इस कड़ाके की ठंड में पतला सा कंबल ओढ़े गत्ते पर सोता है वो बच्चा

Kushal MishraKushal Mishra   4 Jan 2018 6:06 PM GMT

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इस कड़ाके की ठंड में पतला सा कंबल ओढ़े गत्ते पर सोता है वो बच्चालखनऊ के चारबाग स्टेशन के पास बने पुल के नीचे गत्ते के ऊपर एक पतला सा कंबल ओढ़कर सोता बाल मजदूर ‘त्रिवेदी’।    फोटो: गाँव कनेक्शन

लखनऊ। ‘छोटू, जरा थोड़ा छोला डाल दो यार…’ बड़े से भगोने में चमचा घुमाकर एक कटोरी में छोला निकालकर उस बच्चे ने प्लेट में डाला ही था, तभी ‘एक जग में पानी भी निकालकर दे दो यार’ की आवाज सुनकर उस बच्चे ने एक जग में पानी भी भरकर दे दिया।

छोले-चावल के उस ठेले पर आने वाले ग्राहक उस बच्चे को छोटू-छोटू पुकार रहे थे। मगर वह छोटू नहीं था, ठेले का मालिक उसे ‘त्रिवेदी’ बुलाता है। पूरा नाम मालिक से पूछा तो उसे भी नहीं मालूम था। बोला, “हम लोग तो उसे त्रिवेदी… त्रिवेदी… बुलाते हैं भईया।“

चारबाग स्टेशन पर एक ठेले पर काम करता है त्रिवेदी

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन पर सड़क किनारे ‘त्रिवेदी’ एक छोले-कुल्चे बेचने वाले ठेले पर काम करता है। चारों पहर भीड़ वाला इलाका होने के कारण इस कड़ाके की सर्दी में भी ठेला 24 घंटे लगता है। बुधवार को लखनऊ का न्यूनतम तापमान 7 डिग्री था। ठंडी-ठंडी चलती हवाओं के बीच त्रिवेदी रात को सड़क किनारे ही बर्तन धोते मिला।

‘अब हमारा नाम भी त्रिवेदी है’

बर्तन घिसते-घिसते बहुत कम बातचीत करने वाले उस 13-14 साल के बच्चे ‘त्रिवेदी’ ने बताया, “मैं रायबरेली से हूं। सब लोग हमको त्रिवेदी ही बुलाते हैं। इसलिए अब हमारा नाम भी त्रिवेदी है।“ काम के बारे में पूछने पर उसने आगे कहा, “ठेले पर सब तरीके का काम करता हूं, थाली लगाने से लेकर धोने तक। तभी तो पैसा मिलता है।“ अगला सवाल था, “कितना कमा लेते हो?” त्रिवेदी ने कहा, “4,800 रुपए महीने में मिलते हैं।”

जब नींद आती है तो यहीं, इस पुल के नीचे थोड़ी सी जगह है, यहीं गत्ते बिछाकर सो जाता हूं। एक कंबल है, वहीं ओढ़कर सो जाता हूं।
बाल मजदूर

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तो फिर सोते कब हो?

जब पूछा, “24 घंटे ठेले पर काम करते हो तो सोते कब हो?” त्रिवेदी ने बताया, “जब नींद आती है तो यहीं, इस पुल के नीचे थोड़ी सी जगह है, यहीं गत्ते बिछाकर सो जाता हूं।“ जब मैंने पूछा कि कंबल-वंबल की क्या व्यवस्था है तो उसने कहा, “एक कंबल है, वहीं ओढ़कर सो जाता हूं।“ ज्यादा बातचीत होने पर ठेले मालिक ने त्रिवेदी को आवाज देकर बुला लिया।

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इसी दिन मुख्यमंत्री ने रैन बसेरों का किया निरीक्षण

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कड़ाके की ठंड के बीच बुधवार रात में ही रैन बसेरों का अधिकारियों के साथ निरीक्षण किया। मुख्यमंत्री ने शहर के रैन बसेरों का हाल खुद देखा और वहां ठहरे गरीब और जरुरतमंद लोगों को जमीन पर लेटे देखने पर अधिकारियों को सख्य निर्देश दिए कि रैन बसेरों में कोई भी जमीन पर नहीं सोएगा और सभी के लिए बिस्तर की व्यवस्था करने के आदेश दिए।

मगर इन बाल मजदूरों का क्या?

