स्वतंत्रता दिवस विशेष: रामप्रसाद बिस्मिल का बैरक अब बन चुका है खण्डहर

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स्वतंत्रता दिवस विशेष: रामप्रसाद बिस्मिल का बैरक अब बन चुका है खण्डहरगाँव कनेक्शन विशेष सीरीज

इस स्वतंत्रता दिवस पर गांव कनेक्शन विशेष सीरीज कर रहा है, जिसमें एक अगस्त से लेकर 8 अगस्त तक यूपी महानक्रांतिकारियों के गांव और उनसे जुड़े स्थलों तक पहुंचेगा। सामाजिक कार्यकर्ता शाह आलम के साथ ‘आजादी के डगर पे पांव’ की पहली कड़ी में गोरखपुर

गोरखपुर जेल, मोती जेल वाया कोतवाली

गोरखपुर विश्वविद्यालय गेट से निकली आजादी की डगर पे पांव यात्रा जिला कारागार पंहुची। क्रांतिवीर रामप्रसाद बिस्मिल की शहादत स्थल पर जोश व खरोश नारो के बीच पुष्पाजंलि के बाद सामने लगी प्रतिमा पर माल्यार्पण हुआ। फांसी घर पर हुई सभा में वक्ताओं ने आजादी आंदोलन पर अपनी बात रखते हुए फांसी घर की बदहाली पर गहरा रोष व्यक्त किया।

यही वह जगह है जहां रामप्रसाद बिस्मिल ने फांसी के फंदे के नजदीक गरज कर कहा था कि “मैं बिट्रिश साम्राज्य का विनाश चाहता हूं। “I wish the downfall of British Empire’’। आज भी यह शब्द फांसी घर दिवारों पर लिखा हुआ दिखता है और हम सबके जेहन में तैरता रहता है। प्रसंगवश क्रांतिकारियों की विरासत पर चर्चा करने से पहले हमें सोहन लाल को भी जान लेना चाहिए। वह सोहनलाल जिन्होंने फांसी के तख्ते से हुंकार भरते हुए कहा था। “ शहीदों का वंश कभी निर्वंश नहीं होता है। वह तो हमेशा हरा भरा रहता है। गुस्ताख़ अंग्रेज यदि माफी मांगनी ही है तो तुम्हें हमसे मांफी मागनी चाहिए, न कि मुझे तुमसे।“

जानिए क्या है सीरीज में- गाँव कनेक्शन विशेष सीरीज : आजादी की डगर पे पांव

राम प्रसाद बिस्मिल का फांसीघर।

1873 में बनी अंग्रेज सर्जन मेजर द्वारा गोरखपुर जिला जेल बनी थी। इसी जेल में रामप्रसाद बिस्मिल की बैरक नं आठ ठिकाना था जो कि अब जर्जर हो चुका है। दिवार पर सामने ही गयाप्रसाद 'सनेही' की यह लाइनें भी गलत लिखी है। “वह हृदय नहीं है पत्थर है”। यहां दोनों तरफ आमने समाने आठ- आठ तन्हाई की कोठरी बनी हुई है। बैरक में दाखिल होते हुए बायीं तरफ जो पांचवा कमरा है। इसी कमरे में फांसी से चढ़ने से दो दिन पहले बड़ी मुश्किल से जेल अधिकारियों की नजर बचाकर लिखी थी। किसी तरह यह पांडुलिपि टुकड़ों में स्वदेश के संपादक के पास पहुंची। काल कोठरी की यह रचना सीधे प्रताप प्रेस पहुंची जहां मिशनरी पत्रकार गणेश शंकर विधार्थी के आदेश पर पं. विष्णु शंकर शुक्ल ने संपादन “काकोरी के शहीद” के नाम से प्रकाशित हुई थी और छपते ही जब्त हो गयी थी।

यह भी पढ़ें :स्वतंत्रता दिवस : गोरखपुर जेल में क्रांतिवीर राम प्रसाद बिस्मिल से अक्सर मिला करते थे बाबा

यह पूरी बैरक इतनी खण्डर हो चुकी है कि आसमान दिखता। 11साल भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन को देने वाले बिस्मिल शुरु से चंबल बागी परम्परा के बारिश थे। आनंद प्रकाश, रुद्र राम, परमहंस, मास्टर, महाशय, महंत आदि उनके छद्म नाम थे। जैसे उनके कई नाम थे वैसे उनकी शख्सियत के बहुतेरे आयाम, क्रांतिकारियों के सेनानायक, लेखक, अनुवादक, शायर, वक्ता, रणनीतिकार आदि।

स्मारक खो रहे अपनी पहचान।

इसके बाद यात्रा कोतवाली थाना स्थित पहली जंग ए आजादी के महानायक सरदार अली के मजार पर पहुंची वहां सरदार अली अमर रहे, सरदार अली एवं उनके परिवारजनों के कब्र पर गुलपोशी और चादरपोशी की गयी ,इस दैरान भी इंकलाब जिंदाबाद, सरदार अली अमर रहे , भारत वीर अमर रहे जैसे गगनभेदी नारे गूंजते रहे, यहां से निकल कर युवाओं का हुजूम शहर की पहली मोती जेल पंहुचा। जहा क्रांतिकारियों के कत्लगाह खूनी कुआं पर पहुंचकर वीर बलिदानियों को याद किया। आजादी के 70 साल बाद इसे देश दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि इन सब राष्ट्रीय स्तरों को संरक्षित नहीं किया जा रहा है।

       

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