आज भी भारत का ये रेलवे ट्रैक ब्रिटेन के कब्जे में है, हर साल देनी पड़ती है 20 लाख की रॉयल्टी

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आज भी भारत का ये रेलवे ट्रैक ब्रिटेन के कब्जे में है, हर साल देनी पड़ती है 20 लाख की रॉयल्टीशकुंतला एक्सप्रेस ( फोटो साभार : इंटरनेट)

जब हम ये सुनते हैं भारतीय रेलवे दुनिया में सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार देने वाली संस्था है तो गौरवान्तित महसूस करते हैं लेकिन क्या आपको पता है कि आज भी भारत में ऐसा रेलवे ट्रैक है जो ब्रिटेन के कब्जे में है। हालांकि इसके पीछे की वजह अस्पष्ट है।

महाराष्ट्र के अमरावती में नैरो गेज (छोटी लाइन) के इस ट्रैक का इस्तेमाल करने वाली भारतीय रेलवे को हर साल एक करोड़ 20 लाख की रॉयल्टी ब्रिटेन की एक प्राइवेट कंपनी को देनी पड़ती है।अमरावती से मुर्तजापुर में स्थित इस ट्रैक में सिर्फ एक पैसेंजर ट्रेन शकुंतला एक्सप्रेस चलती है। 189 किलोमीटर के इस सफर को यह छह-सात घंटे में पूरा करती है। अपने इस सफर में शकुंतला एक्सप्रेस अचलपुर, यवतमाल समेत 17 छोटे-बड़े स्टेशनों पर रुकती है। 100 साल पुरानी पांच डिब्बों की इस ट्रेन को 70 साल तक स्टीम का इंजन खींचता था। इसे 1921 में ब्रिटेन के मैनचेस्टर में बनाया गया था।

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ये है वो ट्रैक

1916 में बनाया गया था रेलवे ट्रैक

वहीं रेलवे ट्रैक 1903 में ब्रिटिश कंपनी क्लिक निक्सन की ओर से शुरू किया गया रेल ट्रैक को बिछाने का काम 1916 में जाकर पूरा हुआ। 1857 में स्थापित इस कंपनी को आज सेंट्रल प्रोविन्स रेलवे कंपनी के नाम से जाना जाता है। ब्रिटिशकाल में प्राइवेट फर्म ही रेल नेटवर्क को फैलाने का काम करती थी। 1951 में भारतीय रेल का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। सिर्फ यही रूट भारत सरकार के अधीन नहीं था।

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15 अप्रैल 1994 को शकुंतला एक्सप्रेस के स्टीम इंजन को डीजल इंजन से बदला गया। इस रेल रूट पर लगे सिग्नल आज भी ब्रिटिशकालीन हैं। इनका निर्माण इंग्लैंड के लिवरपूल में 1895 में हुआ था और आज भी इस पैसेंजर ट्रेन में प्रतिदिन एक हजार से ज्यादा लोग ट्रेवल करते हैं। इस रूट पर चलने वाली शकुंतला एक्सप्रेस के कारण इसे ‘शकुंतला रेल रूट’ के नाम से भी जाना जाता है।

ट्रैक पर अधिकतम स्पीड मात्र 20 किमी/घंटा

हालांकि हर साल ब्रिटेन को पैसा देने के बावजूद यह ट्रैक बेहद जर्जर है। रेलवे के अनुसार पिछले 60 साल से इसकी मरम्मत भी नहीं हुई है। इस पर चलने वाले जेडीएम सीरीज के डीजल लोको इंजन की अधिकतम गति 20 किलोमीटर प्रति घंटे रखी जाती है। इस सेंट्रल रेलवे के 150 कर्मचारी इस घाटे के मार्ग को संचालित करने में आज भी लगे हैं।

कई बार खरीदने का प्रयास असफल

इस ट्रैक पर चलने वाली शकुंतला एक्सप्रेस पहली बार 2014 में और दूसरी बार अप्रैल 2016 में बंद किया गया था। स्थानीय लोगों की मांग और सांसद आनंद राव के दबाव में सरकार को फिर से इसे शुरू करना पड़ा। भारत सरकार ने इस ट्रैक को कई बार खरीदने का प्रयास भी किया लेकिन तकनीकी कारणों से वह संभव नहीं हो सका।

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