लगभग आधी कीमत पर बिक रहा दूध, 14 राज्यों में गांव कनेक्शन ने की बात, कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक किसान परेशान

देश की दो तिहाई जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। पर किसानों का मानना है कि उनकी कोई सुनने वाला नहीं। इसलिए अगर मीडिया और सरकारें उद्योग की ही भाषा समझते हैं तो हम उसी तरह इस आपातकाल को समझा रहे हैं। भारत के करोड़ों किसानों की फ़ैक्टरी चालू है, पर ख़रीदार नहीं, व्यापार ठप है। गांव कनेक्शन की विशेष सीरीज 'किसान लॉकडाउन' के पार्ट 2 में पढ़िए दूध किसानों का दर्द। वे छोटे किसान जिनका दूध बेचकर गुजारा होता था, सब परेशान हैं..

Mithilesh DharMithilesh Dhar   17 April 2020 10:45 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
लगभग आधी कीमत पर बिक रहा दूध, 14 राज्यों में गांव कनेक्शन ने की बात, कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक किसान परेशानलॉकडाउन के दौरान दूध की सही कीमत न मिलने के कारण कई राज्यों में किसानों ने दूध को सड़कों पर बहा दिया।

कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए देश में लगे लॉकडाउन ने दूध उत्पादक किसानों की कमर तोड़ दी है। हालत यह है कि एक लीटर दूध की कीमत 15-16 रुपए लीटर पहुंच गई है। बाजार में बोतल बंद पानी की कीमत भी इससे ज्यादा होती है। गांव कनेक्शन ने देश के 14 राज्यों के दूध उत्पादक किसानों से बात की, जम्मू-कश्मीर के किसान हों या कन्याकुमारी के, सब परेशान हैं।

खेती के साथ डेयरी के काम को भी बढ़ाने के प्रयास में लगे उत्तर प्रदेश के जिला संभल, गांव सुजातपुर के रहने वाले किसान दीपक शर्मा की उम्मीदों को लॉकडाउन के बाद धक्का लगा है। वे कहते हैं, "लॉकडाउन से पहले तक गाय का दूध 30 से 32 रुपए प्रति लीटर बिक जाता था। लॉकडाउन के एक दो दिन बाद से कीमत एक दम से नीचे आ गई। अब दूध मुश्किल से 15-16 रुपए लीटर में बिक रहा है।"

लॉकडाउन की वजह से देश के दूध उत्पादक किसानों पर तीन तरफा मार पड़ी है। एक तो उन्हें दूध की सही कीमत नहीं मिल रही, दूसरे लागत बढ़ती जा रही और जो दूध हो भी रहा उसे खरीदने वाला कोई नहीं।

महाराष्ट्र, नासिक के तपवन के किसान संदीप सोनेने के पास 60 देसी गाय है। लॉकडाउन से पहले वे खुद शहरों में जाकर दूध की सप्लाई करते थे, लेकिन उन्हें अब वे रोज 50 लीटर दूध फ्री में दे रहे है और जो कीमत मिल भी रही है वह बहुत कम है।

वे गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "मैं ए-2 मिल्क दूध का काम करता हूं। कॉलोनियों और घरों में सप्लाई करता था, लेकिन लॉकडाउन के बाद कॉलोनियों में जाने ही नहीं देते। जो दूध पहले 85-95 रुपए प्रति लीटर बेचता था वही अब 25-30 रुपए में बेचना पड़ रहा है, वह भी पूरा बिक नहीं पा रहा। प्रतिदिन कम से कम 50 लीटर दूध फ्री में लोगों को देना पड़ रहा है। जो आमदनी थी वह तो एक दम बंद हो गई, लेकिन खर्च तो नहीं रुकता ना।"

संदीप चारे की बढ़ती कीमत को लेकर भी परेशान हैं। वे कहते हैं, "250 रुपए वाली कुट्टी 500 में मिल रही है। 50 किलो दाने का रेट 1,500-1,800 रुपए था वह अब 3,000 रुपए बोरी है। चोकर, चूनी खली सब 30 से 40 फीसदी महंगा हो गया है। एक तो दूध खरीदने वाला कोई नहीं, कीमत नहीं मिल रही, खर्च बढ़ रहा ऊपर से।"

लॉकडाउन की वजह से सबसे ज्यादा नुकसान छोटे दूध उत्पादक किसानों को हो रहा है। बड़े दूध उत्पादक तो अपना दूध कॉपरेटिव, सोसायटी में दे रहे हैं, उनके लिए गाड़ियां आ रही हैं, लेकिन होटल, चाय की दुकान और घरों में दूध देने वाले किसानों को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ रहा है।

