खेतों में रेप की घटनाएं सुन-सुनकर अकेले खेत जाने में असुरक्षित महसूस करने लगी हैं महिला किसान और खेतिहर मजदूर

देश में बढ़ती रेप की घटनाओं के दौरान गाँव कनेक्शन ने देश के अलग-अलग राज्यों में हर वर्ग और समुदायों से बात करके एक विशेष सीरीज शुरू की है जिसका नाम है, 'जिम्मेदार कौन? इस सीरीज में महिला किसान, स्कूल-कॉलेज जाने वाली छात्राएं, वंचित और दलित समुदाय की महिलाएं, रेप के पहले और बाद की मुश्किलें जैसे कई बिन्दुओं को कवर करने का प्रयास किया गया है। आज पढ़िए इस सीरीज का पहला भाग ...

Neetu SinghNeetu Singh   2 Nov 2020 3:00 PM GMT

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खेतों में रेप की घटनाएं सुन-सुनकर अकेले खेत जाने में असुरक्षित महसूस करने लगी हैं महिला किसान और खेतिहर मजदूर

देशभर में महिला किसान दिवस मनाने की तैयारियां जोरों-शोरों से चल रही थीं तभी दिल्ली से लगभग 600 किलोमीटर दूर यूपी के बाराबंकी जिले में 14 अक्टूबर की शाम को खेत में धान काट रही एक 17 वर्षीय दलित लड़की की गैंगरेप करके हत्या कर दी गयी। ये युवती उस सुबह को भी नहीं देख पायी, जिस सुबह उसके जैसी देश की 6 करोड़ से ज्यादा महिला किसानों-खेतिहर मजदूरों के सम्मान के लिए देश में महिला किसान दिवस 2020 का जश्न मनाया जाना था।

टूटी झोपड़ी में बैठी मृतका की माँ खुद को कोस रही थी, "हम भी बिटिया के साथ खेत पर धान काटने चले जाते तो शायद वो बच जाती।"

मृतका की माँ के पैर में फोड़ा (घाव) हो गया था जिससे उन्हें चलने में दिक्कत हो रही थी, घर में पांच-छह महीने के दो जुड़वाँ बच्चे थे जिनकी देखरेख करने के लिए वो घर पर थीं। हर रोज की तरह मृतका के पिता दिहाड़ी मजदूरी करने गये थे और वो अकेले खेत में धान काटने गयी थी। खेत में धान काटने का थोड़ा सा ही हिस्सा बचा था जो अगली सुबह यानि 15 अक्टूबर 2020 को किसान दिवस के दिन कट जाता पर उससे पहले ही दो लड़कों ने उस युवती के साथ गैंगरेप करके उसकी हत्या कर दी। दोनों आरोपी उसके गांव के ही हैं। जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था।

देश में खेत में काम करने के दौरान होने वाली यह कोई पहली घटना नहीं है। अक्टूबर के पहले सप्ताह में गुजरात के कच्छ जिले के एक गांव में 22 साल की एक आदिवासी महिला खेत में काम कर रही थी तो उसके साथ रेप हुआ। राजस्थान के जालौर में जिले में भी इसी महीने दो महीनों से रेप की वारदात हुई। वो दोनों खेत पर गई थीं। देशभर में चर्चित हाथरस मामले में भी पीड़िता खेत में जानवरों के लिए चारा काटने गयी थी तभी उसके साथ गैंगरेप करके हत्या का मामला सामने आया था। यूपी के सीतापुर जिले में एक 11 साल की बच्ची खेत में बकरियां चराने गयी थी तब उसके साथ रेप हो गया। यूपी के एक और जिले लखीमपुर में एक 13 साल की बच्ची खुले में शौच के लिए गयी थी तब उसकी गैंगरेप करके हत्या कर दी गयी। ये कुछ घटनाएं उदाहरण मात्र हैं। देश में हर रोज अलग-अलग हिस्सों से ऐसे कई मामले सामने आते हैं।

