किसान व्यथा: 100 किलो प्याज बेचने पर मिला 150 रुपए, मुनाफा छोड़िए, पांच महीने की मेहनत के बाद जेब से गया पैसा

जिस प्याज की कीमत चार महीने पहले तक 200 रुपए प्रति किलो तक थी, अब उसी प्याज की कीमत मध्य प्रदेश की मंडियों में दो-चार रुपए किलो पहुंच गई है। लॉकडाउन के समय में मुनाफे की आस में बैठे किसानों को नुकसान के अलावा कुछ हासिल नहीं हो रहा।

Mithilesh DharMithilesh Dhar   11 May 2020 4:00 AM GMT

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जब सरपंच ने बताया कि मंडी खुल गई है। कल तुम्हे भी चलना है, तो एक हफ्ते से इंतजार में बैठे संग्राम सिंह खुश हो गये, लेकिन ये खुशी बहुत देर तक उनके चेहरे पर नहीं रह पाई। अपने घर से 25 किलोमीटर दूर मंडी में 23 कुंतल 38 किलो प्याज के बदले जब व्यापारी ने उन्हें 1.50 पैसे प्रति किलो के हिसाब से 3,507 रुपए थमाया तो उनके होश उड़ गये।

"पांच महीने की मेहनत के बाद मिला क्या ? 12,000 रुपए से ज्यादा का नुकसान हो गया। क्या फायदा ऐसी खेती से, लेकिन मीडिया अब यह खबर नहीं दिखायेगी। कुछ दिनों पहले जब प्याज की कीमत 100 रुपए पहुंच गई थी तब कितना हंगामा हुआ था।" नाराज होते हुए संग्राम सिंह कहते हैं।

चार महीने पहले नवंबर-दिसंबर में इसी प्याज की कीमत बाजारों में 200 रुपए प्रति किलो तक पहुंच गई थी।

एक तरफ पूरा देश इस समय कोरोना से जंग लड़ रहा है तो दूसरी ओर देश के किसान सही कीमत के लिए एक अलग लड़ाई लड़ रहे हैं, हालांकि लॉकडाउन के पहले दिन से ही सरकार का दावा है कि किसानों को कोई दिक्कत नहीं आ रही है, लेकिन किसानों को अपनी फसल फेंकनी पड़ रही है, दूध बहाना पड़ रहा है। कहीं कुछ कीमत मिल भी रही है तो वह बहुत कम।

मध्य प्रदेश के जिला रतलाम के तहसील जावरा और गांव मेहंदी के रहने वाले संग्राम सिंह के साथ भी यही हुआ। लॉकडाउन के बीच रतलाम की जावरा मंडी प्रशासन ने फैसला लिया मंडियों में एक बार में 6 से आठ गांवों के किसानों को बुलाया जायेगा ताकि मंडी में भीड़ इकट्ठा ना हो।

संग्राम सिंह छह मई को मंडी में प्याज बेचने गये थे जहां उन्हें प्याज का रेट मिला 150 रुपए कुंतल (डेढ़ रुपए किलो)। उन्होंने गांव कनेक्शन को फोन पर बताया कि कैसे उन्हें फायदे की जगह नुकसान उठाना पड़ा।

वे बताते हैं, "मैंने एक बीघा (आधा एकड़) खेत में प्याज लगाया था। जिसमें 3,000 रुपए का बीज लगा। 1,350 रुपए की डीएपी की बोरी लगी, यूरिया 800 रुपए का (दो बोरी) लगा। 5,000 रुपए का खर्च लगवाने में लगा और 3,000 रुपए प्याज उखाड़ने और पैक करने के लग गये। बीच में कीड़ा लगा था तो 2,000 रुपए का स्प्रे भी किया। पांच महीने की मेहनत की और पानी लगाने में खर्च आया 1350 रुपए। मंडी घर से 25 किलोमीटर दूर है तो ट्रैक्टर वाले ने 1,500 रुपए किराया ले लिया। कुल मिलाकर खर्च लगभग 18,000 रुपए आया और मुझे मिला 3,507 रुपए मतलब सीधे-सीधे 15 हजार रुपए के आसपास का शुद्ध नुकसान हुआ।"