किसान लॉकडाउन सीरीज पार्ट- 2 :लॉकडाउन: किसान की फ़ैक्टरी चालू है, पर ख़रीदार नहीं, सब्जी किसान तबाह हो गए

रसीद में लाल घेरे को देखिये, यह दूध कीमत है जो दीपक शर्मा को अलग-अलग दिनों में मिली।

कर्नाटक के बेलगाम जिले के कान्हापुर तालुक, गांव गुंड्यान्ती के 28 वर्षीय दूध उत्पादक किसान विजय कुमार पाटिल के पास 10 गाय हैं जिनसे रोज 100 लीटर के आसपास दूध होता है। उनके पिता खेती करते हैं। घर की आमदनी बढ़ाने के लिए पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने वर्ष 2018 में डेयरी का काम शुरू किया। सब कुछ अच्छा चल रहा था लेकिन लॉकडाउन ने उनकी कमाई को आधा कर दिया।

विजय बताते हैं, "मैं और दो लोग और मिलकर 100 लीटर दूध घरों में सप्लाई करते थे। एक लीटर दूध की कीमत 45-50 रुपए आराम से मिल जाती थी, लेकिन अभी पुलिस हमें कहीं जाने ही नहीं देती है। इसलिए अब हम अब सरकारी दूध कंपनी को दूध बचे रहे हैं जिसका दाम 30 रुपए लीटर का फिक्स है। अब लॉकडाउन के पहले से हिसाब लगाएंगे तो रोज नुकसान हो रहा है।"

कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट कहती है भारत के दुग्ध उत्पादन में लगभग 75% हिस्सेदारी लघु, सीमांत और भूमिहीन किसानों की है। लगभग 10 करोड़ डेयरी किसान हैं यानी लगभग 50 करोड़ लोग दुग्ध उत्पादन से होने वाली आमदनी पर निर्भर हैं। यह संख्या कम तो नहीं कही जा सकती।

राजस्थान के जिला हनुमानगढ़ के पल्लू में रहने वाले शिवम पहले सोसायटी में दूध बेचते थे, लेकिन उन्हें वहां दूध की सही कीमत नहीं मिलती थी। वर्ष 2019 में उन्होंने खुद को डेयरी खोला और दूध बेचने का काम भी शुरू किया, लेकिन उन्हें अब पछतावा हो रहा है।

वे गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "अपना काम यह सोचकर शुरू किया था कि ज्यादा फायदा होगा। फायदा हो भी रहा था लेकिन अब सब चौपट हो गया। 17 में गाय का और 20 रुपए में भैंस का दूध बेच रहा हूं। 50-60 लीटर दूध रोज निकलता है। गांव में तो सबके पास जानवार हैं तो यहां तो कोई खरीदने वाला भी नहीं। 20-25 लीटर दूध रोज बच रहा है। इसमें से कुछ तो गाय-भैंच के बच्चों को पिला रहा और कुर लोगों को ऐसे ही दे रहा है। शुरू में सोचा कि घी निकालूंगा लेकिन कोई कितने दिन तक घी निकालेगा।"


लॉकडाउन के एक दो दिन बाद से ही कई राज्यों से ऐसी खबरें आने लगीं कि किसान दूध सड़कों पर फेंक रहे है। तब किसानों ने कहा कि वे दूध बेचने जा ही नहीं पा रहे हैं, ऐसे में उसे बचाकर करेंगे ही क्या। देश में 21 दिनों का लॉकडाउन खत्म हो चुका है। ऐसे में अब दूध से जुड़े किसानों की चिंता और बढ़ गई है।

असम के गुवाहाटी के दूध उत्पादक किसान दूध की कीमतों से ज्यादा अपने मवेशियों को लेकर चिंतित हैं। नांबारी रेलवे ऑफिसर कॉलोनी के पास रहने वाले 40 वर्षीय शिवम पाल कहते हैं, "मेरे पास लगभग 120 लीटर गाय का दूध रोज होता है। होटल और दुकानों सब बंद हैं। राज सोचता हूं किसी तरह दूध बिक जाये। 40-42 वाला दूध 18-20 रुपए प्रति लीटर बेच रहा हूं, लेकिन सबसे ज्यादा परेशान हूं कि अपने जानवरों को जिंदा कैसे रखूंगा। मेरे पास 80 जर्सी गाय है। चारा अब दो से तीन दिन का और बचा है। हम सरकार से लगातार निवेदन कर रहे हैं कि चारे की व्यव्यस्था हो। लॉकडाउन की वजह से हम गांव की ओर जा ही नहीं पा रहे हैं।"