बाराबंकी जिले के एक गाँव में खेत में धान काटती महिलाएं. फोटो- नीतू सिंह

डॉव पॉन्ट के कृषि प्रभाग कोटवा एग्रीसाइंस के वर्ष 2018 के एक अध्ययन के मुताबिक़ क़रीब 78 फ़ीसदी महिला किसानों को यौन दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है और यहीं से उनकी चिंताओं की शुरुआत होती है। ये स्थिति तब है जब दुनियाभर में महिलाओं का कृषि क्षेत्र में योगदान 50 प्रतिशत से भी ज्यादा है। यानि पूरे विश्व के खाद्य उत्पादन में से आधे उत्पादन का योगदान ग्रामीण महिलाओं का है। खाद्य और कृषि संगठन (Food & Agriculture Organisation) के आंकड़ों की मानें तो कुछ विकसित देशों में यह आंकड़ा 70 से 80 प्रतिशत भी है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि पूरी दुनिया में महिलाएं ग्रामीण और राष्ट्रीय अर्थ व्यवस्थाओं के विकास की रीढ़ हैं। बावजूद इसके ये अपने ही कार्यस्थल पर सुरक्षित नहीं महसूस करतीं।

महिलाएं ग्रामीण अर्थव्वस्था की रीढ़ हैं। किसान और खेतिहर मजदूर के रुप में खेती किसानी से लेकर पशुपालन तक में बड़ी भागीदारी है। अगर महिलाएं खेतों में जाना बंद कर दें तो रोपाई से लेकर निराई और फसल कटाई के जाने कितने काम बंद हो जाएंगे। खेत महिलाओं की बड़ी आबादी की आजीविका का जरिया भी हैं। लेकिन इन खेतों में काम करने वाली महिलाएं चाहें वो किसान हो या खेतिहर मजदूर कई बार शारीरिक और मानसिक शोषण का शिकार होती हैं।

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में मृतका (जिसका जिक्र ऊपर है) की एक पड़ोसिन हूपराजा गौतम (60 वर्ष) बताती हैं, "ऐसी घटना तो पहली बार हुई है लेकिन हम लोग तो जरा सी गलती पर खेत मालिक की गाली-गलौज (अभद्र भाषा) तो आये दिन सुनते हैं। इस गाँव में जितने भी घर हैं सब भूमिहीन हैं। हमलोग दूसरों के खेत में मजदूरी करके, खेत बटाई लेकर ही गुजारा करते हैं। बहुत बार ठेकेदार हमारी बहु-बेटियों के साथ छेड़छाड़ करते हैं पर हम लोग जहर का घूंट पीकर रह जाते हैं कुछ बोलते नहीं हैं अगर बोल दिया तो काम बंद, और फिर हमारी सुनेगा भी कौन?"

बाराबंकी जिले में गैंगरेप मृतका की माँ जिनकी नाबालिग बच्ची की 14 अक्टूबर को हत्या हर दी गयी थी. फोटो: यश सचदेवा

हूपराजा की बातों का वहां बैठी कई महिलाएं समर्थन करती हैं। वहीं बैठीं घूँघट की आड़ से शान्ती गौतम (35 वर्ष) धीमी आवाज़ में कहती हैं, "हमलोग तो वैसे भी बदनाम हैं लोग कहते हैं पैसों के लालच में ये कोई भी झूठा इल्जाम लगा देती हैं। ये बिटिया अगर मरती नहीं तो कानोंकान किसी को खबर नहीं होती कि इसके साथ कोई गलत काम भी हुआ है। मजबूरी का फायदा बहुतों का उठाया गया है पर बोलने की हिम्मत किसमें है? कौन अपने पैर कुल्हाड़ी मारे? एक तो आदमियों से कम हमारी मजूरी (मजदूरी) है ऊपर से महीनों, कभी तो सालों उनके घर के चक्कर काटते रहो, चप्पल घिस जाए पर पैसे नहीं मिलते।"

नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (NSSO) के आंकड़ों की मानें तो 23 राज्यों में कृषि, वानिकी और मछली पालन में ग्रामीण महिलाओं के कुल श्रम की हिस्सेदारी 50 फीसदी है। इसी रिपोर्ट के अनुसार, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और बिहार में ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी का प्रतिशत 70 प्रतिशत रहा है। इसके अलावा पश्चिम बंगाल, पंजाब, तमिलनाडु और केरल में महिलाओं की भागीदारी 50 फीसदी है। वहीं, मिजोरम, आसाम, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ और नागालैंड में यह संख्या 10 प्रतिशत है।

