नहीं है। गांवों में रहने वाले गरीबों के पास पर्याप्त खाना ही नहीं है तो वे बर्बाद कैसे करेंगे। पश्चिमी देशों में भी घरों में ज्यादा खाना बर्बाद होता है। उनके पास पैसा है, वे ज्यादा खाना बनाते हैं। अब ये संस्कृति हमारे देश में भी धीरे-धीरे पैर पसार रही है।"

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"लेकिन इसके दूसरे पहलुओं पर भी बात करनी चाहिए। जैसा कि आप बता रहे हैं कि गोदामों रखा अनाज सड़ गया तो यह तो अपराध है। जहां एक ओ लाखों लोग भूखे सो रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर अनाज सड़ रहा है। प्रोडक्शन, प्रोसेसिंग और कंजप्शन, इन तीनों चीजों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। देश में अनाज की पैदावार तो खूब हो रही है लेकिन प्रोसेसिंग और कंजप्शन ठीक नहीं है और इसके लिए सरकार की नीतियाँ जिम्मेदार हैं। मैं तो कहता हूं कि अगर अनाज गोदाम में भरा है और पब्लिक भूखे सो रही है तो वह भी अपराध है। अनाज गोदामों में रख ही क्यों है।" निखिल आगे कहते हैं।

खाद्य एवं निर्यात नीति विशेषज्ञ दिवेंदर शर्मा ट्वीटर पर लिखते हैं, "भारत में UNEP की रिपोर्ट अच्छी है और बहुत कुछ कहती है। देश में स्वच्छ भारत अभियान की तरह सेव फूड अभियान चलाया जाने की जरूरत है।"

  

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