"हम दूध बेच भी रहे हैं लेकिन अपने मवेशियों को तो बचाना ही पड़ेगा। जो चारा लॉकडाउन से पहले 1,000 बोरी (50 किलो) मिलता था वही अब 1,500 रुपए में हो गया है। दूध से क्रीम भी बना रहे हैं लेकिन उसे रखेंगे कहा।" शिवम आगे कहते हैं।

ऐसा भी नहीं है कि दूध की कीमतें बस स्थानीय बाजारों में ही कम हुई हैं। बड़े डेयरी कारोबारियों ने भी दूध की कीमतें घटाई हैं। पंजाब, जिला होशियारपुर के मेघवाल के अमरजीत सिंह मोगा स्थित नेस्ले कंपनी को प्रतिदिन लगभग 500 लीटर दूध देते हैं, लेकिन कंपनी इधर लगातार पैसे कम कर रही है।

वे गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "गाय की दूध की कीमत पहले 38 रुपए प्रति लीटर थी। आज की (16 अप्रैल) बात करूं तो कंपनी ने मुझसे 4.7 फैट का दूध 34.11 रुपए लीटर में खरीदा है। लॉकडाउन के बाद कीमत चार रुपए से ज्यादा कम हो गई है। गांवों में लोकल में तो कीमत और कम है। ऐसे में थोड़े ही नुकसान के साथ इन्हें ही बेचना सही है। इधर कच्चे चारे की कीमत भी बढ़ती जा रही है।"

कर्नाटक में भी दूध किसानों ने दूध सड़कों पर बहाया।

उत्तर प्रदेश के शामली जिले के दूध उत्पादक किसान एमएस तरार भी यही आरोप लगा रहे हैं। वे कहते हैं, "अमूल को छोड़कर सभी कॉपरेटिव ने दूध की कीमतें कम कर दी हैं। पराग तो उत्तर प्रदेश सरकार के अधीन है लेकिन उसने गाय की दूध की कीमत 43 रुपए से 32 रुपए कर दिया है। कुछ लोकल कंपनियां हैं वे 20-22 रुपए में दूध ले रही हैं। कई जगह तो किसानों को दूध घी दिया जा रहा है। ऐसे में मैं कुछ दूध गांवों में सप्लाई कर रहा हूं, जो बच रहा उससे घी बना रहा हूं।"

छोटी डेयरियों पर जो किसान दूध बेचते हैं उन्हें तो और ज्यादा नुकसान हो रहा है, लेकिल डेयरी संचालकों की अपनी दलीले भी हैं।

हरियाणा, जिला करनाल के खेरा में रहने वाले गुप्ता डेयरी के मालिक हर्षित गोयल कहते हैं, "मैं खुद गाय का दूध 45 और भैंस का 60 रुपए लीटर बेचता था, अब गाय का दूध 25 में और भैंस का 30 में बेच रहा हूं। होटले में रोज 50-60 लीटर दूध भेजता था, वह सब बंद है। साइकिल से कॉलोनियों, चाय की दुकानों पर दूध भिजवाता था। यह सब बंद है। मेरे यहां खुद लगभग 250 लीटर दूध रोज होता है। आधा दूध बिक पा रहा है वह भी बड़ी मुश्किल से। ऐसे में मैं दूसरे किसानों को ज्यादा पैसे कहां से दूंगा।"

"मैं बचे दूध से घी बना रहा हूं लेकिन छोटे किसान जिन्हें रोज पैसे चाहिए होते हैं उनके पास ये मौका भी नहीं है, उन्हें तो रोज पैसे चाहिए। ऐसे में मैं उनसे गाय का दूध 20 रुपए लीटर तक खरीदकर उनकी मदद ही कर रहा हूं। उन्हें रोज कुछ पैसे मिल जा रहे हैं।" हर्षित आगे कहते हैं।

लॉकडाउन की वजह से दूध उत्पादन की लागत भी बढ़ी है। लॉकडाउन की वजह से गाड़ियों की आवागमन रुकी है। जिस कारण चारा एक जिले से दूसरे जिले तक नहीं पहुंच पा रहा है।