महिला किसानों के लिए पिछले कई वर्षों से सड़क से लेकर संसद तक कानूनी लड़ाई लड़ रही महिला किसान अधिकार मंच (MAKAAM) की सदस्य और सामाजिक कार्यकर्ता कविता कुरुगंटी कहती हैं, "रेप और मर्डर वाली घटनाएं बहुत ज्यादा हो रही हैं। जहाँ पर ये महिला किसान अपने रोजगार के लिए खेतों में काम करती हैं उनका कार्यस्थल ही अब सुरक्षित नहीं बचा है। सरकार कितने ही अलग-अलग कानून क्यों न बना ले पर कुछ बदलने वाला नहीं। हम आपको केरला की पंचायतों का उदाहरण देते हैं, वहां की पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी से क्राइम मैपिंग की एक्सरसाइज होती है जिसमें वो स्थान चिंहित किये जाते हैं जहाँ पर सबसे ज्यादा छेड़छाड़ होने की संभावना होती है।"

धान पीटती महिला किसान, वो महिला किसान जो आज अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं. फोटो: यश सचदेवा

केरल ने ग्राम पंचायत में स्थानों को चिन्हिंत कर उन्हें सुरक्षा के मानकों और पूर्व घटी घटनाओं के आधार पर ग्रीन, रेड ब्लू जोन में बांट रखा है और उसी के अनरुपु सुरक्षा के इंतजाम किए जाते हैं। कविता कुरुगंटी आगे बताती हैं, " रेड जोन में सबसे ज्यादा सिक्युरिटी रखी जाती है जिस पर पूरी पंचायत की नजर रहती है। पंचायत स्तर पर लड़कियों को जहाँ मार्शल आर्ट सिखाई जाती वहीं इससे ज्यादा जोर लड़कों के साथ इन मुद्दों पर बातचीत की जाती है जिससे वो लड़कियों को लेकर संवेदनशील रहें। इस मॉडल में सरकार ने पैसे खर्च किये थे इससे क्राइम रेट काफी कम हुआ था। जबतक इस तरह के कार्यक्रम बाकी जगह नहीं किये जाएंगे तबतक ग्रामीण स्तर पर महिला किसानों की सुरक्षा में कोई बदलाव नहीं हो सकता।"

महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए केरल में एक कुडुमश्री मॉडल की शुरुआत हुई थी। इसके तहत आठ-दस महिलाएं समूह में एक साथ खेतों में काम करने जायेंगी। ये बंजर पड़ी जमीन को खेती योग्य बनाएंगी जिसका पैसा इन्हें सरकार देगी। ये मॉडल यहाँ काफी सफल रहा है। सरकार का मानना है कि जब महिलाएं खेतों में समूह में काम करने जायेंगी तब उनकी साथ होने वाली रेप जैसी घटनाएं कम होंगी।

एक अनुमान के मुताबिक पंजाब में 15 लाख मजदूर खेतों में काम करते हैं। नवभारत टाइम्स में 11 मई 2019 को छपी एक रिपोर्ट में दिए गये बयान के अनुसार अर्थशास्त्र के जानकार प्रोफेसर ज्ञान सिंह और उनकी टीम ने पंजाब के 11 जिलों के 1017 घरों से प्राइमरी डेटा इकट्ठा किया था। अप्रैल 2019 में जारी किए गए उनके विश्लेषण के मुताबिक यहां काम करने वाली 70 प्रतिशत महिलाओं ने माना है कि उनका यौन शोषण हुआ लेकिन वे इस बारे में चुप थीं। इनमें से कई को जातिगत भेदभाव की वजह से उत्पीड़न झेलना पड़ा। इन खेतों में काम करने वाली 92 प्रतिशत महिलाएं दलित हैं।

खेतों में काम करते-करते कैसे हो जाते हैं खेतिहर मजदूर के पैर. फोटो: यश सचदेव

इस अध्ययन में शामिल 93.71 प्रतिशत महिला मजदूरों पर कर्ज है, लगभग एक परिवार पर 53,916 रुपये का कर्ज है। कुल कर्ज में से 81 प्रतिशत कर्ज गैर संस्थागत स्थानीय साहूकारों से लिया जाता है। शोध में शामिल 90 प्रतिशत को मानकों के मुताबिक मजदूरी के काम के घंटों और न्यूनतम मजदूरी के बारे में नहीं पता था। 36 प्रतिशत से ज्यादा महिला मजदूरों को पुरुषों जितनी मजदूरी नहीं मिलती है।