फोटो साभार: इंटरनेट

सिर्फ 13-14 साल के ‘त्रिवेदी’ जैसे देशभर में लाखों बच्चे बाल मजदूरी का शिकार हैं। ‘त्रिवेदी’ जैसी तस्वीर देश में लाखों बच्चों के चेहरों पर नजर आ जाएगी। कहीं ठेलों पर, तो कहीं दुकानों पर, कहीं न कहीं यह तस्वीर दिनों दिन बड़ी होती जा रही है। बड़े-बड़े शहर हों या फिर छोटे से छोटे गाँव, हर जगह बाल मजदूरी करते ऐसे बच्चे आपको राह चलते ही मिल जाएंगे। कई बच्चे मजबूरी में अपना गाँव छोड़कर काम की तलाश में शहरों में नौकरी कर रहे हैं। ऐसे में ऐसे लाखों बच्चे भी हैं, जो अपना गुजर-बसर किसी तरह कर पा रहे हैं।

भारत में 43 लाख से ज्यादा बच्चे बाल मजदूर

यह आंकड़ा हैरान करने वाला है, जनगणना 2011 के आंकड़ों के अनुसार, पांच से 14 साल की उम्र के 43,53,247 लाख बच्चे बाल मजदूरी कर रहे हैं। आबादी के अनुसार तुलना करें तो देश में बच्चों की कुल आबादी में इन बाल मजदूरों की हिस्सेदारी 1.68 प्रतिशत है। इतना ही नहीं, देश की कामकाजी आबादी में इनकी हिस्सेदारी 1.20 प्रतिशत है।

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आज सरकार बच्चों के लिए कक्षा आठ तक की सभी सुविधाएं नि:शुल्क दे रही है। कॉपी, किताबों से लेकर मध्यावधि भोजन तक की व्यवस्था है, ताकि सभी बच्चे स्कूल आकर पढ़ सकें। हम आंगनबाड़ी कार्यकत्री पूरी कोशिश करते हैं कि ऐसे बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा में लाया जाए।
कंचन पाण्डेय, आंगनबाड़‍ी कार्यकत्री, खम्बूदुबे पट्टी, शिवब्लॉक, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश

फोटो साभार: इंटरनेट

‘कक्षा आठ तक सभी सुविधाएं नि:शुल्क’

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के शिवब्लॉक के खम्बूदुबे पट्टी में काम कर रही आंगनबाड़ी कार्यकत्री कंचन पाण्डेय बताती हैं, “आज सरकार बच्चों के लिए कक्षा आठ तक की सभी सुविधाएं नि:शुल्क दे रही है। कॉपी, किताबों से लेकर मध्यावधि भोजन तक की व्यवस्था है, ताकि सभी बच्चे स्कूल आकर पढ़ सकें। हम आंगनबाड़ी कार्यकत्री पूरी कोशिश करते हैं कि ऐसे बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा में लाया जाए।“

‘कई माता-पिता मजबूरी भी बताते हैं तो…’

कंचन आगे कहती हैं, “बाल श्रम कानून होने के बावजूद हमारे देश में बाल मजदूरों की संख्या ज्यादा है। मगर हम स्कूल छात्र-छात्राओं के साथ समय-समय पर रैली, नुक्कड़ नाटक के जरिए बच्चों समेत उनके माता-पिता को भी पढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। कई माता-पिता अपनी मजबूरी भी बताते हैं, मगर हम उन्हें समझाते हैं कि कैसे एक पढ़ा-लिखा बच्चा नाम करने के साथ अच्छा काम कर भविष्य में पैसा कमा सकता है।“

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‘समस्या बड़ी है, जागरुक जरूरी’

बच्चों के लिए काम कर रही क्राई (CRY) संस्था, नई दिल्ली के वरिष्ठ प्रबंधक प्रमोद प्रधान बताते हैं, “देश में बाल मजदूरों की समस्या बहुत बड़ी है, इस बारे में लोगों को समझना बहुत जरूरी है, जागरुक होना जरूरी है। हम लोग ऐसे बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा में लाने का काम करते हैं, मगर और प्रयास किए जाने की जरुरत है।“