झारखंड की राजधानी रांची में काथल मोड़ के पास रहने वाले दूध उत्पादक किसान आलोक कुमार कहते हैं, "दूध की कीमत 20-30 रुपए तो हो ही गई है, साथ ही चारे की कीमत भी मनमानी बढ़ रही है। 50 किलो वाले चोकर की बोरी लॉकडाउन से पहले 900 रुपए में थी अब वही 1,500 रुपए में मिल रही है। 700 वाले कुट्टी की कीमत 1,300 रुपए बोरी हो गई है। हम लोगों की जरूरतें पूरी कर रहे हैं, सरकार को इसे ऐसे समय में तो और सस्ता करना चाहिए। हमें तो दोनों ओर से नुकसान ही हो रहा है।"

ये तस्वीर पश्चिम बंगाल के नादिया जिले की है जहां लॉकडाउन के बाद दूध न बिक पाने से किसानों ने दूध सड़क पर ही बहा दिया।

"मेरे मवेशी तो सारे खूंटी में हैं। वहां से रोज दूध लाकर यहां बेचता था तब काफी फायदा था। 40 रुपए वाला दूध वहां 20-21 रुपए में बिक रहा है।" आलोक आगे कहते हैं।

पश्चिम बंगाल के नादिया जिले के गोलापुर में रहने वाले सौभिक कुंडू भी चारे की बढ़ती की कीमत को लेकर परेशान हैं।

वे कहते हैं, "मुझे दूध की कीमत को लेकर कोई दिक्कत नहीं है क्योंकि मैं लगभग 200 लीटर अमूल को देता हूं। इतनी पैदावार ही है मेरे यहां, लेकिन परेशानी हो रही है चारे को लेकर। चोकर, खली, दाना, सबकी कीमत 34 से 40 फीसदी तक बढ़ गई है। जहां से चारा मंगाता हूं वह कहता है कि है नहीं तो दूंगा कैसे। अब ऐसे में हमारा मुनाफा 20 से 25 फीसदी कम हो गया है।"

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 40 किमी दूर जिला बाराबंकी के हैदरगढ़ के रहने वाले किसान सुधीर मोहन कहते हैं कि कॉस्ट ऑफ प्रोडक्शन (लागत) बढ़ने से हमारा नुकसान और बढ़ रहा है। उदाहरण देते हुए वे समझाते हैं, "एक लीटर गाय के दूध के पीछे कम से कम 35 रुपए का खर्च आता है। मेरी डेयरी में रोजाना 700 लीटर दूध का उत्पादन होता है। दूध की कंपनियां और सोसायटी में गाय के दूध के मिल रहे हैं 20-22 रुपए। इतनी कम कीमत में डेयरी फार्मस को फायदा हो ही नहीं सकता। पहले मैं सीधे शहर में अपना दूध पहुंचाता था जो अभी बंद है। ऐसे में जो कीमत मिल रही दूध उसी में बेचने में ही भलाई है। अब तो मैंने घी बनाना भी शुरू कर दिया है।"

सीरीज का पहला भाग यहां पढ़ें- लॉकडाउन: किसान की फ़ैक्टरी चालू है, पर ख़रीदार नहीं, सब्जी किसान तबाह हो गए

उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात में पशुआहार कंपनी चलाने वाले वाईके गुप्ता की बातों से आप समझे सकते हैं कि पशुओं का चारा महंगा क्यों हो रहा है। वे बताते हैं, "लॉकडाउन से पहले तक मेरे यहां प्रतिदिन 40 से 50 टन पशुआहार बनता था जो आसपास के जिलों में जाता था। लॉकडाउन के बाद एक तो सारे मजदूर चले गये दूसरे गाड़ियों की आवाजाही नहीं हो रही है। अभी जो लगभग 20 फीसदी उत्पादन हो रहा है लेकिन उसे कहीं भेज नहीं पा रहा हूं। उत्पादन 10 से 15 टन ही कर रहा हूं, वह भी इस उम्मीद में कि लॉकडाउन खत्म होते ही इसकी मांग बढ़ेगी। कच्चा माल जो मंगाता हूं उसकी कीमत 15 से 20 फीसदी बढ़ी गई है।"