पंजाब की एक महिला ने नाम न छापने की शर्त पर गांव कनेक्शन को बताया, "छेड़छाड़ तो अक्सर हर महिला के साथ होती है पर हम किसी को बताते इसलिए नहीं क्योंकि लोग हमें ही गलत समझेंगे। गरीब और बिना पढ़ी-लिखी महिला मजदूरों का तो बुरा हाल है। उन्हें मजदूरी भी कम मिलती और सालों-साल कर्ज में डूबा कर रखा जाता है जिससे वो हमेशा बोझ तले दबी रहें और मालिक जब चाहे उनका शोषण करता रहे। अगर कोई महिला हिम्मत करके आवाज़ उठाती भी है तो कहीं कोई सुनवाई नहीं, बाद में मालिक से बदसलूकी पहले से ज्यादा। ऐसे में वो घुट-घुटकर वो अपना पूरा जीवन काट देती हैं पर जुवान नहीं खोलतीं।"

अंतरर्ष्ट्रीय संस्था खाद्य एवं कृषि संगठन के एक शोध के अनुसार, "हिमालय क्षेत्र में एक ग्रामीण महिला किसान खेतों में प्रति वर्ष औसतन 3485 घंटे प्रति हेक्टेयर काम करती हैं, वहीं पुरुष औसतन 1212 घंटे काम करते हैं। इन आंकड़ों से कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी को आंका जा सकता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और डीआरडब्लूए की ओर से नौ राज्यों में किये गये एक शोध से पता चलता है कि प्रमुख फसलों के उत्पादन में महिलाओं की भागीदारी 75 फीसदी तक रही है। इतना ही नहीं, बागवानी में यह आंकड़ा 79 प्रतिशत और फसल कटाई के बाद के कार्यों में 51 फीसदी तक ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी है। इसके अलावा पशुपालन में महिलाओं की भागीदारी 58 प्रतिशत और मछली उत्पादन में यह आंकड़ा 95 प्रतिशत तक है।

झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिला मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर दूर राहेडीह गाँव की शिवली महतो (31 वर्ष) का कहना है, "हम तो दिन के कई घंटे खेतों में काम करते हैं। अब तो महिला कहीं सुरक्षित नहीं चाहें वो घर में रहे या खेत में। जब रेप जैसी घटना सुनते हैं डर तो बहुत लगता है पर कर क्या सकते हैं? खेत में काम करते-करते कई बार इधर-उधर देखते रहते हैं पर काम करना तो नहीं छोड़ सकते? खेतों में काम नहीं करेंगे तो खर्चा कैसे चलेगा? अब तो ऐसा हो गया है कि महिला का मतलब डर के साथ जीना है।" शिवली महतो की तरह लाखों महिला किसान और मजदूर के मन में रेप जैसी घटनाओं के होने से काम के दौरान दहशत रहती हैं।

झारखंड के घने जंगलों के बीच बसे पलामू जिले में स्वयं सहायता समूह से जुड़ी कुछ महिलाएं खेत और जंगल जाते वक़्त कंधे पर कुल्हाड़ी लेकर जरुर जाती हैं, पूछने पर रीता देवी (35 वर्ष) कहती हैं , "जंगल में जाना मतलब कुल्हाड़ी साथ लेकर जाना, भले ही हमें इसकी कोई जरूरत न पड़े पर साथ लेकर जरुर जाते हैं। जंगल में जंगली जानवर कभी भी मिल सकता है दूसरा, सुनसान जंगल में दूर-दूर तक सिर्फ पेड़ दिखाई देते हैं ऐसे में अपनी सुरक्षा के लिए भी ले जाते हैं।"

घने जंगलों के बीच आपके खेत हैं आपको काम करते हुए डर नहीं लगता? इस पर रीता कहती हैं, "हम लोग तो ऐसी जगह रहते हैं जहाँ अगर ऐसी कोई घटना भी हो जाए तो उसकी खबर भी किसी को नहीं लगेगी। जंगल और खेत ही हमारे रोजगार हैं। हम न तो कभी जंगल अकेले गये और न खेत। हम पांच-छह महिलाएं मिलकर एक साथ ही खेत में काम करने जाते हैं और जंगल भी। बीच-बीच में एक दूसरे को आवाज़ भी देते रहते हैं जिससे पता चलता रहे सब सुरक्षित हैं, अभी ऐसा कुछ हुआ तो नहीं है पर क्या भरोसा?"

   

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