प्याज बेचने के बाद संग्रमा सिंह को मंडी से मिली रशीद

मध्य प्रदेश का रतलाम, इंदौर और मंदसौर जिला प्याज की खेती के लिए जाना जाता है। यहां खेतों से नया प्याज निकलने लगा है कि लेकिन मंडियां बंद होने के कारण अभी ठीक से खरीदी नहीं शुरू हो पायी है। जहां खरीद हो भी रही है तो वहां कीमत बहुत नीचे चल रही है।

रतलाम के तारा खेड़ी गांव के किसान शिव मंगल के साथ भी वैसा ही हुआ जैसा संग्राम सिंह के साथ हुआ।

"जिले की जावरा मंडी में पहली बार मैंने 284 रुपए प्रति कुंतल के हिसाब 19.5 कुंतल प्याज बेचा। फिर सोचा कि अभी थोड़े दिन रुक जाते हैं। तीन दिन बाद भी मंडी गया 22 कुंतल प्याज लेकर तो कीमत और कम हो गई। इस बार मैंने 150 रुपए कुंतल में प्याज बेचा। पैसे चाहिए थे इसलिए बेचने के लिए सोचा और बेचूंगा तो नहीं क्या करूंगा। इतना प्याज घर पर भी तो नहीं रख सकता।" शिव मंगल कहते हैं।

वे बात जारी रखते हुए आगे कहते हैं, "15 किलोमीटर दूर किराया लगाकर प्याज ले गया था, नहीं बेचता तो अगली बार फिर किराया लगाता और नुकसान और बढ़ जाता। मेरे पास कुछ प्याज है अभी दाम बढ़ने का इंतजार कर रहा हूं, लेकिन बहुत दिनों तक इसे घर पर नहीं रख पाऊंगा। गर्मी आ रही है, किसी भी कीमत पर बेचना पड़ेगा नहीं तो सड़ने लगेगा।"

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"जावरा मंडी में तो 90 रुपए कुंतल तक में प्याज बिका है अभी। इसलिए मुझे लग रहा है कि इस साल प्याज किसानों के साथ वही होगा जो हर सोल होता है।" शिव मंगल की बातों में निराशा साफ झलक रही थी।

ऐसा नहीं है कि यह हाल बस रतलाम जिले में ही है। मंदसौर जिले में प्याज की कीमत अभी दो से तीन रुपए चल रही है जबकि बाजार में इसी प्याज की कीमत 20 से 25 रुपए प्रति किलो है।

देश में में अलग-अलग राज्यों में पूरे साल प्याज की खेती होती है। अप्रैल से अगस्त के बीच रबी की फसल होती है जिसमें करीब 60 प्रतिशत प्याज का उत्पादन होता है। अक्टूबर से दिसंबर और जनवरी से मार्च के बीच 20-20 प्रतिशत प्याज का उत्पादन होता है।

कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार प्‍याज के उत्पादन में महाराष्ट्र देश में नंबर वन राज्य है। देश की कुल उत्पादन का 33% प्याज महाराष्ट्र में होता है। इसके अलावा कर्नाटक, एमपी ,गुजरात , बिहार , आंध्र प्रदेश , राजस्थान , हरियाणा , तेलंगाना प्याज के बड़े उत्पदाक राज्य हैं।

देश में प्याज उत्पादन के मामले में राज्यों की स्थिति। APEDA के अनुसार

मध्य प्रदेश का इंदौर प्याज की बेहतरीन किस्म की पैदावार के लिए जाना जाता है, लेकिन इंदौर कोरोना वायरस की चपेट में है। ऐसे में जिले की मंडियां बंद हैं। किसान खेतों में ही प्याज बेच रहे हैं, लेकिन कीमत यहां भी बहुत कम है।