एक यह भी है कि देश में लॉकडाउन से पहले भी देश के दुग्ध उत्पादक किसानों को बहुत अच्छी कीमत नहीं मिल रही थी। केंद्र सरकार की वेबसाइट डाटा डॉट जीओवी डॉट इन ने वर्ष 2018 में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। रिपोर्ट में राज्यवार दूध की कीमतें थीं । इसमें देश के 13 राज्यों के कुछ जिलों को शामिल किया गया। भारत की दूध की कीमत फैट के आधार पर तय की जाती है, इसलिए भैंस का दूध महंगा बिकता है।

तीन फीसदी फैट और 8.5 फीसदी प्राकृतिक पदार्थ सॉलिड्स नॉट फेट (एसएनएफ) वाले गाय के दूध की कीमत 31 रुपए प्रति लीटर से ज्यादा किसी भी सोसायटी ने किसानों को नहीं दिया। 31 रुपए प्रति लीटर गाय का दूध केरल के एर्णाकुलम जिले में खरीदा गया। महाराष्ट्र के कई जिलों में तो गायों का दूध 15 रुपए प्रति लीटर तक खरीदा गया, जबकि यहां की प्रदेश सरकार ने कहा था कि वे गाय का दूध 27 रुपए प्रति लीटर से कम में नहीं खरीदेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।


जून 2018 की नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में कॉपरेटिव सेक्टर पूरे देश में सबसे कम रेट महाराष्ट्र के किसानों का है । पिछले वर्षों में कम कीमत को लेकर यहां के किसानों आंदोलन भी किया था।

भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है। वर्ष 2018 की बात करें तो देश में 176.3 मिलियन टन दूध का उत्पादन हुआ। ऐसी खबरें भी आती रही हैं कि देश का डेयरी सेक्टर संकट में है। लोग इस क्षेत्र से जा रहे हैं। हालांकि केंद्र सरकार ने 9 जुलाई 2019 को एक विज्ञप्ति जारी कर इसे झूठ बताया।

पशुपालन और डेयरी विभाग मंत्रालय की ओर से इस विज्ञप्ति में बताया गया, "कोऑपरेटिव मिल्क यूनियन (6 फीसदी फैट और 9 फीसदी एसएनएफ सहित) दूध 48 से 56 रुपए प्रति लीटर बेच रहा है। इसके एवज में किसानों को 29 से 39 रुपए प्रति लीटर दिया जा रहा है। ज्यादातर दूध कंपनियां उपभोक्ताओं से होनी वाली कमाई का 60 से 80 फीसदी उत्पादनकर्ता को दे रही हैं जो दुनिया में सबसे ज्यादा है। इसके अलावा सालाना बोनस भी दिया जाता है।"

आगे बताया, "डेयरी कॉपरेटिव से जुड़े किसानों की संख्या भी बढ़ रही है। वर्ष 2015-16 में 15.84 लाख किसान थे जो 2017-18 में बढ़कर 16.57 लाख हो गये हैं। दूध की कीमतें सरकार नियंत्रित नहीं करती। ऐसे में यह बिल्कुल गलत है कि किसान डेयरी का काम छोड़कर दूसरी तरफ शिफ्ट हो रहे हैं।"

सरकार के हवाले से एक रिपोर्ट यह भी कहती है कि भारतीय डेयरी सेक्टर पिछले चार सालों से 6.4 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। लेकिन इसकी एक सच्चाई यह भी है कि दूध कारोबार से जुड़े किसानों को लिए यह सेक्टर घाटे का सौदा बनता जा रहा है। निजी कंपनियां तो मुनाफा कमा रही हैं लेकिन किसानों की पहुंच से यह अभी भी दूर है।



हरियाणा के पंचकूला में रहने वाले किसान और गैर मिलावटी समाज ग्वाला गद्दी समिति के अध्यक्ष मोहन सिंह अहलूवालिया से देश के लगभग पांच लाख दूध उत्पादक किसान जुड़े हुए हैं। वे भी कहते हैं कि कंपनियां तो अभी भी मुनाफा कमा रही हैं। वे कहते हैं, "लॉकडाउन के इस दौर में जब किसानों को नुकसान हो रहा तब भी सरकारी कंपनियां किसानों की मदद नहीं कर रही हैं। अफवाह उड़वाया जा रहा है कि खुले दूध से कोरोना हो रहा है। इसका नुकसान भी किसानों को हो रहा है।"