जरूरी है कि हर क्षेत्र के अनुसार बाल मजदूरों को ट्रैक किया जाए और उनको शिक्षा संबंधी सभी बेहतर सुविधाएं दिलाने के लिए और प्रयास किया जाए, तभी बाल मजदूरी को रोक पाने में सफल हो सकेंगे।
प्रमोद प्रधान, वरिष्ठ प्रबंधक, क्राई (CRY) संस्था

बाल मजदूरी में कोई धर्म अछूता नहीं

फोटो साभार: इंटरनेट

देश में बाल मजदूरी का दंश हर धर्म के बच्चे झेल रहे हैं। इनमें सबसे बड़ी संख्या हिंदू धर्म में है। जनगणना 2011 के अनुसार, हिंदू धर्म में 5 से 14 साल की उम्र में 33,67,817 बच्चे बालू मजदूरी कर रहे हैं। वहीं, मुस्लिम धर्म में इसी आयुवर्ग में यह आंकड़ा 7,53,618 है। इसके अलावा ईसाई धर्म में बाल मजदूरों की संख्या 81,711, सिख धर्म में 57,542, बौद्ध धर्म में 30,599, जैन धर्म में 7,292 समेत अन्य समुदायों में 31,780 बाल मजदूर चिन्हित किए गए हैं।

‘तभी बाल मजदूरी को रोक पाने में सफल हो सकेंगे’

प्रमोद आगे बताते हैं, “कई कमियां हैं, जैसे गाँवों में शिक्षा का स्तर अच्छा न होना, माता-पिता की रूढ़ीवादी सोच, शिक्षा के प्रति लोगों में जागरुकता का अभाव, माता-पिता की आय का श्रोत अच्छा न होना, ये ऐसे मुख्य कारण हैं, जिस पर बच्चे बाल मजदूरी का शिकार होते हैं।“ आगे कहा, “समय-समय पर सरकार की ओर से अभियान जरूर चलाएं जाते हैं, मगर जरूरी है कि हर क्षेत्र के अनुसार बाल मजदूरों को ट्रैक किया जाए और उनको शिक्षा संबंधी सभी बेहतर सुविधाएं दिलाने के लिए और प्रयास किया जाए, तभी बाल मजदूरी को रोक पाने में सफल हो सकेंगे।“

बाल मजदूरी हमारे देश की बहुत बड़ी समस्या है। इसे रोकने के लिए जब तक शिक्षा विभाग, श्रम विभाग समेत बच्चों से जुड़ी स्वयं सेवी संस्थाएं एक साथ मिलकर काम नहीं करेंगी, तब तक परिणाम अच्छे नहीं मिलेंगे।
सत्येंद्र पाण्डेय, परियोजना समन्वयक, चाइल्ड लाइन, उत्तर प्रदेश

एक साथ मिलकर काम करने की जरुरत

उत्तर प्रदेश के चाइल्ड लाइन के परियोजना समन्वयक सत्येंद्र पाण्डेय बताते हैं, ““बाल मजदूरी हमारे देश की बहुत बड़ी समस्या है। इसे रोकने के लिए जब तक शिक्षा विभाग, श्रम विभाग समेत बच्चों से जुड़ी स्वयं सेवी संस्थाएं एक साथ मिलकर काम नहीं करेंगी, तब तक बाल मजदूरों को रोक पाने के परिणाम अच्छे नहीं मिलेंगे।“

सत्येंद्र पाण्डेय आगे बताते हैं, “सरकारी तंत्र को अभियान चलाने के साथ-साथ देश के हर एक क्षेत्र में ऐसे बच्चों को ट्रैकिंग होनी चाहिए। साथ-साथ बाल श्रम कानून और बाल अधिकारों के प्रति लोगों को जागरुक करना होगा, ताकि वे अपने बच्चों से मजदूरी न कराएं। इतना ही नहीं, कानून का उल्लंघन करने वाले ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त से सख्त सजा दिलानी होगी।“

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