इंदौर से लगभग 40 किमी दूर महू ब्लॉक के हरसोला गांव के किसान कृष्णा पाटीदार ने तीन दिन पहले बाहर से आये व्यापारी को 700 कुंतल प्याज छह रुपए (600 रुपए कुंतल) के हिसाब से बेचा था।

वे गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "प्याज खेतों से निकल गया है तो उसे बेचना ही पड़ेगा। मंडियां बंद है तो ऐसे में हम खेतों से ही प्याज बेच रहे हैं, लेकिन कीमत यहां भी अच्छी नहीं है। छह रुपए किलो हिसाब से व्यापारी ने प्याज लिया। इंदौर का प्याज जल्दी खराब नहीं होता। यहां का ही प्याज सबसे ज्यादा स्टॉक में रखा जाता है। ऐसे में व्यापारी खेतों में आ रहे हैं।"

मध्य प्रदेश के मंदसौर में छह जून 2017 को जब किसान प्याज की सही कीमत मांग रहे थे तब उन पर पुलिस फायरिंग हुई थी जिसमें छह किसानों की मौत हो गई थी। इसके बाद तत्कालीन शिवराज सिंह चौहान ने प्याज की कीमत आठ रुपए तय की थी। मध्य प्रदेश सरकार ऐसा करने वाला पहला प्रदेश बना था।

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कृष्णा जिस किस्म की प्याज की खेती करते हैं उसकी गणित समझाते हैं। वे कहते हैं, "इस सीजन में बहुत नुकसान हुआ। बार-बार बारिश हुई जिस कारण प्याज में कीड़े लग गये। बार-बार स्प्रे करना पड़ा जिस कारण खर्च और बढ़ गया। एक बीघा ( लगभग आधा एकड़) में प्याज की खेती के लिए सबसे पहले तो पांच हजार रुपए की बीज ही लग गया। इसके बाद प्याज को चोपने (खेत में लगाने) की पूरी प्रक्रिया में चार से पांच हजार रुपए का खर्च आया। दवाओं का खर्च 15 हजार रुपए से ज्यादा हो गया। जब फसल पक जाती है तब निकालने के लिए जो मजदूर लगते हैं उसके पीछे भी सात से आठ हजार रुपए खर्च हो जाता है।"

"कुल मिलाकर एक बीघा में 30 से 35000 रुपए का खर्च आ जाता है जबकि पैदावार सवा सौ कुंतल (100 कुंतल से ज्यादा) के आसपास होती है। ऐसे में वर्तमान छह रुपए के प्रति किलो के हिसाब कुल 60,000 रुपए की फसल होती है। इसमें ट्रैक्टर से मंडी तक जाना, सिंचाई आदि का पानी नहीं जुड़ा है। ऐसे में आप खुद फायदे और नुकसान का आकलन कर सकते हैं। एक किलो प्याज पैदा करने में कम से कम 10 से 11 रुपए खर्च आता है। ऐसे में हमें कीमत 1,500 रुपए कुंतल तक मिले तो कुछ बात बने।"


मध्य प्रदेश में प्याज कीमतों का गिरना कोई नई बात नहीं है। सीजन में अक्सर प्रदेश के किसानों को प्याज की सही कीमत के लिए जूझना पड़ता है।

उदयराम देवीलाल (45) मध्य प्रदेश के मंदसौर की मंडी से 40 किमी दूर सीतामऊ तहसील के सेमलखेड़ा गांव में रहते हैं। उन्होंने इस साल ढाई बीघा (सवा एक एकड़) में प्याज की खेती की है।