"जो किसान गांवों में या प्राइवेट डेयरियों को दूध बेचते हैं सबसे ज्यादा नुकसान उन्हें ही हो रहा है। कीमत 40 फीसदी तक कम हो गई है जबकि सरकारी डेयरियों ने कीमत 20 फीसदी कम की है। सरकार को इस पर बहुत जल्दी कुछ करना होगा। किसान कब तक घी बनायेगा और अगर सब कुछ नहीं हुआ तो उसे बनाकर बेचेगा कैसे। सरकार को चाहिए कि वे हर 10 किमी पर दूध खरीद केंद्र बनाए ताकि किसानों को सही कीमत मिल सके।"

खुले दूध की अफवाह वाली बात आंध्र प्रदेश के जिला कृष्णा के विजयवाड़ा में रहने वाले अमरनाथ श्रीनिवासन भी करते हैं। उन्हें चारे की दिक्कत तो नहीं है क्योंकि उनकी खुद की दुकान है, लेकिन अफवाहों ने उन्हें बहुत नुकसान पहुंचाया।

वे बताते हैं, "लोगों ने अफवाह उड़ा दी कि खुले के दूध से कोरोना हो जायेगा। कई दिनों तक लगभग 100 लीटर मेरा दूध बर्बाद हो गया। मुश्किल से बाकी के 150 लीटर दूध बेच पाया वह भी आधी कीमत में। भैंस का जो दूध 75 रुपए लीटर तक बेचता था, वह 50-55 रुपए हो गया। पन्नी का खर्च बढ़ गया ऊपर से। पन्नी का पैकेट भी तो नहीं मिलता आसानी से। जिस दिन पन्नी नहीं मिला तो उस दिन दूध बहुत कम दाम में बिकता है और पूरा बिक भी नहीं पाता।"

वर्ष 2018 में पशुपालन और डेयरी विभाग मंत्रालय ने डेयरी सेक्टर के लिए 'नेशनल एक्शन प्लान फॉर डेयरी डेवलपमेंट विजन 2022' में लिखा है कि भारत में दूध उत्पादन का औसत महज तीन लीटर प्रति पशु है। डेयरी किसानों को एक दिन का कुल 85 रुपए मिलता है। इसमें से 70 फीसदी हिस्सा फीड (चारा) में खर्च में हो जाता है। दूध की मौजूदा कीमत से किसानों की मासिक बचत 516 (6.44 रुपए प्रति लीटर) रुपए ही है।


इसी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि किसानों की आय दोगुनी करने में डेयरी सेक्टर महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। ऐसे में 2022 तक हमारा प्लान है कि किसानों को प्रति लीटर दूध के पीछे कम से कम 8.63 रुपए की बचत हो ( दूध खरीद मूल्य 43.14 रुपए प्रति लीटर का 20 फीसदी )। यह भी लक्ष्य निर्धारित किया गया है कि 2011-22 तक डेयरी किसानों की इनकम 516 रुपए प्रति महीने से बढ़ाकर 1306 (8.63 रुपए प्रति लीटर) रुपए किया जायेगा, लेकिन अब यह संभव नहीं लग रहा।


जम्मू-कश्मीर के जिला बांडीपोरा के हजन गांव में रहने वाले दुग्ध उत्पादक किसान अली रशीद के पास आठ गाये हैं। वे पहले 30 से 35 रुपए प्रति लीटर की दर से दूध पास की डेयरी में बेचते थे, लेकिन अब पूरा दूध भी नहीं बेच पा रहे और कीमत भी आधी मिल रही है।

वे गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "30-32 लीटर दूध बेचता था। लॉकडाउन लगने के दो तीन दिन बाद से पास की डेयरी बंद हो गई। उन्होंने बताया कि वे खुद दूध नहीं बेच पा रहे हैं तो खरीदेंगे कैसे। अब कुछ दूध से घी बना रहा हूं तो कुछ गांवों में जाकर बेचता हूं, लेकिन यहां तो गांवों में जाना भी इतना आसान नहीं है। डेयरी से रोज के रोज के पैसे मिलते थे, अभी मुश्किल हो रही है। गांवों में दूध 17-18 रुपए में बेच रहा हूं।"

जम-जम घाटी में दूध खरीदने वाली एक बड़ी प्राइवेट कंपनी है जो रोजाना 23,000 लीटर दूध लॉकडाउन से पहले खरीदा करती थी। अली रशीद की बात को सही बताते हुए कंपनी के मैनेजर तजमुल इस्लाम कहते हैं, "यह तो सही है कि मवेशी रखने वाले किसान दूध हम तक लेकर नहीं आ पा रहे हैं। मेरे यहां खुद लगभग 23,000 लीटर दूध रोज आता था जो अब 10,000 लीटर पर पहुंच गया है। यह दूध तब आ पा रहा है जब हमारी गाड़ी किसी तरह फार्म तक जा पा रही है।"

