डोकलाम विवाद पर भारत-चीन में समझौता, पीछे हटेंगी दोनों देशों की सेना, इन 5 कारणों से पीछे हटा चीन

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डोकलाम विवाद पर भारत-चीन में समझौता, पीछे हटेंगी दोनों देशों की सेना, इन 5 कारणों से पीछे हटा चीनचीन भारत सीमा।

नई दिल्ली। डोकलाम विवाद सुलझता दिख रहा है। भारत और चीन दोनों ही अपनी-अपनी सेना हटाने को तैयार हो गए हैं। लगभग तीन महीने से दोनों देशों की सेनाएं डोकलाम में डटी हुई थी। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता, रविश कुमार इस फैसले पर विदेश मंत्रालय का बयान ट्वीट किया है। इस घोषणा को भारत की बड़ी जीत माना जा रहा है क्योंकि भारत इस मसले को बातचीत के जरिए सुलझाने के पक्ष में था, जबकि चीन भारत को लगातार युद्ध के लिए धमका रहा था।

विदेश मंत्रालय के मुताबिक दोनों देश अपनी सेनाएं डोकलाम से पीछे हटा रहे हैं। मंत्रालय ने बताया गया है कि इस मुद्दे को लेकर पिछले कई दिनों से हो रही बातचीत में भारत ने चीन को अपनी चिंताओं से वाफिक कराया जिसके बाद सेनाएं हटाने का फैसला हुआ है।

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क्या है डोकलाम विवाद

दरअसल डोकलाम जिसे भूटान में डोलम कहते हैं। करीब 300 वर्ग किलोमीटर का ये इलाका चीन की चुंबी वैली से सटा हुआ है और सिक्किम के नाथुला दर्रे के करीब है। इसलिए इस इलाके को ट्राई जंक्शन के नाम भी जाना जाता है। ये डैगर यानी एक खंजर की तरह का भौगोलिक इलाका है, जो भारत के चिकन नेक यानी सिलिगुड़ी कॉरिडोर की तरफ जाता है। चीन की चुंबी वैली का यहां आखिरी शहर है याटूंग। चीन इसी याटूंग शहर से लेकर विवादित डोलम इलाके तक सड़क बनाना चाहता है। इसी सड़क का पहले भूटान ने विरोध जताया और फिर भारतीय सेना ने।

चीन लगातार भारत से अपनी सेना हटाने को कह रहा था लेकिन भारत का कहना था कि दोनों देश सेना हटाएं और इस पर बातचीत के जरिए हल निकालें। अब चीन अपनी सेना हटाने को राजी हुआ है तो इसके पीछे ये वजहें मानी जा सकती हैं।

व्यापार एक अहम कारण

चीन ने लगातार भारत को धमकाने की कोशिश की लेकिन भारत के ना झुकने पर आखिर उसे सेना हटाने के लिए विवश होना पड़ा। इसक एक वजह युद्ध की स्थिति में उसके व्यापार को होने वाले नुकसान को भी माना जा रहा है। चीन ने दुनियाभर के बाजार पर बीते कुछ सालों में काफी प्रभाव बनाया है। खासतौर से भारत में चीन के सामान की एक बड़ी मार्किट है, अगर भारत के बाजार से चीन के निकलना पड़ता तो उसे भारी नुकसान उठाना पड़ता। ऐसे में जंग होने पर उसके व्यापार पर बुरा प्रभाव पड़ता और ये चीन नहीं चाहता था।

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बढ़ता अंतरराष्ट्रीय दबाव

दो देशों के बीच टकराव में विश्व के दूसरे देशों का रुख क्या है, ये एक अहम बात मानी जाती है। दो महीने से ज्यादा से चल रहे डोकलमा विवाद में विश्व के ज्यादातर देश भारत की तरफ खड़े आए। दुनियाभर के देशों ने चीन की दादागिरी पर उसका साथ नहीं दिया। पड़ोसी देशों में भी पाकिस्तान को छोड़ ज्यादातर देश भारत की तरफदारी ही करते दिखे। दुनिया के दूसरे देशों का रुख भारत की तरफ होना कहीं ना कहीं चीन पर दबाव की बड़ी वजह रहा।

युद्ध में नुकसान

चीनी मीडिया बार-बार भारत को 1962 के युद्ध का सबक याद रखने के लिए कहता रहा। चीन अपनी सीमा के आसपास संचार तंत्र के मजबूत होने की बात भी अप्रत्यक्ष तौर पर भारत को कहता रहा लेकिन इस बात का अहसास चीन को भी रहा कि जंग होने पर उसको भी भारी नुकसान उठाना पड़ेगा क्योंकि भारत अब 1962 का देश नहीं रहा है। ऐसे में पहले से ही कई विशेषज्ञ इस बात को मान रहे थे कि भले भी चीन कितनी भी कड़ी भाषा बोल रहा हो लेकिन वो कभी भी भारत के खिलाफ युद्ध का जोखिम मोल नहीं लेगा, ये बात ठीक भी साबित हुई।

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विस्तारवादी नीति को लेकर आलोचना

चीन की विस्तारवादी नीति की ना सिर्फ भारत बल्कि पूरे विश्व में आलोचना होती रही है। वो इसे अक्सर अनसुना करता रहा है। चीन पाक आर्थिक गलियारा के रूप में विकसित कर रहे हैं। इसका भी भारत विरोध करता रहा है, अब वो डोकलाम को सड़क के जरिए अपने शहरों से जोड़ने की कोशिश कर रहा था तो इसकी आलोचना हो रही थी और इससे चीन भी अंजान नहीं था।

दक्षिण चीन सागर में विवाद

35 लाख वर्गमील जल क्षेत्र में बसा दक्षिण चीन सागर, प्रशांत महासागर का हिस्सा है। इस पर कई देशों के साथ चीन का विवाद है। साउथ चाइना सी में चीन तमाम कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए अपन मनमानी करता रहा है। यहां मलेशिया, ताइवान, वियतनाम, ब्रुनई जैसे देश भी दावा करते रहे हैं। इस क्षेत्र में पहले से ही कई देशों के साथ तनातनी में फंसा चीन डोकलाम में कोई नई परेशानी नहीं चाहता था। ऐसे में चीन ने अपनी सेना पीछे हटा संवाद को ही सही रास्ता माना।

       

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