वे बताते हैं, "लॉकडाउन की वजह से मंडी कभी-कभी खुल रही है, लेकिन प्याज की कीमत अभी बहुत कम है। तीन से चार रुपए किलो का हिसाब मिल रहा है। अभी कुछ दिन तक तो सही कीमत के लिए इंतजार करेंगे लेकिन इसे बहुत दिन तक रख भी तो नहीं सकते। बेचना तो पड़ेगा ही।"

प्याज की गिरती कीमतों को लेकर मध्य प्रदेश पूर्व कृषि मंत्री सचिन यादव ने अपने ट्वीट में कहा, "मैं मुख्यमंत्री जी से अनुरोध करूंगा कि वे तुरंत मुख्यमंत्री प्याज प्रोत्सहान योजना लागू करें ताकि प्रदेश के प्याज किसानों को राहम मिल सके। हमारी पिछली सरकार ने कमलनाथ के नेतृत्व में प्रदेश के 56 हजार किसानों को 200 करोड़ रुपए का लाभ देने का काम किया था। पिछले बार हमारी सरकार ने छह मई से 31 मई तक किसानों से प्याज खरीदा था। लेकिन इस बार अभी तक न तो खरीदी शुरू हो पाई है और न ही पंजियन शुरू हुआ है।"

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इस मामले पर गांव कनेक्शन ने मध्य प्रदेश के वर्तमान कृषि मंत्री कमल पटेल से बात की। उन्होंने पहले सचिन यादव के बायन पर पलटवार करते हुए कहा, "जब सचिन यादव मंत्री थे तब उन्होंने अपने क्षेत्र खरगोन में चना होता है 22.54 कुंतल प्रति हेक्टेयर और इन्होंने समर्थन मूल्य पर चना खरीदा प्रति हेक्टयेर 15 कुंतल। वे अपने जिले के किसानों को न्याय नहीं दिला पाये। छिंदवाड़ा में प्रति हेक्टयेर चना होता है 17 कुंतल और कमलनाथ जी ने 19 कुंतल प्रति कुंतल खरीदा। मतलब उत्पादन से ज्यादा खरीद हुई। जब मैं मंत्री बना तो हमने इसे तुरंत रोका। पिछली सरकार ने बस ट्रांसपोर्टरों को फायदा पहुंचाया। हम इसकी जांच भी कर रहे हैं। एक महीने के अंदर हम दोषियों को जेल भेजेंगे।"


"रहा सवाल प्याज का तो भारत सरकार किसानों को सीधे लाइसेंस दे रही प्याज निर्यात करने के लिए। रतलाम में कुछ व्यापारियों को जाने नहीं दे रहे थे तो मैंने तुरंत कलेक्टर से बात की। यह भी हकीकत है कि जब किसान की फसल आती है तो कीमत कम हो जाती है। किसान जब मंडी में जाता है तो पता चलता है कि व्यापारी की क्षमता 10 हजार कुंतल खरीदने की है और माल आ गया 50 हजार कुंतल, तो व्यापारी सही कीमत क्यों लगायेगा।" वे आगे कहते हैं।

"इसीलिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में हमने मंडी अधिनियम में संसोधन किया है। पहले नियम था कि रतलाम की व्यापारी रतलाम मंडी में उपज खरीद सकता था। अब प्रदेश कोई भी व्यक्ति प्रदेश के किसी भी मंडी में खरीदी कर सकता है। ई-ट्रेडिंग के माध्यम से देश को कोई भी व्यापारी मध्य प्रदेश के किसानों से उपज खरीद सकता है। इससे किसानों को उचित मूल्य मिलेगा। गांव के किसान अब खुद व्यापारी बनेंगे। हम जितना उत्पादन किसान कर रहा है, खरीद रहे हैं। चूंकि प्याज के लिए सरकारी खरीद की नीति नहीं है इस कारण ऐसा हो रहा है, लेकिन हम पूरी कोशिश कर रहे हैं। प्रदेश के किसानों को उपकी उपज की सही कीमत मिलेगी।" कमल पटेल कहते हैं।

  

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