कृष्ण अप्पा लॉकडाउन से पहले प्रतिदिन अपने घर जिला तिरुवनंतपुरम के ब्लॉक नेडूमांगड के गांव विल्लोरकोनम से लगभग 70 किमी दूर केरल के कन्याकुमारी दूध बेचने जाते थे। वहां वे मोलभाव करके अच्छी कीमत में दूध बेचते थे, लेकिन अब जो कीमत मिल रही उससे वे नाराज हैं। वे गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "80 से 90 लीटर दूध प्रतिदिन 38 से 40 रुपए लीटर तक बेच लेता था। लॉकडाउन की वजह से जा नहीं पा रहा तो गांवों में वही दूध 21-22 रुपए लीटर में बेचना पड़ रहा है। कई बार तो दूध बिक ही नहीं पाता तो उससे घी बनाते हैं या फिर जलाकर कुछ खाते हैं, कुछ पड़ोस में दे देते हैं।"


मध्य प्रदेश, इंदौर के सांवेर तहसील के अशोक कुमार बताते हैं, "दूध के कारोबार से तो वैसे ही फायदा नहीं था। हमारा दूध तो पहले 20-21 में बिक भी जाता था, अब 17-18 रुपए प्रति लीटर तक आ गया है। गाय का दूध है तो इसलिए फैट भी कम होता है। पहले एक गाय पर खर्च 200 से सवा दो-सौ रुपए बैठती थी, अब यही खर्च 400 रुपए तक हो गया है। खली की कीमत बढ़ गई है। फायदे का तो पता नहीं, घाटा बढ़ता जा रहा है।"

किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष पुष्पेंद्र सिंह चौधरी कहते हैं, "देश की अर्थव्यवस्था के लिए दुग्ध किसान बहुत जरूरी हैं। ऐसे में सरकार को इनके लिए जल्द ये जल्द कोई न कोई तरकीब निकालनी चाहिए। दूध की कीमत 30 फीसदी तक हुई तो वहीं लागत भी इतनी ही बढ़ गई है। ऐसे में उन किसानों को इसका बहुत नुकसान हो रहा है जो रोज दूध बेचकर घरों का खर्च चलाते हैं। हमारे यहां तो 70 फीसदी लघु और छोटे किसान हैं जो दूध बेचकर थोड़ा बहुत मुनाफा कमा लेते थे। उनका काम पूरी तरह बंद हो गया है।"

भारत में लगभग 28 लाख करोड़ रुपए मूल्य का कृषि उत्पादन होता है। इसमें 25% हिस्सा यानी लगभग सात लाख करोड़ रुपए मूल्य का दूध का उत्पादन होता है। यदि दूध समेत पशुपालन से होने वाली सम्पूर्ण आमदनी का आंकलन करें तो कृषि में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग 30% है। मूल्य के लिहाज से दूध देश की सबसे बड़ी फसल है।

देश में उत्पादन होने वाले दूध का मूल्य गेहूं और चावल दोनों फसलों के संयुक्त मूल्य से भी ज्यादा है। देश की गन्ने की फसल के मूल्य से सात गुना मूल्य का दूध उत्पादन होता है। लगभग 18 करोड़ टन दूध उत्पादन के साथ हम विश्व के 20% दूध का उत्पादन करते हैं और पिछले दो दशकों से प्रथम स्थान पर बने हुए हैं।

नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार 2016-17 में हमने अपनी घरेलू मांग 14.8 करोड़ टन से भी 1.5 करोड़ टन अधिक यानी 16.3 करोड़ टन दुग्ध उत्पादन किया था। 2032-33 में भी देश में 29 करोड़ टन की माँग के सापेक्ष 33 करोड़ टन दुग्ध उत्पादन होने का अनुमान है। अर्थात हमारा देश दूध के विषय में वर्तमान और भविष्य के लिहाज से आत्मनिर्भर ही नहीं है बल्कि दुग्ध उत्पादों को अन्य देशों के बाजारों में निर्यात करने की स्थिति में भी है।

"चारे की कीमत बढ़ने से किसान मवेशियों को खाना कम दे रहे हैं। इसका असर अभी तो नहीं आगे देखने को मिलेगा। जब गाय-भैंसों को सही खाना नहीं मिलेगा तो उनका बच्चा भी कमजोर होगा, दूध से फैट कम होगा। अगली नस्ल कमजोर हो जायेगी और यह भारत के डेयरी सेक्टर के ठीक नहीं कहा जा सकता।" पुष्पेंद्र सिंह कहते हैं।

ऐसे में ऐसा क्या हो जिससे दूध किसान नुकसान से बच सकें, इस बारे में वे कहते हैं, "दूध उत्पादन में तो कोई कमी है नहीं और न ही मांग में, दिक्कत है लोगों तक पहुंच की। ऐसे में सरकार को चाहिए कि जैसे वे राशन की सप्लाई कर रहे हैं कि वैसे ही दूध की सप्लाई भी करें। गरीबों को जिनके पास खाने की कमी है, या जिन्हें क्वारंटाइन किया गया है उन्हें भी दूध या उससे बने उत्पाद दें। इसके लिए आधार को राशन कार्ड की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे किसानों का भल तो होगा ही, गरीबों को भी फायदा होगा।"

वहीं मध्य प्रदेश के किसान नेता भगवान मीणा सरकार से किसानों के लिए आर्थिक मदद की मांग कर रहे हैं। वे कहते हैं, "यह शादियों का सीजन होता है, दूध की मांग खूब रहती थी, लेकिन लॉकडाउन की वजह से किसानों को भारी नुकसान हो रहा है। बहुत से लोग किसानों को राय दे रहे हैं कि किसान घी बना ले, लेकिन बाजारों में नकली घी के कारण किसानों को यहां भी नुकसान ही होगा। ऐसे में अब सरकार को चाहिए कि दूध उत्पादक किसानों के लिए आर्थिक पैकेज का ऐलान करे।"


तेलंगाना के रंग्गारेड्डी जिले के युवा वरुण जक्कीनापल्ली (32) की गिनती क्षेत्र के बड़े दूध उत्पादक किसानों में होती है, उनके पास 300 गाये हैं और प्रतिदिन लगभग 2,500 लीटर दूध का उत्पादन होता है। वे गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "हम ज्यादातर दूध की सप्लाई खुद घरों तक करवाते थे, क्योंकि कंपनी से हमें 30 रुपए प्रति लीटर की कीमत ही मिलती थी जबकि हम 42 रुपए लीटर तक दूध आसानी से बेच लेते थे। यही दूध 20-25 रुपए लीटर लोकल बाजार में बिक रहा है। मजबूरी यह है कि यह ऐसा आइटम है जिसे हम बहुत दिनों तक रख भी नहीं सकते। पहले कंपनी को प्रतिदिन 1,000 लीटर दूध ही बेचते थे अब सब बेचना पड़ रहा है। मतलब रोजना का 40 हजार रुपए तक का नुकसान हो हो रहा है।"

देश की सबसे बड़ी दूध और दुग्ध उत्पाद सहकारी संस्था गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन संघ लिमिटेड (अमूल) के प्रबंध निदेशक आरएस सोढ़ी गांव कनेक्शन को बताते हैं, "किसानों की मदद के लिए प्राइवेट कंपनियां पहले की अपेक्षा ज्यादा दूध खरीद रही हैं। हमने हाल ही में मीटिंग की थी जिसमें सबने बताया कि वे ज्यादा से ज्यादा दूध खरीदने का प्रयास कर रहे हैं। अमूल जो दूध दूसरे राज्यों से लेता है उसमें 80 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। होटल, मिठाई की दुकाने आदि बंद होने से दूध की खपत कम हुई है, इसका नुकसान उन किसानों को को रहा है जो कॉपरेटिव को दूध नहीं बेच पा रहे हैं।"

"जहां-जहां कॉपरेटिव अच्छी स्थिति में हैं वहां के किसानों को दिक्कत नहीं है, जैसे आप गुजरात और राजस्थान का उदाहरण ले लीजिये। धीरे-धीरे गर्मी बढ़ रही है, ऐसे में दूध उत्पादन भी कम हो रहा है और चारे की कमी के कारण किसानों की लागत भी बढ़ी है, इसलिए उन्हें नुकसान ज्यादा लग रहा है। सरकार और दूध कंपनियों मिलकर इस पर काम कर रही हैं। आने वाले कुछ दिनों में सब कुछ पटरी पर आ जायेगा।"

यह भी पढ़ें- 20 रुपए लीटर पानी, 20 रुपए लीटर गाय का दूध, फिर गाय क्यों पाले किसान ?

   

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.